20 मार्च, 2010

शासकीय विभागो में आपसी खींचतान कितनी उचित ?????

शासकीय विभागो में आपसी खींचतान कितनी उचित ?????
जितना श्रम , समय, संसाधन .. बिजली विभाग और नगर निगम आपसी देनदारियो के लिये लगा रहे हैं , क्या वह उचित है ? क्या माननीय मंत्री जी को हस्तक्षेप करके सरकार के ही दो विभागो की परस्पर लेनदारी देनदारी को अखबारो तक पहुंचने की स्थितियां बनने से रोकना चाहिये ? क्या इसके लिये कोई कानूनी प्रावधान जरूरी है , जिससे दो विभाग आपस में लड़ने तक की स्थिति में न आने पायें ...plz see dainik bhasker news dt 20.03.2010.. jabalpur

http://digitalimages.bhaskar.com/dainikmp/EpaperPdf/20032010/19jab-pg5-0.pdf

17 मार्च, 2010

विद्युत क्षेत्र में जन भागीदारी की व्यापक संभावनायें

लेख

विद्युत क्षेत्र में जन भागीदारी की व्यापक संभावनायें

विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , जबलपुर
बंगला नम्बर ..ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर
जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२

लोकतंत्र में जन भागीदारी का महत्व निर्विवाद है . किसी भी कार्य में जन भागीदारी से उसकी लोकप्रियता स्वतः ही बढ़ जाती है, कार्य में पारदर्शिता आ जाती है .प्रशाशकीय अवधारणा है कि शासकीय विकास कार्यों में जनभागीदारी से विकास कार्य की गुणवत्ता में वृद्धि होती है . कार्य अधिक जनोन्मुखी व जनोपयोगी हो जाता है . कार्य पर होने वाला व्यय न्यूनतम हो जाता है .भ्रष्टाचार की संभावनायें कम हो जाती हैं , अधिकारियो की स्वेच्छाचारिता नियंत्रित हो जाती है , एवं कार्य कम से कम समय में संपन्न हो पाता है . यही कारण है कि पब्लिक मैनेजमैंट की नवीनतम पद्धतियो के अनुसार प्रायः प्रत्येक विभाग में जनभागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है . लगभग सभी शासकीय विभागों , कार्यालयों , शिक्षण संस्थानो में किसी न किसी रूप में जन समितियां नामित की गईं हैं .ये जन समितियां प्रायः दिशा दर्शन , विकास कार्यो के अवलोकन , निरिक्षण व समीक्षा के कार्य कर रही हैं . विकास कार्य हेतु धन जुटाने , श्रमदान जुटाने में भी ये समितियां बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं . इन समितियों में स्थानीय नेता ,निर्वाचित जनप्रतिनिधि , सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक , , सक्रिय युवा , प्रगतिशील महिलायें , स्वस्फूर्त रूप से प्रायः अवैतनिक , मानसेवी सहयोग करते हैं , यद्यपि बैठको में भाग लेने आदि समिति के कार्यो हेतु सदस्यो को उनके वास्तविक या संभावित व्यय की आपूर्ति संबंधित विभाग द्वारा की जाने की परम्परा हैं .
जनभागीदारी का दूसरा तरीका , अशासकीय स्वयं सेवी संस्थाओ अर्थात एन.जीओ. के द्वारा विभाग के माध्यम से किये जा रहे कार्य में हाथ बंटाना है . किसी गांव या क्षेत्र विशेष को गोद लेकर विभाग द्वारा किये जा रहे कार्य को अधिक उर्जा से समानांतर रूप से संपन्न कराने में ये संगठन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं . इसके लिये इन्हें शासकीय अनुदान भी प्राप्त होता है . विभागीय कार्यों के प्रचार , प्रसार , जनजागरण , में स्वैच्छिक संगठनो की महति भूमिका है .

अब तक अधिकांशतः विद्युत क्षेत्र केवल स्वतंत्रत शासकीय विभाग के रूप में ही कार्यरत रहा है . जो थोड़ी बहुत जन भागीदारी बिजली के क्षेत्र में रही है वह सलाहकार समितियों या अवलोकन व समीक्षा जन समितियों तक ही सीमित है .अभी तक एन जी ओ के माध्यम से बिजली क्षेत्र में कोई बड़े कार्य नही हो रहे हैं . इसका एक कारण बिजली क्षेत्र का एक पूर्णतः तकनीकी विभाग होना है . विद्युत उत्पादन पूरी तरह तकनीकी कार्य है , उच्च दाब पारेषण में भी जन भागीदारी के योगदान की नगण्य संभावनायें हैं . किन्तु निम्नदाब वितरण प्रणाली में , जिससे हम सब सीधे एक उपभोक्ता के रूप में जुड़े हुये हैं वह क्ृेत्र है जिसमें जन भागीदारी की विपुल संभावनाये हैं . आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है .बिजली चोरी की समस्या सुरसा के मुख सी बढ़ती ही जा रही है . ऐसे परिदृश्य में स्वयं सेवी संगठन आगे आकर विद्युत वितरण कंपनियो का हाथ बंटा सकती हें , कुछ कार्य जिनमें जन भागीदारी की विपुल संभावनायें हैं,कुछ इस तरह हो सकते हैं ,
बिजली चोरी के विरुद्ध जनजागरण अभियान
बिजली की बचत हेतु जन प्रेरणा अभियान
नियमित व एरियर के राजस्व वसूली में सहयोग , बिल वितरण , फ्यूज आफ काल्स अटेंड करने में सहयोग
वितरण हानियो को कम करने हेतु वितरण लाइनो के रखरखाव में सहयोग
कैप्टिव पावर प्लांट लगाने हेतु प्रेरक की भूमिका एवं वांछित जानकारी , विभागीय क्लियरेंस आदि
ट्रांस्फारमरों में तीनो फेज पर समान लोड वितरण में सहयोग
विद्युत संयत्रों , बिजली की लाइनो की सुरक्षा , तथा चोरी गई विद्युत सामग्री को पकड़वाने में सहयोग
आई एस आई मार्क उपकरणो के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
सी एफ एल के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
दिन में प्राकृतिक प्रकाश के उपयोग , पीकिंग अवर में न्यूनतम विद्युत प्रयोग , घरों में हल्के रंग संयोजन को बढ़ावा , छतों में बाहरी तरफ सफेद रंग की पुताई जिससे शीतलन हेतु कम बिजली लगे , आदि जागृति अभियान
कहां नई विद्युत लाइनो की आवश्यकता है , कहां नये उपकेंद्र बनने चाहिये यह सब भी जनप्रतिनिधियों के तालमेल से बेहतर तरीके से तय किया जा सकता है . विद्युत सेवा का क्षेत्र सीधे तौर पर राजस्व से जुड़ा हुआ है ,अतः वितरण कंपनियों को सहयोग कर जनसेवी संस्थान संस्था के संचालन हेतु आवश्यक धनार्जन स्वतः ही बिजली कंपनियो से कर सकती हैं . वर्तमान परिदृश्य में बिजली चोरी पकड़वाने पर , एरियर का राजस्व वसूली होने पर , वितरण हानि कम होने पर , वितरण ट्रांस्फारमरों की खराबी की दर कम होने पर आदि बिजली क्षेत्र से जुड़े घटक सीधे रूप से वितरण कंपनियों के आर्थिक लाभ से जुड़े हैं , वितरण कंपनियो के सी एम डी इतने शक्ति संपन्न हैं कि वे सहज ही जनभागीदारी संस्थानो को ये आर्थिक लाभ देकर , विद्युत क्षेत्र में जनसहयोग की नई शुरुवात कर सकते हैं . चूंकि बिजली का क्षेत्र तकनीक आधारित है , अतः इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के लिये जनसहयोगी संगठनो को किंचित तकनीकी संज्ञान जरूरी हो सकता है . सतत क्रियाशीलता से इस दिशा में बहुत व्यापक , दूरगामी , अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं . बिजली के क्षेत्र में जनसहयोग को बढ़ावा देना समय की मांग है , जिसमें विपुल संभावनायें हैं .

11 मार्च, 2010

REMOTE METERING: A BREAKTHROUGH

REMOTE METERING: A BREAKTHROUGH

INTRODUCTION:
Previously meter reading activity of HT consumers in
East Discom (as well as in other discoms in MP) was
undertaken manually and the billing was carried out
through punching of manually recorded reading data.
Despite the meters having data downloading features MRI
downloading was carried out merely by the Meter Testing
officials and that too was limited to once or twice in a
year owing to limited resources in comparison to number
of HT installations. Accordingly MRI downloads were not
available with MT wing for remaining period of year to
monitor /analyse the functioning of the metering system as
well as reading parameters.
To overcome this constraint, it was decided by the
company that billing of HT consumers should be carried
out through MRI downloads. Accordingly, after
successfully carrying out pilot and parallel billing this
billing system was implemented throughout the company
from September’ 06. In process monthly downloading of
reading data was made obligatory resulting into timely
detection and rectification of defects developed in
metering system. In addition to this discrepancies in the
consumption parameters billed could be detected and
rectified. Moreover the probability of error due to human
intervention was minimized to some extent.
During the exercise of billing of HT
Consumers through MRI downloads, it was observed that
substantial amount of time & manpower (in form of the 02
officers- one each from STM and O&M divisions) was
engaged in monthly meter reading of the HT consumers.
As per prevailing practice the meter reading officials were
also expected to carry out general inspection of the
consumer premises to obviate any probability of
malfunctioning of metering system as well as irregularity
connected with purpose of use. But, looking to the tight
‘Billing-Schedule’ inspection work during reading was
hardly possible.

In view of the above, it was decided by the
company in Oct’06 that meter reading & inspection
activities be dealt separately. The meter reading activity
was decided to be undertaken through Remote Metering,
so that the valuable man power involved in meter reading
activity could be utilized in the more purposeful & result
oriented activities including Installation-Audit of the H.T.
Consumers/ high value L.T. Consumers.

ADVANCEMENT IN TECHNOLOGY

The advancement in metering technology has
enabled measurement and logging of various parameters,
e.g. Energy, Load Survey, Events, Transactions and
Tampers which are available in the electronic meters for
downloading / capturing through automated means in a
very short period of time. This, combined with
advancements in communication and software technology
has made it possible to automate and integrate the
metering, billing and monitoring processes by
implementing computerized systems which can seamlessly
integrate these processes by sharing a common database.
Considering the advantages it was decided to
develop and implement systems to achieve the objectives
in a phased manner.


OBJECTIVES
The project was initiated with the following broad
objectives:
I. End-to-end automation of metering and billing
process.
II. Reduce time lag between meter reading and
billing.
III. Eliminate (manual) logistics and effort in meter
reading.
IV. Synchronized meter readings.
V. Improved vigilance.
VI. Monitoring and control of high value
consumers.
VII. Centralized monitoring, control, database and
applications with distributed access and
distributed operations.
VIII. Recognition of meter location in the network
and interfacing with energy audit.
IX. Meter history and tracking.


DRIVING CONSIDERATIONS
I. A centralized, flexible, open ended, scalable and
componentized system.
II. Possible to integrate with external (third party)
systems.
III. End-to-end automation of the MBC (metering,
billing and collection) process.
IV. Interfacing with other system (MIS, billing,
energy audit, CRM, data warehousing).
V. Common interface for multi vendor metering
scenario.
VI. Technology conformance to open standards.
VII. Inbuilt security.
VIII. System recovery and availability.


TECHNOLOGY

I. Standardization in metering solutions provided
by meter vendors.
II. Open standards technology conformance in all
components:
- Back-end RDBMS
- System architecture (Designed as n-tier,
present deployment on C/S platform).
- Application development and deployment
tools (Power Builder, SQL, Jaguar).
- Front end
- Data communication and acquisition: All
Meters , GSM Modems and BCS from M/s
Secure Meters Ltd.


Security Features
- Network level
- O/s level: User Id / Password
- Application level: User Id / Password,
CRC checking in AMR data validation
stage.
- Database level: Access rights.


EXPENDITURE
The overall expenses on the project, including Rs.32
lac approx. in respect of the Meter Monitoring Cell
building works out to be around Rs. 97 lac. The running
cost towards rental charges of SIMS are approximately
Rs.26000=00 per month which is very less as compared to
the expenses incurred previously on meter reading activity
at site.


ACHIEVEMENTS
- Implementation of business process change
resulting in consumer satisfaction, saving of time
and manpower, synchronization of meter reading,
accurate and timely reading for billing, validation
of meter reading before billing etc.
- Saving of operational expenses towards manual
meter reading (transportation and manpower).
- Disciplined billing cycle.
- Timely detection and rectification of defects
developed over period of time in the metering
system.
- Elimination of errors inherent in the manual
reading process.
- Automated reading and billing through remote
reading of 100 % HT consumers
- In-house Development of software for interfacing
meter reading data with billing system and
metering module.
- End-to-end integration of metering and billing
process.
- Additional Revenue recovery of Rs. 630 lac
through monitoring of AMR data against the
historical billing data.
- Daily monitoring of Tamper-events of all
consumers through event based dialing.
- Daily reading and analysis of consumption of
consumers having Contract Demand 5MVA and
above, power intensive units (rolling mills, ferro
alloys, steel plants) and seasonal consumers
during their season.


CONCLUSION AND FUTURE SCOPE

The AMR project initiated by the company has
been a big success as all its 731 HT consumers have
already been covered under it. Out of nearly 3600 high
value consumers above 25 hp nearly 49% have been
covered under the Project

04 मार्च, 2010

पावरमीटर बतायेगा घर में बिजली कहाँ और कितनी खर्च होती है

साभार............
गुगल का पावरमीटर बतायेगा घर में बिजली कहाँ और कितनी खर्च होती है
गुगल ने स्मार्ट ग्रिड की दिशा में अपने कदम बड़ा लिये हैं और अब गेंद बिजली कंपनियों के पाले में है। ये स्मार्ट ग्रिड कंप्यूटर की नही बल्कि बिजली के लिये है। दरअसल बात एक ऐसी स्मार्टर इलेक्ट्रीसिटी ग्रिड बनाने की हो रही है जिसका हुकअप कंप्यूटर तकनीक के साथ किया जा सके। अभी अमेरिका में फिलहाल सभी ग्रिड एनालॉग हैं और जिन्हें धीरे धीरे स्मार्ट ग्रिड में बदलने का प्लान है।
How much does it cost to leave your TV on all day? What about turning your air conditioning 1 degree cooler? Which uses more power every month — your fridge or your dishwasher? Is your household more or less energy efficient than similar homes in your neighborhood?
गुगल का मानना है कि उसका सोफ्टवेयर ये सब इनफोर्मेसन आपको देगा और फिर आप डिसाइड कर सकते हैं कहाँ क्या चेंज करना है।

कई बिजली कंपनियाँ धीरे धीरे स्मार्ट मीटर लगा रही हैं, अब आप लोग सोच रहे होंगे इसमें गुगल कहाँ से फिट बैठता है। दरअसल गुगल ने एक ऐसा सोफ्टवेयर बनाया है जो इन स्मार्ट मीटर से डॉटा लेकर आपके कंप्यूटर तक पहुँचायेगा। ये बतायेगा कि आपके घर में उपयोग में आने वाले किस प्रोडक्ट में कितनी बिजली खर्च हो रही है। इससे उन उपकरणों का पता आसानी से चल जायेगा जिनका बेहतर विकल्प उपलब्ध है और जिनको बदलने की जरूरत है। यही नही बिजली
कंपनियाँ भी चाहती हैं कि उनके पास बिजली के उपयोग के लिये Variable Rate चार्ज करने का आप्शन हो। यानि कि डिमांड के हिसाब से रेट कम बाकी होंगे, ऐसे में गुगल का ये सोफ्टवेयर बता सकता है कि किस उपकरण को किस समय चलाने में कम खर्च आता है क्योंकि ये सब रियल टाईम होगा इसलिये तुरंत ये सब पता चल सकता है। जैसे डिशवाशर रात को चलाने में कम खर्चा आयेगा जब बिजली की डिमांड कम होने लगती है और इसलिये रेट भी कम होंगे।
गुगल का पावरमीटर (PowerMeter) स्मार्ट ग्रिड सोफ्टवेयर है जो उपभोक्ताओं को उनके घर में होने वाली बिजली की खपत की डिटेल जानकारी देगा। पावरमीटर एक मुफ्त में उपलब्ध होने वाल ओपन सोर्स सोप्टवेयर होगा, इस दिशा में और भी कई कंपनियाँ काम कर रही हैं।
फिलहाल तो गुगल अपने इस पावरमीटर की टेस्टिंग अपने कर्मचारियों के बीच कर रहा है, सिर्फ गुगल ही नही बल्कि आइबीएम भी इस दिशा में कार्यरत है।
IBM (IBM), which has become the leading player integrating smart grid technology for utilities and managing the data produced by a digital power grid।
फिलहाल तो ये प्रोटोटाईप प्रोजेक्ट है और बहुत जल्द हकीकत भी बन जायेगा
वैसे तो पावर कंजम्पसन डिवाइस मार्केट में उपलब्ध हैं जिससे आप यही सब पता लगा सकते हो लेकिन उसे डिवाइस टू डिवाइस लगा के देखना होता है। जबकि गुगल पावरमीटर घर के सभी उपकरण के कंजम्पसन की डिजिटल इनोर्फेशन को हमारे डेस्कटॉप पर उपलब्ध करायेगा स्मार्ट ग्रिड की मदद से।

बैल बनायेंगे बिजली

गुजरात के वडोदरा जिले के छोटाउदयपुर क्षेत्र के 24 जनजातीय गांवों में एक अनोखा प्रयोग चल रहा है, जिसके अंतर्गत बैलों की शक्ति को बिजली में बदला जा रहा है।

बिजली निर्माण की यह नई तकनीक श्री कांतिभाई श्रोफ के दिमाग की उपज है और इसे श्रोफ प्रतिष्ठान का वित्तीय समर्थन प्राप्त है। श्री कांतिभाई एक सफल उद्योगपति एवं वैज्ञानिक हैं।

इस खोज से एक नया नवीकरणीय उर्जा स्रोत प्रकट हुआ है। इस विधि में बैल एक अक्ष के चारों ओर एक दंड को घुमाते हैं। यह दंड एक गियर-बक्स के जरिए जनित्र के साथ जुड़ा होता है। इस विधि से बनी बिजली की प्रति इकाई लागत लगभग चार रुपया है जबकि धूप-पैनलों से बनी बिजली की प्रित इकाई लागत हजार रुपया होता है और पवन चक्कियों से बनी बिजली का चालीस रुपया होता है। अभी गियर बक्से का खर्चा लगभग 40,000 रुपया आता है, पर इसे घटाकर लगभग 1500 रुपया तक लाने की काफी गुंजाइश है, जो इस विधि के व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने पर संभव होगा।

बारी-बारी से काम करते हुए यदि चार बैल प्रतिदिन 50 इकाई बिजली पैदा करें, तो साल भर में 15,000 इकाई बिजली उत्पन्न हो सकती है। इस दर से देश के सभी बैल मिलकर 20,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकते हैं, और इससे देश में बिजली की किल्लत बीते दिनों की बात हो जाएगी।

बैलों से बिजली निर्माण की पहली परियोजना गुजरात के कलाली गांव में चल रही है। बैलों से निर्मित बिजली से यहां चारा काटने की एक मशीन, धान कूटने की एक मशीन और भूजल को ऊपर खींचने का एक पंप चल रहा है।

कृषि में साधारणतः बैलों की जरूरत साल भर में केवल 90 दिनों के लिए ही होती है। बाकी दिनों उन्हें यों ही खिलाना पड़ता है। यदि इन दिनों उन्हें बिजली उत्पादन में लगाया जाए तो उनकी खाली शक्ति से बिजली बनाकर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।

बैलों से बिजली निर्माण में मुख्य समस्या यह आती है कि इस बिजली को संचित करने का कोई कारगर उपाय नहीं है। यदि अनुसंधान को इस ओर केंद्रित करके इस कमी को दूर किया जा सके, तो स्वायत्त गांवों का गांधी जी का सपना साकार हो सकता है, और आयातित तेल पर देश की निर्भरता कुछ कम हो सकती है। पर्यावरण पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।