26 सितंबर, 2017

Swagat soubhagya yojna ka

  स्वागत है सौभाग्य योजना का ! 

इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
7000375798
    प्रधानमंत्री मोदी जी की सोच व्यापक राष्ट्र हितकारी है .सौभाग्य योजना के जरिये सुदूर क्षेत्रो में जहां बिोजली नही पहुंची हो वहां भी सोलर लाइट , फैन , की सुविधा वे बिजली विहीन लोगो को देना चाहते हैं . जहां बिजली है वहां तो बिजली कंपनियो की जबाबदारी होगी कि वे बिजली विहीन लोगो को घर पहुंचकर आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर बिजली कनेक्शन दें.  सबको , विशेष रूप से गरीबो को न्यूनतम बिजली मिलनी ही चाहिये . बिजली पर हर किसी का अधिकार होगा तभी एक सुखी नागरिको के संपन्न  देश की परिकल्पना पूरी की जा सकती है . बिजली के कंधो पर सवार सरकारो ने कई चुनावो में इसे अपना अस्त्र बनाया , म. प्र. में अर्जुन सिंग ने सबसे पहले नब्बे के दशक में ५ हार्स पावर तक के पम्पो को मुफ्त बिजली देकर इस सैक्टर के उदारीकरण की अराजक शुरुवात की थी . बिजली के मुद्ददे की यह शार्ट कट विकास यात्रा केजरीवाल की दिल्ली में जीत का एक बड़ा कारण बनी  , उ. प्र. , दक्षिण के अनेक राज्यो और अब लगता है राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी भुमिका निभाने जा रही है . हर सरकार , हर चुनाव में बिजली महत्वपूर्ण मुद्दा होता जा रहा है . किसानो के , गरीबो के बिल माफ करने की नीति से देश का बिजली सैक्टर इन दिनो बड़ी अजीब मनः स्थिति में है . बिजली क्षेत्र का कम्पनीकरण पूर्ण हो चुका है .जहाँ बिजली कर्मचारियो को कमर्शियली वायबल बनाने के लिये भरपूर दबाव बनाया जाता है वही पल भर में बिल माफी की घोषणा से उपभोक्ता बिल देने की अपनी आदत ही भूलते दिखते हैं . बिजली कर्मचारियो को समुचित वेतनमान तक के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है . प्रदेश में ही अब तक पिछले वेतन पुनरीक्षण के फ्रिंज बेनिफिट बिजली कंपनियो को नही मिल पाये हैं . सातवें वेतनमान की मांग करते कर्मचारी अपने कठिन बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण की दुरूह परिस्थितियो , वसूली के लक्ष्य , बिजली चोरी के प्रकरणो के बीच सामंजस्य बनाते निर्वाह करने पर मजबूर हैं . उनकी विषम परिस्थितियो की नौकरी को कोई विशेष दर्जा प्राप्त नही है .उनके वेतन की तुलना सामान्य कार्यालयीन कार्यो वाले विभागो से की जाती है .  स्थाई पेंशन फंड तक नही बनाया जा सका है , और न ही सरकारो ने पेंशन की गारंटी की जिम्मेदारी ली है . रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है . प्रति व्यक्ति बिजली की खपत देश के विकास का पैमाना बनाने का आदरणीय प्रधान मंत्री जी का सपना तभी सच हो सकता है जब बिजली के क्षेत्र में व्यापक सुधार कार्यक्रम के साथ ही इस सैक्टर के कर्मचारियो में आत्मसंतोष का वातावरण हो .

आत्मा और उर्जा में अद्भुत आध्यात्मिक वैज्ञानिक साम्य

            विज्ञान के अनुसार ऊर्जा अविनाशी है .आध्यात्म के अनुसार  आत्मा भी अविनाशी है . किसी भी मशीन के संचालन के लिये ऊर्जा एक अनिवार्य आवश्यकता  है . ऊर्जा रूप बदल सकती है . ठीक इसी तरह किसी भी शरीर में चेतना के लिये आत्मा जरूरी है . भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार शरीर से जीवन के अंत के बाद आत्मा नया शरीर ग्रहण कर लेती है . जिस तरह आत्मा के बिना कोई भी शरीर निर्जीव हो जाता है , उसी तरह ऊर्जा के संचार के बगैर हर यंत्र बेकार हो जाता है . अर्थात आत्मा , जीवन ऊर्जा है . आत्मा अदृश्य होती है , उसे केवल अनुभव किया जा सकता है , इसी तरह ऊर्जा को भी देखा नही जा सकता , इसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है .
हमारे वैदिक ग्रंथो में से बृहदारण्यक के पांचवे अध्याय के छठवें ब्राम्हण में श्लोक है ...

"विद्युद्ब्रम्हेत्याहुविर्दानाद्विध्युद्विध्यतेनम् पाप्मानो य एवं वेद विद्युतब्रम्हेति वद्युद्धयेव ब्रम्ह "
"विद्युतब्रम्हेति"  अर्थात हमारे ॠषि मुनियो ने विद्युत को ब्रम्ह का स्वरूप निरूपित किया है .

    यदि परमाणु संरचना के वैज्ञानिक आधार की विवेचना करें तो प्रत्येक तत्व की सूक्षमतम इकाई उसका परमाणु  है , और परमाणु भी प्रोटान , न्यूट्रान व इलेक्ट्रान से निर्मित है . इलेक्ट्रान एक ऊर्जा के कारण ही परमाणु के केंद्र के चारों और घूम रहे हैं . अर्थात आध्यात्मिक विवेचना करें तो जो हमारी मान्यता है कि यह ब्रम्हाण्ड क्षिति , जल , पावक , पवन , समीर  पंच तत्वो से बना हुआ है , उसमें छठा अदृश्य तत्व जो इस समूचे ब्रम्हाण्ड को संचालित कर रहा है वह ऊर्जा ही है .

बिजली के क्षेत्र में विश्व स्तर पर नये अनुसंधान बहुत आवश्यक हैं

.भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में  कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग किया गया था .
यद्यपि चपला , चंचला ,द्रुतगामिनी , बिजली से हमारा साक्षात्कार तो सृष्टि के प्रारंभ से ही आकाश में चमकती और तड़ित के रूप में धरती पर कहर ढ़ाती बिजली के रूप में होता रहा है .  बिजली का अनुसंधान ज्यादा पुराना नहीं है , सन् १८०० ई.  में इटली के वैज्ञानिक वोल्टा ने सर्वप्रथम धारा विद्युत का उत्पादन रासायनिक विधि से किया . वर्ष १८३१ में माइकल फैराडे नामक वैज्ञानिक ने विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का वह आधारभूत सिद्धांत प्रतिपादित किया जिससे आज भी जनरेटर व डायनमो के द्वारा बिजली का उत्पादन हो रहा है . बिजली के क्षेत्र में विश्व स्तर पर नये अनुसंधान बहुत आवश्यक हैं , और इस पर दुनिया को अपना व्यय बढ़ाना पड़ेगा .

वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . आज दुनिया की आबादी  लगभग ७८ मिलियन  प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है , पिछले ५० सालों में दुनिया की आबादी दुगनी हो गई है . एक अनुमान के अनुसार आज  भी दुनिया की  चौथाई आबादी तक  बिजली  की पहुंच बाकी है .न केवल भारत में वरन वैश्विक परिदृश्य में भी बिजली की कमी है . बिजली के साथ एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि इसे  व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता .जो कुछ थोड़ा सा विद्युत भंडारण संभव है वह रासायनिक उर्जा के रूप में विद्युत सैल या बैटरी के रूप में ही संभव है . बिजली का व्यवसायिक उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है .
विकसित देशों में किसी क्षेत्र के विकास को तथा वहां के लोगों के जीवन स्तर को समझने के लिये उस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत को पैमाने के रूप में उपयोग किया जाता है .१००० वाट का कोई उपकरण यदि १ घण्टे तक लगातार बिजली का उपयोग करे तो जितनी बिजली व्यय होगी उसे  "किलोवाट अवर" kwh  या १ यूनिट बिजली कहा जाता है .आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत १४५३१ यूनिट प्रति वर्ष से ज्यादा है , जबकि यही आंकड़ा जापान में ८६२८ यूनिट प्रति व्यक्ति , चीन में १९१० प्रति व्यक्ति है किन्तु हमारे देश में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत मात्र ६३१ यूनिट प्रति व्यक्ति है .दुनिया में जितनी बिजली बन रही है  उसका केवल ४ प्रतिशत ही हमारे देश में उपयोग हो रहा है . अतः हमारे देश में बिजली की कमी और इस क्षेत्र में व्यापक विकास की संभावनाये स्वतः ही समझी जा सकती हैं . बिजली की कमी से तो हम धीरे धीरे बाहर आ रहे हैं , पर उपभोक्ताओ से बिजली के मूल्य की वसूली एक बड़ी समस्या है . क्या यह नही हो सकता कि प्रत्येक उपभोक्ता वस्तु पर एक बिजली शुल्क लगाकर अप्रगट रूप से बिजली का मूल्य वसूल किया जावे ?
आने वाले वर्षो में मैं हर छत पर सोलर पैनल की कल्पना करता हूं , क्या यह सच नही किया जा सकता ?

 संविधान में बिजली सहित ऊर्जा को केवल केंद्र का विषय बनाने की आवश्यकता

    बिजली ,  रेल तथा  दूर संचार की ही तरह राष्ट्र को  एक सूत्र में पिरोने वाली ऊर्जा है. राज्य व केंद्र का संयुक्त विषय होने के कारण बिजली पर व्यापक राजनीति हो रही है . प्रत्येक राज्य ने बिजली उत्पादन , पारेषण एवं वितरण की  कई कई कंपनियां बनाकर बिजली पर होने वाले निवेश के बड़े हिस्से को  स्थापना व्यय में व्यर्थ कर रही हैं . अलग अलग राज्यो में बिजली की दरें , बिजली की उपलब्धता भिन्न भिन्न है .पैट्रोल ,डीजल ,गैस, मिट्टी के तेल  पर सारे देश में समान सब्सिडी का लाभ जनता को मिलता है , किन्तु बिजली के संयुक्त विषय होने के कारण यह राजनीति का विषय बनकर रह गया है . बिजली का उत्पादन कोयले से अर्थात ताप विद्युत के रूप में , जल विद्युत मतलब बड़ी पनबिजली बांध परियोजनाओ के द्वारा, परमाणु बिजली के रूप में नाभिकीय विखण्डन से अथवा प्राकृतिक गैस के द्वारा बनाई जाती है . कोयला ,प्राकृतिक गैस तथा  परमाणु उर्जा  हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार केंद्र के विषय हैं .जबकि नदियो का पानी और बिजली केंद्र व राज्य की संयुक्त व्यवस्था का विषय है .विद्युत प्रदाय अधिनियम १९१० व १९४८ को एकीकृत कर संशोधित करते हुये वर्ष २००३ में एक नया कानून विद्युत अधिनियम के रूप में लागू किया गया है . इसके पीछे आधार भूत सोच बिजली कम्पनियों को ज्यादा जबाबदेह , उपभोक्ता उन्मुखी , स्पर्धात्मक बनाकर , वैश्विक वित्त संस्थाओं से ॠण लेकर बिजली के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना है .बिजली के मुद्दे पर कई चुनाव लड़े और जीते गये हैं . इससे बिजली विकास की वास्तविक उर्जा बनने के बजाय प्रयोग धर्मिता की शिकार हो रही है .   अब समय की मांग है कि  बिजली को केंद्र व राज्य की संयुक्त सूची से हटाकर केवल केंद्र का विषय बना दिया जावे , जिससे सारे देश में बिजली संकट  एक साथ हल करके विकास के नये प्रतिमान रचे जा सकें .


इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव

विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८
मो ०७०००३७५७९८
vivek1959@yahoo.co.in
vivek ranjan shrivastava

18 जुलाई, 2017

धन्यवाद सुधीर चौधरी , जी टी वी

दिल्ली में बिजली चोरी पकड़ने गए इंजीनियर की हादसे में दुखद मृत्यु के बाद

 https://youtu.be/Xp1QMV-4yhA  

पहली बार किसी राष्ट्रीय चैनल ने यह महत्व पूर्ण मुद्दा उठाया , यद्यपि कटियाबाज जैसी फ़िल्म इस समस्या पर बन चुकी है ।
मैं बहुत पहले से इस विषय पर लिखता रहा हूं , 2007 से ब्लाग

 http://nomorepowertheft.blogspot.com

भी बनाया हुआ है