24 जुलाई, 2008

ऊर्जा की बचत और हमारा दायित्व


ऊर्जा की बचत और हमारा दायित्व

विवेकरंजन श्रीवास्तव

रामपुर, जबलपुर
मो 9425484452

हवा, पानी और ऊर्जा जीवन की प्राथमिक अनिवार्य आवष्यकतायें है । प्रागैतिहासिक युग में जब घर्षण के द्वारा अग्नि उत्पन्न हुई और आदि मानव ने ताप ऊर्जा का उपयोग प्रारंभ किया, तो इस ऊष्मा ने मानवीय सभ्यता की ओर पहला सोपान स्थापित किया । मनुष्य भोजन को पकाकर खाने लगा । प्रकाष के लिये और ठंड से बचने के लिये वह ताप ऊर्जा का उपयोग करने लगा । ऊर्जा अविनाषी है । उसे एक से दूसरे रूप में बदला जा सकता है । यही ऊर्जा की खपत और बचत के प्रष्न उठ खड़े होते है । पिछली दो सदियों में ही, विज्ञान ने चमत्कारिक रूप से यांत्रिक सुविधायें सुलभ कराकर ऊर्जा की खपत में सतत् वृिद्ध की है । प्रकृति ने हमें पेट्रोलियम पदार्थ के भूगभीZय
भंडार व खनिज कोयला, ऊर्जा के स्तोत्र के रूप में उपहार स्वरूप प्रदान किये है । इन्ही मूल स्तोत्रों से आज हमारे करोड़ो एंजिन चल रहे है और पेट्रोलियमफ्यूल व फासिल्स फ्यूल के ये भंडार दिन पर दिन खाली हो रहे है । कोयले से ही ताप विद्युत को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके हमने प्रचुर मात्रा में विद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित किये है । अक्षय ऊर्जा स्तोत्र के रूप में प्रकृति ने हमें सौर ऊर्जा की ऊष्मा और प्रकाष का वरदान दिया है । ऊंचाई से नीचे की ओर जल का निरन्तर प्रवाह, स्थितिज ऊर्जा का गतिज ऊर्जा में परिवर्तन करता है । प्ृथ्वी की इसी गुरूत्वाकर्षण शक्ति का उपयोग कर हम जल विद्युत का प्रचुर उत्पादन कर रहे है । वैकल्पिक ऊर्जा के नवीनतम स्त्रोतों के अन्तर्गत पवन ऊर्जा एवं समुद्र की लहरों से भी विद्युत उत्पादन के संयंत्र लगाये जा रहे है ।

विद्युत ऊर्जा ही, ऊर्जा का सबसे सुगम स्वरूप है जो त्वरित क्रियाषील होकर हमारे उपकरण क्रियािन्वत कर देता है, यही कारण है कि विद्युत उपकरणों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है । कल-कारखानों में बिजली की खपत बढ़ रही है । प्रकाष, मनोरंजन, ताप, ध्वनि, शीतलीकरण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विद्युत का महत्व लगातार बढ़ रहा है । बिजली की मांग और आपूर्ति में व्यापक अंतर आ गया है, और ऊर्जा सरंक्षण की आवष्यकता अनुभव की जा रही है ।

सामान्य रूप से जब हम ऊर्जा की बचत की बात करते हैं, तो हमारा अभिप्राय मूलत: बिजली, पेट्रोलियम पदाथोZ एवं खनिज कोयले की बचत से ही होता है । भू-गभीZय पेट्रोलियम पदार्थ एवं कोयला, करोड़ो वर्षो की नैसगिZक प्रक्रिया से बने है । इनके भंडार सीमित है । भावी पीढ़ी के प्रति हमारा दायित्व है कि हम निहित वर्तमान के स्वार्थ हेतु, प्रकृति के इन अनमोल भंंडारो का हृास न कर डालें । ये प्राकृतिक वरदान भविष्य के लिये संरक्षित रखना भी हमारा दायित्व है । ऐसा तभी संभव है, जब हम बहुत मितव्ययिता से, आवष्यकता के अनुरूप, ऊर्जा का उपयोग करें । ऊर्जा का अपव्यय अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य है। माचिस की एक तीली, तेल के कुंए में आग लगा सकती है । ज्वलनषील प्राकृतिक गैस के भंडार, ऊर्जा के प्रति हमारे दायित्व बोध के अभाव में, बेकार हो सकते, एवं प्रदूषण का कारण बन सकते है, जबकि इनके न्यायिक उपयोग हेतु धरती मां ने अब तक इन भंडारों को हमारे लिये, करोड़ों वर्षो से कई किलोमीटर नीचे अपने गर्भ में बड़े जतन से संजो कर रखा है ।

पेट्रोलियम पदार्थ की, विद्युत की बढ़ती कीमतों के बाद भी इनकी मांग बढ़ती जा रही है, उसका कारण यही है कि आज ऊर्जा के ये संसाधन जीवन की प्राथमिक अनिवार्यता बन चुके है, किंतु केवल इनका मूल्य भर चुका देने से, हम इनके दुरूपयोग के अधिकारी नहीं बन जाते, क्योंकि ये प्रकृति प्रदत्त उपहार भविष्य की धरोहर है । भारतीय परिवेष में तो इन ऊर्जा स्त्रोतों पर शासन बड़ी मात्रा में सिब्सडी भी दे रहा है, अथाZत् बिजली, पेट्रोल, गैस का जो मूल्य हम चुकाते हैं, उसका वास्तविक मूल्य उससे कहीं ज्यादा है ।

ऊर्जा की बचत करके न केवल हम अपने बिलों में कमी करके आर्थिक बचत कर सकते है, वरन् बिजली की कमी पूरी करने में भी अपना सामाजिक दायित्व निभा सकते है । इसी चेतना को जगाने के लिये प्रतिवर्ष 14 दिसम्बर को ऊर्जा संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है । सुबह और शाम जब लगभग एक साथ ही सारे कारखाने, कार्यालय आदि प्रारंभ होते हैं, एंव शाम को सारे प्रकाष स्त्रोत एक साथ जलाये जाते हैं, बिजली की मांग एकाएक अपने शीर्ष पर पहुंच जाती है । इस समय में मांग एवं आपूर्ति में अधिकतम अन्तर होता है । इससे निपटने के लिये जल विद्युत उत्पादन का सहारा लिया जाता हैं, क्योंकि उससे ही त्वरित रूप से विद्युत उत्पादन बढ़ाया या घटाया जा सकता है । आम नागरिक का दायित्व है कि हम सब जिनके पास इन्वर्टर, जनरेटर आदि विद्युत उत्पादक उपकरण है, हम उनका उपयोग, पीकिंग आवर्स में अवष्य करें, इससे हमारे ये उपकरण रोज चलते रहने से, चार्ज-डिस्चार्ज होते रहने से, खराब भी नहीं होगें और ऊर्जा समस्या के समाधान यज्ञ में हम भी अपनी एक आहूति डाल कर ऊर्जा योग कर सकेगें । बूंद-बूंद से ही घट भरता है । पीकिंग अवर्स में हम सब का कत्र्तव्य है कि हम बिजली का कम से कम उपयोग करें । केवल अति आवष्यक उपकरण ही चलायें । हम सबके सामूहिक सहयोग से ही ऊर्जा समस्या का निदान संभव है ।

भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने वर्ष 2012 तक सबके लिये पर्याप्त बिजली आपूर्ति का लक्ष्य रखा है । इसके लिये नये विद्युत अनुप्रसारण केन्द्र बनाये जा रहे हैं । बिना पारेषण हानि के विद्युत के सुचारू संचरण के लिये उच्च दाव की लाइनों का जाल बिछाया जा रहा है । विद्युत उत्पादन हेतु नई परियोजनायें स्थापित की जा रही हैं । तर्कसंगत बिलिंग के लिये नये मीटर लगाये जा रहे है । विद्युत संस्थानों के द्वारा विद्युत नियामक आयोग के निर्देषों के अनुरूप विद्युत आपूर्ति की समूची व्यवस्था की समीक्षा की जा रही है । पर इन सारे प्रयासों के परिणाम परिलक्षित होने में समय लगेगा । तब तक ऊर्जा संरक्षण के हमारे प्रयास ही कुछ राहत पहुंचा सकते है । ब्यूरो आफ इनजीZ एफीषियेंसी नामक संस्था का गठन किया गया है जो बड़े उपभोक्ताओं का इनजीZ आडिट करने हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रही है । इनजीZ आडिट एवं मैनेजमेंट से बिजली के दुरूपयोग पर अंकुष लगेगा । किंतु न्याय संगत तो यही है कि क्यों न हम स्वत: ही अपना दायित्व समझते हुए पंप आदि बड़े उपकरणों के साथ कैपेसिटरर्स स्वंय ही लगायें, जिससे इन उपकरणों के चलाने पर वोल्टेज हानि न हो । मषीनों के मैकेनिकल हिस्सों पर तेल, ग्रीज आदि का नियमित उपयोग करें जिससे घर्षण से ऊर्जा की हानि न हो । घरेलू उपयोग में हमारा दायित्व है कि हम कमरे की दीवारे हल्के रंगो से पुताई करावें जिससे प्रकाष हेतु इनजीZ एफीषियेंट कम खपत वाले उपकरणों का उपयोग किया जा सकें । दिन में प्राकृतिक प्रकाष का उपयोग किया जावे । परिवार के प्रत्येक सदस्य की आदत डालें कि कमरे से बाहर जाते समय सारे सिवच बंद करके ही निकलें । वाषिंग मषीन का उपयोग उसकी क्षमतानुसार पर्याप्त कपड़े एकत्रित होने के बाद ही करें । बिजली के सारे उपकरण आईएसआई मार्क ही उपयोग करें, यह सुरक्षा की दृष्टि से भी आवष्यक है । इसी तरह पेट्रोलियम पदाथोZ के मामले में एक ही ओर आने जाने हेतु वाहन पूल करें । टायरों में समुचित एयर प्रेषर रखें । एंजिन ट्यून करावें । आइल गं्रीज का उपयोग करें, तो ऊर्जा की पर्याप्त बचत संभव है। पेट्रोलियम गैस खाना बनाने हेतु उपयोग की जाती है । गेैस बर्नर की समुचित सफाई, तांबे की तली वाले, चपटे सतह के बर्तन उपयोग से ऊर्जा बचती है । प्रेषर कुकर में भोजन कम समय एवं कम ऊर्जा में पक जाता है ।

इस तरह ये छोटी छोटी बातें ऊर्जा की बचत हेतु हमारा दायित्व बोध कराती हैं । सौर ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिये । सोलर कुकर एवं सोलर वाटर हीटर हम सबके लिये सुलभ है । यदि हम ऊर्जा क्षेत्र में अपने दायित्वों को समझकर उनका निर्वहन करें तो ऊर्जा समस्या का निदान कर सकते है ।


विवेकरंजन श्रीवास्तव

रामपुर, जबलपुर
मो 9425484452

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