17 अप्रैल, 2016

सिंहस्थ कुंभ के लिये विद्युत आपूर्ति की अद्वितीय व्यवस्था

सिंहस्थ कुंभ के लिये  विद्युत आपूर्ति की अद्वितीय व्यवस्था

इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , ओबी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर , जबलपुर ४८२००८
mob 9425806252
vivek1959@yahoo.co.in

कुंभ मेले की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही मानी जाती है , मान्यता है कि  आदि शंकराचार्य ने इनकी विधिवत शुरुआत की थी. पौराणिक कथानक के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश हेतु देवताओ और राक्षसों के युद्ध के दौरान धरती पर अमृत की कुछ बूंदें छलक गई थी. ये पवित्र स्थान जहाँ अमृत घट छलका था ,  गंगा तट पर हरिद्वार, गंगा यमुना सरस्वती संगम स्थल पर प्रयाग, क्षिप्रा तट पर उज्जैन और गोदावरी के किनारे नासिक थे।  ग्रहों की निर्धारित स्थितयो के पुनर्निर्मित होने के अनुसार जो लगभग हर 12 वर्षों में वैसी ही बनतीं हैं , क्रमशः हरिद्वार, इलाहाबाद (प्रयाग), नासिक और उज्जैन में लगभग बारह वर्षों के अन्तराल से कुंभ का आयोजन किया जाता है। कुंभ के आयोजन के ६ वर्षो के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है . हरिद्वार में पिछला कुंभ २०१० में आयोजित हुआ था ,यहां अगला कुंभ मेला २०२२ में संपन्न होगा . प्रयाग में पिछला कुंभ २०१३ में भरा था . नासिक में पिछला कुंभ २०१५ में संपन्न हुआ . उज्जैन में पिछला कुंभ २००४ में आयोजित हुआ था .   अमृत-कुंभ के लिये स्वर्ग में बारह दिन तक संघर्ष चलता रहा था  , ये १२ दिन पृथ्वी के अनुसार १२ वर्ष के बराबर होते हैं , इसीलिये हर १२ वर्षो में कुंभ का आयोजन किये जाने की परम्परा बनी .  प्रत्येक १४४ वर्षो में हरिद्वार तथा प्रयाग में आयोजित कुंभ को महा कुंभ के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है . उज्जैन के इस विशाल आयोजन के बाद अब २०१९ में प्रयाग मे अर्धकुंभ , २०२१ में नासिक में अर्धकुंभ के बाद २०२२ में हरिद्वार में कुंभ का भव्य आयोजन होगा , उसी वर्ष उज्जैन में अर्धकुंभ भी आयोजित होगा . उज्जैन में अगला कुंभ २०२८ में संपन्न होगा .

इस बार  सिंहस्थ मेला में  बढ़ती आबादी और धार्मिक आस्था के चलते करोड़ो लोगो के पहुंचने का अनुमान है . देश में जब जब भारी भीड़ किसी भी आयोजन में एकत्रित होती है तो भीड़ का प्रबंधन प्रशासन के लिये एक चुनौती होता है . आतंक के बढ़ते खतरे के तथा किसी दुर्घटना की संभावना के बीच सुरक्षित आयोजन संपन्न करवाना स्थानीय प्रशासकीय व्यवस्था की दक्षता प्रदर्शित करता है . बचाव की आकस्मिक आपात व्यवस्था आवश्यक होती है .स्वयं मुख्यमंत्री जी तथा प्रमुख सचिव महोदय उज्जैन के इस वैश्विक आयोजन की तैयारियो में जुटे हुये है .  बिजली की निर्बाध आपूर्ति किसी भी आयोजन की सफलता हेतु आज अति आवश्यक हो चुकी है . उज्जैन सिंहस्थ तेज गर्मी में होने को है , अतः न केवल प्रकाश वरन शीतली करण हेतु भी बिजली की जरूरत पड़ेगी . क्षिप्रा में पर्याप्त जल आपूर्ति हेतु  ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की स्वीकृति दी गई . इस परियोजना की कामयाबी से महाकाल की नगरी में पहुंची हैं मां नर्मदा . इससे  क्षिप्रा नदी को नया जीवन मिलने के साथ मालवा अंचल को गंभीर जल संकट से स्थायी निजात हासिल होने की उम्मीद है . नर्मदा के जल को बिजली के ताकतवर पम्पों की मदद से कोई 50 किलोमीटर की दूरी तक बहाकर और 350 मीटर की उंचाई तक लिफ्ट करके क्षिप्रा के प्राचीन उद्गम स्थल तक  इंदौर से करीब 30 किलोमीटर दूर उज्जैनी गांव की पहाड़ियों पर जहां क्षिप्रा  लुप्त प्राय है , लाने की व्यवस्था की गई है . नर्मदा नदी की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के खरगोन जिले स्थित सिसलिया तालाब से पानी लाकर इसे क्षिप्रा के उद्गम स्थल पर छोड़ने की परियोजना से नर्मदा का जल क्षिप्रा में प्रवाहित होगा और तकरीबन 115 किलोमीटर की दूरी तय करता हुआ धार्मिक नगरी उज्जैन तक पहुंचेगा . ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना’ की बुनियाद 29 नवंबर 2012 को रखी गयी थी। इस परियोजना के तहत चार स्थानों पर पम्पिंग स्टेशन बनाये गये हैं। इनमें से एक पम्पिंग स्टेशन 1,000 किलोवॉट क्षमता का है, जबकि तीन अन्य पम्पिंग स्टेशन 9,000 किलोवाट क्षमता के हैं।इनके सुचारु संचालन के लिये भी पर्याप्त अबाध बिजली की आपूर्ति जरूरी है जिसकी विशेष व्यवस्था की जा चुकी है .

सिंहस्थ क्षेत्र में प्रतिदिन १०० मेगावाट बिजली की खपत का अनुमान है जिसके लिये  चार ३३/११ किलो वोल्ट के सबस्टेशन शेखपुर, ज्योतिनगर, रतढिया, भैरवगढ़ अपडेट किये जा चुके हैं जिनसे ५० फीसदी बिजली सप्लाई होगी जैसे ही किसी भी सब स्टेशन में फाल्ट आयेगा, सेकेंड सिस्टम एक्टिवेट होकर स्वतः संचालित प्रणाली से सप्लाई देने लगेगा . यदि  चारों सब स्टेशन से सप्लाई भी बंद हो गई तो सिंहस्थ में ५० ऑटोमेटिक साइलेंट डीजल जनरेटर वैकल्पिक रूप से स्थापित किये गये हैं जो काम करने लगेंगे और १३ सेकेंड में ही सिंहस्थ के प्रमुख मार्ग को रोशन कर देंगे , सामान्य जरूरत की २० फीसदी बिजली इनसे पैदा होगी . पूरे सिंहस्थ क्षेत्र में केबली करण के साथ प्रचुर मात्रा में वितरण ट्रांसफारमर स्थापित किये गये हैं जिससे कोई भी ट्रांस्फारमर ओवर लोड न होने पावे , फिर भी व्यवस्था है कि किसी क्षेत्र में सप्लाई ब्रेक होते ही फॉल्ट स्काडा सिस्टम आइडेन्टीफाई करेगा , टेक्निशियन अगले तीन मिनट में उसे ठीक करेगा . स्काडा बिजली फॉल्ट को पकड़ने का अत्याधुनिक सिस्टम है इसमें कम्प्यूटर प्रणाली के जरिए फाल्ट के पिन पाइंट स्थान और वजह चिन्हित हो जाती है . वायरलेस से सूचना दी जावेगी  और अलग-अलग क्षेत्रों में तैनात १५० से अधिक टेक्निशियन में से संबंधित कर्मचारी तुरंत ही  में खराबी को ठीक करने पहुंचेंगे .
जुलाई २०१२ में हुये नार्दन ग्रिड फेलियर से सबक लेकर बिजली कंपनी ने इस तरह के किसी बड़े आकस्मिक आपूर्ति खतरे से निपटने का भी इंतजाम किया है . बिजली कंपनी ने इमरजेंसी में गांधी सागर हाइडिल पॉवर प्लांट को २४ घंटे चालू रखने की तैयारी की है.  यहां से करीब २२ मेगावाट बिजली पैदा हो रही है . फेलियर के वक्त गांधी सागर से उज्जैन के बीच अलग बिजली लाइन के जरिए १० मिनट में बिजली बैकअप मिल पाएगा .मप्र पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी ने जबलपुर से एक्सपर्ट अभियंताओ की टीम भेजी गई है .अनुमान है कि लगभग  २०० मेगावाट के करीब बिजली सिंहस्थ के लिए लगेगी जिसका  मूल्य ६५ करोड़ होगा . नवकरणीय व वैकल्पिक उर्जा की भी जगह जगह किंचित यथा सुविधा यथा आवश्यकता व्यवस्थायें की गई हैं . सारा प्रशासन इस भव्य आयोजन को निर्विघ्न सफल बनाने हेतु सक्रिय है , और उज्जैन में तथा विशेष रूप से सिंहस्थ क्षेत्र में निर्बाध विद्युत आपूर्ति का लक्ष्य मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , म. प्र. पावर ट्रांसमिशन कम्पनी एवं म.प्र. पावर जनरेटिंग कम्पनी , पावर मैनेजमेंट कम्पनी , तथा समूचे म. प्र.  ऊर्जा मंत्रालय  की सर्वोच्च प्राथमिकता है . ये सारी व्यवस्थायें अद्वितीय हैं .