जर्मनी अपने परमाणु बिजलीघरों को क्रमिक रूप से बंद कर रहा है। कुछ बिजलीघरों का लाइसेंस बढ़ाया नहीं गया है और बाकी को आने वाले सालों में धीरे-धीरे बंद कर दिया जाएगा। लेकिन परमाणु बिजलीघर को बंद करना आसान नहीं।
राइनलैंड पलैटिनेट के मुइलहाइम कैरलिष में परमाणु संयंत्र 1988 से बंद पड़ा है। 2004 से उसे डिसमैंटल किया जा रहा है। ग्राइफ्सवाल्ड लुबमीन के बिजलीघर को बंद करने की शुरुआत 1995 में हो चुकी है, लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। लेकिन कार्ल्सरूहे इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रमुख योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि भले ही संयंत्र के डिसमैंटल करने की प्रक्रिया लंबी हो, जैसे ही परमाणु बिजलीघर को बंद किया जाता है दुर्घटना का खतरा नाटकीय रूप से कम हो जाता है।
उनके शब्दों में, 'परमाणु बिजलीघर को बंद करने का मतलब होता है नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया को रोकना। और यही परमाणु बिजली घर में खतरे का मुख्य कारण होता है।'
जर्मन सरकार की ओर से परमाणु बिजलीघरों को बंद करने की निगरानी कर रहे भौतिकशास्त्री श्टेफान थियरफेल्ड कहते हैं, 'यह एक कार की तरह होता है, जिसमें मोटर नहीं है। ऐसी कार अपने आप अचानक चलना शुरू नहीं कर सकती।'
परमाणु बिजलीघर में बड़े अणुओं का विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में ताप निकलता है जो पानी को गरम कर भाप पैदा करता है और इस भाप से एक जेनरेटर बिजली बनाता है। ठीक उसी तरह से जैसे कोयला से चलने वाले बिजलीघरों में होता है। वहां जो काम कोयला करता है वह परमाणु बिजलीघरों में परमाण्विक छड़ें करती हैं।
आम तौर पर यूरेनियम डाई ऑक्साइड की ये छड़ें ईंधन का काम करती हैं। यूरेनियम का न्यूट्रॉन द्वारा विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में नए न्यूट्रॉन पैदा होते हैं जो फिर से यूरेनियम के अणुओं को तोड़ सकते हैं। और इस तरह विखंडन का चेन रिएक्शन शुरू होता है।
परमाणु बिजलीघरों को बंद करने के लिए रेगुलेटर छड़ों को रिएक्टर में डाला जाता है। वह न्यूट्रॉन को सोख लेते हैं और परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को रोक देते हैं। क्नेबेल कहते हैं कि ये छड़ें उसके बाद भी ताप का उत्पादन करती रहती हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा उसकी मात्रा बहुत कम होती है।
ईंधन वाली छड़ों में रेडियो सक्रिय पदार्थों का प्राकृतिक रूप से निकलना बिजलीघर को बंद किए जाने के बाद भी जारी रहता है। बाद में निकलने वाली गर्मी बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर के ताप उत्पादन का करीब 7 प्रतिशत होती है।
क्नेबेल कहते हैं, 'परमाणु बिजलीघर का उत्पादन तुरंत बंद नहीं हो जाता। तीन महीने बाद बची हुई गर्मी गिर कर एक प्रतिशत हो जाती है।'
बंद किए गए परमाणु बिजलीघर में सबसे खतरनाक चीज परमाणु ईंधन होता है। उसे सावधानी से बाहर निकालने की जरूरत होती है। उसकी गर्मी अभी भी इतनी ज्यादा होती है कि उसे हवा से ठंडा नहीं किया जा सकता। इसलिए उसे अगले तीन से पांच साल तक ठंडा करने के लिए पानी से भरे कंटेनर में रखा जाता है। क्नेबेल कहते हैं कि उसे लगातार ठंडा रखने की जरूरत है। यदि गर्मी से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो ईंधन की छड़ें इतनी गर्म हो सकती हैं कि वे गलना शुरू कर दें।
हनोवर की इंटैक कंपनी के विकिरण विशेषज्ञ वोल्फगांग नौएमन बताते हैं कि सबसे पहले छड़ का धातु वाला खोल गलने लगता है। उनका कहना है कि बाद में रासायनिक प्रतिक्रिया से हाइड्रोजन निकल सकता है जिसके कारण धमाका हो सकता है, जैसा कि जापान फुकुशिमा में हुआ।
श्टेफान थियरफेल्ड भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि यह सब सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन व्यवहार में निहायत असंभव। पानी के टैंक छह से आठ मीटर ऊंचे होते हैं और आपातकालीन व्यवस्थाएं भी होती हैं जो छड़ों को ठंडा रखने का काम करती हैं।
तीन से पांच साल में छड़ें इतनी ठंडी हो जाती हैं कि उसे हवा में भी ठंडा रखा जा सकता है। योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि उसके बाद कुछ नहीं हो सकता। उन्हें एक कास्टर कंटेनर में रख कर अंतरिम गोदाम में ले जाया जाता है।
कार्ल्सरूहे के आईटी के प्रोफेसर साशा गेंटेस का कहना है कि ईंधन वाली छड़ों को हटाए जाने के बाद लगभग एक प्रतिशत रेडियोधर्मिता प्लांट में रह जाती है। उसके बाद बाहर से अंदर की ओर प्लांट की डिसमेंटलिंग शुरू होती है। फिर पूरे संयंत्र को एक एक कर तोड़ कर उसे रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाता है। अत्यंत रेडियोधर्मी इलाकों में रिमोट कंट्रोल से काम लिया जाता है ताकि वहां काम कर रहे लोग रेडियोधर्मिता के शिकार न हों। कंक्रीट और इस्पात के हिस्सों को पूरे दबाव के साथ साफ किया जाता है। साफ किए हुए हिस्सों को रिसाइकल किया जा सकता है जबकि बाकी को रेडियोएक्टिव कूड़े के रूप में निबटाया जाता है।
यदि परमाणु संयंत्र की डिसमैंटलिंग उसे बंद करने के फौरन बाद शुरू करनी है तो उसमें 10 साल लगते हैं। लेकिन गेंटेस का कहना है कि व्यवहार में इसमें और ज्यादा साल लगते हैं क्योंकि विभिन्न प्रक्रियाओं का लाइसेंस लेने में भी समय लगता है।
एक अन्य प्रक्रिया में और ज्यादा समय लगता है। इसमें यूरेनियम की छड़ों को रिएक्टर से हटाने के बाद 30 साल तक संयंत्र को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इस बीच छड़ों को लगातार ठंडा किया जाता है। संयंत्र का रखरखाव किया जाता है और उसकी रखवाली की जाती है। 30 साल में रेडियोधर्मिता कम हो जाती है और संयंत्र की डिसमेंटलिंग आसान हो जाती है। जमा रखने के लिए खतरनाक पदार्थ भी कम हो जाता है।
ये दोनों ही प्रक्रियाएं सस्ती नहीं हैं। ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई के अनुसार एक परमाणु बिजलीघर को पूरी तरह बंद करने का खर्च 50 करोड़ से लेकर एक अरब यूरो तक आता है।
बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर में भी दुर्घटना हो सकती है, यदि वहां यूरेनियम की छड़ें रखी हुई हैं। थियरफेल्ड का कहना है कि छड़ें हटा लेने के बाद वहां नाभिकीय प्रक्रिया संभव नहीं है। वोल्फगांग नौएमन का कहना है कि यदि संयंत्र को ठीक तरह से बंद नहीं किया जाता तो रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर निकल सकता है और निवासियों तके लिए खतरनाक हो सकता है, भले ही उसकी क्षमता दुर्घटना जैसी न हो।
रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/मझा
संपादन: वी कुमार
राइनलैंड पलैटिनेट के मुइलहाइम कैरलिष में परमाणु संयंत्र 1988 से बंद पड़ा है। 2004 से उसे डिसमैंटल किया जा रहा है। ग्राइफ्सवाल्ड लुबमीन के बिजलीघर को बंद करने की शुरुआत 1995 में हो चुकी है, लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। लेकिन कार्ल्सरूहे इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रमुख योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि भले ही संयंत्र के डिसमैंटल करने की प्रक्रिया लंबी हो, जैसे ही परमाणु बिजलीघर को बंद किया जाता है दुर्घटना का खतरा नाटकीय रूप से कम हो जाता है।
उनके शब्दों में, 'परमाणु बिजलीघर को बंद करने का मतलब होता है नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया को रोकना। और यही परमाणु बिजली घर में खतरे का मुख्य कारण होता है।'
जर्मन सरकार की ओर से परमाणु बिजलीघरों को बंद करने की निगरानी कर रहे भौतिकशास्त्री श्टेफान थियरफेल्ड कहते हैं, 'यह एक कार की तरह होता है, जिसमें मोटर नहीं है। ऐसी कार अपने आप अचानक चलना शुरू नहीं कर सकती।'
परमाणु बिजलीघर में बड़े अणुओं का विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में ताप निकलता है जो पानी को गरम कर भाप पैदा करता है और इस भाप से एक जेनरेटर बिजली बनाता है। ठीक उसी तरह से जैसे कोयला से चलने वाले बिजलीघरों में होता है। वहां जो काम कोयला करता है वह परमाणु बिजलीघरों में परमाण्विक छड़ें करती हैं।
आम तौर पर यूरेनियम डाई ऑक्साइड की ये छड़ें ईंधन का काम करती हैं। यूरेनियम का न्यूट्रॉन द्वारा विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में नए न्यूट्रॉन पैदा होते हैं जो फिर से यूरेनियम के अणुओं को तोड़ सकते हैं। और इस तरह विखंडन का चेन रिएक्शन शुरू होता है।
परमाणु बिजलीघरों को बंद करने के लिए रेगुलेटर छड़ों को रिएक्टर में डाला जाता है। वह न्यूट्रॉन को सोख लेते हैं और परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को रोक देते हैं। क्नेबेल कहते हैं कि ये छड़ें उसके बाद भी ताप का उत्पादन करती रहती हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा उसकी मात्रा बहुत कम होती है।
ईंधन वाली छड़ों में रेडियो सक्रिय पदार्थों का प्राकृतिक रूप से निकलना बिजलीघर को बंद किए जाने के बाद भी जारी रहता है। बाद में निकलने वाली गर्मी बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर के ताप उत्पादन का करीब 7 प्रतिशत होती है।
क्नेबेल कहते हैं, 'परमाणु बिजलीघर का उत्पादन तुरंत बंद नहीं हो जाता। तीन महीने बाद बची हुई गर्मी गिर कर एक प्रतिशत हो जाती है।'
बंद किए गए परमाणु बिजलीघर में सबसे खतरनाक चीज परमाणु ईंधन होता है। उसे सावधानी से बाहर निकालने की जरूरत होती है। उसकी गर्मी अभी भी इतनी ज्यादा होती है कि उसे हवा से ठंडा नहीं किया जा सकता। इसलिए उसे अगले तीन से पांच साल तक ठंडा करने के लिए पानी से भरे कंटेनर में रखा जाता है। क्नेबेल कहते हैं कि उसे लगातार ठंडा रखने की जरूरत है। यदि गर्मी से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो ईंधन की छड़ें इतनी गर्म हो सकती हैं कि वे गलना शुरू कर दें।
हनोवर की इंटैक कंपनी के विकिरण विशेषज्ञ वोल्फगांग नौएमन बताते हैं कि सबसे पहले छड़ का धातु वाला खोल गलने लगता है। उनका कहना है कि बाद में रासायनिक प्रतिक्रिया से हाइड्रोजन निकल सकता है जिसके कारण धमाका हो सकता है, जैसा कि जापान फुकुशिमा में हुआ।
श्टेफान थियरफेल्ड भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि यह सब सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन व्यवहार में निहायत असंभव। पानी के टैंक छह से आठ मीटर ऊंचे होते हैं और आपातकालीन व्यवस्थाएं भी होती हैं जो छड़ों को ठंडा रखने का काम करती हैं।
तीन से पांच साल में छड़ें इतनी ठंडी हो जाती हैं कि उसे हवा में भी ठंडा रखा जा सकता है। योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि उसके बाद कुछ नहीं हो सकता। उन्हें एक कास्टर कंटेनर में रख कर अंतरिम गोदाम में ले जाया जाता है।
कार्ल्सरूहे के आईटी के प्रोफेसर साशा गेंटेस का कहना है कि ईंधन वाली छड़ों को हटाए जाने के बाद लगभग एक प्रतिशत रेडियोधर्मिता प्लांट में रह जाती है। उसके बाद बाहर से अंदर की ओर प्लांट की डिसमेंटलिंग शुरू होती है। फिर पूरे संयंत्र को एक एक कर तोड़ कर उसे रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाता है। अत्यंत रेडियोधर्मी इलाकों में रिमोट कंट्रोल से काम लिया जाता है ताकि वहां काम कर रहे लोग रेडियोधर्मिता के शिकार न हों। कंक्रीट और इस्पात के हिस्सों को पूरे दबाव के साथ साफ किया जाता है। साफ किए हुए हिस्सों को रिसाइकल किया जा सकता है जबकि बाकी को रेडियोएक्टिव कूड़े के रूप में निबटाया जाता है।
यदि परमाणु संयंत्र की डिसमैंटलिंग उसे बंद करने के फौरन बाद शुरू करनी है तो उसमें 10 साल लगते हैं। लेकिन गेंटेस का कहना है कि व्यवहार में इसमें और ज्यादा साल लगते हैं क्योंकि विभिन्न प्रक्रियाओं का लाइसेंस लेने में भी समय लगता है।
एक अन्य प्रक्रिया में और ज्यादा समय लगता है। इसमें यूरेनियम की छड़ों को रिएक्टर से हटाने के बाद 30 साल तक संयंत्र को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इस बीच छड़ों को लगातार ठंडा किया जाता है। संयंत्र का रखरखाव किया जाता है और उसकी रखवाली की जाती है। 30 साल में रेडियोधर्मिता कम हो जाती है और संयंत्र की डिसमेंटलिंग आसान हो जाती है। जमा रखने के लिए खतरनाक पदार्थ भी कम हो जाता है।
ये दोनों ही प्रक्रियाएं सस्ती नहीं हैं। ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई के अनुसार एक परमाणु बिजलीघर को पूरी तरह बंद करने का खर्च 50 करोड़ से लेकर एक अरब यूरो तक आता है।
बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर में भी दुर्घटना हो सकती है, यदि वहां यूरेनियम की छड़ें रखी हुई हैं। थियरफेल्ड का कहना है कि छड़ें हटा लेने के बाद वहां नाभिकीय प्रक्रिया संभव नहीं है। वोल्फगांग नौएमन का कहना है कि यदि संयंत्र को ठीक तरह से बंद नहीं किया जाता तो रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर निकल सकता है और निवासियों तके लिए खतरनाक हो सकता है, भले ही उसकी क्षमता दुर्घटना जैसी न हो।
रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/मझा
संपादन: वी कुमार
परंमाणु बिजलीघर के बारे में बहुत काम की जानकारी आपके द्धारा मिली है।
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