फीडर विभक्तिकरण योजना
बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .
आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . आज दुनिया की आबादी लगभग ७८ मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है , पिछले ५० सालों में दुनिया की आबादी दुगनी हो गई है . एक अनुमान के अनुसार आज भी दुनिया की चौथाई आबादी तक बिजली की पहुंच बाकी है . जन जन तक बिजली पहुंचाने के बढ़ते प्रयासों के कारण ही उर्जा के किसी अन्य प्रकार की अपेक्षा बिजली की खपत में असाधारण वृद्धि हो रही है , जिसके चलते बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .न केवल भारत में वरन वैश्विक परिदृश्य में भी बिजली की कमी है .
वर्तमान में पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है , जबकि सारे प्रयासो के बाद भी ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा सक रही है , इस तरह १६.६प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है . आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट , की जगह केवल ६६६हजार किलोवाट अवर यूनिट ही उपलब्ध की जा पा रही है . अनुमानो के अनुसार वर्ष २०११..२०१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी , जो वर्ष २०१६ ..१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी . वर्ष २०११..२०१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट के उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६ ..१७ अर्थात १२ पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जाने का पूर्वानुमान लगाया गया है .इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिये एक ओर बिजली उत्पादन में वृद्धि के हर संभव प्रयास , उत्पादन में निजि क्षेत्र की भागी दारी को बढ़ावा दिया जा रहा है .
बिजली के साथ एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि इसे व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता .जो कुछ थोड़ा सा विद्युत भंडारण संभव है वह रासायनिक उर्जा के रूप में विद्युत सैल या बैटरी के रूप में ही संभव है . बिजली का व्यवसायिक उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है . शाम के समय जब सारे देश में एक साथ प्रकाश के लिये बिजली का उपयोग बढ़ता है , मांग व आपूर्ति का अंतर सबसे ज्यादा हो जाता है .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री जी की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है।
प्रथम चरण में इस कार्य को तहसील फीडरों में किया जाना प्रस्तावित किया गया है। तीनों विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा आगामी पाँच वर्षों के लिये 8900 करोड़ रूपये राशि के व्यय से यह लक्ष्य पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है।ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण योजना के तहत खेती और घरेलू उपयोग के लिए फीडर अलग-अलग किए जाने हैं। इससे खेती के लिए थ्री फेज पर बिजली आपूर्ति की जाएगी और घरेलू उपयोग के लिए सिंगल फेज पर 24 घंटे बिजली दी जाएगी। बिजली मिलने से गांवों का विकास होगा, साथ ही बिजली चोरी पर भी अंकुश लग सकेगा। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानि में 10 प्रतिशत तक कमी आएगी। एक प्रतिशत लाइन लॉस कम होने से 125 करोड़ रूपए की बचत होगी।इस तरह एक साल में 1250 करोड़ रुपये बचेंगे और कुछ ही सालों मेंफीडर विभक्तिकरण पर किया जा रहा व्यय बिजली की बचत व उसके समुचित उपयोग से निकल आएगा। गुजरात व राजस्थान सरकारों द्वारा पहले ही फीडर विभक्तिकरण योजना क्रियान्वित की जा चुकी है .
तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियों के स्तर में कमी लाने के लिये फीडर विभक्तिकरण योजना को अतिउच्च वोल्टेज प्रणाली के साथ लागू किया गया है। इस योजना के तहत जिन ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण कार्य किया जा रहा है, वहां विद्युत प्रदाय में सुधार के साथ-साथ वोल्टेज के स्तर में भी सुधार होगा तथा तकनीकी हानियों में भी कमी होगी .
राज्य शासन द्वारा गत वर्ष 2008-09 में प्रदेश की तीन विद्युत वितरण कंपनियों को 100 करोड़ रूपये की राशि मुहैया करायी गई थी। फीडर विभक्तिकरण के लिय विश्व बैंक तथा एशियन डेव्हलपमेंट बैंक व पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से ऋण प्राप्त करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। फीडर विभक्तिकरण कार्यों के लिये वर्ष 2009-10 के बजट में 8 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य शासन का लक्ष्य है कि 2013 तक जहां प्रदेश स्वर्णिम प्रदेश के रूप में स्थापित होगा, वहीं बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। फीडर विभक्तिकरण योजना के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि पम्प उपभोक्ताओं एवं ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं को अलग अलग फीडरों से गुणवत्तापूर्ण एवं सतत विद्युत प्रदाय किया जावेगा। फीडर विभक्तिकरण योजना को मूर्तरूप देने के लिए ही राज्य शासन ने प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों में हाल ही में नए पद स्वीकृत किए हैं। इन पदों की स्वीकृति का उद्देश्य यह है कि वर्ष 2013 तक फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य पूरे हो जाएं और इसमें विद्युत कर्मियों की कमी आड़े न आए। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानियों के स्तर को 20 प्रतिशत या 20 प्रतिशत से भी कम पर लाया जा सकेगा।
विद्युत तंत्र हमारी सुख सुविधा का साधन है, उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी हैं । यह सार्वजनिक हित का साझा संसाधन है , अतः हर यूनिट बिजली का समुचित उपयोग हो सके, इसी दिशा में फीडर विभक्तिकरण परियोजना एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी .
ham to bijli bachane ke liye kosis kar sakte he
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shkaher kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/