25 फ़रवरी, 2010

शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।...Pankaj Agrawal IAS

शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।...Pankaj Agrawal IAS , CMD , M P P K V V Comp.



हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है....... ‘थ्री इडियट्स‘ फिल्म ने इस विचार के विपरीत आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है.... दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है। हमारे माननीय सी.एम.डी. श्री पंकज अग्रवाल, आई.ए.एस हम सबके लिये प्रेरणा स्त्रोत है।

विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च षिक्षा हेतु विदेश गये थे। ओपन युनिवर्सिटी के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना, आप सब भी सीख सकते है। माननीय सी.एम.डी. महोदय की बिदाई के समय मैंने लिखा था ‘‘हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है!‘‘ ... आज वे पुनः हमारे बीच है। स्वागत है सर! नई ऊर्जा के साथ, ऊर्जा जगत के नेतृत्व का .... स्वागत।

हमने उनसे उनके विगत वर्ष के शैक्षिक पाठ्यक्रम के अनुभवो पर बातचीत की, प्रस्तुत है, कुछ अंश-

सबसे पहले हमने जानना चाहा कि-

मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा लेने की प्रेरणा किस तरह हुई ?

धीर, गंभीर, सहज, सरल स्वर में उन्होंने बताया - इंजीनियरिंग की षिक्षा के साथ मैं प्रशासनिक सेवा में हूं। प्रशासनिक मैनेजमेंट की नवीनतम तकनीको के प्रति मेरी गहन रूचि रही है। इंटरनेट, विभिन्न सेमीनार इत्यादि के माध्यम से मैं लगातार ज्ञान के विस्तार में रूचि रखता हूं। मेरा मानना है कि शिक्षा से हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विस्तार होता है। अतः मैंने यह पाठ्यक्रम करने का मन बनाया।

यह कोर्स किस संस्थान से किया जावे इसका निर्णय आपने किस तरह लिया ?

ली कूएन यू स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, सिंगापुर विश्व का एक ऐसा संस्थान है, जो कि एशिया के विभिन्न देशो की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों पर फोकस करते हुये यह पाठ्यक्रम चलाता है, जिसमें शैक्षिक गतिविधि दो हिस्सों में बंटी हुई है, पहले हिस्से में जनवरी से अगस्त तक सिंगापुर में ही क्लासरूम आधारित पाठ्यक्रम होता है। दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल, यू.एस.ए. में अगस्त से दिसम्बर तक शिक्षार्थी द्वारा चुने गये विषयों पर (इलेक्टिव) शिक्षण होता है। यह पाठ्यक्रम वैश्विक स्तर का है, एवं अपनी तरह का विशिष्ट है, जिसमें विश्व स्तर पर एक्सपोजर के अवसर मिलते है।

आपने आई.आई.टी. से बी.टेक एवं आई.आई.एम. अहमदाबाद से शार्ट टर्म कोर्स भी किया था तो विदेशो की शिक्षण व्यवस्था और भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों की शिक्षण प्रणाली में आपको कोई आधारभूत अंतर लगा ? वहां आप वैश्विक रूप से विभिन्न देशों के शिक्षार्थियों के बीच रहे आपके विशेष अनुभव-

शिक्षण व्यवस्था में हमारे उच्च षिक्षा संस्थान किसी भी विष्व स्तरीय संस्थान से कम नहीं है, आई.आई.एम. एवं वहा की षिक्षण पद्धति समान है, सिंगापुर में 8 विभिन्न देषों के 22 षिक्षार्थियों का हमारा ग्रुप था। जब हम दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल यू.एस.ए. में थे, तब यू.एस. एवं अन्य देषों के 900 छात्रों के बीच, विभिन्न इलेक्टिव विषयों के लिये अलग-अलग गु्रप थे। अतः विष्व स्तर के श्रेष्ठ लोगों से मिलने, उन्हें समझने के अवसर प्राप्त हुये। हावर्ड केनली स्कूल में एवं जो विषेष बात मैने नोट की, वह यह थी कि वहाॅं छात्रों के विचारो का सम्मान करने की बहुत अच्छी परम्परा है। वहाॅं विषय विषेषज्ञ अपने विचार षिक्षार्थियों पर थोपते नहीं हैं, वरन् ‘‘दे आर ओपन टु अवर आइडियाज्‘‘, कानसेप्ट बेस्ट षिक्षा है। न केवल उच्च षिक्षा में, वरन् वहाॅं स्कूलों में भी सारी षिक्षा प्रणाली प्रेक्टिकल बेस्ड है, मेरी बेटी ने वहाॅं ग्रेड फोर (क्लास चार) की पढ़ाई की, जब उसे इलेक्ट्रिसिटी का पाठ पढ़ाया गया तो उसे प्रयोगषाला में बल्ब बैटरी और तार के साथ प्रयोग करने के लिये छोड दिया गया, स्वंय ही बल्ब को जलाकर उसने इलेक्ट्रिसिटी के विषय में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया।

पारिवारिक जिम्मेदारियाॅं कई लोगों को चाहते हुये भी नौकरी में आने के बाद उच्च षिक्षा लेने में बाधा बन जाती है, आपके इस पाठ्यक्रम में श्रीमती अग्रवाल व आपकी बिटिया के सहयोग पर आप क्या कहना चाहेंगे ?

मैं सपरिवार ही पूरे वर्ष अध्ययन कार्य पर रहा । श्रविती अग्रवाल को अवष्य ही अपने कार्य से एक वर्ष का अवकाष लेना पडा, बिटिया छोटी है, वह अभी क्लास चार में है। अतः उसकी पढ़ाई वहाॅं दोनों ही स्थानो पर सुगमता से जारी रह सकी। यह अध्ययन का एक वर्ष हम सबके लिये अनेक सुखद, चिरस्मरणीय एवं नई-नई यादों का समय रहा है। इस समय में हमने दुनिया का श्रेष्ठ देखा, समझा, जाना और अनुभव किया । बिना परिवार के सहयोग के यह अध्ययन संभव नहीं था, पर हाॅं किसी को कोई कम्प्रोमाइज नहीं करना पड़ा।

आम कर्मचारियों के नौकरी के साथ उच्च षिक्षा को नौकरी में आर्थिक लाभ से जोड़कर देखने के दृष्टिकोण पर आप क्या कहना चाहेंगे ?

हमें जीवन में षिक्षा जैसे व्यक्तित्व विकास के संसाधन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से जोडकर नहीं देखना चाहिये। ज्ञान का विस्तार इससे कहीं अधिक महत्तवपूर्ण है। यदि मैनेजमेंट की भाषा में कहे तो इससे हमारी ‘‘मार्केट वैल्यू‘‘ स्वतः सदा के लिये ही बढ़ जाती है, जिसके सामने एक-दो इंक्रीमेंट के आर्थिक लाभ नगण्य है।


आपके द्वारा किये गये कोर्स से आपको क्या लाभ लग रहे है ?

निष्चित ही इस समूचे अनुभव से मेरे आउटलुक में बदलाव आया है, सोचने, समझने तथा क्रियान्वयन के दृष्टिकोण में भारतीय परिपेक्ष्य में पब्लिक मैनेजमेंट के इस पाठ्यक्रम के सकारात्मक लाभ है, जो दीर्धकालिक है।


इस परिपेक्ष्य में हमारे लिये आप क्या संदेष देना चाहेंगे ?

‘‘आत्म निरीक्षण आवष्यक है। स्वंय अपनी समीक्षा करें। अपने दीर्धकालिक लक्ष्य बनाये, और सकारात्मक विचारधारा के लाभ उनकी पूर्ति हेतु संपूर्ण प्रयास करें। इससे आप स्वंय अपने लिये एवं कंपनी के लिये भी अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर पायेंगे। इन सर्विस ट्रेनिंग, रिफ्रेषर कोर्स, सेमीनारों में भागीदारी आपको अपडेट रखती है, इसी दृष्टिकोण से मैंने कंपनी का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करवाया है, हमारे अधिकारियों, कर्मचारियों को भी अन्य संस्थानों में समय-समय पर प्रषिक्षण हेतु भेजा जाता है। आवष्यक है कि इस समूचे व्यय का कंपनी के हित में रचनात्मक उपयोग किया जावे, जो आपको ही करना है।‘‘


साक्षात्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण यंत्री (सिविल), जबलपुर

सकारात्मक ऊर्जा से अभिरंजित हमारे नये मुख्य अभियंता जबलपुर क्षेत्राश्री अशोक सक्सेना

सकारात्मक ऊर्जा से अभिरंजित हमारे नये मुख्य अभियंता जबलपुर क्षेत्र
श्री अशोक सक्सेना


दिनांक 31.01.2010 को अधिवार्षिकी आयु पूर्ण कर, कुशल नेतृत्व की अपनी विषिष्ट छवि स्थापित कर श्री एल.एन. उपाध्याय जबलपुर क्षेत्र के कार्यपालक निदेषक के पद से सेवानिवृत हुये, उनके स्थान पर भोपाल से पदोन्नति पर आये हुये मुख्य अभियंता श्री अशोक सक्सेना ने जबलपुर क्षेत्र का नेवृत्व संभाला है। सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर श्री अशोक सक्सेना ने बताया है कि सबको साथ लेकर, कंपनी को उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर प्रशस्त करना उनकी प्राथमिकता है। उन्होने बताया है कि कंपनी एवं विद्युत क्षेत्र का मुख्यालय जबलपुर में होने के कारण, जबलपुर क्षेत्र के महत्वपूर्ण पदभार का दायित्व बोध उन्हें है। उन्होने कहा है कि कोई भी अधिकारी, कर्मचारी अपनी कार्यालयीन दायित्व या व्यक्तिगत समस्या को लेकर उनसे बेझिझक किसी भी समय मिल सकता है, नियमों की सीमाओं में कपंनी हित में उनके स्तर की हर समस्या के निदान का वे हर संभव प्रयत्न करेंगे। उच्च षिक्षित श्री सक्सेना ने आई.आई.टी. दिल्ली से एम टेक किया है। उन्होनें वर्ष 1978 में सहायक अभियंता के रूप में अपनी सेवायें विद्युत मंडल में प्रारंभ की थीं। वे मंडला, दतिया, षिवपुरी, गुना, मुरैना, ग्वालियर, भोपाल इत्यादि स्थानो पर विभिन्न पदों पर अपनी उत्कृष्ट सेवायें दे चुके है। जबलपुर क्षेत्र के अधिकारियों, कर्मचारियों ने श्री सक्सेना का स्वागत किया है, एवं उनके नेतृत्व में कीर्तिमान स्थापित करने के संकल्प दोहराये है।

17 जनवरी, 2010

Er. Shri Pankaj Agrawal , I A S स्वागत है ... सर !

हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है ,.... थ्री इडियेट्स फिल्म ने इस विचार को तोड़कर आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है ...दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है . हमारे माननीय सी एम डी Er. Shri Pankaj Agrawal , I A S हम सब के लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं . विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा हेतु विदेश गये थे ...तब उनकी बिदाई के अवसर पर मैने जो कविता प्रस्तुत की थी उसे पुनः उद्ृत करना प्रासंगिक होगा ... ओपन ठुनिवर्सिटी , के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना हम सब भी सीख सकते हैं ... मैने लोखा था हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !.... और आज वे पुनः लौट कर आ गये हैं नई उर्जा , नये प्रेरणा के रूप में स्वागत है ... सर !
माननीय पंकज अग्रवाल IAS , सी एम डी महोदय की उच्च शिक्षा हेतु बिदाई के अवसर पर प्रस्तुत शब्द सुमन

विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
09425484452


होते होते बन गये हिस्सा हमारा
और फिर कहने लगे कि लौट जाना है !
जब समझने लग गये थे हम इशारे
कर दिया यह क्यों इशारा लौट जाना है !!


लोग खुश थे छाते से छोटे आसमां में
संभव बनाया आसमाँ से लक्ष्य पाना
मुश्किलों का हल निकाला सौभाग्य था तेरा नेतृत्व पाना
हुई खता क्या कहने लगे जो लौट जाना है !


जा रहे हो जो यहां से जा न पाओगे
याद आओगे सदा हम भी याद आयेंगे
रोशनी घर की चमचमाती रोशनी हो तुम बस जगमगाओगे
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !


शुभकामना है हमारी और औपचारिक यह बिदाई
हो सदा आनंदमय नव वर्ष का यह पथ तुम्हारा
भूल सारी भूल कर के आजन्म है नाता निभाना
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !


जीवन पर्यन्त आपका

विवेक रंजन श्रीवास्तव

03 जनवरी, 2010

Want to Save power? Don't wear ties

By siliconindia news bureau
Saturday,02 January 2010,
Mumbai: A group of people in Mumbai came launched a campaign named as 'No-Tie' to save energy and protect the environment, reports BBC.

Campaigners believe that not wearing a tie will make people feel cooler with less need to use air conditioners so extensively. Currently, in Mumbai air-conditioners consume about 1,000 MW of the 2,700 MW power used daily by the city.


Dhiraj Shrinivasan, Co-founder of the "No-Tie Campaign" said, "I have read that wearing a tie makes one feel warm. Naturally then people ask for office temperatures to be reduced, causing higher carbon emissions because of more air conditioning. When I consulted an energy expert he explained to me that nearly 25 percent more is consumed when temperatures are maintained between 18 to 20 degrees Celsius instead of an ideal 24 to 26 degrees Celsius."

Shrinivasan believes that the the culture of wearing ties is British. "Their peak summer temperature would be our lowest winter temperature. We need to see if we really need to wear a tie at our workplace. We should wear clothes that are suitable to Indian climactic conditions like shirts or kurtas."

The campaigners are planning to to organise a "No Tie Day" on May 3, 2010. "It will be the peak of summer and it will have an impact then. At the local level we will discuss how to save power, at the national level we will talk about how we need to dress according to weather conditions and at the international level we will discuss the impact of global warming," said Shrinivasan.

Earlier in September, Bangladesh ordered government employees to not wear suits and ties to ease the country's energy shortage.

18 दिसंबर, 2009

प्रेमवती, महिला बिजली मिस्त्री

जब भी हमारे घर पर किसी बिजली के उपकरण में नुक्स आता है तो आम तौर पर हम इलेक्ट्रीशियन यानी बिजली के मिस्त्री को बुलाते हैं. लेकिन हम आपको बताते हैं एक महिला बिजली मिस्त्री के बारे में.
महिला बिजली मिस्त्री सुनने में थोड़ा हैरान तो करता है लेकिन लखनऊ की प्रेमवती सोनकर ये काम पिछले पैंतीस वर्षों से कर रही हैं.

बासठ साल की प्रेमवती को बचपन से बिजली की झालरें और उपकरण आकर्षित करते थे. उनकी भी इच्छा होती थी कि काश वो ये काम सीख पातीं.

नैनीताल की रहने वाली प्रेमवती की शादी हुई लखनऊ के प्यारे लाल से जिन्हें बिजली के काम की अच्छी खासी जानकारी थी. प्यारे लाल लखनऊ में ही जल संस्थान में कर्मचारी थे.

शादी के बाद प्रेमवती दिन भर घर पर खाली बैठी रहती थीं. घर के आर्थिक हालात भी कुछ ठीक नहीं थे. ऐसे में प्रेमवती ने अपने पति को बिजली के उपकरणों की मरम्मत करने का सुझाव दिया.


दुकान पर एक महिला का बैठना किसी को भी पसंद नहीं आता था. लेकिन पति के सहयोग से धीरे-धीरे सब ठीक हो गया




इस तरह उन्होंने एक दुकान खोल ली और प्रेमवती खाली समय में उनका हाथ बंटाने लगीं.

पति के हौसले से प्रेमवती के बचपन का शौक कब हुनर में बदल गया इसका एहसास उन्हें ख़ुद भी न हुआ.

रोटी बेलने वाले हाथ जल्दी ही मोटर की वाइंडिंग और बिजली के दूसरे साज़ो-सामान बनाने लग गए.

अब तो उन्हें बिजली के करंट का झटका और रोटी बेलते वक्त हाथ का जलना एक ही जैसा लगता है.

30 नवंबर, 2009

ग्रीन बैल्ट और इंडस्ट्रियल बैल्ट में एक अनुपात जरूरी है

जंगल कर सकते हैं मंगल... पर मैं समझता हूं कि ग्रीन बैल्ट और इंडस्ट्रियल बैल्ट में एक अनुपात जरूरी है , बस्तर के जंगल बंबई का प्रदूषण दूर नही कर सकते , न ही दक्षिण अफ्रिका के जंगल अमेरिकी औद्योगीकीकरण का मुकाबला कर सकते हैं .. हर क्षेत्र का समानुपातिक विकास होना चाहिये . वन संरक्षण के नाम पर अपना नाम कमाने के लिये टी एन शेषन ने इंद्रावती नदी पर बोधघाट विद्युत उत्पादन परियोजना के निर्माण को बस्तर में अनुमति नही दी थी जिसका खामियाजा आज म.प्र. विद्युत की कमी से जूझ कर कर रहा है .. यह ठीक नही है

23 नवंबर, 2009

न्यूज़....

बिजली के बिना भी मोबाइल फोन चार्ज किया जा सकेगा।

भोपाल के आर्मी जवान अनुराग कुमार ने धूप और आग से बैटरी चार्ज करने वाला चार्जर तैयार किया है। इससे बिजली के बिना भी मोबाइल फोन चार्ज किया जा सकेगा। इसकी खासियत यह भी है कि बल्ब या आग की आंच में भी बैटरी चार्ज कर सकता है। यह एक बोल्ट से लेकर 6 बोल्ट तक की क्षमता वाले सभी मोबाइल बैटरिज को ऑटोमेटिक एडजस्ट से चार्ज कर सकता है। इसे तैयार करने में 600 रुपए का खर्च आया और यदि इस चार्जर का बड़े स्तर पर निर्मा‡ा किया जाए तो महज 80 से 100 रुपए की कीमत में उपलŽध हो सकता है। अनुराग ने बताया कि यह चार्जर आम चार्जर की तुलना में aद्यt146यादा समय लेता है मगर इसके उपयोग से बैटरी की लाइफ दोगुनी हो जाती है। आम चार्जर 802 एमएएच की स्पीड पर काम करते हैं, वहीं इसकी स्पीड 300 एमएएच तक रखी गई है।
अब अनुराग की तम‹ना लैपटॉप के लिए सौर ऊर्जा युक्त चार्जर और डीटीएच को इसी तकनीक से चलाने के लिए उपकर‡ा तैयार करने का मन है।

बैक्टीरिया रोशन करेंगे शहर

बैक्टीरिया रोशन करेंगे शहर

वास्तुविद्एक ऐसे शहर का सपना देख रहे हैं, जहाँ आकाश सफेद और नीले प्रकाश से जगमगा रहा हो, जो कार्बन सोखता हो और रोशनी के लिए मछलियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर रहा हो। ....मुकुल व्यास



जरा कल्पना कीजिए ऐसी जीवित इमारतों की जो कार्बन डाई ऑक्साइड का भोजन करती हों। ऐसी सड़कों की कल्पना करें, जो बैक्टीरिया की रोशनी से जगमगाती हों। यह साइंस फिक्शन नहीं है। यह जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हुए विश्व का एक नजारा है। तापमान वृद्धि और बर्फ पिघलने के बाद अब धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रकृति को अपनी इच्छानुसार मोड़ने की कोशिशें कारगर नहीं होंगी। जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए विभिन्ना विकल्पों पर कई स्तरों पर काम चल रहा है।

वास्तुविद एक ऐसे शहर का सपना देख रहे हैं, जहाँ आकाश सफेद और नीले प्रकाश से जगमगा रहा हो। ऐसा शहर जो कार्बन सोखता हो और रोशनी के लिए मछलियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर रहा हो। लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की शोधकर्ता डॉ. रेशल आर्मस्ट्रांग का मानना है कि कम ऊर्जा की खपत के लिए बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये बैक्टीरिया नीली-हरी चमक पैदा करते हैं। इमारतों और साइन बोर्डों को चमकीले बैक्टीरिया की परतों से कवर किया जा सकता है। एक दूसरी दिलचस्प संभावना बैक्टीरिया को फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया से गुजारने की है ताकि वे कार्बन डाई ऑक्साइड हजम कर सूरज की रोशनी को ऊर्जा में तब्दील कर सकें। वैज्ञानिकों ने फोटोसिंथेसिस के लिए बैक्टीरिया की कई किस्मों की पहचान की है। डॉ. रेशल आर्मस्ट्रांग की शोधकर्ता टीम वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने के लिए सायनोबैक्टीरिया यानी ग्रीन एलगी के इस्तेमाल की संभावना पर भी विचार कर रही है।

आर्मस्ट्रांग और उनके सहयोगी जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रकृति से एक और गुर सीखना चाहते हैं। यह है चूने के निर्माण का रहस्य। इस प्रक्रिया में वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड ठोस कार्बोनेट रूप में तब्दील हो जाती है। कुदरती तौर पर यह प्रक्रिया हजारों वर्ष में पूरी होती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड तेजाबी वर्षा जल में घुलती है और फिर कैल्शियम के साथ मिलकर ठोस कैल्शियम कार्बोनेट अथवा लाइमस्टोन में तब्दील हो जाती है। वैज्ञानिकों की टीम इस कुदरती प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से दोहराना चाहती है और चूना बनाने की प्रक्रिया को हजारों वर्ष के बजाय कुछ ही दिनों में पूरा करना चाहती है। रिसर्चरों का मानना है कि दीवारों पर इंजन में प्रयुक्त होने वाले ग्रीज की नन्ही बूँदों की परत बिछाकर यह काम आसानी से किया जा सकता है। ग्रीज में मैग्नीशियम क्लोराइड जैसा कोई साल्ट मिलाया जाएगा। जब मैग्नेशियम हवा में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड से क्रिया करता है तो मैग्नीशियम कार्बोनेट के ठोस मोती बनने लगते हैं। धीरे-धीरे ये मोती सफेद चमकीले क्रिस्टल में तब्दील होने लगते हैं। ये परतें कुछ ही दिनों में बर्फबारी जैसा आभास देंगी। इस प्रक्रिया में न सिर्फ इमारत का सौंदर्य बढ़ेगा बल्कि आवारा घूम रहे कार्बन को भी मुट्ठी में किया जा सकेगा।