22 जुलाई, 2011

परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता

जापान में परमाणु रिएक्टर दुर्घटना के परिप्रेक्ष्य में , भारत में परमाणु शक्ति जनित बिजली.

विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी , म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर म प्र. ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२


        फुकुशिमा जापान की परमाणु दुर्घटना पूरी दुनियां के अस्तित्व के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है . अब तक इतनी भीषण परमाणु दुर्घटना पहले कभी नही घटी थी .
 तीन दशक पहले अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड में परमाणु दुर्घटना हुई थी। इस परमाणु दुर्घटना ने वहां के असैन्य परमाणु कार्यक्रम पर ग्रहण लगा दिया। इसका असर यह हुआ कि 1978 के बाद अमेरिका में कोई परमाणु रिएक्टर नहीं लगा। दो दशक पहले 1986 में रूस के चेर्नोबिल की परमाणु दुर्घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया। ऐसा अनुमान है कि इस दुर्घटना की वजह से तकरीबन नब्बे हजार लोग काल के गाल में समा गए। इस परमाणु केंद्र को स्थापित करने में जितनी लागत लगी थी उससे तीन गुना अधिक नुकसान हुआ। भारत के परमाणु बिजलीघरों में भी दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन संयोग से अभी तक ये बेहद घातक नहीं साबित हुईं . आज हम सोचने पर विवश हैं कि  रिएक्टर के तौर पर हम कहीं अपनी ही मौत का सामान तो नहीं बना रहे। फुकुशिमा के परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट के बाद पूरी दुनिया में आणविक ऊर्जा की जरूरत को लेकर बहस छिड़ गई है . जर्मनी ने तो वहां परमाणु बिजली का उत्पादन क्रमशः बंद करने का फैसला तक ले लिया है .चीन ने भी नए रिएक्टरों पर फिलहाल रोक लगा दी है .दरअसल परमाणु दुर्घटनाओ के भयावह प्रभाव तुरंत नही दिखते , बिजलीघर के आसपास रहने वाले और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों पर विकिरण का असर आने वाले दिनों में दिखेगा, विकृत पीढ़ी का जन्म बरसो तक एसी दुर्गटना की याद दिलाता है .  हवा में जो रेडियोधर्मिता फैली है, वह अपना असर कब, कहां और किस तरह दिखाएगी इसके बारे में साफ तौर पर कोई बता नहीं सकता .अभी के परमाणु ज्ञान के अनुसार हमारी स्थिति अभिमन्यु जैसी है , जो चक्रव्यू में घुस तो सकता है , पर उससे निकलने का रास्ता अब तक हमारे पास नही है .
         भारत में भी परमाणु मामले में विशेषज्ञ दो खेमे में बंटे हुए हैं , एक खेमा वह है जो इस बात की वकालत करते हुए नहीं थकता  कि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का अहम जरिया आणविक ऊर्जा है , क्योकि हमारे यहां कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली की भागीदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है , वहीं दूसरा पक्ष दूसरो की गलतियो से सीख लेने की बात करता है और आणविक ऊर्जा को विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बता रहा है. इस सारी बहस के बीच हमारे २५वें परमाणु बिजली घर का कार्य राजस्थान में प्रारंभ किया जा चुका है .प्रधानमंत्री ने भी संसद में कहा कि परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी,केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश  कह चुके हैं कि भारत परमाणु ऊर्जा उत्पादन के मामले में बहुत आगे बढ़ गया है और अब पीछे नहीं हटा जा सकता . दरअसल, आज सरकारी स्तर पर परमाणु ऊर्जा को लेकर जिस भाषा में बात की जा रही है, वह भाषा अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जुड़ी हुई है। सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि परमाणु करार सही ढंग से लागू हो जाए तो हम इतनी बिजली पैदा कर पाएंगे कि घर-घर तक उजियारा फैल जाएगा और गांवों में सदियों से चला आ रहा अंधियारा पलक झपकते दूर हो जाएगा . वर्ल्ड बैंक ,एशियन डेवलेपमेंट बैंक ,  जापान ,आदि विदेशी सहायता से पावर इवेक्युएशन के लिये देश भर में हाईटेंशन ग्रिड और वितरण लाइनो तथा सबस्टेशनो का जाल बिछा दिया गया है . विभिन्न प्रदेशो में केंद्र सरकार की आर ए पी डी आर पी आदि पावर रिफार्म योजनाओ के विभिन्न चरण तेजी से लागू किये जा रहे हैं .
        अध्ययन प्रमाणित कर चुके हैं कि परमाणु ऊर्जा की लागत ताप विद्युत ऊर्जा से दुगनी होती  है . महाराष्ट्र में कुछ साल पहले बिजली जरूरतों को पूरा करने के नाम पर एनरान नेप्था बिजली परियोजना लगाई गई थी,  उस समय यह दावा किया गया था कि इससे महाराष्ट्र की बिजली की समस्या से काफी हद तक पार पा लिया जाएगा,  पर नतीजा इसके उलटा ही निकला. एनरान में उत्पादित बिजली इतनी महंगी साबित हुयी कि इसे बंद ही करना पड़ा . इस प्रकरण में सरकार को तकरीबन दस हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा. अब एक बार फिर महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट क्षमता वाला परमाणु बिजलीघर लगाने की कोशिश हो रही है, स्थानीय लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार इस परियोजना को बंद करने के सवाल पर टस से मस नहीं हो रही.
         अमेरिका ने पिछले तीन दशकों में कोई भी परमाणु बिजली घर  नहीं लगाया है. उल्लेखनीय है कि वहां 104 परमाणु बिजली घर हैं. इसमें से सभी तीस साल से अधिक पुराने हैं. परमाणु ऊर्जा के समर्थक बड़े जोर-शोर से फ्रांस का उदाहरण देते हैं. फ्रांस को 75 फीसदी बिजली परमाणु बिजली घरों से मिलती है. यह बिल्कुल सही है, लेकिन अगर परमाणु रिएक्टरों से बिजली पैदा करना वाकई लाभप्रद है तो फ्रांस अपने यहां और परमाणु बिजली घर क्यों नहीं स्थापित कर रहा है .उल्लेखनीय  है कि आने वाले दिनों में वहां सिर्फ एक परमाणु रिएक्टर प्रस्तावित है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आणविक बिजली बेहद महंगी साबित हो रही है. एक  उदाहरण आस्ट्रेलिया का भी है, आस्ट्रेलिया के पास दुनिया में सबसे ज्यादा यूरेनियम है, पर वहां एक भी परमाणु बिजली घर नहीं है.इसका सीधा संबंध लागत और सुरक्षा से है. जब कम लागत पर वही चीज उत्पादित की जा सकती है तो कोई भी उसका उत्पादन ज्यादा लागत पर क्यों करेगा? वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में परमाणु बिजलीघरों के जरिए 3,72,000 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है और इसकी विकास दर आधा प्रतिशत मात्र है. आधा फीसदी की यह विकास दर भी स्थाई नहीं है। 1964 से अब तक दुनिया में 124 रिएक्टर बंद कर दिए गए जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 36800 मेगावाट थी. 1990 में विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी सोलह प्रतिशत थी. 2007 में यह घटकर पंद्रह प्रतिशत हो गई. दुनिया के ज्यादातर देश परमाणु ऊर्जा के उत्पादन से किनारा करते जा रहे हैं
जब तकनीकी तौर पर बेहद सक्षम जापान के लिए परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट पर काबू पाना बेहद मुश्किल साबित हुआ तो ऐसी स्थिति में भारत का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
        अनुमान है कि 2020 में भारत में आठ लाख मेगावाट बिजली पैदा होगी, अगर आणविक ऊर्जा की योजना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी तो 20,000 मेगावाट पैदा कर पाएगी, जिसकी लागत  11 लाख करोड़ रुपए होगी . इसके लिए आठ लाख हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. रिएक्टर के पांच किलोमीटर की परिधि में आबादी नहीं रहेगी। इन क्षेत्रों से बेदखल कर दिए जाने वाले लोगों का पुनर्वास कैसे होगा ? लागत के अनुमान के अनुसार परमाणु बिजली की उत्पादन लागत  21 रुपए प्रति यूनिट होगी .देश में परमाणु बिजली के क्षेत्र में कारोबार की काफी संभावना है, सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के मौके तलाश रही हैं . ऐसा नहीं है कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रिटर्न की भारी संभावना है .लेकिन निजी  कंपनियां इस क्षेत्र में जो दिलचस्पी दिखा रही है उसका कारण यह  है कि ऊर्जा क्षेत्र में नीति-निर्माण के स्तर पर अहम फैसले लिये जा रहे हैं. सरकार चाहती है कि परमाणु बिजली का उत्पादन बढ़ाया जावे . सरकार इंडियन ऑयल कॉरपोरशन, नाल्को और एनटीपीसी जैसी कंपनियो को  परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रेरित कर रही है .  सरकार चाहती है कि 2020 तक देश में 20,000 मेगावाट  परमाणु बिजली पैदा होने की क्षमता स्थापित हो जाए . परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के मामले में एक गंभीर समस्या इसके कचरे का निस्तारण भी है, उपयोग में लाए गए परमाणु ईंधन का निस्तारण करना बेहद जटिल प्रक्रिया है. कुछ समय पहले ब्रिटेन में एक परमाणु ईंधन स्टोर लीक हो गया जिससे हजार किलोमीटर के दायरे का पानी प्रदूषित हो गया. भारत को आणविक कचरा सुरक्षित फेंकने के लिए हर साल तीन अरब डालर खर्च करने होंगे. यह भी तय नहीं है कि भारत अपना परमाणु कचरा कहां फेंकेगा.  जापान की परमाणु त्रासदी हमारे लिए एक सबक है , हमे परमाणु सयंत्र के डिजाईन फुल प्रूफ बनाने होंगे .
        वर्तमान में दुनिया में बिजली का सबसे अहम स्रोत कोयला और पेट्रोलियम है लेकिन दोनों स्रोत करोड़ों साल पहले धरती के नीचे दब गए जीव और वनस्पति के सड़ने गलने से बनते हैं और इनको बनने में करोड़ों साल लग जाते हैं। इसलिए अगर ये एक बार खत्म हो गए तो दुबारा बनने में अरबों साल लग जाएंगे। दुनिया की कुल बिजली का करीब 50 फीसदी उत्पादन कोयले से होता है और अगर हम मौजूदा दर से खपत करते हैं तो अगले डेढ़ सौ सालों में कोयले के भंडार खत्म हो जाएंगे. पेट्रोलियम के भंडार भी कोयले की तरह ही सीमित हैं. कार्बन के भण्डार वाले कोयले और पेट्रोलियम के इस्तेमाल से हम धरती के निरंतर बढ़ते तापमान पर  कैसे काबू रख पाएंगे ?  बढ़ता कार्बन उत्सर्जन भी इंसानी वजूद के लिए खतरा है .
तो अब विकल्प क्या है ? क्या अब बिजली के लिये पूर्णतः समुद्र की लहरो , सूर्य और वायुदेव की शरण में जाने का वक्त आ गया है ?
        विकल्प ज्यादा नही है , बिना बिजली के जीवन की कल्पना दुष्कर है . एक संतुलित राह बनानी जरुरी है , कम से कम बिजली का उपयोग , वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो का हर संभव दोहन , सुरक्षित परमाणु बिजली का उत्पादन और इस सबके साथ ऊर्जा के लिये नये अनुसंधान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये . क्या समुद्रतल पर अथाह जलराशि के भीतर परमाणु बिजलीघर बनाये जावें ? या अंतरिक्ष में परमाणु बिजली उत्पादन किया जावे ? क्या बादल से बरसते पानी को आकाश में ही एकत्रित करके  नियंत्रित करके जमीन पर नही उतारा जा सकता ? बिजली भी बन जायेगी और बाढ़ की विभीषिका भि नही होगी ! क्या ये परिकल्पनाये केवल मेरी विज्ञान कथाओ तक सीमित रहेंगी ? यदि इन्हें साकार करना है तो समूचे विश्व के वैज्ञानिको को एक होकर नये अनुसंधान करने पड़ेंगे , क्योकि परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता . उर्जा क्षेत्र में अनुसंधान दुनिया के अस्तित्व के लिये जरुरी हो चला है . 

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