25 फ़रवरी, 2012

फोटोवोल्टाइक विद्युत

सौर फोटोवोल्टाइक विद्युत

डॉ. चेतनसिंह सोलंकी

सौर फोटोवोल्टाइक तकनीक, सौर फोटोवोल्टाइक या पीवी मॉड्यूल्स के उत्पादन की तकनीक है। एक सौर पीवी मॉड्यूल में आधारभूत घटक एक सौर पीवी सेल होता है। एक सौर पीवी सेल में वोल्टेज तब उत्पादित होता है जब इस पर सूर्य प्रकाश गिरता है। यह प्रभाव फोटोवोल्टाइक प्रभाव कहलाता है। सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में एक पीवी सेल एक बैटरी की तरह होता है। एक बैटरी के समान, जब आप पीवी सेल को सर्किट से जोड़ते हैं, तब सर्किट में विद्युतधारा का प्रवाह होता है। परंतु जब सौर पीवी सेल पर प्रकाश बिल्कुल नहीं गिरता है, तब इसके सिरों पर कोई वोल्टेज उत्पादित नहीं होता है, कोई विद्युतधारा प्रवाहित नहीं होती व शक्ति या पावर उत्पादित नहीं होती।

उचित दक्षता युक्त प्रथम सौर सेल वर्ष १९५४ में निर्मित किया गया था। उस समय सेल की दक्षता लगभग ५ प्रतिशत थी। इस ५ प्रतिशत दक्षता को प्राप्त करने के पश्चात्‌ लोगों ने सोचना पहली बार शुरू किया कि वास्तव में सौर सेल को उपयोगी विद्युत के उत्पादन हेतु उपयोग किया जा सकता है। उस वक्त, सौर सेल की बहुत अधिक कीमत के कारण, वैज्ञानिक मुख्यतः अंतरिक्ष प्रयोगों हेतु सेल निर्मित कर रहे थे, अंतरिक्ष यान को पावर देने हेतु। परंतु १९७३ में जब, क्रूड तेल की कीमत अकल्पनीय रूप से बढ़ी, पूरी दुनिया सदमे में थी, यह पहला ऑइल-शॉक या तेल का सदमा कहलाया, और तभी पूरी दुनिया की सरकारों ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों के उत्पादन को बढ़ावा देना प्रारंभ किया। परिणामस्वरूप, सौर सेल के उत्पादन व अनुसंधान को प्रोत्साहन मिला। आज बहुत अधिक दक्षता वाले सौर सेल उत्पादित होते हैं। सौर सेल का उत्पादन १९७३ के कुछ हजार वॉट से अप्रत्याशित रूप से लगभग ३०,०००,०००,००० वॉट या ३० गीगा वॉट वर्ष २०११ में तक बढ़ गया है।

एक सौर सेल शक्ति या पावर की बहुत अधिक मात्रा उत्पादित नहीं कर सकता। अतः एक पीवी मॉड्यूल में, अधिक पॉवर प्राप्त करने हेतु अनेक सौर सेल आपस में जुड़े होते हैं। आजकल विभिन्ना पावर रेटिंग वाले पीवी मॉड्यूल उपलब्ध हैं। आप एक बहुत निम्न जैसे १ वॉट पावर मॉड्यूल से लेकर बहुत अधिक जैसे ३०० वॉट पावर वाले मॉड्यूल खरीद सकते हैं। अनेकों अधिक पावर आवश्यकता वाले अनुप्रयोगों में, कई बार ३०० वाट वाले पीवी मॉड्यूल भी पर्याप्त नहीं होते हैं, उदाहरण के लिए जब आप १ मेगावॉट पीवी प्लांट की स्थापना कर रहे हों, अतः अधिक पावर प्राप्त करने के लिए कई मॉड्यूल को आपस में जोड़ा जाता है। अनेक मॉड्यूल्स का आपस में संयोजन पीवी श्रेणी कहलाता है।

वर्तमान समय में पारंपरिक ग्रिड विद्युत की तुलना में सौर पीवी विद्युत महँगी है। सौर सेल में अभी उपयोग किया जाने वाला मुख्य घटक सिलिकॉन है। पूरी दुनिया में उत्पादित होने वाले सौर सेल का लगभग ८५ प्रतिशत सौर सेल उत्पादन सिलिकॉन का उपयोग कर होता है। सिलिकॉन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है परंतु इसे सौर सेल के लिये उपर्युक्त बनाने हेतु इसके शु़िद्धकरण में लगने वाली कीमत इसे बहुत महँगा बना देती है। सिलिकॉन व सौर सेल के उच्च मूल्य के कारण, बहुत अधिक संख्या में अनुसंधान संस्थान व कंपनियाँ सौर पीवी मॉड्यूल के मूल्य को कम करने के लिए साथ में काम कर रहे हैं। कीमत कम करने के लिए लक्ष्य है पीवी मॉड्यूल के समान क्षेत्र से अधिक पावर प्राप्त करने के नए तरीके ढूँढना या विभिन्ना प्रकार की सस्ती सामग्रियों को ज्ञात करना, जो कि सौर पीवी विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग की जा सकें।

वैकल्पिक सामग्रियों की खोज की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अतः आज सिलिकॉन के अतिरिक्त, अन्य सामग्रियों से बने सौर पीवी मॉड्यूल्स भी खरीदे जा सकते हैं। व्यावसायिक रूप से उपलब्ध अन्य सौर पीवी तकनीकें कैडमियम टेल्यूराइड, कॉपर-इंडियम-सेलेनाइड एवं गैलियम आर्सेनाइड आदि सामग्रियों का उपयोग कर बनी हैं। इनके अतिरिक्त, लगभग २० से ३० अन्य नई सामग्रियाँ हैं एवं सामग्रियों के अन्य संयोजन भी हैं जिनसे सस्ते सौर सेल व पीवी मॉड्यूल्स बनाने हेतु अनुसंधान किया गया है। यह अपेक्षित है कि २ से ५ वर्ष के समयांतराल में सौर पीवी विद्युत की कीमत घटकर उस स्तर तक आ जाएगी जहाँ इसकी पारंपरिक कोयला आधारित विद्युत के मूल्य से इसकी तुलना की जा सकेगी।

(लेखक आईआईटी, मुंबई में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और सौर ऊर्जा पर शोध कर रहे हैं)

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