09 मई, 2008

एक कविता मेरी भी बिजली पर


बिजली

विवेक रंजन श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008

00९४२५४८४४५२
ई मेल vivekranjan.vinamra@gmailcom


शक्ति स्वरूपा ,चपल चंचला ,दीप्ति स्वामिनी है बिजली ,
निराकार पर सर्व व्याप्त है , आभास दायिनी है बिजली !

मेघ प्रिया की गगन गर्जना , क्षितिज छोर से नभ तक है,
वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित , तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !

पल भर में ही कर उजियारा , अंधकार को विगलित करती ,
हर पल बनती , तिल तिल जलती , तीव्र गामिनी है बिजली !

कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनी ईंधन बन कर आती है,
सदा सुलभ , सेवा तत्पर है , रूप बदलती, हरदम हाजिर है बिजली !

सावधान ! चोरी से इसकी , छूने से विद्युत , दुर्घटना घट सकती है ,
मितव्ययिता से सदुपयोग हो , माँग अधिक पर , कम है बिजली !

गिरे अगर दिल पर दामिनि तो , है सचमुच , बचना मुश्किल है,
प्रिये हमारी, हम घायल हैं , रूप दमकता, अदा तुम्हारी है बिजली !

सर्वधर्म समभाव जताये , छुआछूत से हट ,घर घर तारों से जोड़े ,
एक देश है ज्यों शरीर , और नाड़ी में , रक्त वाहिनी सी बिजली !!

बिजली


बिजली

प्रो सी बी श्रीवास्तव
c-6 , M.P.S.E.B. Colony Rampur ,
Jabalpur (M.P.) 482008

00९४२५४८४४५२
ई मेल vivekranjan.vinamra@gmailcom


अग्नि , वायु , जल गगन, पवन ये जीवन का आधाr है
इनके किसी एक के बिन भी , सृष्टि सकल निष्प्राण है !

अग्नि , ताप , ऊर्जा प्रकाश का एक अनुपम समवाय है
बिजली उसी अग्नि तत्व का , आविष्कृत पर्याय है !

बिजली है तो ही इस जग की, हर गतिविधि आसान है
जीना खाना , हँसना गाना , वैभव , सुख , सम्मान है !

बिजली बिन है बड़ी उदासी , अँधियारा संसार है ,
खो जाता हरेक क्रिया का , सहज सुगम आधार है !

हाथ पैर ठंडे हो जाते , मन होता निष्चेष्ट है ,
यह समझाता विद्युत का उपयोग महान यथेष्ट है !


यह देती प्रकाश , गति , बल , विस्तार हरेक निर्माण को
घर , कृषि , कार्यालय, बाजारों को भी ,तथा शमशान को !


बिजली ने ही किया , समूची दुनियाँ का श्रंगार है ,
सुविधा संवर्धक यह , इससे बनी गले का हार है !


मानव जीवन को दुनियाँ में , बिजली एक वरदान है
वर्तमान युग में बिजली ही, इस जग का भगवान है !


कण कण में परिव्याप्त , जगत में विद्युत का आवेश है
विद्युत ही जग में , ईश्वर का , लगता रूप विशेष है !!