26 अप्रैल, 2012

म.प्र.रा.वि मं की समाप्ति हमारे लिए काला दिन'

अधिकारी कर्मचारी हतप्रभ, म.प्र.रा.वि मं की समाप्ति हमारे लिए काला दिन' साभार नई दुनिया दिनांक २७.०४.१२ होना क्या था और हुआ क्या? कभी प्रदेश सरकार को कर्ज देने वाला मप्र विद्युत मंडल आखिर कंगाल क्यों हुआ? तो इसके जवाब में हर आम और खास बेझिझक राजनैतिक इच्छाशक्ति को ही दोषी बताएगा। यदि बिजली अधिकारियों कर्मचारियों की कार्यप्रणाली दोषी होती तो लगभग सवा लाख कर्मियों के साथ काम करने के दौरान ही मंडल को कंगाल होना था लेकिन उसका खजाना खाली हुआ कर्मियों की कमी और नेताओं के मनमाने निर्णय से। कहा जा रहा है कि मंडल के बुरे दिन तब शुरु हुए थे जब प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने फ्री बिजली का अभियान चलाया। उसके बाद रही सही कसर उनके राजनैतिक शिष्य कहे जाने वाले युवा मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी। अपने एक दशक के कार्यकाल में उन्होंने बिजली उत्पादन ब़ढ़ाने ध्यान नहीं दिया तो भर्ती पर रोक लगाकर काम करने वाले तंत्र को पंगु बना दिया। लगभग आठ साल बाद प्रदेश में बदले राजनैतिक परिदृश्य ने भी इस क्षेत्र में रुचि लेने के बजाए इसे नौकरशाहों के भरोसे छो़ड़ दिया। सुधार के नाम पर खोदी कब्र प्रदेश के बिजली क्षेत्र में सुधार के नाम पर विद्युत मंडल की कब्र खोदने का सिलसिला लगभग डे़ढ़ दशक पहले शुरु हुआ था। रिफार्म प्रक्रिया की शुरुआत यूं तो केन्द्र और राज्य सरकार के बीच वर्ष २००० में एक एमओयू यानि मेमोरेंडम ऑफ अंडरटेकिंग से हुई थी लेकिन इसका बीज वर्ष १९९६ में कनाडा की सीडा यानि कनाडा इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी द्वारा शक्तिभवन में पहुंचने के साथ प़ड़ गया था। वर्ष १९९८ में एशियन विकास बैंक के प्रतिनिधियों और प्रदेश सरकार से हुई लंबी बातचीत के बाद बिजली क्षेत्र में तकनीकी सहयोग के नाम पर मंडल की बुनियाद में मठा डालने का काम शुरू हुआ। प्रदेश में बिजली सुधार अधिनियम के तहत जुलाई २००२ में पांच बिजली कंपनियां बनाई गईं। इनमें मप्र विद्युत उत्पादन कंपनी जेनको, मप्र विद्युत पारेषण कंपनी ट्रांसको, मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर, मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी भोपाल और मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर शामिल हैं। जून २००३ में केन्द्र सरकार ने विद्युत अधिनियम बनाया। इसके तहत सभी राज्य विद्युत मंडलों को समाप्त करना था। इसके तहत प्रदेश में ३१ अक्टूबर २००३ को ट्रांसफर स्कीम लागू की गई। ३१मई २००५ को विद्युत मंडल की बिजली कंपनियों को स्वतंत्र दर्जा दिया गया। इसके बाद भी कैश फ्लो मैकेनिज्म और कर्मचारी विद्युत मंडल के बने रहे। जून २००६ में मप्र पावर ट्रेडिंग के नाम से एक और बिजली कंपनी बनाई गई। एक अप्रेल २०१२ में इस कंपनी को पावर मैनेजमेंट कंपनी का नाम देकर तीनों बिजली वितरण कंपनियों की होल्डिंग कंपनी बनाया गया। कैश फ्लो मैकेनिज्म भी समाप्त कर दिया गया। १० अप्रेल २०१२ को विद्युत मंडल के समस्त अधिकारी कर्मचारी मंडल की उत्तरवर्ती कंपनियों में स्थाई रुप से हस्तांतरित कर दिए गए। २६ अप्रेल २०१२ को भोपाल में हुई फुल बोर्ड बैठक के बाद विद्युत मंडल को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। इसके दायित्व और संपत्तियां पॉवर मैनेजमेंट कंपनी में हस्तांतरित कर प्रदेश शासन ने विद्युत मंडल के अस्तित्व को हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया। ङ"ख११ऋ विद्युत मंडल को समाप्त करने का उददेश्य बिजली क्षेत्र में प्रतियोगिता ब़ढ़ाकर उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बिजली कम कीमत में देना था। इसके साथ ही शासकीय हस्तक्षेप को समाप्त कर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी भागीदारी को ब़ढ़ावा देना था। प्रदेश के परिदृश्य को देखा जाए तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई जिससे एक ही बिजली वितरण क्षेत्र में एक से अधिक बिजली वितरण कंपनियां काम कर सकें लिहाजा उपभोक्ता को किससे बिजली लें और किससे न लें का चयन करने का अधिकार नहीं मिला। अलबत्ता उच्चदाब उपभोक्ताओं को एक मेगावाट से ज्यादा बिजली लेने पर ओपन एक्सेस के जरिए बिजली प्राप्त करने का अधिकार मिला वो भी पिछले साल। दूसरी ओर आम आदमी के लिए सस्ती बिजली दिवास्वप्न बनती जा रही है। पिछले एक दशक में बिजली के दामों में लगातार इजाफा हुआ। निजी क्षेत्र को भी इस क्षेत्र में खुलकर काम करने का मौका नहीं दिया गया। रही बात शासकीय हस्तक्षेप कम करने की तो प्रदेश सरकार ने ही इसका खुलकर माखौल उ़ड़ाया। जिस बोर्ड में कभी एक आईएएस बैठाया जाता था आज उसमें पांच आईएएस बैठा दिए गए। लंबे समय से मंडल अध्यक्ष का कार्यभार मुख्य सचिव और ऊर्जा सचिव संभाल रहे हैं। वर्तमान में तो तीन कंपनियों के अध्यक्ष का पद भी ऊर्जा सचिव के पास है। ऐसे में बिजली सुधार कार्यक्रम के प्रति शासकीय मंशा अपने आप उजागर हो रही है।कभी प्रदेश सरकार को कर्ज देने वाला मप्र विद्युत मंडल आखिर कंगाल क्यों हुआ? तो इसके जवाब में हर आम और खास बेझिझक राजनैतिक इच्छाशक्ति को ही दोषी बताएगा। यदि बिजली अधिकारियों कर्मचारियों की कार्यप्रणाली दोषी होती तो लगभग सवा लाख कर्मियों के साथ काम करने के दौरान ही मंडल को कंगाल होना था लेकिन उसका खजाना खाली हुआ कर्मियों की कमी और नेताओं के मनमाने निर्णय से। कहा जा रहा है कि मंडल के बुरे दिन तब शुरु हुए थे जब प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने फ्री बिजली का अभियान चलाया। उसके बाद रही सही कसर उनके राजनैतिक शिष्य कहे जाने वाले युवा मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी। अपने एक दशक के कार्यकाल में उन्होंने बिजली उत्पादन ब़ढ़ाने ध्यान नहीं दिया तो भर्ती पर रोक लगाकर काम करने वाले तंत्र को पंगु बना दिया। लगभग आठ साल बाद प्रदेश में बदले राजनैतिक परिदृश्य ने भी इस क्षेत्र में रुचि लेने के बजाए इसे नौकरशाहों के भरोसे छो़ड़ दिया। होना क्या था और हुआ क्या? प्रदेश के बिजली क्षेत्र में सुधार के नाम पर विद्युत मंडल की कब्र खोदने का सिलसिला लगभग डे़ढ़ दशक पहले शुरु हुआ था। रिफार्म प्रक्रिया की शुरुआत यूं तो केन्द्र और राज्य सरकार के बीच वर्ष २००० में एक एमओयू यानि मेमोरेंडम ऑफ अंडरटेकिंग से हुई थी लेकिन इसका बीज वर्ष १९९६ में कनाडा की सीडा यानि कनाडा इंटरनेशनल डेवलपमेंट एजेंसी द्वारा शक्तिभवन में पहुंचने के साथ प़ड़ गया था। वर्ष १९९८ में एशियन विकास बैंक के प्रतिनिधियों और प्रदेश सरकार से हुई लंबी बातचीत के बाद बिजली क्षेत्र में तकनीकी सहयोग के नाम पर मंडल की बुनियाद में मठा डालने का काम शुरू हुआ। प्रदेश में बिजली सुधार अधिनियम के तहत जुलाई २००२ में पांच बिजली कंपनियां बनाई गईं। इनमें मप्र विद्युत उत्पादन कंपनी जेनको, मप्र विद्युत पारेषण कंपनी ट्रांसको, मप्र पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी जबलपुर, मप्र मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी भोपाल और मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर शामिल हैं। जून २००३ में केन्द्र सरकार ने विद्युत अधिनियम बनाया। इसके तहत सभी राज्य विद्युत मंडलों को समाप्त करना था। इसके तहत प्रदेश में ३१ अक्टूबर २००३ को ट्रांसफर स्कीम लागू की गई। ३१मई २००५ को विद्युत मंडल की बिजली कंपनियों को स्वतंत्र दर्जा दिया गया। इसके बाद भी कैश फ्लो मैकेनिज्म और कर्मचारी विद्युत मंडल के बने रहे। जून २००६ में मप्र पावर ट्रेडिंग के नाम से एक और बिजली कंपनी बनाई गई। एक अप्रेल २०१२ में इस कंपनी को पावर मैनेजमेंट कंपनी का नाम देकर तीनों बिजली वितरण कंपनियों की होल्डिंग कंपनी बनाया गया। कैश फ्लो मैकेनिज्म भी समाप्त कर दिया गया। १० अप्रेल २०१२ को विद्युत मंडल के समस्त अधिकारी कर्मचारी मंडल की उत्तरवर्ती कंपनियों में स्थाई रुप से हस्तांतरित कर दिए गए। २६ अप्रेल २०१२ को भोपाल में हुई फुल बोर्ड बैठक के बाद विद्युत मंडल को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। इसके दायित्व और संपत्तियां पॉवर मैनेजमेंट कंपनी में हस्तांतरित कर प्रदेश शासन ने विद्युत मंडल के अस्तित्व को हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया।विद्युत मंडल को समाप्त करने का उददेश्य बिजली क्षेत्र में प्रतियोगिता ब़ढ़ाकर उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बिजली कम कीमत में देना था। इसके साथ ही शासकीय हस्तक्षेप को समाप्त कर इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में निजी भागीदारी को ब़ढ़ावा देना था। प्रदेश के परिदृश्य को देखा जाए तो ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई जिससे एक ही बिजली वितरण क्षेत्र में एक से अधिक बिजली वितरण कंपनियां काम कर सकें लिहाजा उपभोक्ता को किससे बिजली लें और किससे न लें का चयन करने का अधिकार नहीं मिला। अलबत्ता उच्चदाब उपभोक्ताओं को एक मेगावाट से ज्यादा बिजली लेने पर ओपन एक्सेस के जरिए बिजली प्राप्त करने का अधिकार मिला वो भी पिछले साल। दूसरी ओर आम आदमी के लिए सस्ती बिजली दिवास्वप्न बनती जा रही है। पिछले एक दशक में बिजली के दामों में लगातार इजाफा हुआ। निजी क्षेत्र को भी इस क्षेत्र में खुलकर काम करने का मौका नहीं दिया गया। रही बात शासकीय हस्तक्षेप कम करने की तो प्रदेश सरकार ने ही इसका खुलकर माखौल उ़ड़ाया। जिस बोर्ड में कभी एक आईएएस बैठाया जाता था आज उसमें पांच आईएएस बैठा दिए गए। लंबे समय से मंडल अध्यक्ष का कार्यभार मुख्य सचिव और ऊर्जा सचिव संभाल रहे हैं। वर्तमान में तो तीन कंपनियों के अध्यक्ष का पद भी ऊर्जा सचिव के पास है। ऐसे में बिजली सुधार कार्यक्रम के प्रति शासकीय मंशा अपने आप उजागर हो रही है। प्रदेश के बिजली कर्मियों के अब पेंशन टर्मिनल बेनीफिट ट्रस्ट फंड से मिलेगी। अप्रैल माह की पेंशन इसी मद से दी जाएगी। ये निर्णय भोपाल में हुई बैठक के दौरान लिया गया। भोपाल में ऊर्जा विभाग के अधिकारियों के साथ बिजली कंपनियों के आला अधिकारी भी बैठे थे। ट्रस्ट में सभी कंपनियों के एमडी और सीएमडी ट्रस्टी बनाए गए हैं जबकि सचिव पद की जवाबदारी ट्रांसको के चीफ फाइनेंस ऑफीसर को दी गई है। उल्लेखनीय है कि ये ट्रस्ट वर्ष २००५ में बना था लेकिन तब से इसका संचालन नहीं हो पा रहा था। जिसे जाना है जाने दो- पूर्व क्षेत्र कंपनी की बोर्ड बैठक में ये निर्णय हुआ कि जो कर्मचारी जिस कंपनी में जा रहा है उसे जाने दो। जबरिया किसी को रोकने का काम न किया जाए। कुछ महत्वपूर्ण पदों पर यदि आवश्यकता हो तो संबंधित अधिकारी कर्मचारी को प्रतिनियुक्ति पर लिया जाए। बैठक में ये भी निर्णय लिया गया कि जो पद खाली हो रहे हैं उन पर यदि सक्षम अधिकारी नहीं मिल रहे तो उन पदों पर पदोन्नति कर अधिकारियों को बैठाया जाए। इसके लिए बकायदा समिति गठन का फैसला भी लिया गया। नई भर्तियों के लिए भी हरी झंडी दी गई।जबलपुर (नप्र)। क्या कह रहे हैं आप? विद्युत मंडल को समाप्त कर दिया गया। शिट, ये तो हमारे लिए काला दिन है। ये कहना था विद्युत मंडल के सेवानिवृत्त कार्यपालक निदेशक पीएस यादव का। उन्होंने नईदुनिया से बातचीत में कहा कि मंडल समाप्त करना निजी हाथों में बिजली तंत्र को जाने का संकेत है। गुरुवार की शाम को जैसे ही शहर में विद्युत मंडल समाप्त करने की खबर भोपाल से आई सेवारत अधिकारियों कर्मचारियों से लेकर सेवानिवृत्त कर्मियों में भी मायूसी छा गई। अभियंता संघ के महासचिव पवन जैन ने कहा कि पेंशन और कर्मचारी हितों की ढेर सारी मांगों को धता बताते हुए विद्युत मंडल को समाप्त किया गया है। लोक अदालत में प्रदेश शासन की तरफ से कहा गया था कि ज्यूरीस्टिक बॉडी यानि मप्रराविमं को भंग नहीं किया जाएगा। अभी लोकअदालत के केस का अंतिम निर्णय नहीं हुआ, उच्च न्यायालय में डबल बेंच में लगे केस के निर्णय आने का भी इंतजार किए बिना मप्रराविमं को समाप्त किया जाना न्यायालय की अवमानना है। श्री जैन ने कहा कि आखिर ऐसी क्या जल्दबाजी थी कि जो मंडल को समाप्त करने आनन फानन में निर्णय लेना प़ड़ा। प्रदेश शासन के इस निर्णय से हर अधिकारी कर्मचारी आहत है। ये उसके लिए आंखों के सामने घर टूटने जैसा है। विद्युत कर्मचारी संघ फेडरेशन के महासचिव सुनील कुरेले के अनुसार ये तो होना था लेकिन प्रदेश सरकार को कर्मियों के हितों को सुरक्षित रखने विशेष प्रयास करने होंगे। होल्डिंग कंपनी को अधिकार संपन्न बनाकर इस दिशा में प्रयास किए जा सकते हैं। उनके अनुसार अब बिजली क्षेत्र में निजी कंपनियों का तेजी से प्रवेश होगा और बिजली आम आदमी के लिए दूर की कौ़ड़ी होगी। बिजली कर्मचारी महासंघ के संयुक्त महामंत्री दिलीप चैतन्य और जोनल सचिव विजय जैन ने कहा कि हम इस व्यवस्था का घोर विरोध करते हैं। बिना कर्मचारियों के दायित्वों का निर्धारण किए मंडल समाप्त करना कानून का उल्लंघन है। मैंने कांधा नहीं दिया विद्युत मंडल के लंबे समय तक सचिव और पावर ट्रेडिंग कंपनी के एमडी रह चुके पीके वैश्य ने कहा कि मंडल का अंत सुनिश्चित था। मंडल कब समाप्त होगा इसकी तिथि निश्चित नहीं हुई थी। हां ये जरुर है कि मैं मंडल को समाप्त करने के लिए कांधा देने वालों में शामिल नहीं हुआ। जिस संस्थान में चालीस साल काम किया उसके खत्म होने का दुख तो है। नागपुर से जबलपुर, अब भोपाल विद्युत मंडल का इतिहास मध्यप्रदेश के भौगोलिक नक्शे में आने के साथ से जु़ड़ा है। सीपीएंड बरार से अलग होकर १नवंबर १९५६ को मध्यप्रदेश पृथक राज्य बना था। उस समय बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण के लिए मध्यप्रदेश विद्युत मंडल का गठन हुआ। हालांकि मंडल का मुख्यालय नागपुर से जबलपुर आने में एक साल लग गए थे। मंडल के पहले अध्यक्ष ले.कर्नल ई.जी. मैकी थे। इसके बाद १९५६ में पीएस भट्ट और पिᆬर एनपी श्रीवास्तव अध्यक्ष बने। १९५७ में जब मंडल मुख्यालय जबलपुर के रामपुर क्षेत्र में आया तब एसएन मेहता को मंडल अध्यक्ष बनाया गया। श्री मेहता १९५७ से १९६८ तक लगातार ग्यारह साल इसके अध्यक्ष रहे। मंडल के पहले सचिव १९५७ में एमवॉय कोहली थे। मंडल के आखिरी अध्यक्ष ऊर्जा सचिव मो. सुलेमान और सचिव डीके गुप्ता कहे जाएंगे। विद्युत मंडल मुख्यालय के रुप में जबलपुर की पहचान बनी और यहां मंडल ने अपना आर्किटेक्ट के हिसाब से नायाब भवन शक्तिभवन बनाया। अब जब विद्युत मंडल समाप्त हो गया है तब शासकीय स्तर पर विद्युत वितरण कंपनियों की होल्डिंग कंपनी बनी पावर मैनेजमेंट कंपनी का मुख्यालय जबलपुर से भोपाल ले जाने के भी दांव पेंच शुरु हो गए हैं। जानकारों की मानें तो अगले कुछ दिनों में पावर मैनेजमेंट कंपनी का मुख्यालय भोपाल किए जाने की बकायदा घोषणा हो जाएगी। अब जेनको तेरी बारी २६ अप्रैल २०१२ का दिन मध्यप्रदेश के इतिहास में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम मप्र राज्य विद्युत मंडल की समाप्ति के लिए याद रखा जाएगा। इसके साथ ही पावर सेक्टर रिफॉर्म प्रक्रिया के पैरोकारों के आड़े आ रहा मंडल का किला ढहा दिया गया। निजी क्षेत्र को प्रवेश देने के लिए शुरु हुए रिफार्म को एक दशक बाद जाकर मिली सफलता ने साफ कर दिया कि अब प्रदेश की भारी घाटे में चल रही विद्युत उत्पादन कंपनी जेनको को जल्द ही फतह किया जाएगा। पिछले एक दशक से चल रही विद्युत सुधार प्रक्रिया के तहत विद्युत मंडल का समाप्त होना तय था लेकिन इसका भविष्य कैसा और क्या होगा? इसे लेकर जो संशय की स्थिति बनी हुई थी वो जस की तस आज भी कायम है। अन्य राज्यों की तुलना में यहां बिजली कंपनियां बनाने में जहां जल्दबाजी की गई वहीं उन्हें स्वतंत्र अस्तित्व देने में भी बाजी मारी गई। लेकिन रिफार्म का मूल उददेश्य आज भी कहीं धरातल पर नजर नहीं आ रहा है। कंपनी बनाने, उनका नाम बदलने, सीएमडी पद समाप्त करने और कंपनियों में अधिकारियों को बैठाने में जिस तरह से प्रदेश सरकार ने खुला खेल खेला उससे ये साफ है कि बिजली तंत्र की नब्ज को समझे बिना ऊंची सीट पर बैठने वाला अपने अनुसार प्रयोग दर प्रयोग करने का आदी हो गया है। जनता खासकर किसानों को सस्ती और भरपूर बिजली मिलने का रिफॉर्म का मकसद आज भी इससे कोसों दूर है। रिफॉर्म के नाम पर जरुर बिजली वितरण क्षेत्र में फ्रेंचाइजी को प्रवेश देने की शुरुआत कर दी गई। इससे साफ है कि बिजली क्षेत्र को भविष्य की आवश्यकता के हिसाब से मजबूत बनाने की बजाए उसे निजी हाथों में सौंपने के लिए सत्ता ज्यादा आतुर दिख रही है। भले ही मंडल को समाप्त करने में एक दशक से ज्यादा लग गए लेकिन कंपनियों में निजी निवेश को बढ़ावा देने में बहुत देर नहीं होगी। वर्तमान मौके पर गालिब का शेर बहुत मौजूं है कि घबरा कर कहते हैं कि मर जाएंगे और मर कर भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे। हम यूं भी कह सकते हैं कि मोहम्मद तुगलक ने राजधानी को दिल्ली से दौलताबाद स्थानांतरित किया था लेकिन भूल का अहसास होते ही इसे पुनः दिल्ली लाया गया भले ही उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी हो लेकिन विद्युत मंडल को समाप्त कर प्रदेश में भूल सुधार के इस रास्ते को भी बंद कर दिया गया। - गोपाल अवस्थी

22 अप्रैल, 2012

फिल्म देखकर बना ली बिजली

फिल्म देखकर बना ली बिजली




ध्यान सिंह ने खराब चक्की से बनाया पनबिजली यंत्र।
जम्मू से ३०० किमी दूर गांव में किया प्रयोग

जम्मू में किश्तवाड़ का गुलाबगढ़ इलाका। आसपास 20 किमी तक कोई बसाहट नहीं। सड़क भी नहीं। करीब 22 हजार की आबादी बिजली न होने से अंधेरे में रहती है। लेकिन यहां के दो युवा रोशनी ले आए हैं। उन्होंने घर के पास से गुजरने वाली पहाड़ी नदी की धारा से बिजली बना ली।

गुलाबगढ़ के चशोती गांव में ध्यान सिंह और जोगिन्दर के घर रोशन हैं। शहर किसी काम से आए ध्यान सिंह ने 'स्वदेश' फिल्म में शाहरुख खान को बिजली तैयार करते देखा। किताबों में भी पढ़ा था कि पानी से बिजली तैयार की जाती है। आखिर मेहनत रंग लाई। अब घर के अन्य काम भी इसी पनबिजली परियोजना से तैयार बिजली से हो रहे हें। उन्हें मलाल है कि सीमित साधनों की वजह से बाकी गांव को इसका लाभ नहीं पहुंचा सकते।

घर में खराब पड़ी चक्की में डेढ़ वर्ष पहले डायनामो लगाया। उसी से बिजली तैयार की। इस परिवार ने घर के अलावा मंदिर में बिजली दी हुई है। घर में डिश टीवी समेत इलैक्ट्रानिक सामान का खूब इस्तेमाल करते हैं। पंच बनने के बाद ध्यान सिंह ने प्रयास किए हैं कि क्षेत्र में पानी के पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं जिनके दोहन से इलाके को रोशन किया जा सकता है।

19 अप्रैल, 2012

मध्यप्रदेश में सौर ऊर्जा के लिये चल रही हैं चार योजनाएँ

सौर ऊर्जा के लिये चल रही हैं चार योजनाएँ

Bhopal:Thursday, April 19, 2012:

मध्यप्रदेश में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन के लिए चार विभिन्न योजनाएँ संचालित की जा रही हैं। इनमें दूरस्थ ग्राम विद्युतीकरण कार्यक्रम, सोलर फोटो वोल्टेईक कार्यक्रम, सोलर फोटो वोल्टेईक पॉवर पैक और सौर गर्म जल संयंत्र शामिल हैं। संयंत्र की स्थापना के लिए दरों के निर्धारण की प्रक्रिया के साथ-साथ इच्छुक हितग्राहियों की सहमति के बाद प्रोजेक्ट मोड में प्रस्ताव तैयार कर भारत शासन को स्वीकृति के लिये भेजे जाते हैं। केन्द्र से स्वीकृति प्राप्त होने पर केन्द्र एवं राज्य शासन द्वारा देय अनुदान राशि घटाकर शेष राशि हितग्राही से लेकर संयंत्र स्थापना की कार्यवाही की जाती है।

02 अप्रैल, 2012

Smart Grid India- Energy Efficiency Optimization Summit’ 5th and 6th of September 2012 Delhi

Smart Grid India- Energy Efficiency Optimization Summit’ which is scheduled to take place on the 5th and 6th of September in Delhi, India.

We are currently in the Delegate stage and are inviting recommended companies like yourself to take up a Delegate opportunity. We will be limiting the event to a maximum of ‘150 Senior level executives to make this event as exclusive as possible.

Given the nascent phase of production, the confirmed speakers are listed below :

Mr. V. Arunachalam
CPRI & Founder & Chairman, Centre for Science, Technology &Policy (CSTEP).

Mr. N. Rajesh Bansal
Bses Rajdhani Power limited,Additional Vice President

Anjuli Chandra
Delhi electricity Regulatory Commission,Executive Director (Engg.)

Mr. Rajit Gadh
Professor, Director - WINMeC,Director - smart Grid energy Research Center (SMERC) at University of California, Los Angeles (UCLA)

Shri Surinder Kumar Negi
Managing Director, Gujarat energy Transmission Corporation limited (GETCO)

Shri Pankaj Batra
Chief Engineer,Central Electricity Regulatory Commission.

We are in final talks with the Ministry of Power, India for an official endorsement from them.

Some reasons why you should look to be a participant :

One – One business meetings to ensure personal involvement and strategic discussions
Speed Networking Session at the beginning of the event to ensure you know each and every single person who is attending the event
Opportunity to provide a wish list of up to 10 companies, whom you’ll are looking to meet immediately