03 जुलाई, 2016

देश की अखण्डता के लिये देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगो का बिखराव जरूरी है

देश की अखण्डता के लिये देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगो का बिखराव जरूरी है

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
अधीक्षण अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनी
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८
फोन ०७६१२६६२०५२

        प्रश्न है देशों का निर्माण  कैसे हुआ  ?  भौगोलिक स्थितियो के अनुसार लोगो का रहन सहन लगभग एक समान ही होता है . नदियो , पहाड़ो , रेगिस्तानो जैसी प्राकृतिक बाधाओ ने प्राचीन समय में देशो की सीमायें निर्धारित की . इतिहास साक्षी है कि एक ही विचारधारा और धर्म के मानने वाले भी एक ही राज्य के झंडे तले एकजुट होते रहे . विस्तार वादी नीतीयो से जब युद्ध राजधर्म सा बन गया तो सेनाओ को एकजुट रखने में भी धर्म का उपयोग किया गया . पिछली सदी में जब दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यो का महत्व बढ़ा तो ,विस्तारवादी  युद्धो की वैश्विक भर्तसना होनी शुरु हुई . पर किंबहुना आज भी देशो के नक्शे  क्षेत्रो की भौगोलिक स्थिति  , राष्ट्रो की शक्तिसंपन्नता , वैचारिक और धार्मिक आधारो पर ही तय हो रहे हैं . भारत एक लोकतांत्रिक विश्व शक्ति है . हमारा संविधान हमें धार्मिक स्वतंत्रता देता है  .संविधान के अनुच्छेद (२५-२८) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वर्णित हैं, जिसके अनुसार नागरिकों को  अंत:करण  और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्‍वतंत्रता, धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्‍वतंत्रता , किसी विशिष्‍ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्‍वतंत्रता तथा धार्मिक शिक्षा संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में भारत के हर नागरिक को संविधान द्वारा स्‍वतंत्रता प्रदान की गई है .
        हमारा संवैधानिक स्वरूप धर्म निरपेक्ष है ,  किंतु फिर भी देश में राजनीति धर्म आधारित ही है . चुनावों में सरे आम धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोटो का अंदाजा लगाकर पार्टियां उम्मिदवार तय करती हैं , मीडिया जातिगत वोटो की खुले आम चर्चा करता है पर चुनाव आयोग मौन रहता है ! मुझे लगता है देश में संविधान को गिने चुने लोगो द्वारा आम जनता पर थोपा गया है , यह ठीक रहा क्योकि संविधान व्यापक रूप से जनहितकारी है , पर जनमानस से ऐसे उदार संविधान की मांग  उठने से पहले ही संविधान बना दिया गया जिसके चलते आम आदमी संविधान के महत्व से अपरिचित है , और इतर संवैधानिक गतिविधियो में संलग्न है . आज जरुरत लगती है कि देश की जनता को संविधान से परिचित करवाने के लिये अभियान चलाया जाये . जिससे आज के युवा नागरिक भी अपने संविधान पर गर्व करें और तद्अनुसार आचरण करें .
        काशमीर से हिंदू पंडितो का विस्थापन , और अब उन्हें पुनः वहाँ बसाने को लेकर राजनीति गर्माई हुई है . पूर्वोत्तर के राज्यो में ईसाई धर्म का बाहुल्य है , और विदेशी ताकतें व ईसाई मिशनरियां धर्म के आधार पर वहां एकजुटता बनाकर देश विरोधी संगठन खडे करती रहती हैं . तमिलनाडु में धर्म के आधार पर ही श्रीलंका से सिंहली कनेक्शन रहे हैं , स्व राजीव गांधी की हत्या इसका ही दुष्परिणाम था . केरल में क्रिश्चेनिटी के कारण ही एक ही दल लगातार सत्ता पर बरसो से काबिज बना रहा है . हिंदी बहुल क्षेत्रो की बात की जाये तो धर्म ही नहीं  जाति के आधार पर भी ध्रुवीकरण की तस्वीर साफ दिखती है . बिहार और उत्तर प्रदेश में यादवो का बोलबाला है . उत्तर प्रदेश में राम मंदिर के निर्माण को मुद्दा बनाकर यदि चुनाव लड़ा जाये,   दलितो की अलग राजनैतिक पार्टी ही बन जाये और राजनेताओ द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण से वोट पाने की होड़ लगाई जाये तो मेरी समझ में यह संविधान का खुल्लम खल्ला मजाक है .जो सरे आम ताल ठोंककर राजनेता उड़ा रहे हैं व आम जनता दिग्भ्रमित है . गुजरात का पटेल आंदोलन तथा हरियाणा व राजस्थान का जाट आंदोलन ताजी तरीन बात है . १९५६ में जब प्रदेशो की पुनर्स्थापना की गई तो मध्य प्रदेश की राजधानी जबलपुर की जगह भोपाल में इसी आधार पर बनाई गई थी कि भोपाल में मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण वहां राजधानी बनने से गैर मुस्लिमो की पदस्थापनायें हो और धार्मिक समरसता बन सके . किसी हद तक भोपाल के इस प्रयोग ने एक अच्छा उदाहण भी प्रस्तुत किया . आज भी धार्मिक दंगे उन्हीं क्षेत्रो में होते हैं जहां किसी एक धर्म या जाति का बाहुल्य है .आबादी की  धार्मिक समरसता व संतुलन  से मिलनसारिता बढ़ती ही है . ऐसा सारे देश में किया जाना जरूरी है .
        काश्मीर में हि्दू पंडितो के लिये  सैनिक सुरक्षा में अलग कालोनी बसाने की बात कुछ ऐसी है जैसे वहां के मुसलमान कोई जंगली जानवर हों ! मैं हाल ही काश्मीर घूम कर लौटा , यद्यपि यह सही है कि मैं वहां टूरिस्ट था और टूरिज्म आधारित व्यवसाय होने के कारण मेरे साथ संपर्क में आये मुसलमानो का व्यवहार हमारे प्रति अतिरिक्त रूप से उदार रहा होगा , पर जब एक ही शहर में रहना हो , साथ साथ जीना हो तो किसी जाति विशेष के लिये बिल्कुल अलग कालोनी बसाने के प्रस्ताव का कोई भी  समझदार व्यक्ति समर्थन नही कर सकता .काश्मीर में इस तरह की घटिया राजनीति करने की अपेक्षा वहां स्थाई रुप से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलेपमेंट की आवश्यकता है . सरकारें वहां फोरलेन सड़कें बनवा दें  , बिजली व्यवस्था का सुढ़ृड़ीकरण  कर , टूरिज्म के विकास हेतु जरूरी कार्य कर  दें , बाकी सब वहां की जनता स्वयं ही कर लेगी . जब वहां रोजगार के पर्याप्त संसाधन होंगे तो वहां के युवा पढ़े लिखे मुसलमान विस्थापित हिन्दू  पंडितो को ही नहीं हर भारत वासी को धारा ३७० की अवहेलना करते हुये वहां अपने साथ बसने देंगे यह बात मैं काश्मीर में वहां के  लोगों से अनौपचारिक चर्चा के आधार पर कह रहा हूं . जैसे प्रयत्न अभी राजनेता कश्मीरी पंडितो को बसाने के लिये कर रहे हैं उससे तो स्थाई वैमनस्यता और वर्ग संघर्ष को जन्म मिलेगा . देश के अनेक शहरो में भी बंगलादेश से आये हुये शरणार्थियो की  अलग कालोनियां  बनी हुई हैं , या मुसलमानो ने या सिंधियो ने अनेक शहरो में क्षेत्र विशेष में अलग कोनो में बसाहट की हुई है . प्रशासन के लोग समझते हैं कि जहां भी इस तरह की असंतुलित आबादी की बस्तियां हैं वहां त्यौहार विशेष या धार्मिक असद्भाव फैलने पर कितनी कठिनाई से ला एण्ड आर्डर मेंटेन हो पाता है . गुजरात में बिल्डिंग विशेष उपद्रवियो का निशाना इसीलिये बन सकी क्योकि वहां धर्म विशेष के लोग रहते थे . मेरा सुझाव है कि कानून बनाकर जातिगत या धर्मगत आधार पर कालोनियो और बिल्डिंगो में  एक साथ एक ही वर्ग के लोगो को रहने पर रोक लगा देनी चाहिये . इस तरह के आवासीय ध्रुवीकरण की कल्पना तक संविधान निर्माताओ ने नही की होगी . वर्ग विशेष के लोग यदि इस तरह की आवास व्यवस्था में स्वयं को सुरक्षित मानते हैं तो ऐसी  परिस्थितियों के लिये विगत ७० वर्षो की राजनीति ही दोषी कही जायेगी .
        संविधान निर्माताओ के सपने का सच्चा धर्म निरपेक्ष भारत तभी वास्तविक स्वरूप ले सकता है जब सारे देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगो का स्वतंत्र बिखराव हो , यह देश की अखण्डता के लिये आवश्यक है . आशा है राजनेता क्षुद्र राजनीति से उपर उठकर देश के दीर्घ कालिक व्यापक हित में इस दिशा में चिंतन मनन और काम करेंगे . अन्यथा नई पीढ़ी के पढ़े लिखे लड़के लड़कियो ने जैसे आज विवाह तय करने में माता पिता और परिवार की भूमिका को  गौंण कर दिया है उसी तरह सरकारो को दरकिनार करके समाज को देश की धार्मिक अखण्डता के लिये स्वतः ही कोई न कोई कदम उठाना ही पड़ेगा .
       

01 जुलाई, 2016

जलाशयो , वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो को ऊंचा नही गहरा किया जावे

जल संग्रह गहरा हो ऊंचा नहीं

विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
अधीक्षण अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनी
फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८
फोन ०७६१२६६२०५२


            पानी जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है . सारी सभ्यतायें नैसर्गिक जल स्रोतो के तटो पर ही विकसित हुई हैं . बढ़ती आबादी के दबाव में , तथा ओद्योगिकीकरण से पानी की मांग बढ़ती ही जा रही है . इसलिये भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और परिणाम स्वरूप जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है . नदियो पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाये गये हैं . बांधो की ऊंचाई को लेकर अनेक जन आंदोलन हमने देखे हैं . बांधो के दुष्परिणाम भी हुये , जंगल डूब में आते चले गये और गांवो का विस्थापन हुआ . बढ़ती पानी की मांग के चलते जलाशयों के बंड रेजिंग के प्रोजेक्ट जब तब बनाये जाते हैं . अब समय आ गया है कि जलाशयो , वाटर बाडीज , शहरो के पास नदियो  को ऊंचा नही गहरा किया जावे .
            यांत्रिक सुविधाओ व तकनीकी रूप से विगत दो दशको में हम इतने संपन्न हो चुके हैं कि समुद्र की तलहटी पर भी उत्खनन के काम हो रहे हैं . समुद्र पर पुल तक बनाये जा रहे हैं बिजली और आप्टिकल सिग्नल केबल लाइनें बिछाई जा रही है . तालाबो , जलाशयो की सफाई के लिये जहाजो पर माउंटेड ड्रिलिंग , एक्सकेवेटर , मडपम्पिंग मशीने उपलब्ध हैं . कई विशेषज्ञ कम्पनियां इस क्षेत्र में काम करने की क्षमता सम्पन्न हैं .मूलतः इस तरह के कार्य हेतु किसी जहाज या बड़ी नाव , स्टीमर पर एक फ्रेम माउंट किया जाता है जिसमें मथानी की तरह का बड़ा रिग उपकरण लगाया जाता है , जो जलाशय की तलहटी तक पहुंच कर मिट्टी को मथकर खोदता है , फिर उसे मड पम्प के जरिये जलाशय से बाहर फेंका जाता है . नदियो के ग्रीष्म काल में सूख जाने पर तो यह काम सरलता से जेसीबी मशीनो से ही किया जा सकता है . नदी और बड़े नालो मे भी  नदी की ही चौड़ाई तथा लगभग एक किलोमीटर लम्बाई में चम्मच के आकार की लगभग दस से बीस मीटर की गहराई में खुदाई करके रिजरवायर बनाये जा सकते हैं . इन वाटर बाडीज में नदी के बहाव का पानी भर जायेगा , उपरी सतह से नदी का प्रवाह भी बना रहेगा जिससे पानी का आक्सीजन कंटेंट पर्याप्त रहेगा . २ से ४ वर्षो में इन रिजरवायर में धीरे धीरे सिल्ट जमा होगी जिसे इस अंतराल पर ड्रोजर के द्वारा साफ करना होगा . नदी के क्षेत्रफल में ही इस तरह तैयार जलाशय का विस्तार होने से कोई भी अतिरिक्त डूब क्षेत्र जैसी समस्या नही होगी . जलाशय के पानी को पम्प करके यथा आवश्यकता उपयोग किया जाता रहेगा .
            अब जरूरी है कि अभियान चलाकर बांधो में जमा सिल्ट ही न निकाली जाये वरन जियालाजिकल एक्सपर्टस की सलाह के अनुरूप  बांधो को गहरा करके उनकी जल संग्रहण क्षमता बढ़ाई जाने के लिये हर स्तर पर प्रयास किये जायें . शहरो के किनारे से होकर गुजरने वाली नदियो में ग्रीष्म ‌‌काल में जल धारा सूख जाती है , हाल ही पवित्र क्षिप्रा के तट पर संपन्न उज्जैन के सिंहस्थ के लिये क्षिप्रा में नर्मदा नदी का पानी पम्प करके डालना पड़ा था . यदि क्षिप्रा की तली को गहरा करके जलाशय बना दिया जावे  तो उसका पानी स्वतः ही नदी में बारहो माह संग्रहित रहा आवेगा  .  इस विधि से बरसात के दिनो में बाढ़ की समस्या से भी किसी हद तक नियंत्रण किया जा  सकता है . इतना ही नही गिरते हुये भू जल स्तर पर भी नियंत्रण हो सकता है क्योकि गहराई में पानी संग्रहण से जमीन रिचार्ज होगी , साथ ही जब नदी में ही पानी उपलब्ध होगा तो लोग ट्यूब वेल का इस्तेमाल भी कम करेंगे . इस तरह दोहरे स्तर पर भूजल में वृद्धि होगी . नदियो व अन्य वाटर बाडीज के गहरी करण से जो मिट्टी , व अन्य सामग्री बाहर आयेगी उसका उपयोग भी भवन निर्माण , सड़क निर्माण तथा अन्य इंफ्रा स्ट्रक्चर डेवलेपमेंट में किया जा सकेगा . वर्तमान में इसके लिये पहाड़ खोदे जा रहे हैं जिससे पर्यावरण को व्यापक स्थाई नुकसान हो रहा है , क्योकि पहाड़ियो की खुदाई करके पत्थर व मुरम तो प्राप्त हो रही है पर इन पर लगे वृक्षो का विनाश  हो रहा है , एवं पहाड़ियो के खत्म होते जाने से स्थानीय बादलो से होने वाली वर्षा भी प्रभावित हो रही है .
            नदियो की तलहटी की खुदाई से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि इन नदियो के भीतर छिपी खनिज संपदा का अनावरण सहज ही हो सकेगा . छत्तीसगढ़ में महानदी में स्वर्ण कण   मिलते हैं ,तो कावेरी के थले में प्राकृतिक गैस , इस तरह के अनेक संभावना वाले क्षेत्रो में विषेश उत्खनन भी करवाया जा सकता है .
            पुरातात्विक महत्व के अनेक परिणाम भी हमें नदियो तथा जलाशयो के गहरे उत्खनन से मिल सकते हैं , क्योकि भारतीय संस्कृति में आज भी अनेक आयोजनो के अवशेष  नदियो में विसर्जित कर देने की परम्परा हम पाले हुये हैं . नदियो के पुलो से गुजरते हुये जाने कितने ही सिक्के नदी में डाले जाने की आस्था जन मानस में देखने को मिलती है . निश्चित ही सदियो की बाढ़ में अपने साथ नदियां जो कुछ बहाकर ले आई होंगी उस इतिहास को अनावृत करने में नदियो के गहरी करण से बड़ा योगदान मिलेगा .
            पन बिजली बनाने के लिये अवश्य ऊँचे बांधो की जरूरत बनी रहेगी , पर उसमें भी रिवर्सिबल रिजरवायर , पम्प टरबाईन टेक्नीक से पीकिंग अवर विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देकर गहरे जलाशयो के पानी का उपयोग किया जा सकता है .
            मेरे इस आमूल मौलिक  विचार पर भूवैज्ञानिक , राजनेता , नगर व ग्राम स्थानीय प्रशासन , केद्र व राज्य सरकारो को तुरंत कार्य करने की जरुरत है , जिससे महाराष्ट्र जैसे सूखे से देश बच सके कि हमें पानी की ट्रेने न चलानी पड़े , बल्कि बरसात में हर क्षेत्र की नदियो में बाढ़ की तबाही मचाता जो पानी व्यर्थ बह जाता है तथा साथ में मिट्टी बहा ले जाता है वह नगर नगर में नदी के क्षेत्रफल के विस्तार में ही गहराई में साल भर संग्रहित रह सके और इन प्राकृतिक जलाशयो से उस क्षेत्र की जल आपूर्ति वर्ष भर हो सके.