ए टी पी से करें कभी भी कहीं भी , अपनी देनदारियों का भुगतान ...
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
आज के समय में भौतिक संसाधनो ने हमें सुविधा भोगी बना दिया है . हर आदमी जल्दी में है . हमारे पास सब कुछ है , जो नही है वह जुटाने में हम सब व्यस्त हैं , किन्तु इस आपाधापी में समय की कमी है.दिन रात के चौबीस घंटो को बढ़ा सकने की , या समय बचा सकने की कला ढ़ूंढ़ने में हम लगे हैं . बैंक में लम्बी कतार में लगकर रुपये निकालने के दिन अब पुराने हो चुके हैं , जगह जगह ए टी एम मशीन लग चुकी हैं , अपना कार्ड डालिये , पासवर्ड दबाइये और रुपये निकाल लीजीये .. कितना सुविधाजनक है .
रुपये निकालना तो सरल हो गया है पर जब बिजली का बिल ,नल के पानी का बिल ,टेलीफोन या मोबाइल का बिल , गाड़ियो का टैक्स ,बच्चो के स्कूल की फीस , इंश्योरेंस का प्रिमियम भरना हो और लाइन लम्बी हो , या कलेक्शन विंडो बंद हो अथवा काउंटर क्लर्क चाय पीने सीट छोड़कर कहीं चला गया हो तो हम अधीर हो उठते हैं , हमें गुस्सा भी आता है और हम लाइन में लगे हुये अन्य लोगों के साथ व्यवस्था पर दोषारोपण के भाषण देने से बाज नहीं आते . अब समय व सुविधा हमारे लिये महत्वपूर्ण हो चुकी है . यही कारण है कि दलाल , ब्रोकर , व एजेंट फल फूल रहे हैं . आर टी ओ , पासपोर्ट , वीसा आदि अनेक व्यवस्थाओ में तो एजेंट के बिना काम ही नही होता .
पाया गया है कि उपभोक्ता सुविधाओ के विस्तार में मानवीय व्यवस्थाओ की अपेक्षा इलेक्ट्रानिक , या मशिनी व्यवस्थायें अधिक कारगर साबित हुई हैं .फैक्ट्री में कर्मियो के आने जाने पर निगरानी व रिकार्ड रखने वाली मशीन हो , रेल्वे स्टेशन पर वजन लेने की आटोमेटिक मशीन हो , कागज के नोट को चिल्हर में बदलने वाली मशीन हो , मंदिरों में नारियल फोड़ने वाली मशिन हो ,न्यूज पेपर , या कंडोम वेंडिग मशीनें हों जहाँ भी संभव हुआ हैं , मशीनो ने अधिक विश्वसनीय , व निरापद सुविधायें बढ़ाई हैं .
इसी क्रम में विगत कुछ ही समय से ए टी पी मशीन से कभी भी कहीं भी , अपनी देनदारियों का भुगतान करने की सुविधा अनेक कंपनियो के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है . म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर ने म.प्र. में सर्वप्रथम यह उपभोक्ता सुविधा जुटाकर महत्वपूर्ण कार्य किया . कंपनी के सी एम डी श्री पंकज अग्रवाल आई ए एस महोदय ने स्पष्ट सोच सामने रखी .उनके अनुसार जब उपभोक्ता बिजली बिल जमा करना चाहता है , तो उसे सम्मान पूर्वक , साफसुथरे वातावरण में बिना लम्बी लाइन में लगे अपने बिल जमा करने का अवसर दिया जाना जरूरी है इससे कंपनी के राजस्व में वृद्धि होगी . पहले बिजली बिल जमा करने की अंतिम तिथि के दिनो में समय से पहले बिजली बिल जमा करने के लिये लम्बी लाइनें लगती थीं ,क्योकि बिल जमा होने में नियत तारीख से देर हो जाने पर उपभोक्ता को पेनाल्टी देनी पड़ती है , अतः भीड़ व पेनाल्टी से बचने के लिये लोग अलग से कुछ सेवाशुल्क देकर एजेंटो या बिजली कर्मचारियो के माध्यम से बिल जमा करवाते थे . बिल जमा करने के काउंटर पर भीड़ नियंत्रित करने के लिये गार्डस की व्यवस्था तक करनी पड़ती थी . ज्यादा काम होने से बिल जमा करने वाले व्यक्ति से मानवीय त्रुटि होना स्वाभाविक है , अनेक प्रकरण सामने आये जिनमें जानबूझकर या त्रुटिवश फाइनेंशियल डिफाल्केशन हुआ .बढ़ती आबादी के चलते उपभोक्ताओ की संख्या में निरंतर वृद्धि और दूसरी ओर कर्मचारियो की संख्या में लगातार कमी से दबाव बढ़ता जा रहा था . नई नीति के अनुसार उपभोक्ता सेवा केंद्रो का विस्तार व निर्माण का महत्वपूर्ण कार्य किया गया .एम पी आनलाइन के माध्यम से भी बिल जमा करने की सेवा प्ररंभ की गई . पर सबसे प्रभावी व क्रांतिकारी कदम के रूप में ए टी पी मशीनो की स्थापना की गई . ए टी पी मशीन लगाने वाली कुछ कंपनियो में से एक एस पी एम एल टैक्नालाजी बैंगलोर के साथ करार किया गया व उक्त संस्था ने एटीएम मशीनो की ही तरह जगह जगह एटीपी मशीनें स्थापित की हैं जिनमें कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से टच स्क्रीन विंडो के द्वारा २४ घंटे , ३६५ दिन नगद , चैक , ड्राफ्ट , क्रैडिट कार्ड , या डेबिट कार्ड के जरिये बिल भुगतान की सहज सुविधा सुलभ कराई गई है .एटीपी मशीन का उपयोग बिना पढ़े लिखे उपभोक्ता भी कर सकें इसके लिये प्रत्येक एटीपी पर एक सहायक रखा गया है , जो मशीन से बिल जमाकर रसीद देने में उपभोक्ता की सहायता करता है व मशीन की सुरक्षा की जबाबदारी भी उठाता है . इस तरह ए टी पी से नये रोजगार भी सृजित हुये . इसके लिये आर एम एस सिस्टम भी केंद्रीकृत किया गया व इस तरह जहाँ एक ओर किसी भी एटीपी से किसी भी क्षेत्र के बिल के भुगतान की सुविधा उपभोक्ता को मिल सकी तो दूसरी ओर कंपनी के हित में राजस्व की जानकारी एक क्लिक पर मिलने लगी तथा इस पद्धति से भ्रष्टाचार पर नियंत्रण भी हुआ . वर्तमान में म.प्र. में एटीपी मशीनो से केवल बिजली बिलो का ही भुगतान हो रहा है , पर इन मशीनो के द्वारा पानी का बिल ,टेलीफोन या मोबाइल का बिल , गाड़ियो का टैक्स ,बच्चो के स्कूल की फीस , इंश्योरेंस का प्रिमियम आदि का भी भुगतान करने की व्यवस्था की जा सकती है , जरुरत केवल तकनीक के जन सामान्य के हित में समुचित दोहन की है .
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................................power is key for development, let us save power,
25 दिसंबर, 2010
17 दिसंबर, 2010
विवाह समारोहो में बिजली चोरी के खिलाफ संदेशा .. बैंड बाजा बारात में
विवाह समारोहो में बिजली चोरी के खिलाफ संदेशा .. बैंड बाजा बारात में ...
कल मुहर्रम की छुट्टी थी , दायीत्व बोध से ही सही सोचा चलो कुछ समय श्रीमती जी को भी दिया जावे , और मूवी मैजिक में बैंड बाजा बारात देखने का कार्यक्रम बना डाला ... अच्छी फिल्म है ...शादी विवाह , अन्य सार्वजनिक , धार्मिक समारोहो में बिना बिजली का नियमित कनेक्शन लिये हुये खंभे से सीधे तार जोड़कर बिजली ले लेना जैसे हमारे यहाँ अधिकार ही माना जाने लगा है ... मैं नियमित रूप से इस संबंध में लिखता रहा हूं . इस बिजली चोरी के विरुद्ध बैंड बाजा बारात में फिल्म की हीरोइन अनुष्का शर्मा एक डायलाग में संदेश भी देती हैं इस फिल्म में ... भई वाह ! लेखक , निर्देशक को भी बधाई !
अनुष्का शर्मा की पिछली फिल्म "रब ने बना दी जोडी" में भी शाहरूख खान का " पंजाब पावर लाइटनिंग योर लाइफ्स " वाला डायलाग भी बिजली सैक्टर के लोगो के लिये इंस्पायरिंग था ...
कल मुहर्रम की छुट्टी थी , दायीत्व बोध से ही सही सोचा चलो कुछ समय श्रीमती जी को भी दिया जावे , और मूवी मैजिक में बैंड बाजा बारात देखने का कार्यक्रम बना डाला ... अच्छी फिल्म है ...शादी विवाह , अन्य सार्वजनिक , धार्मिक समारोहो में बिना बिजली का नियमित कनेक्शन लिये हुये खंभे से सीधे तार जोड़कर बिजली ले लेना जैसे हमारे यहाँ अधिकार ही माना जाने लगा है ... मैं नियमित रूप से इस संबंध में लिखता रहा हूं . इस बिजली चोरी के विरुद्ध बैंड बाजा बारात में फिल्म की हीरोइन अनुष्का शर्मा एक डायलाग में संदेश भी देती हैं इस फिल्म में ... भई वाह ! लेखक , निर्देशक को भी बधाई !
अनुष्का शर्मा की पिछली फिल्म "रब ने बना दी जोडी" में भी शाहरूख खान का " पंजाब पावर लाइटनिंग योर लाइफ्स " वाला डायलाग भी बिजली सैक्टर के लोगो के लिये इंस्पायरिंग था ...
13 दिसंबर, 2010
1st India International energy summit 28th to 30th Jan 2011
Society of Energy Engineers and Managers
organizing
1st India International energy summit 28th to 30th Jan 2011
Details are at www.iies.in
Or
10 दिसंबर, 2010
बिजली चोरी कम होने से बैतूल में २४ घंटे अनवरत बिजली प्रदाय करने के आदेश....
बैतूल मध्य प्रदेश का पहला जिला बन गया है जहाँ बिजली चोरी कम होने से लाइनलास न्यूनतम रिकार्ड किया गया है और इससे प्रभावित होकर वहां २४ घंटे अनवरत बिजली प्रदाय करने के आदेश मध्यक्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने जारी कर दिये हैं ...
रिलायंस का पक्ष .....बिजली चोरी का मामला सासन प्रोजेक्ट
रिलायंस का पक्ष
सासन प्रोजेक्ट में नवंबर ०९ में बिजली कनेक्शन लगा था। इसके बाद जब पहली रीडिंग का बिल आया तो बेहद काम राशि का बिल होने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए हमने पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों को लिखित में सूचना दी। संबंधित पत्र की रिसीविंग भी हमारे पास में हैं। इसके बाद भी बिजली अधिकारियों के हम संपर्क में रहे। ऐसी स्थिति में बिजली चोरी का मामला हम पर कैसे बनाया जा सकता है?
रिलायंस के साथ मीटरिंग का मामला था यानि रीडिंग को लेकर त्रुटी हो रही थी न कि बिजली चोरी। धारा १३५ तभी लगती है जब मीटर से छे़ड़छा़ड़ या सीधे तार से बिजली चोरी हो रही हो।
सासन प्रोजेक्ट में नवंबर ०९ में बिजली कनेक्शन लगा था। इसके बाद जब पहली रीडिंग का बिल आया तो बेहद काम राशि का बिल होने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए हमने पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के अधिकारियों को लिखित में सूचना दी। संबंधित पत्र की रिसीविंग भी हमारे पास में हैं। इसके बाद भी बिजली अधिकारियों के हम संपर्क में रहे। ऐसी स्थिति में बिजली चोरी का मामला हम पर कैसे बनाया जा सकता है?
रिलायंस के साथ मीटरिंग का मामला था यानि रीडिंग को लेकर त्रुटी हो रही थी न कि बिजली चोरी। धारा १३५ तभी लगती है जब मीटर से छे़ड़छा़ड़ या सीधे तार से बिजली चोरी हो रही हो।
09 दिसंबर, 2010
बिजली का उत्पादन संयत्र स्थापित करने वाली कंपनी पर ही बिजली चोरी का आरोप ..
सिंगरौली में हो रही थी बिजली चोरी
.रिलायंस को ८ करोड़ का बि...ल
२९ सितंबर को पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के विजलेंस हेड एके कुलश्रेष्ठ ने सिंगरौली के सासन नामक स्थान में रिलायंस के स्थापित हो रहे ४००० मेगावाट के अल्ट्रा पावर प्लांट की साइट पर छापा मारा था।उनके अनुसार यहां सीटी को बायपास कर सीधे ३३ केवी लाइन से बिजली चोरी हो रही थी।
इस आधार पर जब श्री कुलश्रेष्ठ की टीम ने कार्रवाई की, तो मैदानी अधिकारियों ने इसका विरोध किया और कहा कि सीटी मीटर यानि करंट ट्रांसफार्मर का मीटर खराब था, जिसके कारण उपभोक्ता की बिजली खपत दर्ज नहीं हो पा रही थी। श्री कुलश्रेष्ठ के विरोध के बाद मीटर को भोपाल भेजकर चेक कराया गया, तो वो सही पाया गया। इस आधार पर कुलश्रेष्ठ ने आरोपी के खिलाफ बिलिंग के साथ ही प्रथम दृष्टया दोषी अधिकारियों के खिलाफ क़ड़ी कार्रवाई करने कंपनी प्रबंधन को प्रस्ताव दिया है। उल्लेखनीय है कि रिलायंस ने नवंबर २००९ में सासन में बिजली कनेक्शन लिया था, तब से यहां छापे की कार्रवाई तक मीटर में बिजली खपत दर्ज ही नहीं हो रही थी।
कार्यपालन अभियंता मीटर टेस्टिंग लैब रीवा कुलदीप कुमार दुबे, एई नीरज गुलातिया सहित दो अन्य कर्मी शमीम अहमद और खान के खिलाफ धारा ४२०, १५०, १६७, १८९, १९२, १८०, ४६४, ४७० और १२० के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराए जाने का सुझाव दिया है।
धारा १३५ का प्रकरण
कंपनी के विजलेंस हेड ए के कुलश्रेष्ठ ने बताया कि ३० नवंबर को मीटर टेस्टिंग में मीटर रिपोर्ट ओ के आने पर सासन पावर रिलायंस के खिलाफ विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। उन्हें ९० हजार की कंपाउंडिंग राशि सहित ७ करो़ड़ ६१ लाख रुपये का बिल थमाया जा रहा है।
.रिलायंस को ८ करोड़ का बि...ल
२९ सितंबर को पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के विजलेंस हेड एके कुलश्रेष्ठ ने सिंगरौली के सासन नामक स्थान में रिलायंस के स्थापित हो रहे ४००० मेगावाट के अल्ट्रा पावर प्लांट की साइट पर छापा मारा था।उनके अनुसार यहां सीटी को बायपास कर सीधे ३३ केवी लाइन से बिजली चोरी हो रही थी।
इस आधार पर जब श्री कुलश्रेष्ठ की टीम ने कार्रवाई की, तो मैदानी अधिकारियों ने इसका विरोध किया और कहा कि सीटी मीटर यानि करंट ट्रांसफार्मर का मीटर खराब था, जिसके कारण उपभोक्ता की बिजली खपत दर्ज नहीं हो पा रही थी। श्री कुलश्रेष्ठ के विरोध के बाद मीटर को भोपाल भेजकर चेक कराया गया, तो वो सही पाया गया। इस आधार पर कुलश्रेष्ठ ने आरोपी के खिलाफ बिलिंग के साथ ही प्रथम दृष्टया दोषी अधिकारियों के खिलाफ क़ड़ी कार्रवाई करने कंपनी प्रबंधन को प्रस्ताव दिया है। उल्लेखनीय है कि रिलायंस ने नवंबर २००९ में सासन में बिजली कनेक्शन लिया था, तब से यहां छापे की कार्रवाई तक मीटर में बिजली खपत दर्ज ही नहीं हो रही थी।
कार्यपालन अभियंता मीटर टेस्टिंग लैब रीवा कुलदीप कुमार दुबे, एई नीरज गुलातिया सहित दो अन्य कर्मी शमीम अहमद और खान के खिलाफ धारा ४२०, १५०, १६७, १८९, १९२, १८०, ४६४, ४७० और १२० के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराए जाने का सुझाव दिया है।
धारा १३५ का प्रकरण
कंपनी के विजलेंस हेड ए के कुलश्रेष्ठ ने बताया कि ३० नवंबर को मीटर टेस्टिंग में मीटर रिपोर्ट ओ के आने पर सासन पावर रिलायंस के खिलाफ विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है। उन्हें ९० हजार की कंपाउंडिंग राशि सहित ७ करो़ड़ ६१ लाख रुपये का बिल थमाया जा रहा है।
नई दुनिया में प्रकाशित समाचार के आधार पर ..साभार
वितरण कंपनियों का बेहतर संचालन कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिसका समाधान किया जाना जरूरी है...बिजली सचिव
१२वीं पंचवर्षीय योजना के बारे में सरकार का नजरिया
वितरण कंपनियों का बेहतर संचालन कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिसका समाधान किया जाना जरूरी है...बिजली सचिव
बिजली क्षेत्र में ४०० अरब डॉलर निवेश की जरूरत
बिजली क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की जरूरत पर बल देते हुए सरकार ने आज कहा कि देश में सबको वाजिब दाम पर समुचित बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए १२वीं योजना (२०१२-१७) में इस क्षेत्र में ३०० से ४०० अरब डॉलर ( १३,५००-१८,००० अरब रुपये) के निवेश की जरूरत होगी।
सरकार ने तीव्र आर्थिक वृद्घि के लिए बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में १२वीं योजना के दौरान १,००० अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है। उद्योग मंडल फिक्की द्वारा "भारतीय बिजली क्षेत्र : समन्वित योजना और क्रियान्वयन-१२वीं योजना और उसके बाद" विषय पर आयोजित सम्मेलन में बिजली सचिव पी उमाशंकर ने कहा कि समाज के सभी तबकों को वाजिब दाम पर बिजली आपूर्ति करने के लिए १२वीं योजना में इस क्षेत्र में ३०० से ४०० अरब डॉलर की जरूरत होगी।
इतना बड़ा निवेश करना अकेले सार्वजनिक क्षेत्र के वश में नहीं है। ऐसे में निजी क्षेत्र को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अहम भूमिका निभानी होगी।
कंपनियों को आकर्षित करेंगेः उमाशंकर ने कहा कि सरकार ने निजी घरेलू और विदेशी कंपनियों को इस क्षेत्र में धन लगाने के लिए आकर्षित करने के लिए अनुकूल कानूनी और विनियामकीय नीतिगत व्यवस्था की है। बिजली क्षेत्र में निजी क्षेत्र का योगदान वर्ष २०१० में १९ फीसद हो गया है जो १९९० में ४ फीसद था। ११वीं योजना के अंत में निजी क्षेत्र का योगदान ३० फीसद के करीब पहुँचने की उम्मीद है। निजी क्षेत्र में मित्सुबिसी, अल्सतोम, सीमेंस जैसी अग्रणी कंपनियाँ बिजली क्षेत्र में निवेश कर रही हैं।
मौजूदा पंचवर्षीय योजना (२००७-१२) में संशोधित ६२,३७४ मेगावॉट बिजली उत्पादन लक्ष्य में से २९,३०० मेगावॉट हासिल कर लिया गया है। हालाँकि उन्होंने कहा कि पनबिजली परियोजना के क्रियान्वयन में देरी से हमारा कुल उत्पादन ४,००० मेगावॉट तक कम हो सकता है। उमाशंकर ने कहा कि समय बिजली उपकरणों की आपूर्ति, ईंधन उपलब्धता, पर्यावरण एवं वन संबंधी मंजूरी में देरी और वितरण कंपनियों का बेहतर संचालन कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिसका समाधान किया जाना जरूरी है और सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है।
वितरण कंपनियों का बेहतर संचालन कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिसका समाधान किया जाना जरूरी है...बिजली सचिव
बिजली क्षेत्र में ४०० अरब डॉलर निवेश की जरूरत
बिजली क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी की जरूरत पर बल देते हुए सरकार ने आज कहा कि देश में सबको वाजिब दाम पर समुचित बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए १२वीं योजना (२०१२-१७) में इस क्षेत्र में ३०० से ४०० अरब डॉलर ( १३,५००-१८,००० अरब रुपये) के निवेश की जरूरत होगी।
सरकार ने तीव्र आर्थिक वृद्घि के लिए बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में १२वीं योजना के दौरान १,००० अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है। उद्योग मंडल फिक्की द्वारा "भारतीय बिजली क्षेत्र : समन्वित योजना और क्रियान्वयन-१२वीं योजना और उसके बाद" विषय पर आयोजित सम्मेलन में बिजली सचिव पी उमाशंकर ने कहा कि समाज के सभी तबकों को वाजिब दाम पर बिजली आपूर्ति करने के लिए १२वीं योजना में इस क्षेत्र में ३०० से ४०० अरब डॉलर की जरूरत होगी।
इतना बड़ा निवेश करना अकेले सार्वजनिक क्षेत्र के वश में नहीं है। ऐसे में निजी क्षेत्र को इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अहम भूमिका निभानी होगी।
कंपनियों को आकर्षित करेंगेः उमाशंकर ने कहा कि सरकार ने निजी घरेलू और विदेशी कंपनियों को इस क्षेत्र में धन लगाने के लिए आकर्षित करने के लिए अनुकूल कानूनी और विनियामकीय नीतिगत व्यवस्था की है। बिजली क्षेत्र में निजी क्षेत्र का योगदान वर्ष २०१० में १९ फीसद हो गया है जो १९९० में ४ फीसद था। ११वीं योजना के अंत में निजी क्षेत्र का योगदान ३० फीसद के करीब पहुँचने की उम्मीद है। निजी क्षेत्र में मित्सुबिसी, अल्सतोम, सीमेंस जैसी अग्रणी कंपनियाँ बिजली क्षेत्र में निवेश कर रही हैं।
मौजूदा पंचवर्षीय योजना (२००७-१२) में संशोधित ६२,३७४ मेगावॉट बिजली उत्पादन लक्ष्य में से २९,३०० मेगावॉट हासिल कर लिया गया है। हालाँकि उन्होंने कहा कि पनबिजली परियोजना के क्रियान्वयन में देरी से हमारा कुल उत्पादन ४,००० मेगावॉट तक कम हो सकता है। उमाशंकर ने कहा कि समय बिजली उपकरणों की आपूर्ति, ईंधन उपलब्धता, पर्यावरण एवं वन संबंधी मंजूरी में देरी और वितरण कंपनियों का बेहतर संचालन कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जिसका समाधान किया जाना जरूरी है और सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है।
07 दिसंबर, 2010
बिल भुगतान सुविधाजनक .....
बिल भुगतान सुविधाजनक ...
विद्युत बिलो के भुगतान के लिये लाइन में लगने की बातें अब पुरानी हो गई हैं . प्रायः सभी विद्युत वितरण कंपनियां बिलो के भुगतान हेतु इंटरनेट आनलाइन प्रणाली , A T P मशीन , के अत्याधुनिक प्रयोग कर रही हैं . बंगलोर की S P M L एसी मशीनें लगाने में हमारी सहयोगी है ...लिंक देखें ..... http://www.sums.in/home.htm
विद्युत बिलो के भुगतान के लिये लाइन में लगने की बातें अब पुरानी हो गई हैं . प्रायः सभी विद्युत वितरण कंपनियां बिलो के भुगतान हेतु इंटरनेट आनलाइन प्रणाली , A T P मशीन , के अत्याधुनिक प्रयोग कर रही हैं . बंगलोर की S P M L एसी मशीनें लगाने में हमारी सहयोगी है ...लिंक देखें ..... http://www.sums.in/home.htm
05 दिसंबर, 2010
टाइम आफ द डे टैरिफ ..लागू होने को है !
टाइम आफ द डे टैरिफ ..लागू होने को है !यानी पीकिंग अवर में बिजली की दरें अधिक और देर रात में कम ...
इसका मतलब यह है कि यदि आपको बिजली के बिल में बचत करनी है तो आदत डालिये कि घर की ओवरहैड पानी की टंकी देर रात में भरें और अपने गीजर में थर्मोस्टेट ठिक रखें जिससे कि जब रात में वाशरूम जाने उठें तो गीजर चालू करके पानी गरम कर लेवें ..स्विच आफ होने की जबाबदारी थर्मोस्टेट पर छोड़ दें . वाशिंग मशीन ऐसी हो जो शोर न करे तो उसे भी आटोमेटिक मोड पर देर रात चलाकर बिजली बिल मे बचत कर सकेंगे ...
इसका मतलब यह है कि यदि आपको बिजली के बिल में बचत करनी है तो आदत डालिये कि घर की ओवरहैड पानी की टंकी देर रात में भरें और अपने गीजर में थर्मोस्टेट ठिक रखें जिससे कि जब रात में वाशरूम जाने उठें तो गीजर चालू करके पानी गरम कर लेवें ..स्विच आफ होने की जबाबदारी थर्मोस्टेट पर छोड़ दें . वाशिंग मशीन ऐसी हो जो शोर न करे तो उसे भी आटोमेटिक मोड पर देर रात चलाकर बिजली बिल मे बचत कर सकेंगे ...
26 नवंबर, 2010
‘एंटिलिया’ का एक महीने का बिजली बिल 70 लाख रुपए
दुनिया के सबसे धनी लोगो में से एक मुकेश अंबानी की ‘एंटिलिया’ इमारत का पहले महीने का बिजली का बिल 70,69,488 रुपए आया है। वे अपने परिवार के साथ पिछले महीने ही इस आलीशान इमारत में रहने गए हैं। 27 मंजिला ‘एंटिलिया’ में पिछले महीने 6,37,240 यूनिट बिजली की खपत हुई। बताया जा रहा है कि मुकेश अंबानी ने समय से बिजली का बिल अदा किया है इसलिए उन्हें बिजली के बिल में करीब ४८३५४ रुपयों की छुट भी दी गई है
नगर निगम कर रहा था बिजली चोरी
नगर निगम कर रहा था बिजली चोरी
जबलपुर(नप्र)। दिन-रात जलने वाली स्ट्रीट लाइट पर जांच करने निकला बिजली अमला उस वक्त भौंचक रह गया जब उसने चोरी की बिजली से स्ट्रीट लाइट जलते पाई। इस आधार पर नगर निगम पर १२ माह का जुर्माना ठोक दिया गया है। इस कार्रवाई से नगर निगम में अफरा-तफरी मच गई है।
शहर के आधा दर्जन क्षेत्रों में दिन-रात स्ट्रीट लाइट जलने का मामला नईदुनिया में २६ नवंबर के अंक में प्रकाशित हुआ था। समाचार में दिए गए पोल क्रमांक शहर बिजली संभाग पश्चिम के थे लिहाजा पश्चिम संभाग ने खबर को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच कराई। जांच में स्ट्रीट लाइट जलती पाईं गईं। ये स्ट्रीट लाइट बिजली तारों से सीधे जो़ड़कर जलाईं जा रही थीं। इसके आधार पर बिजली विभाग ने चोरी की बिजली से जल रहे सभी पोलों पर २४ घंटे और १२ माह की बिलिंग कर जुर्माना कर नगर निगम को बिल भेज दिया है। ये पहला मौका है जब बिजली विभाग ने नगर निगम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है।
डीई आईके त्रिपाठी ने बताया कि जांच में एम७-३२/२, एन/२९ एसपी , एन२९ सी, जेड ५८, जेड ६३, वाय २६-५ पर लगे स़ड़क बत्ती के सोडियम बल्व चालू पाए गए। ये सभी फेज से जु़ड़े थे। जांच का पूरा ब्यौरा नगर निगम के कार्यपालन अभियंता प्रकाश विभाग को भेज दिया गया है।
छवि न करें खराब- श्री त्रिपाठी ने नगर निगम को लिखे पत्र में कहा है कि आप अपने अधिकारियों कर्मचारियों को निर्देशित करें कि स्ट्रीट लाइट किसी भी सूरत में जलती न रहें। आपकी लापरवाही से हमारी कंपनी और विद्युत मंडल की छबि पर विपरीत प्रभाव प़ड़ता है। दिनभर लाइट जलने से ऊर्जा हानि के कारण राष्ट्रीय क्षति भी हो रही है।
बिजली विभाग का काम- दूसरी ओर नगर निगम के आयुक्त ओपी श्रीवास्तव ने कहा कि स्ट्रीट लाइट के फेज स्विच बंद करना बिजली विभाग का काम है। आउटडोर स्विच ही नगर निगम चालू और बंद करने का काम करता है। फिलहाल मैं भोपाल में हूं अपने अधिकारियों से शनिवार को बात कर मामले की छानबीन करूंगा। यदि बिजली विभाग की लापरवाही है तो हम नियमानुसार कार्रवाई करेंगे।
जबलपुर(नप्र)। दिन-रात जलने वाली स्ट्रीट लाइट पर जांच करने निकला बिजली अमला उस वक्त भौंचक रह गया जब उसने चोरी की बिजली से स्ट्रीट लाइट जलते पाई। इस आधार पर नगर निगम पर १२ माह का जुर्माना ठोक दिया गया है। इस कार्रवाई से नगर निगम में अफरा-तफरी मच गई है।
शहर के आधा दर्जन क्षेत्रों में दिन-रात स्ट्रीट लाइट जलने का मामला नईदुनिया में २६ नवंबर के अंक में प्रकाशित हुआ था। समाचार में दिए गए पोल क्रमांक शहर बिजली संभाग पश्चिम के थे लिहाजा पश्चिम संभाग ने खबर को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच कराई। जांच में स्ट्रीट लाइट जलती पाईं गईं। ये स्ट्रीट लाइट बिजली तारों से सीधे जो़ड़कर जलाईं जा रही थीं। इसके आधार पर बिजली विभाग ने चोरी की बिजली से जल रहे सभी पोलों पर २४ घंटे और १२ माह की बिलिंग कर जुर्माना कर नगर निगम को बिल भेज दिया है। ये पहला मौका है जब बिजली विभाग ने नगर निगम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है।
डीई आईके त्रिपाठी ने बताया कि जांच में एम७-३२/२, एन/२९ एसपी , एन२९ सी, जेड ५८, जेड ६३, वाय २६-५ पर लगे स़ड़क बत्ती के सोडियम बल्व चालू पाए गए। ये सभी फेज से जु़ड़े थे। जांच का पूरा ब्यौरा नगर निगम के कार्यपालन अभियंता प्रकाश विभाग को भेज दिया गया है।
छवि न करें खराब- श्री त्रिपाठी ने नगर निगम को लिखे पत्र में कहा है कि आप अपने अधिकारियों कर्मचारियों को निर्देशित करें कि स्ट्रीट लाइट किसी भी सूरत में जलती न रहें। आपकी लापरवाही से हमारी कंपनी और विद्युत मंडल की छबि पर विपरीत प्रभाव प़ड़ता है। दिनभर लाइट जलने से ऊर्जा हानि के कारण राष्ट्रीय क्षति भी हो रही है।
बिजली विभाग का काम- दूसरी ओर नगर निगम के आयुक्त ओपी श्रीवास्तव ने कहा कि स्ट्रीट लाइट के फेज स्विच बंद करना बिजली विभाग का काम है। आउटडोर स्विच ही नगर निगम चालू और बंद करने का काम करता है। फिलहाल मैं भोपाल में हूं अपने अधिकारियों से शनिवार को बात कर मामले की छानबीन करूंगा। यदि बिजली विभाग की लापरवाही है तो हम नियमानुसार कार्रवाई करेंगे।
23 नवंबर, 2010
थोरियम की ऊर्जा से होगा खूब उजाला
थोरियम की ऊर्जा से होगा खूब उजाला
साभार नई दुनिया २४नवम्बर ११
थोरियम यूरेनियम की तुलना में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और उसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता यूरेनियम से २०० गुना अधिक है। मसलन एक टन थोरियम ३५ लाख टन कोयले के बराबर ऊर्जा उत्पन्ना कर सकता है।
मुकुल व्यास
दुनिया में बहुतायत में पाई जाने वाली थोरियम धातु खनिज ईंधन पर हमारी निर्भरता समाप्त कर सकती है लेकिन इसके लिए राष्ट्रपति ओबामा और पश्चिम के अन्य नेताओं को कुछ साहसिक निर्णय लेने पड़ेंगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि थोरियम रिएक्टर दुनिया को ५ साल केअंदर खनिज तेल से मुक्ति दिला सकते हैं। थोरियम यूरेनियम की तुलना में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और उसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता यूरेनियम से २०० गुना अधिक है। मसलन एक टन थोरियम ३५ लाख टन कोयले के बराबर ऊर्जा उत्पन्ना कर सकता है। थोरियम ईंधन का बहुत ही किफायती स्रोत है। कुदरती यूरेनियम को न्यूक्लियर रिएक्टर में इस्तेमाल करने से पहले काफी परिशोधित करना पड़ता है लेकिन थोरियम के मामले में ऐसा नहीं है। लगभग सारे थोरियम को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
सर्न (योरपीय परमाणु अनुसंधान संगठन) के पूर्व निदेशक कार्लो रूबिया ने यूरेनियम रिएक्टरों के सस्ते, स्वच्छ और किफायती विकल्प के तौर पर थोरियम के इस्तेमाल का आइडिया रखा है। थोरियम का इस्तेमाल अगली पीढ़ी के परमाणु बिजलीघरों में एनर्जी एम्प्लीफायर के रूप में किया जा सकता है। रूबिया के मुताबिक मुट्ठीभर थोरियम से लंदन जैसे शहर को एक हफ्ते तक रोशनी दी जा सकती है। थोरियम अपने खतरनाक कचरे को खुद हजम कर जाता है। यह यूरेनियम रिएक्टरों द्वारा छोड़े गए प्लूटोनियम की भी सफाई कर देता है। इस तरह यह एक ईको-क्लिनर के रूप में भी कैरी करता है। थोरियम इतनी आसानी से उपलब्ध है कि खनिक समुदाय इसे सिरदर्द के रूप में देखते हैं। इसे रेयर-अर्थ धातुओं की खुदाई के दौरान वेस्ट प्रोडक्ट समझा जाता है।
रूबिया के आइडिया पर अभी काफी काम करने की जरूरत है, लेकिन इसकी संभावित क्षमता को देखकर नार्वे की एक फर्म अकेर सल्यूशंस ने थोरियम साइकल के बारे में रूबिया का पेटेंट खरीद लिया है। अब वे एक प्रोटोन एक्सेलरेटर के डिजाइन पर काम कर रही हैं। १.८ अरब डॉलर की यह परियोजना नन्हे भूमिगत परमाणु रिएक्टरों के नेटवर्क को जन्म दे सकती है। इस नेटवर्क के प्रत्येक रिएक्टर से ६०० मेगावॉट बिजली उत्पन्न हो सकती है। बड़े-बड़े पारंपरिक न्यूक्लियर रिएक्टर की तुलना में इन नन्हे रिएक्टरों को सुरक्षा के लिए लंबे-चौड़े तामझाम की जरूरत नहीं पड़ेगी। थोरियम में अपार संभावनाएँ हैं। थोरियम सैकड़ों या हजारों वर्षों तक भविष्य की सभ्यताओं को ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
थोरियम आधारित नई टेक्नोलॉजी का विकास भारत के लिए एक अच्छी खबर हो सकता है। हमारे देश में थोरियम का प्रचुर भंडार है। भारत का इरादा २०४० तक बड़े पैमाने पर थोरियम आधारित रिएक्टर बनाने का भी है।
साभार नई दुनिया २४नवम्बर ११
थोरियम यूरेनियम की तुलना में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और उसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता यूरेनियम से २०० गुना अधिक है। मसलन एक टन थोरियम ३५ लाख टन कोयले के बराबर ऊर्जा उत्पन्ना कर सकता है।
मुकुल व्यास
दुनिया में बहुतायत में पाई जाने वाली थोरियम धातु खनिज ईंधन पर हमारी निर्भरता समाप्त कर सकती है लेकिन इसके लिए राष्ट्रपति ओबामा और पश्चिम के अन्य नेताओं को कुछ साहसिक निर्णय लेने पड़ेंगे। वैज्ञानिकों का दावा है कि थोरियम रिएक्टर दुनिया को ५ साल केअंदर खनिज तेल से मुक्ति दिला सकते हैं। थोरियम यूरेनियम की तुलना में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और उसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता यूरेनियम से २०० गुना अधिक है। मसलन एक टन थोरियम ३५ लाख टन कोयले के बराबर ऊर्जा उत्पन्ना कर सकता है। थोरियम ईंधन का बहुत ही किफायती स्रोत है। कुदरती यूरेनियम को न्यूक्लियर रिएक्टर में इस्तेमाल करने से पहले काफी परिशोधित करना पड़ता है लेकिन थोरियम के मामले में ऐसा नहीं है। लगभग सारे थोरियम को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
सर्न (योरपीय परमाणु अनुसंधान संगठन) के पूर्व निदेशक कार्लो रूबिया ने यूरेनियम रिएक्टरों के सस्ते, स्वच्छ और किफायती विकल्प के तौर पर थोरियम के इस्तेमाल का आइडिया रखा है। थोरियम का इस्तेमाल अगली पीढ़ी के परमाणु बिजलीघरों में एनर्जी एम्प्लीफायर के रूप में किया जा सकता है। रूबिया के मुताबिक मुट्ठीभर थोरियम से लंदन जैसे शहर को एक हफ्ते तक रोशनी दी जा सकती है। थोरियम अपने खतरनाक कचरे को खुद हजम कर जाता है। यह यूरेनियम रिएक्टरों द्वारा छोड़े गए प्लूटोनियम की भी सफाई कर देता है। इस तरह यह एक ईको-क्लिनर के रूप में भी कैरी करता है। थोरियम इतनी आसानी से उपलब्ध है कि खनिक समुदाय इसे सिरदर्द के रूप में देखते हैं। इसे रेयर-अर्थ धातुओं की खुदाई के दौरान वेस्ट प्रोडक्ट समझा जाता है।
रूबिया के आइडिया पर अभी काफी काम करने की जरूरत है, लेकिन इसकी संभावित क्षमता को देखकर नार्वे की एक फर्म अकेर सल्यूशंस ने थोरियम साइकल के बारे में रूबिया का पेटेंट खरीद लिया है। अब वे एक प्रोटोन एक्सेलरेटर के डिजाइन पर काम कर रही हैं। १.८ अरब डॉलर की यह परियोजना नन्हे भूमिगत परमाणु रिएक्टरों के नेटवर्क को जन्म दे सकती है। इस नेटवर्क के प्रत्येक रिएक्टर से ६०० मेगावॉट बिजली उत्पन्न हो सकती है। बड़े-बड़े पारंपरिक न्यूक्लियर रिएक्टर की तुलना में इन नन्हे रिएक्टरों को सुरक्षा के लिए लंबे-चौड़े तामझाम की जरूरत नहीं पड़ेगी। थोरियम में अपार संभावनाएँ हैं। थोरियम सैकड़ों या हजारों वर्षों तक भविष्य की सभ्यताओं को ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
थोरियम आधारित नई टेक्नोलॉजी का विकास भारत के लिए एक अच्छी खबर हो सकता है। हमारे देश में थोरियम का प्रचुर भंडार है। भारत का इरादा २०४० तक बड़े पैमाने पर थोरियम आधारित रिएक्टर बनाने का भी है।
16 नवंबर, 2010
13 नवंबर, 2010
"HOW TO MAKE MONEY THROUGH ENERGY AUDITING"-JUST RELEASED
"HOW TO MAKE MONEY THROUGH ENERGY AUDITING"-JUST RELEASED- P.BALASUBRAMANIAN
Please refer Bureau of Energy Efficiency’s(Union Ministry of Power) official website viz.
http://www.energymanagertraining.com/new_energy_mag.php#b
My earlier book titled "Energy Auditing Made Simple" was well received by the Consultants, Industries and Engineers. Inspired by the roaring success of the above book, we have brought out completely a new book titled "How to Make Money through Energy Auditing", approximately 3 times the size.
This book has all that required to write a complete practical Energy Audit Report. Included in the book are actual Preliminary and Detailed energy audit reports, 200 Energy Conservation Opportunities covering all sectors, 100 tips to do business in energy auditing, addresses of all manufacturers, SDA’s, Consultants, etc. Sample quotations, brochure, work order, contract and auditing agreement, actual reports, etc., are included in the book. Latest marketing addresses & techniques are given in the book.
Address for ordering:
How to make money through Energy Auditing-(1428 pages)-2 volumes. Rs.5,000/-
Early bird offer 40%.Postage, packing and forwarding free within India. Send D.D. for
Rs. 3000/- in the name of "P. Balasubramanian", payable at Chennai, India. Another discount of Rs.500/- for those who have bought my earlier book "Energy Auditing Made Simple".
P. Balasubramanian,SEPERATION ENGINEERS (P) LTD.,13/5, Masilamani Colony,(Near Vivekananda College), Mylapore, Chennai - 600 004, Ph: 044-24991234 Mob: 9444175318 Telefax:044-24987637,
email: balasubramanian.energyaudit@gmail
Please refer Bureau of Energy Efficiency’s(Union Ministry of Power) official website viz.
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P. Balasubramanian,SEPERATION ENGINEERS (P) LTD.,13/5, Masilamani Colony,(Near Vivekananda College), Mylapore, Chennai - 600 004, Ph: 044-24991234 Mob: 9444175318 Telefax:044-24987637,
email: balasubramanian.energyaudit@gmail
03 नवंबर, 2010
happy deepawali...
दीपावली के मूल में प्रकाश का विस्तार है , और आज सतत प्रकाश का पर्याय है बिजली ..
दीपावली का आधार है ठोस निर्माण , और आज प्रत्येक कर्म के लिये अनिवार्य है बिजली ...
दीपावली नेह और खुशियो का उल्लास है , और बिजली ही है जो उर्जा देती है अनवरत हमारी खुशियो को ...
क्षिति , जल , पावक , पवन , समीर ..पंच तत्वो को हमारी संस्कृति ने स्वीकारा है ,
अब समय आ गया है कि बिजली की छिपी हुई शक्ति को जो इलेक्ट्रान , प्रोटान के रूप में हर तत्व में समाई हुई है ,
जो नभ में है , जो जल में है , जो पृथ्वी में है ...
उसे छठवें आध्यात्मिक तत्व के रूप में स्थान दिया जावे .
बिजली को महत्व दें , बिजली कर्मियो को सम्मान दें ,
बिजली रेल की तरह राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ती है ....बिजली को केंद्रीय विषय बनाया जावे ...
happy deepawali...
दीपावली का आधार है ठोस निर्माण , और आज प्रत्येक कर्म के लिये अनिवार्य है बिजली ...
दीपावली नेह और खुशियो का उल्लास है , और बिजली ही है जो उर्जा देती है अनवरत हमारी खुशियो को ...
क्षिति , जल , पावक , पवन , समीर ..पंच तत्वो को हमारी संस्कृति ने स्वीकारा है ,
अब समय आ गया है कि बिजली की छिपी हुई शक्ति को जो इलेक्ट्रान , प्रोटान के रूप में हर तत्व में समाई हुई है ,
जो नभ में है , जो जल में है , जो पृथ्वी में है ...
उसे छठवें आध्यात्मिक तत्व के रूप में स्थान दिया जावे .
बिजली को महत्व दें , बिजली कर्मियो को सम्मान दें ,
बिजली रेल की तरह राष्ट्र को एक सूत्र में जोड़ती है ....बिजली को केंद्रीय विषय बनाया जावे ...
happy deepawali...
09 अक्टूबर, 2010
विद्युत बचत के संबंध में महत्वपूर्ण बातें
विद्युत बचत के संबंध में महत्वपूर्ण बातें
बिजली की बचत कैसे करें इस संबंध में अंतर्दृष्टि एवं समक्ष विकसित करें । इससे न केवल आपके बिजली का बिल कम आएगा, बल्कि आप अपने पर्यावरण के संरक्षण में भी योगदान देंगे ।
लाईटेंसीएफएल का प्रयोग करें । सीएफएल में स्तरीय बल्बों से कम से कम 66औ कम बिजली का प्रयोग होता है और इस प्रकार कुल मिलाकर 8 गुणा बिजली की बचत होती है ।
आप मात्र पांच पुराने बल्बों को हटाकर नये ऊर्जा दक्ष सीएफएल लगाकर 2500/-रु. प्रतिवर्ष तक की बचत कर सकते हैं ।
कंप्यूटरएक दिन में 12 घंटे अपने कंप्यूटर को बंद करके 3000/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करें ।
स्क्रीन सेवर से विद्युत की बचत नहीं होती है ; वे केवल आपके स्क्रीन की सुरक्षा करते हैं । अतः इसके बजाए अपने कंप्यूटर पर स्लीप मोड या ऊर्जा बचत विशिष्टता का प्रयोग करें और इस प्रकार 900/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करें ।
स्लीप मोड से औसत कंप्यूटर 200 किवा. प्रतिवर्ष कम विद्युत का प्रयोग करता है ।
जब आप 10 मिनट से अधिक समय तक अपने कंप्यूटर से दूर रहे तब अपने कंप्यूटर मॉनीटर को बंद करके विद्युत की बचत करें ।
डैस्कटॉप कंप्यूटर के स्थान पर लैपटॉप का प्रयोग करें । लैपटॉप में 90औ कम विद्युत का उपयोग होता है ।
आपका कंप्यूटर मॉनीटर जितना छोटा होगा उतनी ही कम बिजली का प्रयोग होगा ।
मानक मॉनीटरों की तुलना में फ्लैट स्क्रीन एलसीडी कंप्यूटर मॉनीटर 66औ कम बिजली का प्रयोग करते हैं ।
कंप्यूटर खोलने और बंद करने से अतिरिक्त बिजली खर्च नहीं होती और आपका कंप्यूटर भी खराब नहीं होगा । इसे बंद करने से कंप्यूटर पर टूट-फूट कम होगी और बिजली का प्रयोग कम होगा ।
रेफ्रिजरेटर15 वर्ष से अधिक पुराना फ्रिज चलाने में 5000/-रु. प्रतिवर्ष से अधिक खर्च आता है जबकि नया फ्रिज चलाने में 2500/-रु. प्रतिवर्ष से भी कम खर्च आता है ।
यदि पुराना फ्रिज खाली चल रहा हो तो फ्रिज का प्लग हटा दें और अपने बिजली के बिल में 5000/-रु. प्रतिवर्ष से अधिक की बचत करें ।
केवल कुछ खाने-पीने के चीजों को ठंडा रखने के लिए छोटे फ्रिज का प्रयोग करें । छोटे फ्रिज में लगभग 1500/-रु. प्रतिवर्ष बिजली का खर्च आता है ।
रेफ्रिजरेटर के तापमान को मध्यम रेंज (30सें. या 380 फा.) पर सैट करें । इससे आपके खाने-पीने की चीजों को ठंडा रखते हुए भी बिजली की बचत होगी ।
खाने-पीने की चीजों को फ्रिज या फ्रीजर में रखने से पहले ठंडा कर लें ।
रसोई घरपरंपरागत स्टोव के स्थान पर माइक्रोवेव का प्रयोग करें । इसमें बिजली का प्रयोग कम होता है, पकाने में कम समय लगता है और रसोई में ऊष्मा कम उत्पन्न होती है ।
विद्युत कैटल का प्रयोग करें और आपको जितने पानी की आवश्यकता हो उतना ही पानी गर्म करें । स्टोव -टॉप कैटल या माइक्रोवेव की तुलना में इलेक्ट्रिक कैटल अधिक दक्ष होती हैं ।
फ्रीजरअपने 15 वर्ष पुराने फ्रीजर को बदलकर नया डीप फ्रीजर ले आएं । आपका नया फ्रीजर अपने पूरे कार्यकाल में आपके लिए विद्युत में बचत करके अपनी पूरी कीमत चुका देगा ।
डिशवॉशरअपने डिशवॉशर का प्रयोग केवल तभी करें जब यह पूरा भरा हो । आधे भरे डिशवॉशर को दो बार चलाने के बजाए पूरे भरे डिशवॉशर को चलाकर आप 12,500/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करेंगे ।
विनिर्माता के अनुदेश के अनुसार ही डिश प्लेटें डालें जिससे पानी का परिचालन अच्छी तरह हो सकें ।
डिशवॉशर में डिश प्लेटें डालने से पहले उन्हें न धोंएं । इस प्रकार आप पानी गर्म करने का खर्च बचा सकेंगे ।
डिशवॉशर के निकास एवं फिल्टर को साफ रखना उसके दक्ष प्रचालन में सहायक होगा ।
स्टोवअपने स्टोव के स्थान पर माइक्रोवेव का प्रयोग करें । माइक्रोवेव में किसी भोजन को पकाने पर स्टोव की तुलना में 84औ कम बिजली का प्रयोग होता है ।
संभव हो तो अपने स्टोव या ओवन के बजाए छोटे-छोटे कूकिंग उपकरणों का प्रयोग करें ।
जब आवश्यक हो तभी ओवन को पहले से गर्म करें ।
वॉशर एवं ड्रायरअपने कपड़े ठंडे पानी में धोएं और इस प्रकार 3000/- रु. प्रतिवर्ष की बचत करें । वाशिंग मशीन में पानी गर्म करने से लगभग 85-90औ ऊर्जा का प्रयोग होता है ।
टेलीविजनआपके पुराने टी.वी. की तुलना में उसी साइज के प्लाज्मा टी.वी. में दुगुनी ऊर्जा का प्रयोग होता है । और आपका टी.वी. जितना बड़ा होगा उतना ही ऊर्जा का अधिक प्रयोग होगा ।
सामान्यअपने इलेक्ट्रोनिक मनोरंजन साधनों को उस समय बंद कर दें जब आप उनका प्रयोग न कर रहे हों और इस प्रकार बचत में वृद्धि करें ।
कंप्यूटर, टीवी, वीसीआर, सीडी और डीवीडी प्लेयर तथा अन्य घरेलू इलेक्ट्रोनिक उपस्करों को बंद करने के बाद भी ऊर्जा की खपत होती है इसलिए जब आप उन्हें बंद करें तो पावर प्लग को उपस्कर से अलग कर दें ।
अपने उपस्करों को साफ और भलीभांति अनुरक्षित रखें जिससे वे दक्षतापूर्वक कार्य कर सकें
बिजली की बचत कैसे करें इस संबंध में अंतर्दृष्टि एवं समक्ष विकसित करें । इससे न केवल आपके बिजली का बिल कम आएगा, बल्कि आप अपने पर्यावरण के संरक्षण में भी योगदान देंगे ।
लाईटेंसीएफएल का प्रयोग करें । सीएफएल में स्तरीय बल्बों से कम से कम 66औ कम बिजली का प्रयोग होता है और इस प्रकार कुल मिलाकर 8 गुणा बिजली की बचत होती है ।
आप मात्र पांच पुराने बल्बों को हटाकर नये ऊर्जा दक्ष सीएफएल लगाकर 2500/-रु. प्रतिवर्ष तक की बचत कर सकते हैं ।
कंप्यूटरएक दिन में 12 घंटे अपने कंप्यूटर को बंद करके 3000/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करें ।
स्क्रीन सेवर से विद्युत की बचत नहीं होती है ; वे केवल आपके स्क्रीन की सुरक्षा करते हैं । अतः इसके बजाए अपने कंप्यूटर पर स्लीप मोड या ऊर्जा बचत विशिष्टता का प्रयोग करें और इस प्रकार 900/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करें ।
स्लीप मोड से औसत कंप्यूटर 200 किवा. प्रतिवर्ष कम विद्युत का प्रयोग करता है ।
जब आप 10 मिनट से अधिक समय तक अपने कंप्यूटर से दूर रहे तब अपने कंप्यूटर मॉनीटर को बंद करके विद्युत की बचत करें ।
डैस्कटॉप कंप्यूटर के स्थान पर लैपटॉप का प्रयोग करें । लैपटॉप में 90औ कम विद्युत का उपयोग होता है ।
आपका कंप्यूटर मॉनीटर जितना छोटा होगा उतनी ही कम बिजली का प्रयोग होगा ।
मानक मॉनीटरों की तुलना में फ्लैट स्क्रीन एलसीडी कंप्यूटर मॉनीटर 66औ कम बिजली का प्रयोग करते हैं ।
कंप्यूटर खोलने और बंद करने से अतिरिक्त बिजली खर्च नहीं होती और आपका कंप्यूटर भी खराब नहीं होगा । इसे बंद करने से कंप्यूटर पर टूट-फूट कम होगी और बिजली का प्रयोग कम होगा ।
रेफ्रिजरेटर15 वर्ष से अधिक पुराना फ्रिज चलाने में 5000/-रु. प्रतिवर्ष से अधिक खर्च आता है जबकि नया फ्रिज चलाने में 2500/-रु. प्रतिवर्ष से भी कम खर्च आता है ।
यदि पुराना फ्रिज खाली चल रहा हो तो फ्रिज का प्लग हटा दें और अपने बिजली के बिल में 5000/-रु. प्रतिवर्ष से अधिक की बचत करें ।
केवल कुछ खाने-पीने के चीजों को ठंडा रखने के लिए छोटे फ्रिज का प्रयोग करें । छोटे फ्रिज में लगभग 1500/-रु. प्रतिवर्ष बिजली का खर्च आता है ।
रेफ्रिजरेटर के तापमान को मध्यम रेंज (30सें. या 380 फा.) पर सैट करें । इससे आपके खाने-पीने की चीजों को ठंडा रखते हुए भी बिजली की बचत होगी ।
खाने-पीने की चीजों को फ्रिज या फ्रीजर में रखने से पहले ठंडा कर लें ।
रसोई घरपरंपरागत स्टोव के स्थान पर माइक्रोवेव का प्रयोग करें । इसमें बिजली का प्रयोग कम होता है, पकाने में कम समय लगता है और रसोई में ऊष्मा कम उत्पन्न होती है ।
विद्युत कैटल का प्रयोग करें और आपको जितने पानी की आवश्यकता हो उतना ही पानी गर्म करें । स्टोव -टॉप कैटल या माइक्रोवेव की तुलना में इलेक्ट्रिक कैटल अधिक दक्ष होती हैं ।
फ्रीजरअपने 15 वर्ष पुराने फ्रीजर को बदलकर नया डीप फ्रीजर ले आएं । आपका नया फ्रीजर अपने पूरे कार्यकाल में आपके लिए विद्युत में बचत करके अपनी पूरी कीमत चुका देगा ।
डिशवॉशरअपने डिशवॉशर का प्रयोग केवल तभी करें जब यह पूरा भरा हो । आधे भरे डिशवॉशर को दो बार चलाने के बजाए पूरे भरे डिशवॉशर को चलाकर आप 12,500/-रु. प्रतिवर्ष की बचत करेंगे ।
विनिर्माता के अनुदेश के अनुसार ही डिश प्लेटें डालें जिससे पानी का परिचालन अच्छी तरह हो सकें ।
डिशवॉशर में डिश प्लेटें डालने से पहले उन्हें न धोंएं । इस प्रकार आप पानी गर्म करने का खर्च बचा सकेंगे ।
डिशवॉशर के निकास एवं फिल्टर को साफ रखना उसके दक्ष प्रचालन में सहायक होगा ।
स्टोवअपने स्टोव के स्थान पर माइक्रोवेव का प्रयोग करें । माइक्रोवेव में किसी भोजन को पकाने पर स्टोव की तुलना में 84औ कम बिजली का प्रयोग होता है ।
संभव हो तो अपने स्टोव या ओवन के बजाए छोटे-छोटे कूकिंग उपकरणों का प्रयोग करें ।
जब आवश्यक हो तभी ओवन को पहले से गर्म करें ।
वॉशर एवं ड्रायरअपने कपड़े ठंडे पानी में धोएं और इस प्रकार 3000/- रु. प्रतिवर्ष की बचत करें । वाशिंग मशीन में पानी गर्म करने से लगभग 85-90औ ऊर्जा का प्रयोग होता है ।
टेलीविजनआपके पुराने टी.वी. की तुलना में उसी साइज के प्लाज्मा टी.वी. में दुगुनी ऊर्जा का प्रयोग होता है । और आपका टी.वी. जितना बड़ा होगा उतना ही ऊर्जा का अधिक प्रयोग होगा ।
सामान्यअपने इलेक्ट्रोनिक मनोरंजन साधनों को उस समय बंद कर दें जब आप उनका प्रयोग न कर रहे हों और इस प्रकार बचत में वृद्धि करें ।
कंप्यूटर, टीवी, वीसीआर, सीडी और डीवीडी प्लेयर तथा अन्य घरेलू इलेक्ट्रोनिक उपस्करों को बंद करने के बाद भी ऊर्जा की खपत होती है इसलिए जब आप उन्हें बंद करें तो पावर प्लग को उपस्कर से अलग कर दें ।
अपने उपस्करों को साफ और भलीभांति अनुरक्षित रखें जिससे वे दक्षतापूर्वक कार्य कर सकें
07 अक्टूबर, 2010
धार्मिक उत्सव समितियों और बिजली उपभोक्ताओं से त्योहारों के दौरान अस्थायी कनेक्शन लेने की अपील
विद्युत वितरण कम्पनी ने धार्मिक उत्सव समितियों और बिजली उपभोक्ताओं से त्योहारों के दौरान अस्थायी कनेक्शन लेने की अपील की है। प्रदेश में विद्युत की बचत तथा विद्युत अपव्यय का रोकने के उद्देश्य से राज्य की सभी धर्म की धार्मिक उत्सव समितियों से अपील की गई है कि वे आवश्यकतानुसार अस्थाई विद्युत कनेक्शन लेकर अपने धार्मिक आयोजन पूरे उल्लास, तनमयता और परम्परा अनुसार मनाये। साथ ही ऊर्जा संरक्षण बिजली बचत में अपना योगदान प्रदान करें।
रामलीला, दुर्गोत्सव, गरबा तथा डांडिया उत्सव के दौरान धार्मिक पंडालों एवं झांकियों में बिजली साज-सज्जा कम्पनी से नियमानुसार अस्थायी कनेक्शन लेकर करने को कहा है।
विद्युत प्रदाय मीटरीकृत होगा। विद्युत देयक की बिलिंग नियमानुसार अस्थायी कनेक्शनों के लिये लागू घरेलू दर पर की जायेगी तथा तद्नुसार कम्पनी में राशि जमा करनी होगी। इसके लिये आवेदन में दर्शाये अनुसार विद्युत भार के अनुरूप सुरक्षा निधि एवं अनुमानित विद्युत उपभोग की राशि अग्रिम जमा कराकर पक्की रसीद प्राप्त की जाना चाहिये।
विद्युत वितरण कम्पनी ने आग्रह किया है कि उपभोक्ता द्वारा आवेदित विद्युत भार से अधिक भार का उपयोग विद्युत साज-सज्जा के लिये नहीं करें। साथ ही अनाधिकृत तरीके से विद्युत का उपयोग नहीं किया जाये। कम्पनी ने सचेत किया है कि अधिक भार से ट्रांसफार्मर के जलने की संभावना तथा दुर्घटना की आशंका रहती है। इसी प्रकार पारेषण एवं वितरण प्रणाली पर विपरीत असर होने से अंधेरे की संभावना का खतरा रहता है।
त्यौहार समितियों से कहा गया है कि अनाधिकृत विद्युत उपयोग करने पर इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के तहत उपयोगकर्ता एवं जिस विद्युत ठेकेदार से कार्य कराया गया है, उनके विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही की जायेगी। इसी प्रकार अनाधिकृत विद्युत उपयोग की दशा में संबंधित विद्युत ठेकेदार का लायसेंस भी निरस्त हो सकता है। मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के भोपाल क्षेत्र एवं ग्वालियर क्षेत्र के बिजली उपभोक्ताओं से आग्रह है कि वे झांकियों के निर्माण एवं विद्युत साज-सज्जा में विद्युत सुरक्षा नियमों का अनिवार्य रूप से पालन करें।
रामलीला, दुर्गोत्सव, गरबा तथा डांडिया उत्सव के दौरान धार्मिक पंडालों एवं झांकियों में बिजली साज-सज्जा कम्पनी से नियमानुसार अस्थायी कनेक्शन लेकर करने को कहा है।
विद्युत प्रदाय मीटरीकृत होगा। विद्युत देयक की बिलिंग नियमानुसार अस्थायी कनेक्शनों के लिये लागू घरेलू दर पर की जायेगी तथा तद्नुसार कम्पनी में राशि जमा करनी होगी। इसके लिये आवेदन में दर्शाये अनुसार विद्युत भार के अनुरूप सुरक्षा निधि एवं अनुमानित विद्युत उपभोग की राशि अग्रिम जमा कराकर पक्की रसीद प्राप्त की जाना चाहिये।
विद्युत वितरण कम्पनी ने आग्रह किया है कि उपभोक्ता द्वारा आवेदित विद्युत भार से अधिक भार का उपयोग विद्युत साज-सज्जा के लिये नहीं करें। साथ ही अनाधिकृत तरीके से विद्युत का उपयोग नहीं किया जाये। कम्पनी ने सचेत किया है कि अधिक भार से ट्रांसफार्मर के जलने की संभावना तथा दुर्घटना की आशंका रहती है। इसी प्रकार पारेषण एवं वितरण प्रणाली पर विपरीत असर होने से अंधेरे की संभावना का खतरा रहता है।
त्यौहार समितियों से कहा गया है कि अनाधिकृत विद्युत उपयोग करने पर इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के तहत उपयोगकर्ता एवं जिस विद्युत ठेकेदार से कार्य कराया गया है, उनके विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही की जायेगी। इसी प्रकार अनाधिकृत विद्युत उपयोग की दशा में संबंधित विद्युत ठेकेदार का लायसेंस भी निरस्त हो सकता है। मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के भोपाल क्षेत्र एवं ग्वालियर क्षेत्र के बिजली उपभोक्ताओं से आग्रह है कि वे झांकियों के निर्माण एवं विद्युत साज-सज्जा में विद्युत सुरक्षा नियमों का अनिवार्य रूप से पालन करें।
06 अक्टूबर, 2010
मप्र में निजी कम्पनियों से खरीदी जाएगी बिजली
मप्र में निजी कम्पनियों से खरीदी जाएगी बिजली
भोपाल। मध्य प्रदेश में बढ़ती बिजली की मांग की पूर्ति के लिए निजी कंपनियों से 1391 मेगावाट बिजली खरीदी जाएगी। यह निर्णय मंगलवार को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया गया।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय किया गया है कि रिलायंस पावर लिमिटेड से 1241 मेगावाट और एस्सार पावर लिमिटेड से 150 मेगावाट बिजली खरीदी जाएगी। इसकी दर दो रूपये 45 पैसे प्रति यूनिट होगी। इन कंपनियों से 25 वर्ष के लिए करार किया जाएगा।
भोपाल। मध्य प्रदेश में बढ़ती बिजली की मांग की पूर्ति के लिए निजी कंपनियों से 1391 मेगावाट बिजली खरीदी जाएगी। यह निर्णय मंगलवार को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया गया।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय किया गया है कि रिलायंस पावर लिमिटेड से 1241 मेगावाट और एस्सार पावर लिमिटेड से 150 मेगावाट बिजली खरीदी जाएगी। इसकी दर दो रूपये 45 पैसे प्रति यूनिट होगी। इन कंपनियों से 25 वर्ष के लिए करार किया जाएगा।
05 अक्टूबर, 2010
सिर्फ सीएफएल लैंप
कर्नाटक में जलेंगे सिर्फ सीएफएल लैंप
ऊर्जा बचाने के लिए भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में प्रतिबंध का कदम उठाया गया. प्रतिबंध लगेगा ऊर्जा खाने वाले बल्ब पर. इसकी जगह पर आएंगे सीएफएल लैंप. कर्नाटक में भारी ऊर्जा संकट है.
कर्नाटक सरकार ने फैसला लिया है कि वह बिजली खाने वाले बल्ब पर पूरे राज्य में पहली जनवरी से प्रतिबंध लगा देगी और इसकी जगह सिर्फ सीएफएल लैंप इस्तेमाल करने की अनुमति होगी.
आईटी हब कहे जाने वाले कर्नाटक में कई दूसरी बड़ी औद्योगिक इकाइयां भी हैं और भारी बिजली की खपत के कारण राज्य में ऊर्जा संकट पैदा हो गया है. ऊर्जा बचाने के लिए अब सीएफएल लैंप का रास्ता अपनाने की सोची गई है. बल्ब की तुलना में सीएफएल लैंपों को बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है और रोशनी में कोई कमी भी नहीं होती.
राज्य में बिजली की भारी कमी है. सरकारी आकड़ों के मुताबिक राज्य को जरूरत को साढ़े बारह करोड़ यूनिट बिजली की है लेकिन उसे मिलती सिर्फ 9 करोड़ 90 लाख यूनिट ही है.
हर घर में सीएफएल के इस्तेमाल से रोजाना कम से कम 400 मेगावाट बिजली की बचत होगी. योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जनवरी से सीएफएल लैंप अनिवार्य कर दिए जाएंगे.
राज्य की ऊर्जा मंत्री शोभा करंदलजे ने कहा कि सभी सरकारी कार्यालयों, स्थानीय ऑफिस और अस्पतालों में तीन महीने के भीतर सिर्फ सीएफएल बल्ब लगाए जाएं.
सोमवार को मुख्यमंत्री गुलबर्गा के गरीब इलाके में बेलाकू अभियान लॉन्च करेंगे. राज्य के ऊर्जा विभाग ने तय किया है कि वह मार्च तक ऊर्जा की खपत और उत्पादन में अंतर दो फीसदी कम कर देगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
ऊर्जा बचाने के लिए भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक में प्रतिबंध का कदम उठाया गया. प्रतिबंध लगेगा ऊर्जा खाने वाले बल्ब पर. इसकी जगह पर आएंगे सीएफएल लैंप. कर्नाटक में भारी ऊर्जा संकट है.
कर्नाटक सरकार ने फैसला लिया है कि वह बिजली खाने वाले बल्ब पर पूरे राज्य में पहली जनवरी से प्रतिबंध लगा देगी और इसकी जगह सिर्फ सीएफएल लैंप इस्तेमाल करने की अनुमति होगी.
आईटी हब कहे जाने वाले कर्नाटक में कई दूसरी बड़ी औद्योगिक इकाइयां भी हैं और भारी बिजली की खपत के कारण राज्य में ऊर्जा संकट पैदा हो गया है. ऊर्जा बचाने के लिए अब सीएफएल लैंप का रास्ता अपनाने की सोची गई है. बल्ब की तुलना में सीएफएल लैंपों को बहुत कम ऊर्जा की जरूरत होती है और रोशनी में कोई कमी भी नहीं होती.
राज्य में बिजली की भारी कमी है. सरकारी आकड़ों के मुताबिक राज्य को जरूरत को साढ़े बारह करोड़ यूनिट बिजली की है लेकिन उसे मिलती सिर्फ 9 करोड़ 90 लाख यूनिट ही है.
हर घर में सीएफएल के इस्तेमाल से रोजाना कम से कम 400 मेगावाट बिजली की बचत होगी. योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जनवरी से सीएफएल लैंप अनिवार्य कर दिए जाएंगे.
राज्य की ऊर्जा मंत्री शोभा करंदलजे ने कहा कि सभी सरकारी कार्यालयों, स्थानीय ऑफिस और अस्पतालों में तीन महीने के भीतर सिर्फ सीएफएल बल्ब लगाए जाएं.
सोमवार को मुख्यमंत्री गुलबर्गा के गरीब इलाके में बेलाकू अभियान लॉन्च करेंगे. राज्य के ऊर्जा विभाग ने तय किया है कि वह मार्च तक ऊर्जा की खपत और उत्पादन में अंतर दो फीसदी कम कर देगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
09 अगस्त, 2010
बिजली क्षेत्र में कम्प्यूटरीकरण से पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार नियंत्रण
बिजली क्षेत्र में कम्प्यूटरीकरण से पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार नियंत्रण
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ.बी. ११ विद्युत मंडल कालोनी
रामपुर, जबलपुर
आज के समय में समाज का जो नैतिक एवं चारित्रीक अद्योपतन हो रहा है एवं जिस तेजी से रूपये का महत्व बढ रहा है उसके चलते भ्रष्टचार को शिष्टाचार माना जाने लगा है। थोडी से अतिरिक्त सुविधा तथा नियम से चलने पर होने वाली कठिनाई से बचने के लिये लोग रूपये खर्च करने से कतराते नहीं है। इससे भ्रष्टचार को बढावा मिल रहा हैं। वे सभी क्षेत्र जिनमें आम नागरिक जुडे हुये है, बढती आबादी के कारण एवं शासकीय कार्यप्रणाली की लालफीताद्गााही तथा संसाधनों की कमी के कारण भ्रष्टचार के द्गिाकार है।
बिजली वितरण के क्षेत्र में भी बिजली की कमी, कर्मचारियों एवं संसाधनों की कमी, नये बिजली उपयोगकर्ताओं की संखया में बेतहाद्गाा वृद्धि, वैद्युत उपकरणों से सुख-सुविधाओं में हो रहे नित नये परिवर्तनों के कारण नये बिजली कनेक्द्गान प्राप्त करना टेढी खीर है। जिन लोगों के पास बिजली कनेक्शन है उन्हें सुधार कार्य हेतु एवं भारवृद्धि आदि कार्यो हेतु व्यापक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
नियामक आयोग का गठन, अम्बड्समैन की संस्थापना, जनसुनवाई कार्यक्रम, उपभोक्ता फोरम आदि आदि भ्रष्टचार नियत्रंक सुविधायें प्रारंभ की जा रही है। पर इस सबके बाद भी विद्युत क्षेत्र में भ्रष्टचार में कमी नहीं हो पा रही है।
यदि नियमानुसार अस्थाई कनेक्द्गान के लिये आवेदन करके आवेदक घर पर बैठा रहे तो शादी आदि का वह कार्यक्रम जिसके लिये अस्थाई कनेक्द्गान चाहा गया हो संपन्न भी हो जायेगा पर शायद अस्थाई कनेक्द्गान का आवेदन, आवेदन ही बना रह जायेगा। इसके विपरीत विद्गिाष्ट शैेली में संबंधित कार्यालय से संपर्क हो तो घर बैठे फॉर्म भरने से रूपये जमा करने तक के सारे कार्य सरलता से हो जाते है। ऐसी स्थिति लगभग पूरे देद्गा में ही हेै। केवल नियमों के आधार पर जमा राशि में से शेष बची राशि को वापस प्राप्त करना दुष्कर कार्य है। ऐसी स्थितियों के लिये जितने जिम्मेदार संबंधित कर्मचारी है उससे कहीं ज्यादा जवाबदार ढेर सारे नियम कायदों की पेचिदगियॉं एवं वे लोग है जिन्हें सब्र नहीं है।
कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से रेल्वे रिजर्वेद्गान से भ्रष्टचार की समाप्ति में एक बहुत एवं सफल प्रयोग हम सबने देखा एवं अनुभव किया है। बिजली वितरण के क्षेत्र में भी कम्प्यूटरीकरण एवं नेटवर्किंग व्यापक पारदद्गर्िाता एवं भ्रष्टचार में नियंत्रण ला सकता है। आवद्गयक है कि इसके लिये फ्यूज आफ कॉल सेंटर, वितरण कार्यालय, बिल जमा करने की प्रणाली के स्तर पर कम्प्यूटर सुविधायें प्रदान कर उन्हें नेटवर्क के माध्यम से जोड दिया जावे। जितना पैसा उपभोक्ता भ्रष्टाचार के रूप में व्यय करता है उसका थोडा सा हिस्सा भी इस व्यवस्था हेतु उपभोक्ताओं से रसीद के माध्यम से लिया जावे तो इस कम्प्यूटरीकरण का सारा व्यय सहज ही पूरा किया जा सकता है। इस तरह के कम्प्यूटरीकरण से सबके साथ समान व्यवहार, नियमानुसार खर्च, सुरक्षानिधि की लोड के समानुपातिक निद्गिचत राद्गिा, कनेक्द्गान में लगने वाला समय, बिलिंग आदि में पूर्ण पारदद्गर्िाता अर्जित की जा सकती है।
विद्युत क्षेत्र में सुधार हेतु राष्ट्रीय स्तर पर ढेर सारा व्यय एवं नित नये प्रयोग हो रहे है। ऐसे समय में विद्युत वितरण प्रणाली में कम्प्यूटरीकरण समय की अनिवार्य आवश्यकता है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ.बी. ११ विद्युत मंडल कालोनी
रामपुर, जबलपुर
आज के समय में समाज का जो नैतिक एवं चारित्रीक अद्योपतन हो रहा है एवं जिस तेजी से रूपये का महत्व बढ रहा है उसके चलते भ्रष्टचार को शिष्टाचार माना जाने लगा है। थोडी से अतिरिक्त सुविधा तथा नियम से चलने पर होने वाली कठिनाई से बचने के लिये लोग रूपये खर्च करने से कतराते नहीं है। इससे भ्रष्टचार को बढावा मिल रहा हैं। वे सभी क्षेत्र जिनमें आम नागरिक जुडे हुये है, बढती आबादी के कारण एवं शासकीय कार्यप्रणाली की लालफीताद्गााही तथा संसाधनों की कमी के कारण भ्रष्टचार के द्गिाकार है।
बिजली वितरण के क्षेत्र में भी बिजली की कमी, कर्मचारियों एवं संसाधनों की कमी, नये बिजली उपयोगकर्ताओं की संखया में बेतहाद्गाा वृद्धि, वैद्युत उपकरणों से सुख-सुविधाओं में हो रहे नित नये परिवर्तनों के कारण नये बिजली कनेक्द्गान प्राप्त करना टेढी खीर है। जिन लोगों के पास बिजली कनेक्शन है उन्हें सुधार कार्य हेतु एवं भारवृद्धि आदि कार्यो हेतु व्यापक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
नियामक आयोग का गठन, अम्बड्समैन की संस्थापना, जनसुनवाई कार्यक्रम, उपभोक्ता फोरम आदि आदि भ्रष्टचार नियत्रंक सुविधायें प्रारंभ की जा रही है। पर इस सबके बाद भी विद्युत क्षेत्र में भ्रष्टचार में कमी नहीं हो पा रही है।
यदि नियमानुसार अस्थाई कनेक्द्गान के लिये आवेदन करके आवेदक घर पर बैठा रहे तो शादी आदि का वह कार्यक्रम जिसके लिये अस्थाई कनेक्द्गान चाहा गया हो संपन्न भी हो जायेगा पर शायद अस्थाई कनेक्द्गान का आवेदन, आवेदन ही बना रह जायेगा। इसके विपरीत विद्गिाष्ट शैेली में संबंधित कार्यालय से संपर्क हो तो घर बैठे फॉर्म भरने से रूपये जमा करने तक के सारे कार्य सरलता से हो जाते है। ऐसी स्थिति लगभग पूरे देद्गा में ही हेै। केवल नियमों के आधार पर जमा राशि में से शेष बची राशि को वापस प्राप्त करना दुष्कर कार्य है। ऐसी स्थितियों के लिये जितने जिम्मेदार संबंधित कर्मचारी है उससे कहीं ज्यादा जवाबदार ढेर सारे नियम कायदों की पेचिदगियॉं एवं वे लोग है जिन्हें सब्र नहीं है।
कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से रेल्वे रिजर्वेद्गान से भ्रष्टचार की समाप्ति में एक बहुत एवं सफल प्रयोग हम सबने देखा एवं अनुभव किया है। बिजली वितरण के क्षेत्र में भी कम्प्यूटरीकरण एवं नेटवर्किंग व्यापक पारदद्गर्िाता एवं भ्रष्टचार में नियंत्रण ला सकता है। आवद्गयक है कि इसके लिये फ्यूज आफ कॉल सेंटर, वितरण कार्यालय, बिल जमा करने की प्रणाली के स्तर पर कम्प्यूटर सुविधायें प्रदान कर उन्हें नेटवर्क के माध्यम से जोड दिया जावे। जितना पैसा उपभोक्ता भ्रष्टाचार के रूप में व्यय करता है उसका थोडा सा हिस्सा भी इस व्यवस्था हेतु उपभोक्ताओं से रसीद के माध्यम से लिया जावे तो इस कम्प्यूटरीकरण का सारा व्यय सहज ही पूरा किया जा सकता है। इस तरह के कम्प्यूटरीकरण से सबके साथ समान व्यवहार, नियमानुसार खर्च, सुरक्षानिधि की लोड के समानुपातिक निद्गिचत राद्गिा, कनेक्द्गान में लगने वाला समय, बिलिंग आदि में पूर्ण पारदद्गर्िाता अर्जित की जा सकती है।
विद्युत क्षेत्र में सुधार हेतु राष्ट्रीय स्तर पर ढेर सारा व्यय एवं नित नये प्रयोग हो रहे है। ऐसे समय में विद्युत वितरण प्रणाली में कम्प्यूटरीकरण समय की अनिवार्य आवश्यकता है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
24 मई, 2010
सीमेंट प्लांट की गर्म गैस से बनेगी बिजली, कारखाने में लगेगा कोजनरेशन बिजली संयत्र
सीमेंट प्लांट की गर्म गैस से बनेगी बिजली, कारखाने में लगेगा कोजनरेशन बिजली संयत्र
इसमें कोयले का इस्तेमाल नहीं होने से हर साल हजारों टन कार्बन गैसें वायुमंडल में जाने से बच सकेंगी। साथ ही गर्म गैसों से तो पर्यावरण बचेगा ही।
कोयला नहीं लगने से लागत चार पांच साल में वसूल हो जाएगी। उसके बाद कारखाने को १९.५ मेगावाट बिजली लगभग निःशुल्क मिल सकेगी।
१९.५ मेगावाट बिजली के लिए हर माह पांच हजार टन कोयले की जरूरत होती है।
म.प्र. का एक सीमेंट प्लांट अपने यहां उत्पन्न होने वाली गर्म गैस से बिजली बनाएगा। इसके लिए वहां दो संयंत्र लगाए जा रहे हैं जिनसे कुल १९.५ मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी। ऐसा करने वाला सतना सीमेंट प्रदेश का पहला कारखाना बन जाएगा।
सतना सीमेंट की दो इकाइयों में हर दिन हजारों टन गर्म गैसें पैदा होती हैं जिन्हें चिमनी के जरिये वातावरण में छोड़ा जाता है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सुझाव पर सीमेंट कंपनी ने दोनों इकाइयों (सतना सीमेंट और बिड़ला विकास सीमेंट) में पैदा होने वाली गर्म गैसों से बिजली बनाने का फैसला लिया।
इसमें कोयले का इस्तेमाल नहीं होने से हर साल हजारों टन कार्बन गैसें वायुमंडल में जाने से बच सकेंगी। साथ ही गर्म गैसों से तो पर्यावरण बचेगा ही।
कोयला नहीं लगने से लागत चार पांच साल में वसूल हो जाएगी। उसके बाद कारखाने को १९.५ मेगावाट बिजली लगभग निःशुल्क मिल सकेगी।
१९.५ मेगावाट बिजली के लिए हर माह पांच हजार टन कोयले की जरूरत होती है।
म.प्र. का एक सीमेंट प्लांट अपने यहां उत्पन्न होने वाली गर्म गैस से बिजली बनाएगा। इसके लिए वहां दो संयंत्र लगाए जा रहे हैं जिनसे कुल १९.५ मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी। ऐसा करने वाला सतना सीमेंट प्रदेश का पहला कारखाना बन जाएगा।
सतना सीमेंट की दो इकाइयों में हर दिन हजारों टन गर्म गैसें पैदा होती हैं जिन्हें चिमनी के जरिये वातावरण में छोड़ा जाता है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सुझाव पर सीमेंट कंपनी ने दोनों इकाइयों (सतना सीमेंट और बिड़ला विकास सीमेंट) में पैदा होने वाली गर्म गैसों से बिजली बनाने का फैसला लिया।
16 मई, 2010
बस बनी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह
बिजली ने मचाया मृत्यु का तांडव बस बनी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह
रिपोर्ट .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
००९४२५८०६२५२
vivekranjan.vinamra@gmail.com
जिला मण्डला ,म.प्र. ,भारत . सुभरिया गांव में रूपसिंह आदिवासी के बेटे रमेश की बारात दो बस तथा एक जीप से गुरूवार को दोनी गांव आई थी। शादी के बाद शुक्रवार १४ मई २०१० को सुबह ८.४५ बजे बारात वापस सुभरिया गांव की ओर रवाना हुईं। दोनी से २ किलोमीटर सूरजपुर गांव के पास कच्ची सड़क पर सबसे आगे चल रही बस क्रमांक एमपी २० जी ५१७६ के ऊपर रखी दहेज में उपहार स्वरूप मिली लोहे की अलमारी ११ किलोवोल्ट के बिजली तारों से टकरा गई। बस के बिजली तार से टकराते ही करंट फैलने लगा और बाराती महिलाएं चीख पुकार मचाने लगी। करंट फैलते ही बस के गेट पर खड़े ६ लोग तथा ड्रायवर -कंडक्टर बस से कूद गए और देखते ही देखते करंट से बस में सवार २८ लोगों की मौत हो गई। घटना इतनी वीभत्स थी कि कई लोगों के शरीर फट गए थे।प्रदेश सरकार ने मृतको के परिवार जनो को प्रति व्यक्ति एक लाख रुपयो के अनुदान की घोषणा की है .
इस दुर्घटना से ११ किलोवोल्ट की लाइन की सड़क क्रासिंग पर गार्डिग न होना , मानक ग्राउंड क्लियरेंस न होना , गर्मी के कारण तारों का सैग होना , व ट्रांस्पोर्टेशन में ओवर लोडिंग , बस की छत पर बेहिसाब सामान रखना जैसे कई बिन्दु प्रश्न चिन्ह बनकर उठ खड़े हुये हैं , जिनके उत्तर बेहतर है कि हम अगली ऐसी ही कोई दुर्गटना होने से पहले ले दें लें तो ठीक होगा .
रिपोर्ट .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
००९४२५८०६२५२
vivekranjan.vinamra@gmail.com
जिला मण्डला ,म.प्र. ,भारत . सुभरिया गांव में रूपसिंह आदिवासी के बेटे रमेश की बारात दो बस तथा एक जीप से गुरूवार को दोनी गांव आई थी। शादी के बाद शुक्रवार १४ मई २०१० को सुबह ८.४५ बजे बारात वापस सुभरिया गांव की ओर रवाना हुईं। दोनी से २ किलोमीटर सूरजपुर गांव के पास कच्ची सड़क पर सबसे आगे चल रही बस क्रमांक एमपी २० जी ५१७६ के ऊपर रखी दहेज में उपहार स्वरूप मिली लोहे की अलमारी ११ किलोवोल्ट के बिजली तारों से टकरा गई। बस के बिजली तार से टकराते ही करंट फैलने लगा और बाराती महिलाएं चीख पुकार मचाने लगी। करंट फैलते ही बस के गेट पर खड़े ६ लोग तथा ड्रायवर -कंडक्टर बस से कूद गए और देखते ही देखते करंट से बस में सवार २८ लोगों की मौत हो गई। घटना इतनी वीभत्स थी कि कई लोगों के शरीर फट गए थे।प्रदेश सरकार ने मृतको के परिवार जनो को प्रति व्यक्ति एक लाख रुपयो के अनुदान की घोषणा की है .
इस दुर्घटना से ११ किलोवोल्ट की लाइन की सड़क क्रासिंग पर गार्डिग न होना , मानक ग्राउंड क्लियरेंस न होना , गर्मी के कारण तारों का सैग होना , व ट्रांस्पोर्टेशन में ओवर लोडिंग , बस की छत पर बेहिसाब सामान रखना जैसे कई बिन्दु प्रश्न चिन्ह बनकर उठ खड़े हुये हैं , जिनके उत्तर बेहतर है कि हम अगली ऐसी ही कोई दुर्गटना होने से पहले ले दें लें तो ठीक होगा .
04 मई, 2010
ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी हो
नव विचार
ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी हो
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
vivekranjan.vinamra@gmail.com
मो 9425806252
इंटरनेट से जुड़ी आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का ई मेल एड्रेस होना एक अनिवार्यता बन चुका है ! ई गवर्नेंस पेपर लैस बैंकिंग तथा रोजमर्रा के विभिन्न कार्यो हेतु कम्प्यूटर व इंटरनेट का उपयोग बढ़ता जा रहा है ! मोबाइल के द्वारा इंटरनेट सुविधा ब्राडबैंड , ३जी सेवाओ आदि की बढ़ती देशव्यापी पहुंच से एवं इनके माध्यम से त्वरित वैश्विक संपर्क सुविधा के कारण अब हर व्यक्ति के लिये ईमेल पता बनाना जरूरी सा हो चला है . नई पीढ़ी की कम्प्यूटर साक्षरता स्कूलो के पाठ्यक्रम के माध्यम से सुनिश्चित हो चली है . समय के साथ अद्यतन रहने के लिये बुजुर्ग पीढ़ी की कम्प्यूटर के प्रति अभिरुचि भी तेजी से बढ़ी है . ई मेल के माध्यम से न केवल टैक्सट वरन , फोटो , ध्वनि , वीडियो इत्यादि भी उतनी ही आसानी से भेजे जाने की तकनीकी सुविधा के चलते ई मेल का महत्व बढ़ता ही जा रहा है .हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ में साफ्टवेयर की उपलब्धता तथा एक ही मशीन से किसी भी भाषा में काम करने की सुगमता के कारण जैसे जैसे कम्प्यूटर का प्रयोग व उपयोगकर्ताओ की संख्या बढ़ रही है , ई मेल और भी प्रासंगिक होता जा रहा है .ई मेल के माध्यम से सारी दुनियां में किसी भी इंटरनेट से जुड़े हुये कम्प्यूटर पर बैठकर केवल अपने पासवर्ड से ईमेल के द्वारा आप अपनी डाक देख सकते हैं व बिना कोई सामग्री साथ लिये अपने ई मेल एकाउंट में सुरक्षित सामग्री का उपयोग कर पत्राचार कर सकते हैं . यह असाधारण सुविधा तकनीक का , युग को एक वरदान है .
आज लगभग हर संस्थान अपनी वेब साइट स्थापित करता जा रहा है . विजिटंग कार्ड में ई मेल पता , वेब एड्रेस , ब्लाग का पता होना अनिवार्य सा हो चला है .किसी संस्थान का कोई फार्म भरना हो , आपसे आपका ई मेल पता पूछा ही जाता है .हार्ड कापी में जानकारी तभी आवश्यक हो जाती है , जब उसका कोई कानूनी महत्व हो , अन्यथा वेब की वर्चुएल दुनियां में ई मेल के जरिये ही ढ़ेरो जानकारी ली दी जा रही हैं . मीडिया का तो लगभग अधिकांश कार्य ही ई मेल के माध्यम से हो रहा है .
विभिन्न कंपनियां जैसे गूगल , याहू , हाटमेल , रैडिफ , आदि मुफ्त में अपने सर्वर के माध्यम से ई मेल पता बनाने व उसके उपयोग की सुविधा सभी को दे रही हैं .ये कंपनियां आपको वेब पर फ्री स्पेस भी उपलब्ध करवाती हैं , जिसमें आप अपने डाटा स्टोर कर सकते हैं . क्लिक हिट्स के द्वारा इन कंपनियों की साइट की लोकप्रियता तय की जाती है , व तदनुसार ही साइट पर विज्ञापनो की दर निर्धारित होती है जिसके माध्यम से इन कंपनियो को धनार्जन होता हैं .
ई मेल की इस सुविधा के विस्तार के साथ ही इसकी कुछ सीमायें व कमियां भी स्पष्ट हो रही हैं .मुफ्त सेवा होने के कारण हर व्यक्ति लगभग हर प्रोवाइडर के पास मामूली सी जानकारियां भरकर , जिनका कोई सत्यापन नही किया जाता , अपना ई मेल एकाउंट बना लेता है . ढ़ेरो फर्जी ई मेल एकाउंट से साइबर क्राइम बढ़ता ही जा रहा है .वेब पर पोर्नसाइट्स की बाढ़ सी आ गई है . आतंकी गतिविधियों में पिछले दिनो हमने देखा कि ई मेल के ही माध्यम से धमकी दी जाती है या किसी घटना की जबाबदारी मीडिया को मेल भेजकर ही ली गई . यद्यपि वेब आई पी एड्रेस के जरिये आई टी विशेषज्ञो की मदद से पोलिस उस कम्प्यूटर तक पहुंच गई जहां से ऐसे मेल भेजे गये थे , पर इस सब में ढ़ेर सा श्रम , समय व धन नष्ट होता है .चूंकि एक ही कम्प्यूटर अनेक प्रयोक्ताओ के द्वारा उपयोग किया जा सकता है , विशेष रूप से इंटरनेट कैफे , या कार्यालयों में इस कारण इस तरह के साइबर अपराध होने पर व्यक्ति विशेष की जबाबदारी तय करने में बहुत कठिनाई होती है .
अब समय आ गया है कि ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी किया जावे . जब जन्म , मृत्यु , विवाह , ड्राइविंग लाईसेंस ,पैन कार्ड , पासपोर्ट , राशन कार्ड , जैसे ढ़ेरो कार्य समुचित कार्यालयो के द्वारा निर्धारित पंजियन के बाद ही होते हैं तो इंटरनेट पर यह अराजकता क्यो ? ईमेल एकाउंट के पंजियन से धारक का डाक्यूमेंटेड सत्यापन हो सकेगा तथा इसके लिये निर्धारित शुल्क से शासन की अच्छी खासी आय हो सकेगी . पंजियन आवश्यक हो जाने पर लोग नये नये व्यर्थ ईमेल एकाउंट नही बनायेंगे , जिससे वेब स्पेस बचेगी , वेब स्पेस बनाने के लिये जो हार्डवेयर लगता है , उसके उत्पादन से जो पर्यावरण ह्रास हो रहा है वह बचेगा , इस तरह इसके दीर्घकालिक , बहुकोणीय लाभ होंगे . जब ईमेल उपयोगकर्ता वास्तविक हो जायेगा तो उसके द्वारा नेट पर किये गये कार्यो हेतु उसकी जबाबदारी तय की जा सकेगी . हैकिंग से किसी सीमा तक छुटकारा मिल सकेगा . वेब से पोर्नसाइट्स गायब होने लगेंगी , व इससे जुड़े अपराध स्वयमेव नियंत्रित होंगे तथा सैक्स को लेकर बच्चो के चारित्रिक पतन पर कुछ नियंत्रण हो सकेगा .
चूंकि इंटरनेट वैश्विक गतिविधियो का सरल , सस्ता व सुगम संसाधन है , यदि जरूरी हो तो ईमेल पंजियन की आवश्यकता को भारत को विश्व मंच पर उठाना चाहिये , मेरा अनुमान है कि इसे सहज ही विश्व की सभी सरकारो का समर्थन मिलेगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर माफिया आतंकी अपराधो के उन्मूलन में भी इससे सहयोग ही मिलेगा .
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
vivekranjan.vinamra@gmail.com
मो 9425806252
लेखक को नवाचार व रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियो के लिये रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है .
ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी हो
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
vivekranjan.vinamra@gmail.com
मो 9425806252
इंटरनेट से जुड़ी आज की दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति का ई मेल एड्रेस होना एक अनिवार्यता बन चुका है ! ई गवर्नेंस पेपर लैस बैंकिंग तथा रोजमर्रा के विभिन्न कार्यो हेतु कम्प्यूटर व इंटरनेट का उपयोग बढ़ता जा रहा है ! मोबाइल के द्वारा इंटरनेट सुविधा ब्राडबैंड , ३जी सेवाओ आदि की बढ़ती देशव्यापी पहुंच से एवं इनके माध्यम से त्वरित वैश्विक संपर्क सुविधा के कारण अब हर व्यक्ति के लिये ईमेल पता बनाना जरूरी सा हो चला है . नई पीढ़ी की कम्प्यूटर साक्षरता स्कूलो के पाठ्यक्रम के माध्यम से सुनिश्चित हो चली है . समय के साथ अद्यतन रहने के लिये बुजुर्ग पीढ़ी की कम्प्यूटर के प्रति अभिरुचि भी तेजी से बढ़ी है . ई मेल के माध्यम से न केवल टैक्सट वरन , फोटो , ध्वनि , वीडियो इत्यादि भी उतनी ही आसानी से भेजे जाने की तकनीकी सुविधा के चलते ई मेल का महत्व बढ़ता ही जा रहा है .हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओ में साफ्टवेयर की उपलब्धता तथा एक ही मशीन से किसी भी भाषा में काम करने की सुगमता के कारण जैसे जैसे कम्प्यूटर का प्रयोग व उपयोगकर्ताओ की संख्या बढ़ रही है , ई मेल और भी प्रासंगिक होता जा रहा है .ई मेल के माध्यम से सारी दुनियां में किसी भी इंटरनेट से जुड़े हुये कम्प्यूटर पर बैठकर केवल अपने पासवर्ड से ईमेल के द्वारा आप अपनी डाक देख सकते हैं व बिना कोई सामग्री साथ लिये अपने ई मेल एकाउंट में सुरक्षित सामग्री का उपयोग कर पत्राचार कर सकते हैं . यह असाधारण सुविधा तकनीक का , युग को एक वरदान है .
आज लगभग हर संस्थान अपनी वेब साइट स्थापित करता जा रहा है . विजिटंग कार्ड में ई मेल पता , वेब एड्रेस , ब्लाग का पता होना अनिवार्य सा हो चला है .किसी संस्थान का कोई फार्म भरना हो , आपसे आपका ई मेल पता पूछा ही जाता है .हार्ड कापी में जानकारी तभी आवश्यक हो जाती है , जब उसका कोई कानूनी महत्व हो , अन्यथा वेब की वर्चुएल दुनियां में ई मेल के जरिये ही ढ़ेरो जानकारी ली दी जा रही हैं . मीडिया का तो लगभग अधिकांश कार्य ही ई मेल के माध्यम से हो रहा है .
विभिन्न कंपनियां जैसे गूगल , याहू , हाटमेल , रैडिफ , आदि मुफ्त में अपने सर्वर के माध्यम से ई मेल पता बनाने व उसके उपयोग की सुविधा सभी को दे रही हैं .ये कंपनियां आपको वेब पर फ्री स्पेस भी उपलब्ध करवाती हैं , जिसमें आप अपने डाटा स्टोर कर सकते हैं . क्लिक हिट्स के द्वारा इन कंपनियों की साइट की लोकप्रियता तय की जाती है , व तदनुसार ही साइट पर विज्ञापनो की दर निर्धारित होती है जिसके माध्यम से इन कंपनियो को धनार्जन होता हैं .
ई मेल की इस सुविधा के विस्तार के साथ ही इसकी कुछ सीमायें व कमियां भी स्पष्ट हो रही हैं .मुफ्त सेवा होने के कारण हर व्यक्ति लगभग हर प्रोवाइडर के पास मामूली सी जानकारियां भरकर , जिनका कोई सत्यापन नही किया जाता , अपना ई मेल एकाउंट बना लेता है . ढ़ेरो फर्जी ई मेल एकाउंट से साइबर क्राइम बढ़ता ही जा रहा है .वेब पर पोर्नसाइट्स की बाढ़ सी आ गई है . आतंकी गतिविधियों में पिछले दिनो हमने देखा कि ई मेल के ही माध्यम से धमकी दी जाती है या किसी घटना की जबाबदारी मीडिया को मेल भेजकर ही ली गई . यद्यपि वेब आई पी एड्रेस के जरिये आई टी विशेषज्ञो की मदद से पोलिस उस कम्प्यूटर तक पहुंच गई जहां से ऐसे मेल भेजे गये थे , पर इस सब में ढ़ेर सा श्रम , समय व धन नष्ट होता है .चूंकि एक ही कम्प्यूटर अनेक प्रयोक्ताओ के द्वारा उपयोग किया जा सकता है , विशेष रूप से इंटरनेट कैफे , या कार्यालयों में इस कारण इस तरह के साइबर अपराध होने पर व्यक्ति विशेष की जबाबदारी तय करने में बहुत कठिनाई होती है .
अब समय आ गया है कि ई मेल एड्रेस का पंजीकरण कानूनी रूप से जरूरी किया जावे . जब जन्म , मृत्यु , विवाह , ड्राइविंग लाईसेंस ,पैन कार्ड , पासपोर्ट , राशन कार्ड , जैसे ढ़ेरो कार्य समुचित कार्यालयो के द्वारा निर्धारित पंजियन के बाद ही होते हैं तो इंटरनेट पर यह अराजकता क्यो ? ईमेल एकाउंट के पंजियन से धारक का डाक्यूमेंटेड सत्यापन हो सकेगा तथा इसके लिये निर्धारित शुल्क से शासन की अच्छी खासी आय हो सकेगी . पंजियन आवश्यक हो जाने पर लोग नये नये व्यर्थ ईमेल एकाउंट नही बनायेंगे , जिससे वेब स्पेस बचेगी , वेब स्पेस बनाने के लिये जो हार्डवेयर लगता है , उसके उत्पादन से जो पर्यावरण ह्रास हो रहा है वह बचेगा , इस तरह इसके दीर्घकालिक , बहुकोणीय लाभ होंगे . जब ईमेल उपयोगकर्ता वास्तविक हो जायेगा तो उसके द्वारा नेट पर किये गये कार्यो हेतु उसकी जबाबदारी तय की जा सकेगी . हैकिंग से किसी सीमा तक छुटकारा मिल सकेगा . वेब से पोर्नसाइट्स गायब होने लगेंगी , व इससे जुड़े अपराध स्वयमेव नियंत्रित होंगे तथा सैक्स को लेकर बच्चो के चारित्रिक पतन पर कुछ नियंत्रण हो सकेगा .
चूंकि इंटरनेट वैश्विक गतिविधियो का सरल , सस्ता व सुगम संसाधन है , यदि जरूरी हो तो ईमेल पंजियन की आवश्यकता को भारत को विश्व मंच पर उठाना चाहिये , मेरा अनुमान है कि इसे सहज ही विश्व की सभी सरकारो का समर्थन मिलेगा क्योंकि वैश्विक स्तर पर माफिया आतंकी अपराधो के उन्मूलन में भी इससे सहयोग ही मिलेगा .
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
ओ बी ११ विद्युत मण्डल कालोनी रामपुर जबलपुर
vivekranjan.vinamra@gmail.com
मो 9425806252
लेखक को नवाचार व रचनात्मक साहित्यिक गतिविधियो के लिये रेड एण्ड व्हाइट पुरुस्कार मिल चुका है .
25 अप्रैल, 2010
५७ करोड़ के बांड्स का भुगतान नहीं करने पर कार्रवाई विमं के खाते सीज
एक पैसा नहीं खाते में
हालात चिंताजनक
५७ करोड़ के बांड्स का भुगतान नहीं करने पर कार्रवाई
विमं के खाते सीज
मंडल के पास शुक्रवार को खाते में एक पैसा भी नहीं था। जानकारों के अनुसार, माइनस एक करो़ड़ रुपए का एकाउंट था यानि मंडल से बैंक को एक करो़ड़ रुपए की लेनदारी निकलती है। ऐसा ओवरड्राफ्ट के कारण हुआ।
मंडल ने एसएलआर बांड जारी किए थे। ये ऐसे बांड होते हैं जिनके रि-पेमेंट की पूरी गारंटी होती है। बांड्स को जारी करते वक्त राज्य और केन्द्र से भी अनुमति ली गई थी। ये देश का पहला मामला होगा जहां एसएलआर बांड्स का भुगतान नहीं किया गया।गोपाल अवस्थी
जबलपुर। वित्तीय संकट में फंसे विद्युत मंडल पर से मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। कर्मचारियों का वेतन देने प्रदेश सरकार का मुंह ताकने वाले मंडल के सामने अब पंजाब एंड सिंध बैंक ने आफत ख़ड़ी कर दी है। बैंक की याचिका पर डीआरटी दिल्ली ने मंडल के खातों को सीज कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि विद्युत मंडल ने वर्ष २००० के आस-पास बांड जारी किए थे। इन बांड्स को पंजाब एंड सिंध बैंक ने भी लिया था। कुछ साल बाद इन बांड्स की री-पेमेंट के लिए बैंक ने जब पहल की तो मंडल ने असमर्थता जताई। मंडल द्वारा राशि देने से इंकार करने के कारण बैंक ने डेबिट रिकव्हरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) दिल्ली की शरण ली। बैंक का पक्ष सुनने के पश्चात डीआरटी ने उसकी ५७ करो़ड़ राशि के भुगतान हेतु मंडल के खाते अटैच करने का निर्देश जारी कर दिया।
घर तो सज गया पर बिजली हो सकती है गुल ..... सानिया अपनी पाकिस्तानी ससुराल में
घर तो सज गया पर बिजली हो सकती है गुल ..... सानिया अपनी पाकिस्तानी ससुराल में
आज के दावत -ए -वलीमा के लिए पाक क्रिकेटर शोएब मलिक के घर को सजा दिया गया है। इलेक्ट्रिक लाइटों से भी घर को इस तरह से सजाया गया है कि रात को रोशनी की महफिल से शमां बेहद खूबसूरत लगे और दावत- ए- वलीमा में आए मेहमानों का शानदार स्वागत किया जा सके। लेकिन शोएब का परिवार सरकार के बिजली अधिकारियों से नाराज चल रहा है और सभी लाइट्स को घर से उतार लिया गया है और कहा गया है कि अगर सरकार चाहती है कि हम अपना दावत ए वलीमा अंधेरे में मनाए तो हम ऐसा ही करेंगे।
पाक मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार पंजाब प्रांत की संघीय सरकार इन दिनों बिजली बचाने के लिए सप्ताह में दो दिन बिजली बचाने के लिए लाइट्स ऑफ रखने का आदेश दे रखा है। इसी को देखते हुए बिजली अधिकारियों ने शोएब के परिवार को भी बिजली बचाने के लिए स्विच ऑफ रखने के आदेश दिए हैं। हालांकि परिवार ने इस संबंध में बड़े अधिकारियों से संपर्क कर अपना विरोध जताया है लेकिन अधिकारियों का कहना है कि सरकार बिजली बचाने को लेकर बेहद सख्त रूख अपनाई हुई है इसलिए हम कुछ नहीं कर सकते।
क्या हमारे लिये भी सोचने और कानून बनाने का समय आ गया है कि शादी में बिजली की फिजूल खर्ची रोकी जावे
23 अप्रैल, 2010
वायरलेस बिजली बनेगी हकीकत...with thanks from naidunia dt 24.04.10
वायरलेस बिजली बनेगी हकीकत?
कई कंपनियाँ वायरलेस बिजली को खोजने में जुट गई हैं। जो विकल्प उभरकर आए हैं, उनमें रेडियो तरंगों के जरिए बिजली को संप्रेषित करना सबसे प्रभावी समाधान दिखाई देता है।
मुकुल व्यास
कम्प्यूटर, टीवी और म्यूजिक प्लेयर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हर साल छोटे हो रहे हैं, पतले हो रहे हैं और देखने में खूबसूरत भी। इन उपकरणों का आकार भले ही घट रहा हो, लेकिन हमें अभी तक तारों के जंजाल से छुटकारा नहीं मिला है। क्या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इन तारों से निजात दिलाना मुमकिन है?
पिछले कुछ समय से वैज्ञानिक बिजली को तार के बिना ही संप्रेषित करने की कोशिश कर रहे हैं। बेतार संप्रेषण को प्रभावी बनाने में कुछ दिक्कतें आ रही हैं और ऐसे सिस्टम की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके बावजूद सोनी और इंटेल जैसी बड़ी कंपनियाँ बेतार संप्रेषण को हकीकत में बदलने की कोशिश कर रही हैं।
वायरलेस बिजली का विचार नया नहीं है। निकोला तेस्ला ने २०वीं सदी के आरंभ में लोगों के घरों में तार के बगैर ही बिजली संप्रेषित करने का विचार रखा था। उन्होंने न्यूयॉर्क के लांग आईलैंड में वार्डन क्लिफ टावर का निर्माण भी शुरूकर दिया था। यह एक विशाल दूरसंचार टावर था, जिसके जरिए वह अपने वायरलेस पावर ट्रांसमिशन को परखना चाहते थे। निकोला की कोशिश नाकाम हो गई।
वायरलेस बिजली का विचार आकर्षक जरूर है, लेकिन इसे व्यावहारिक धरातल पर साकार करना मुश्किल है। लंबी दूरी के जमीनी वायरलेस पावर ट्रांसमिशन के लिए मूलभूत सुविधाएँ जुटाना बहुत महँगा पड़ेगा। इसके अलावा उष्ण ऊर्जा वाली माइक्रोवेव के जरिए बिजली के संप्रेषण की सेफ्टी को लेकर विशेषज्ञों ने चिंता प्रकट की है। निकट भविष्य में वायरलेस पावर सेट बनने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन छोटे स्तर पर बिजली के वायरलेस संप्रेषण का विचार जोर पकड़ रहा है। अनेक कंपनियाँ इसके कारगर, किफायती और सुरक्षित तरीके खोजने में जुट गई हैं। जो विकल्प उभरकर आए हैं उनमें रेडियो तरंगों के जरिए बिजली को संप्रेषित करना सबसे प्रभावी समाधान दिखाई देता है।
पीट्सबर्ग, पेनसिल्वेनिया स्थित पावरकास्ट कंपनी ने अभी हाल ही में इस टेक्नोलॉजी के जरिए १५ मीटर की दूरी पर औद्योगिक सेंसरों को माइक्रोवाट और मिलीवाट बिजली संप्रेषित की थी। कंपनी का मानना है कि इस तकनीक से एक दिन अलार्म घड़ियों, सेलफोन और रिमोट कंट्रोल को रिचार्ज करना संभव हो जाएगा। इस तकनीक की कुशलता सिर्फ १५ से ३० प्रतिशत ही है। अभी वायरलेस लैंपों, स्पीकरों और इलेक्ट्रॉनिक फोटो फ्रेमों को ऊर्जा देने के लिए इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है।
वायरलेस पावर के लिए एक संभावना "मैगनेटिक इंडक्शन"भी है। इस तकनीक में एक छोर पर रखी काइल से निकलने वाला चुंबकीय क्षेत्र पास में रखी दूसरी काइल में करंट उत्पन्ना कर सकता है। अनेक बड़ी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियाँ इस तकनीक में दिलचस्पी ले रही हैं। सोनी ने एक वायरलेस टीवी का परीक्षण किया है
17 अप्रैल, 2010
दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में १८.०४.२०१० के अंक में हमारी कवर स्टोरी बिजली
विवेकरंजन श्रीवास्तव
दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में 18.04.2010 के अंक में हमारी कवर स्टोरी बिजली को लेकर छपी है ...., मेरे ब्लाग पाठको के लिये उसके अंश प्रस्तुत है ...
कुछ को बिजली बाकी को झटका
कवरस्टोरी: विजयशंकर चतुर्वेदी साथ में विवेकरंजन श्रीवास्तव
भारत में बिजली ही एक ऐसी चीज़ है जिसमें मिलावट नहीं हो सकती. और अगर यह कहा जाए कि बिजली की शक्ति से ही विकास का पहिया घूम सकता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय विद्युत् नीति के तहत २०१२ तक 'सबके लिए बिजली' का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है. इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ४ अप्रैल २००५ को राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का शुभारम्भ किया था ताकि भारत में ग्रामीण स्तर पर भी विद्युत् ढाँचे में सुधार हो सके और गाँवों के सभी घर, गलियाँ, चौबारे, मोहल्ले बिजली की रोशनी से जगमगाने लगें. लेकिन वास्तविकता यह है कि बिना मिलावट की यह चीज़ सबको उपलब्ध कराने का सपना साकार करने के लिए साल २०१२ के आखिर तक ७८५०० मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन की जरूरत होगी जो आज की स्थिति देखते हुए सचमुच एक सपना ही लगता है. भारत के ऊर्जा योजनाकारों का अनुमान है कि अगर भारत की मौजूदा ८ प्रतिशत सालाना विकास दर जारी रही तो अगले २५ वर्षों में बिजली का उत्पादन ७ गुना बढ़ाना पड़ेगा. इसका अर्थ है कि नए विद्युत् स्टेशनों तथा ट्रांसमीशन लाइनों पर ३०० बिलियन डॉलर का खर्च करना होगा. इस सूरत-ए-हाल में 'सबके लिए बिजली' जब जलेगी तो देखेंगे, फिलहाल हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में बारहों महीने १० से १२ घंटे प्रतिदिन बिजली कटौती आम बात है. गर्मियों में लोग और भी बेहाल हो जाते हैं. बिजली के अभाव में पंखे, कूलर और रेफ्रीजिरेटर बंद पड़े रहते हैं और छोटे-छोटे बच्चे तड़पते रहते हैं. मोटर पम्प बंद पड़े रहते हैं और सिंचाई नहीं हो पाती. फसलें खलिहानों में पड़ी रहती हैं क्योंकि थ्रेशर बिना बिजली के चलता नहीं है. यहाँ तक कि लोग अनाज पिसवाने के लिए रातों को जागते हैं क्योंकि चक्कियां रात में कभी बिजली आ जाने पर ही जागती हैं. शादियों के मंडप सजे रहते हैं और दूल्हा-दुल्हन के साथ बाराती-घराती बिजली रानी के आने की बाट जोहते रहते हैं!
बिजली कटौती के मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक समाजवाद है. खुद डॉक्टर मनमोहन सिंह को योजना आयोग की एक बैठक में कहना पड़ा था- 'पावर सेक्टर का सबसे बड़ा अभिशाप इसके ट्रांसमीशन एवं डिस्ट्रीब्यूशन में होने वाली भारी क्षति है, जो कुल उत्पादित बिजली का लगभग ४० प्रतिशत बैठती है. कोई सभ्य समाज अथवा व्यावसायिक इकाई इतने बड़े पैमाने पर क्षति उठाकर चल नहीं सकती.' उनके ही तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में दुखड़ा रोया था- 'उपलब्ध बिजली का लगभग ७० प्रतिशत सही मायनों में बिक्री हो पाता है. बाकी लगभग ३० प्रतिशत बिजली की विभिन्न कारणों से बिलिंग ही नहीं हो पाती.' लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि इन विभिन्न कारणों में एक बड़ा रोग बिजली चोरी का भी है.
. यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि एशिया की एक और उभरती महाशक्ति चीन में बिजली चोरी मात्र ३ प्रतिशत के आसपास होती है जबकि भारत में ३० प्रतिशत से अधिक बिजली बेकार हो जाती है! बिजली चोरी के मामले में उद्योग जगत काफी आगे है. १७ जुलाई २००८ को मुंबई में 'इकोनोमिक टाइम्स' ने खबर छापी थी कि महाराष्ट्र की बिजली वितरण इकाई 'महावितरण' ने नवी मुंबई के आसपास एलएंडटी इन्फोटेक, जीटीएल, फ़ाइज़र इंडिया, कोरेस तथा अन्य कई बड़ी कंपनियों को उच्च दाब वाली विद्युत लाइन से लाखों की बिजली की चोरी करते पकड़ा था. इन पर बिजली अधिनियम, २००३ की धारा १२६ एवं १३५ के तहत मामले भी दर्ज़ किये गए. इसी तरह मध्य गुजरात वीज कोर्पोरेशन कंपनी लिमिटेड के उड़नदस्ता ने एक पूर्व सांसद रहे गुजरात स्टेट फर्टीलाइज़र्स एंड केमिकल्स लिमिटेड के चेयरमैन जेसवानी से बिजली चोरी के इल्जाम में ९० हजार रुपयों का जुर्माना वसूला था. देश भर में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं. _______________________
बिजली की मौजूदा उपलब्धता पर नज़र डालें तो आज पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है, जबकि सारे प्रयासों के बावजूद ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा रही है. स्पष्ट है कि १६.६ प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है. आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट की जगह केवल ६६६ हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली ही उपलब्ध हो पा रही है. एक अनुमान के अनुसार वर्ष २०११-१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी जो वर्ष २०१६-१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी. वर्ष २०११-१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट बिजली उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६-१७ अर्थात १२वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जायेगी . दिनों दिन बढ़ती जा रही इस भारी डिमांड की पूर्ति के लिए आज देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से हो रहा है. देश में कुल विद्युत उत्पादन की क्षमता १४६७५२.८१ मेगावाट है, जिसमें से ९२८९२.६४ मेगावाट कोयला, लिगनाइट व तेल आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्र हैं. अर्थात कुल स्थापित उत्पादन का ६३.३ प्रतिशत उत्पादन ताप विद्युत के रूप में हो रहा है. इसके अलावा ३६४९७.७६ मेगावाट उत्पादन क्षमता के जल विद्युत संयंत्र स्थापित हैं, जो कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का २४.८७ प्रतिशत हैं. अपारम्परिक ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, विंड पावर, टाइडल पावर आदि से भी व्यवसायिक विद्युत के उत्पादन के व्यापक प्रयास हो रहे हैं लेकिन देश में मात्र ९ प्रतिशत विद्युत उत्पादन इन तरीकों से हो पा रहा है. वर्तमान विद्युत संकट से निपटने का एक बड़ा कारगर तरीका परमाणु विद्युत का उत्पादन है. लेकिन वर्तमान में हमारे देश में मात्र ४१२० मेगावाट बिजली ही परमाणु आधारित संयंत्रों से उत्पादित हो रही है. यह देश की विद्युत उत्पादन क्षमता का मात्र २.८१ प्रतिशत ही है जो कि एक संतुलित विद्युत उत्पादन माडल के अनुरूप अत्यंत कम है. लेकिन सिर्फ उत्पादन बढ़ाने से काम नहीं चलनेवाला.
हमारे देश में एक समूची पीढ़ी को मुफ्त बिजली के उपयोग की आदत पड़ गई है. हालत यह है कि दिल्ली को बिजली चोरी के मामले में पूरी दुनिया की राजधानी कहा जाता है. लोग बिजली को हवा, धूप और पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझ कर दिल-ए-बेरहम करने लगे हैं. अक्सर हम देखते हैं कि गांवों और कस्बों में बिजली के ज्यादातर खम्भे अवैध कनेक्शनों की वजह से 'क्रिसमस ट्री' बने नजर आते हैं. मध्य-वर्ग के लोगों का प्रिय शगल है मीटर से छेड़छाड़. बिजली का बिल कम करने के इरादे से वे मीटर के साथ तरह-तरह के प्रयोग करने में माहिर हो चुके हैं. औद्योगिक इकाइयों में बिजली चोरी बड़े पैमाने पर होती है. कई बार इसमें खुद बिजली विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मिलीभगत भी पायी जाती है. यह दुखद स्थिति है. केवल कानून बना देने से और उसके सीधे इस्तेमाल से भी बिजली चोरी की विकराल समस्या हल नहीं हो सकती. हमारे जैसे लोकतांत्रिक जन कल्याणी देश में वही कानून प्रभावी हो सकता है जिसे जन समर्थन प्राप्त हो. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चँद्रबाबू नायडु ने दृढ़ इच्छा शक्ति से बिजली चोरी के विरूद्ध देश में सर्वप्रथम कड़े कदम उठाये. इससे किंचित बिजली चोरी भले ही रुकी हो पर जनता ने उन्हें चुनाव में चित कर दिया. मध्य प्रदेश सहित प्रायः अधिकाँश राज्यों में विद्युत वितरण कम्पनियों ने विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के अंर्तगत बिजली चोरी के अपराध कायम करने के लिये उड़नदस्तों का गठन किया है. पर जन शिक्षा के अभाव में इन उड़नदस्तों को जगह-जगह नागरिकों के गहन प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. अवैध कनेक्शन काटने तथा बिजली के बिल वसूलने के रास्ते में स्थानीय नेतागिरी, मारपीट, गाली गलौज, झूठे आरोप एक आम समस्या हैं. आज बिजली के बगैर जनता का जीवन चल सकता है न देश का विकास संभव है. अगर पम्प चलाना है तो बिजली चाहिए और कम्प्यूटर लगाना है तो बिजली चाहिए. बिजली बिना सब सून है. लेकिन बिजली की डिमांड और सप्लाई में जमीन-आसमान का अंतर है. कहीं बिजली कनेक्शन है तो बिजली के उपकरण नहीं हैं. कहीं उपकरण हैं तो वोल्टेज नहीं है.
ऐसी स्थिति में बिजली क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. निवेश बढ़ाने के हर संभव यत्न करने होंगे. नये बिजली घरों की स्थापना जरुरी है. बिजली चोरी पर पूर्ण नियंत्रण के हर संभव प्रयत्न करने पड़ेंगे. इसके लिये आम नागरिकों को साथ लेने के साथ-साथ नवीनतम तकनीक का उपयोग करना होगा. एक मन से हारी हुई सेना से युद्ध जीतने की उम्मीद करना बेमानी है. यदि बिजली विभाग के कर्मचारियों को अपना स्वयं का भविष्य ही अंधकारपूर्ण दिखेगा तो वे हमें रोशनी कहाँ से देंगे. उनका विश्वास जीतकर बिजली सेक्टर में फैला अन्धकार मिटाया जा सकता है.
कितनी बिजली किसके सर
विकसित देशों में किसी क्षेत्र के विकास को तथा वहां के लोगों के जीवन स्तर को समझने के लिये उस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत को भी पैमाने के रूप में उपयोग किया जाता है. हज़ार वाट का कोई उपकरण यदि १ घण्टे तक लगातार बिजली का उपयोग करे तो जितनी बिजली व्यय होगी उसे किलोवाट अवर या १ यूनिट बिजली कहा जाता है. आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत १४५३१ यूनिट प्रति वर्ष है, जबकि यही आंकड़ा जापान में ८६२८ यूनिट प्रति व्यक्ति, चीन में १९१० प्रति व्यक्ति है. किन्तु हमारे देश में बिजली की खपत मात्र ६३१ यूनिट प्रति व्यक्ति है. दुनिया में जितनी बिजली बन रही है उसका केवल ४ प्रतिशत ही हमारे देश में उपयोग हो रहा है. अतः हमारे देश में बिजली की कमी और इस क्षेत्र में व्यापक विकास की संभावनाएँ स्वतः ही समझी जा सकती हैं. तौबा ये बिजली की चाल जनरेटर से बिजली का उत्पादन बहुत कम वोल्टेज पर होता है पर चूंकि कम वोल्टेज पर बिजली के परिवहन में उसकी पारेषण हानि बहुत ज्यादा होती है अतः बिजली घर से उपयोग स्थल तक बिजली के सफर के लिये इसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर के द्वारा, अतिउच्चदाब में परिवर्तित कर दिया जाता है. बिजली की भीमकाय लाइनों, उपकेंद्रों से ८०० किलोवोल्ट, ४०० किलोवोल्ट, २२० किलोवोल्ट, १३२ किलोवोल्ट में स्टेप अप-डाउन होते हुये निम्नदाब बिजली लाइनों ३३ किलोवोल्ट, ११ किलोवोल्ट, ४४० वोल्ट और फिर अंतिम रूप में २२० वोल्ट में परिवर्तित होकर एक लंबा सफर पूरा कर बिजली आप तक पहुँचती है. बिजली और क़ानून हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बिजली केंद्र व राज्य की संयुक्त व्यवस्था का विषय है. विद्युत प्रदाय अधिनियम १९१० व १९४८ को एकीकृत कर संशोधित करते हुये वर्ष २००३ में एक नया कानून विद्युत अधिनियम के रूप में लागू किया गया है. इसके पीछे आधारभूत सोच बिजली कम्पनियों को ज्यादा जबाबदेह, उपभोक्ता उन्मुखी, स्पर्धात्मक बनाकर, वैश्विक वित्त संस्थाओं से ॠण लेकर बिजली के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना है. नये विद्युत अधिनियम के अनुसार विद्युत नियामक आयोगों की राज्य स्तर पर स्थापना की गई है. ये आयोग राज्य स्तर पर विद्युत उपभोग की दरें तय कर रहे हैं. ये दरें शुद्ध व्यावसायिक आकलन पर आधारित न होकर कृषि, घरेलू, व्यवसायिक, औद्योगिक आदि अलग-अलग उपभोक्ता वर्गों हेतु विभिन्न नीतियों के आधार पर तय की जाती हैं. ब्यूरो ऑफ़ इनर्जी एफिशियेंसी उपभोक्ता उपयोग के उपकरणों की विद्युत संरक्षण की दृष्टि से स्टार रेटिंग कर रही है.
इलेक्ट्रिसिटी एक्ट २००३ की धारा १३५ व १३८ के अंतर्गत बिजली चोरी को सिविल व क्रिमिनल अपराध के रूप में कानूनी दायरे में लाया गया है. बिजली चोरी और सज़ा साल २००५ के दौरान चीन के फुजियान प्रांत में एक इलेक्ट्रीशियन नागरिकों, कंपनियों तथा रेस्तराओं को बिजली चोरी करने में मदद करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था. अदालत ने पाया कि उसने लगभग २९९८९ डॉलर मूल्य की बिजली चोरी करने में मदद की है. उसे १० साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गयी तथा स्थानीय पुलिस ने बिजली चुराने वालों से हर्जाना अलग से वसूल किया. जबकि भारत के बिजली अधिनियम में बिजली चोरों को अधिकतम ३ वर्ष की सज़ा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।
Vijayshankar Chaturvedi (Poet-Journalist)
एवं
इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. मानसेवी सचिव , विकास (पंजीकृत सामाजिक संस्था, पंजीकरण क्रमांक j m 7014 dt. 14.08.2003 ) email vivek1959@yahoo.co.in
कनाडा में बिजली की स्थिति पर प्रवासी भारतीय व ब्लाग जगत में सुप्रसिद्ध समीर लाल की टिप्पणी
इसी कवर स्टोरी में बिजली की वैश्विक स्थिति बताने के लिये मैने देश विदेश से वहां के निवासी मित्रो से वहां बिजली की स्थिति पर विचार बुलवाये थे ... संपादन व संभवतः पृष्ठ संयोजन के चलते वे कवर स्टोरी में तो नही छपे .. पर हैं अति महत्वपूर्ण ..श्री समीर लाल उड़नतश्तरी जी ने कनाडा में बिजली की स्थिति पर बड़े रोचक अंदाज में टिप्पणी भेजी है ... जो यहां प्रस्तुत है ...
बाक्स प्रस्तुति हेतु ...
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कनाडा में बिजली की स्थिति पर प्रवासी भारतीय व ब्लाग जगत में सुप्रसिद्ध समीर लाल की टिप्पणी
मुझे कनाडा आये १० साल से ज्यादा समय हो गया. इस दौरान मात्र एक बार, जो कि ऐतिहासिक दिन बन गया, १४ अगस्त, २००३ को बिजली गई और ऐसी गई कि ४८ घंटे तक पूरा नार्थ अमेरीका बिना बिजली के रहा. सारा जीवन अस्त व्यस्त हो गया. अमरीकी राष्ट्रपति, कनाडा के प्रधानमंत्री सभी ने टीवी पर आकर बाद में जनता से क्षमा मांगी।
फोन लाईने बैठ गई. खाने बनाने के कुकिंग रेंज, ए सी, गरम पानी, फ्रिज सब बंद. लोग एटीएम और क्रेडिट कार्ड के इतने अभयस्त हैं कि २० डालर से ज्यादा कैश नहीं रखते किन्तु बिजली न होने से न तो क्रेडिट कार्ड चल पा रहे थे और न ही एटीएम. ट्रेनें रुक गई तो घर लौटना मुश्किल हुआ जा रहा था दफ्तर से.
सिवाय इस वाकिये के, इन १० सालों में ३-४ बार कुछ सेकेन्ड के लिए ही बिजली गई होगी. यहाँ तो जीवन का आधार ही बिजली है. बाहर कैसा भी मौसम हो -४० डीग्री मगर घर के भीतर बिजली के चलते ही तापमान नियंत्रित किया जाता है. शायद बिना विद्युत प्रवाह के तो एक समय का खाना भी न बन पाये.
मुझे लगता है कि यहाँ पर अब बिना बिजली के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है और सरकार इस दिशा में सतत प्रयास रत रहती है कि २००३ की स्थितियाँ फिर से निर्मित नहीं हो पायें.
वैसे जनता भी जागरुक है. गर्मी में बिजली की कमी की वजह से जब सरकार घोषणा करती है कि कोशिश करके एनर्जी सेवर डिवाईस लगायें तो सभी लोग तुरंत इस ओर ध्यान देते हैं. एक निश्चित तापमान के बाद एसी कुछ देर बंद हो जाता है और फिर चालू हो जाता है इस डिवाईस से और आपको पता भी नहीं लगता. घोषणा के हिसाब से ही लोग हेवीलोड काम जैसे वाशिंग मशीन, डिश वाशर पीक टाईम के बाद चलाते हैं ताकि लोड एक साथ न पड़े.
बिजली की दर भी सामान्य ही है और एक आम घर का बिजली का बिल ८० से १०० डालर के बीच आता है महिने का.
विद्युत व्यवस्था के हिसाब से इस देश में कोई शिकायत नहीं है.
शायद यही वजह है कि यहाँ आ बसे भारतीय जब भारत पहुँचते हैं तो परेशान हो उठते हैं. सुविधायें बहुत जल्दी आदत खराब करती हैं.
16 अप्रैल, 2010
फीडर विभक्तिकरण योजना
फीडर विभक्तिकरण योजना
बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .
आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . आज दुनिया की आबादी लगभग ७८ मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है , पिछले ५० सालों में दुनिया की आबादी दुगनी हो गई है . एक अनुमान के अनुसार आज भी दुनिया की चौथाई आबादी तक बिजली की पहुंच बाकी है . जन जन तक बिजली पहुंचाने के बढ़ते प्रयासों के कारण ही उर्जा के किसी अन्य प्रकार की अपेक्षा बिजली की खपत में असाधारण वृद्धि हो रही है , जिसके चलते बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .न केवल भारत में वरन वैश्विक परिदृश्य में भी बिजली की कमी है .
वर्तमान में पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है , जबकि सारे प्रयासो के बाद भी ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा सक रही है , इस तरह १६.६प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है . आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट , की जगह केवल ६६६हजार किलोवाट अवर यूनिट ही उपलब्ध की जा पा रही है . अनुमानो के अनुसार वर्ष २०११..२०१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी , जो वर्ष २०१६ ..१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी . वर्ष २०११..२०१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट के उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६ ..१७ अर्थात १२ पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जाने का पूर्वानुमान लगाया गया है .इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिये एक ओर बिजली उत्पादन में वृद्धि के हर संभव प्रयास , उत्पादन में निजि क्षेत्र की भागी दारी को बढ़ावा दिया जा रहा है .
बिजली के साथ एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि इसे व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता .जो कुछ थोड़ा सा विद्युत भंडारण संभव है वह रासायनिक उर्जा के रूप में विद्युत सैल या बैटरी के रूप में ही संभव है . बिजली का व्यवसायिक उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है . शाम के समय जब सारे देश में एक साथ प्रकाश के लिये बिजली का उपयोग बढ़ता है , मांग व आपूर्ति का अंतर सबसे ज्यादा हो जाता है .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री जी की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है।
प्रथम चरण में इस कार्य को तहसील फीडरों में किया जाना प्रस्तावित किया गया है। तीनों विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा आगामी पाँच वर्षों के लिये 8900 करोड़ रूपये राशि के व्यय से यह लक्ष्य पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है।ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण योजना के तहत खेती और घरेलू उपयोग के लिए फीडर अलग-अलग किए जाने हैं। इससे खेती के लिए थ्री फेज पर बिजली आपूर्ति की जाएगी और घरेलू उपयोग के लिए सिंगल फेज पर 24 घंटे बिजली दी जाएगी। बिजली मिलने से गांवों का विकास होगा, साथ ही बिजली चोरी पर भी अंकुश लग सकेगा। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानि में 10 प्रतिशत तक कमी आएगी। एक प्रतिशत लाइन लॉस कम होने से 125 करोड़ रूपए की बचत होगी।इस तरह एक साल में 1250 करोड़ रुपये बचेंगे और कुछ ही सालों मेंफीडर विभक्तिकरण पर किया जा रहा व्यय बिजली की बचत व उसके समुचित उपयोग से निकल आएगा। गुजरात व राजस्थान सरकारों द्वारा पहले ही फीडर विभक्तिकरण योजना क्रियान्वित की जा चुकी है .
तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियों के स्तर में कमी लाने के लिये फीडर विभक्तिकरण योजना को अतिउच्च वोल्टेज प्रणाली के साथ लागू किया गया है। इस योजना के तहत जिन ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण कार्य किया जा रहा है, वहां विद्युत प्रदाय में सुधार के साथ-साथ वोल्टेज के स्तर में भी सुधार होगा तथा तकनीकी हानियों में भी कमी होगी .
राज्य शासन द्वारा गत वर्ष 2008-09 में प्रदेश की तीन विद्युत वितरण कंपनियों को 100 करोड़ रूपये की राशि मुहैया करायी गई थी। फीडर विभक्तिकरण के लिय विश्व बैंक तथा एशियन डेव्हलपमेंट बैंक व पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से ऋण प्राप्त करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। फीडर विभक्तिकरण कार्यों के लिये वर्ष 2009-10 के बजट में 8 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य शासन का लक्ष्य है कि 2013 तक जहां प्रदेश स्वर्णिम प्रदेश के रूप में स्थापित होगा, वहीं बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। फीडर विभक्तिकरण योजना के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि पम्प उपभोक्ताओं एवं ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं को अलग अलग फीडरों से गुणवत्तापूर्ण एवं सतत विद्युत प्रदाय किया जावेगा। फीडर विभक्तिकरण योजना को मूर्तरूप देने के लिए ही राज्य शासन ने प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों में हाल ही में नए पद स्वीकृत किए हैं। इन पदों की स्वीकृति का उद्देश्य यह है कि वर्ष 2013 तक फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य पूरे हो जाएं और इसमें विद्युत कर्मियों की कमी आड़े न आए। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानियों के स्तर को 20 प्रतिशत या 20 प्रतिशत से भी कम पर लाया जा सकेगा।
विद्युत तंत्र हमारी सुख सुविधा का साधन है, उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी हैं । यह सार्वजनिक हित का साझा संसाधन है , अतः हर यूनिट बिजली का समुचित उपयोग हो सके, इसी दिशा में फीडर विभक्तिकरण परियोजना एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी .
बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .
आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . आज दुनिया की आबादी लगभग ७८ मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है , पिछले ५० सालों में दुनिया की आबादी दुगनी हो गई है . एक अनुमान के अनुसार आज भी दुनिया की चौथाई आबादी तक बिजली की पहुंच बाकी है . जन जन तक बिजली पहुंचाने के बढ़ते प्रयासों के कारण ही उर्जा के किसी अन्य प्रकार की अपेक्षा बिजली की खपत में असाधारण वृद्धि हो रही है , जिसके चलते बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .न केवल भारत में वरन वैश्विक परिदृश्य में भी बिजली की कमी है .
वर्तमान में पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है , जबकि सारे प्रयासो के बाद भी ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा सक रही है , इस तरह १६.६प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है . आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट , की जगह केवल ६६६हजार किलोवाट अवर यूनिट ही उपलब्ध की जा पा रही है . अनुमानो के अनुसार वर्ष २०११..२०१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी , जो वर्ष २०१६ ..१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी . वर्ष २०११..२०१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट के उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६ ..१७ अर्थात १२ पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जाने का पूर्वानुमान लगाया गया है .इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिये एक ओर बिजली उत्पादन में वृद्धि के हर संभव प्रयास , उत्पादन में निजि क्षेत्र की भागी दारी को बढ़ावा दिया जा रहा है .
बिजली के साथ एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि इसे व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता .जो कुछ थोड़ा सा विद्युत भंडारण संभव है वह रासायनिक उर्जा के रूप में विद्युत सैल या बैटरी के रूप में ही संभव है . बिजली का व्यवसायिक उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है . शाम के समय जब सारे देश में एक साथ प्रकाश के लिये बिजली का उपयोग बढ़ता है , मांग व आपूर्ति का अंतर सबसे ज्यादा हो जाता है .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री जी की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है।
प्रथम चरण में इस कार्य को तहसील फीडरों में किया जाना प्रस्तावित किया गया है। तीनों विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा आगामी पाँच वर्षों के लिये 8900 करोड़ रूपये राशि के व्यय से यह लक्ष्य पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है।ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण योजना के तहत खेती और घरेलू उपयोग के लिए फीडर अलग-अलग किए जाने हैं। इससे खेती के लिए थ्री फेज पर बिजली आपूर्ति की जाएगी और घरेलू उपयोग के लिए सिंगल फेज पर 24 घंटे बिजली दी जाएगी। बिजली मिलने से गांवों का विकास होगा, साथ ही बिजली चोरी पर भी अंकुश लग सकेगा। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानि में 10 प्रतिशत तक कमी आएगी। एक प्रतिशत लाइन लॉस कम होने से 125 करोड़ रूपए की बचत होगी।इस तरह एक साल में 1250 करोड़ रुपये बचेंगे और कुछ ही सालों मेंफीडर विभक्तिकरण पर किया जा रहा व्यय बिजली की बचत व उसके समुचित उपयोग से निकल आएगा। गुजरात व राजस्थान सरकारों द्वारा पहले ही फीडर विभक्तिकरण योजना क्रियान्वित की जा चुकी है .
तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियों के स्तर में कमी लाने के लिये फीडर विभक्तिकरण योजना को अतिउच्च वोल्टेज प्रणाली के साथ लागू किया गया है। इस योजना के तहत जिन ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण कार्य किया जा रहा है, वहां विद्युत प्रदाय में सुधार के साथ-साथ वोल्टेज के स्तर में भी सुधार होगा तथा तकनीकी हानियों में भी कमी होगी .
राज्य शासन द्वारा गत वर्ष 2008-09 में प्रदेश की तीन विद्युत वितरण कंपनियों को 100 करोड़ रूपये की राशि मुहैया करायी गई थी। फीडर विभक्तिकरण के लिय विश्व बैंक तथा एशियन डेव्हलपमेंट बैंक व पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से ऋण प्राप्त करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। फीडर विभक्तिकरण कार्यों के लिये वर्ष 2009-10 के बजट में 8 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य शासन का लक्ष्य है कि 2013 तक जहां प्रदेश स्वर्णिम प्रदेश के रूप में स्थापित होगा, वहीं बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। फीडर विभक्तिकरण योजना के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि पम्प उपभोक्ताओं एवं ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं को अलग अलग फीडरों से गुणवत्तापूर्ण एवं सतत विद्युत प्रदाय किया जावेगा। फीडर विभक्तिकरण योजना को मूर्तरूप देने के लिए ही राज्य शासन ने प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों में हाल ही में नए पद स्वीकृत किए हैं। इन पदों की स्वीकृति का उद्देश्य यह है कि वर्ष 2013 तक फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य पूरे हो जाएं और इसमें विद्युत कर्मियों की कमी आड़े न आए। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानियों के स्तर को 20 प्रतिशत या 20 प्रतिशत से भी कम पर लाया जा सकेगा।
विद्युत तंत्र हमारी सुख सुविधा का साधन है, उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी हैं । यह सार्वजनिक हित का साझा संसाधन है , अतः हर यूनिट बिजली का समुचित उपयोग हो सके, इसी दिशा में फीडर विभक्तिकरण परियोजना एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी .
08 अप्रैल, 2010
07 अप्रैल, 2010
बिन बिजली सब सून....बिजली बचाओ धरती बचाओ !
बिन बिजली सब सून....बिजली बचाओ धरती बचाओ !
पर आप जानते हैं कि बिजली केवल उतने की ही नही है जितने रुपये आप बिजली बिल के देते हैं , न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब है प्रकृति को बचाना ... व्यर्थ बिजली न जलने दें
पर आप जानते हैं कि बिजली केवल उतने की ही नही है जितने रुपये आप बिजली बिल के देते हैं , न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब है प्रकृति को बचाना ... व्यर्थ बिजली न जलने दें
20 मार्च, 2010
शासकीय विभागो में आपसी खींचतान कितनी उचित ?????
शासकीय विभागो में आपसी खींचतान कितनी उचित ?????
जितना श्रम , समय, संसाधन .. बिजली विभाग और नगर निगम आपसी देनदारियो के लिये लगा रहे हैं , क्या वह उचित है ? क्या माननीय मंत्री जी को हस्तक्षेप करके सरकार के ही दो विभागो की परस्पर लेनदारी देनदारी को अखबारो तक पहुंचने की स्थितियां बनने से रोकना चाहिये ? क्या इसके लिये कोई कानूनी प्रावधान जरूरी है , जिससे दो विभाग आपस में लड़ने तक की स्थिति में न आने पायें ...plz see dainik bhasker news dt 20.03.2010.. jabalpur
http://digitalimages.bhaskar.com/dainikmp/EpaperPdf/20032010/19jab-pg5-0.pdf
जितना श्रम , समय, संसाधन .. बिजली विभाग और नगर निगम आपसी देनदारियो के लिये लगा रहे हैं , क्या वह उचित है ? क्या माननीय मंत्री जी को हस्तक्षेप करके सरकार के ही दो विभागो की परस्पर लेनदारी देनदारी को अखबारो तक पहुंचने की स्थितियां बनने से रोकना चाहिये ? क्या इसके लिये कोई कानूनी प्रावधान जरूरी है , जिससे दो विभाग आपस में लड़ने तक की स्थिति में न आने पायें ...plz see dainik bhasker news dt 20.03.2010.. jabalpur
http://digitalimages.bhaskar.com/dainikmp/EpaperPdf/20032010/19jab-pg5-0.pdf
17 मार्च, 2010
विद्युत क्षेत्र में जन भागीदारी की व्यापक संभावनायें
लेख
विद्युत क्षेत्र में जन भागीदारी की व्यापक संभावनायें
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , जबलपुर
बंगला नम्बर ..ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर
जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
लोकतंत्र में जन भागीदारी का महत्व निर्विवाद है . किसी भी कार्य में जन भागीदारी से उसकी लोकप्रियता स्वतः ही बढ़ जाती है, कार्य में पारदर्शिता आ जाती है .प्रशाशकीय अवधारणा है कि शासकीय विकास कार्यों में जनभागीदारी से विकास कार्य की गुणवत्ता में वृद्धि होती है . कार्य अधिक जनोन्मुखी व जनोपयोगी हो जाता है . कार्य पर होने वाला व्यय न्यूनतम हो जाता है .भ्रष्टाचार की संभावनायें कम हो जाती हैं , अधिकारियो की स्वेच्छाचारिता नियंत्रित हो जाती है , एवं कार्य कम से कम समय में संपन्न हो पाता है . यही कारण है कि पब्लिक मैनेजमैंट की नवीनतम पद्धतियो के अनुसार प्रायः प्रत्येक विभाग में जनभागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है . लगभग सभी शासकीय विभागों , कार्यालयों , शिक्षण संस्थानो में किसी न किसी रूप में जन समितियां नामित की गईं हैं .ये जन समितियां प्रायः दिशा दर्शन , विकास कार्यो के अवलोकन , निरिक्षण व समीक्षा के कार्य कर रही हैं . विकास कार्य हेतु धन जुटाने , श्रमदान जुटाने में भी ये समितियां बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं . इन समितियों में स्थानीय नेता ,निर्वाचित जनप्रतिनिधि , सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक , , सक्रिय युवा , प्रगतिशील महिलायें , स्वस्फूर्त रूप से प्रायः अवैतनिक , मानसेवी सहयोग करते हैं , यद्यपि बैठको में भाग लेने आदि समिति के कार्यो हेतु सदस्यो को उनके वास्तविक या संभावित व्यय की आपूर्ति संबंधित विभाग द्वारा की जाने की परम्परा हैं .
जनभागीदारी का दूसरा तरीका , अशासकीय स्वयं सेवी संस्थाओ अर्थात एन.जीओ. के द्वारा विभाग के माध्यम से किये जा रहे कार्य में हाथ बंटाना है . किसी गांव या क्षेत्र विशेष को गोद लेकर विभाग द्वारा किये जा रहे कार्य को अधिक उर्जा से समानांतर रूप से संपन्न कराने में ये संगठन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं . इसके लिये इन्हें शासकीय अनुदान भी प्राप्त होता है . विभागीय कार्यों के प्रचार , प्रसार , जनजागरण , में स्वैच्छिक संगठनो की महति भूमिका है .
अब तक अधिकांशतः विद्युत क्षेत्र केवल स्वतंत्रत शासकीय विभाग के रूप में ही कार्यरत रहा है . जो थोड़ी बहुत जन भागीदारी बिजली के क्षेत्र में रही है वह सलाहकार समितियों या अवलोकन व समीक्षा जन समितियों तक ही सीमित है .अभी तक एन जी ओ के माध्यम से बिजली क्षेत्र में कोई बड़े कार्य नही हो रहे हैं . इसका एक कारण बिजली क्षेत्र का एक पूर्णतः तकनीकी विभाग होना है . विद्युत उत्पादन पूरी तरह तकनीकी कार्य है , उच्च दाब पारेषण में भी जन भागीदारी के योगदान की नगण्य संभावनायें हैं . किन्तु निम्नदाब वितरण प्रणाली में , जिससे हम सब सीधे एक उपभोक्ता के रूप में जुड़े हुये हैं वह क्ृेत्र है जिसमें जन भागीदारी की विपुल संभावनाये हैं . आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है .बिजली चोरी की समस्या सुरसा के मुख सी बढ़ती ही जा रही है . ऐसे परिदृश्य में स्वयं सेवी संगठन आगे आकर विद्युत वितरण कंपनियो का हाथ बंटा सकती हें , कुछ कार्य जिनमें जन भागीदारी की विपुल संभावनायें हैं,कुछ इस तरह हो सकते हैं ,
बिजली चोरी के विरुद्ध जनजागरण अभियान
बिजली की बचत हेतु जन प्रेरणा अभियान
नियमित व एरियर के राजस्व वसूली में सहयोग , बिल वितरण , फ्यूज आफ काल्स अटेंड करने में सहयोग
वितरण हानियो को कम करने हेतु वितरण लाइनो के रखरखाव में सहयोग
कैप्टिव पावर प्लांट लगाने हेतु प्रेरक की भूमिका एवं वांछित जानकारी , विभागीय क्लियरेंस आदि
ट्रांस्फारमरों में तीनो फेज पर समान लोड वितरण में सहयोग
विद्युत संयत्रों , बिजली की लाइनो की सुरक्षा , तथा चोरी गई विद्युत सामग्री को पकड़वाने में सहयोग
आई एस आई मार्क उपकरणो के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
सी एफ एल के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
दिन में प्राकृतिक प्रकाश के उपयोग , पीकिंग अवर में न्यूनतम विद्युत प्रयोग , घरों में हल्के रंग संयोजन को बढ़ावा , छतों में बाहरी तरफ सफेद रंग की पुताई जिससे शीतलन हेतु कम बिजली लगे , आदि जागृति अभियान
कहां नई विद्युत लाइनो की आवश्यकता है , कहां नये उपकेंद्र बनने चाहिये यह सब भी जनप्रतिनिधियों के तालमेल से बेहतर तरीके से तय किया जा सकता है . विद्युत सेवा का क्षेत्र सीधे तौर पर राजस्व से जुड़ा हुआ है ,अतः वितरण कंपनियों को सहयोग कर जनसेवी संस्थान संस्था के संचालन हेतु आवश्यक धनार्जन स्वतः ही बिजली कंपनियो से कर सकती हैं . वर्तमान परिदृश्य में बिजली चोरी पकड़वाने पर , एरियर का राजस्व वसूली होने पर , वितरण हानि कम होने पर , वितरण ट्रांस्फारमरों की खराबी की दर कम होने पर आदि बिजली क्षेत्र से जुड़े घटक सीधे रूप से वितरण कंपनियों के आर्थिक लाभ से जुड़े हैं , वितरण कंपनियो के सी एम डी इतने शक्ति संपन्न हैं कि वे सहज ही जनभागीदारी संस्थानो को ये आर्थिक लाभ देकर , विद्युत क्षेत्र में जनसहयोग की नई शुरुवात कर सकते हैं . चूंकि बिजली का क्षेत्र तकनीक आधारित है , अतः इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के लिये जनसहयोगी संगठनो को किंचित तकनीकी संज्ञान जरूरी हो सकता है . सतत क्रियाशीलता से इस दिशा में बहुत व्यापक , दूरगामी , अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं . बिजली के क्षेत्र में जनसहयोग को बढ़ावा देना समय की मांग है , जिसमें विपुल संभावनायें हैं .
विद्युत क्षेत्र में जन भागीदारी की व्यापक संभावनायें
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , जबलपुर
बंगला नम्बर ..ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर
जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२
लोकतंत्र में जन भागीदारी का महत्व निर्विवाद है . किसी भी कार्य में जन भागीदारी से उसकी लोकप्रियता स्वतः ही बढ़ जाती है, कार्य में पारदर्शिता आ जाती है .प्रशाशकीय अवधारणा है कि शासकीय विकास कार्यों में जनभागीदारी से विकास कार्य की गुणवत्ता में वृद्धि होती है . कार्य अधिक जनोन्मुखी व जनोपयोगी हो जाता है . कार्य पर होने वाला व्यय न्यूनतम हो जाता है .भ्रष्टाचार की संभावनायें कम हो जाती हैं , अधिकारियो की स्वेच्छाचारिता नियंत्रित हो जाती है , एवं कार्य कम से कम समय में संपन्न हो पाता है . यही कारण है कि पब्लिक मैनेजमैंट की नवीनतम पद्धतियो के अनुसार प्रायः प्रत्येक विभाग में जनभागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है . लगभग सभी शासकीय विभागों , कार्यालयों , शिक्षण संस्थानो में किसी न किसी रूप में जन समितियां नामित की गईं हैं .ये जन समितियां प्रायः दिशा दर्शन , विकास कार्यो के अवलोकन , निरिक्षण व समीक्षा के कार्य कर रही हैं . विकास कार्य हेतु धन जुटाने , श्रमदान जुटाने में भी ये समितियां बहुत महत्वपूर्ण योगदान कर रही हैं . इन समितियों में स्थानीय नेता ,निर्वाचित जनप्रतिनिधि , सेवानिवृत वरिष्ठ नागरिक , , सक्रिय युवा , प्रगतिशील महिलायें , स्वस्फूर्त रूप से प्रायः अवैतनिक , मानसेवी सहयोग करते हैं , यद्यपि बैठको में भाग लेने आदि समिति के कार्यो हेतु सदस्यो को उनके वास्तविक या संभावित व्यय की आपूर्ति संबंधित विभाग द्वारा की जाने की परम्परा हैं .
जनभागीदारी का दूसरा तरीका , अशासकीय स्वयं सेवी संस्थाओ अर्थात एन.जीओ. के द्वारा विभाग के माध्यम से किये जा रहे कार्य में हाथ बंटाना है . किसी गांव या क्षेत्र विशेष को गोद लेकर विभाग द्वारा किये जा रहे कार्य को अधिक उर्जा से समानांतर रूप से संपन्न कराने में ये संगठन महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं . इसके लिये इन्हें शासकीय अनुदान भी प्राप्त होता है . विभागीय कार्यों के प्रचार , प्रसार , जनजागरण , में स्वैच्छिक संगठनो की महति भूमिका है .
अब तक अधिकांशतः विद्युत क्षेत्र केवल स्वतंत्रत शासकीय विभाग के रूप में ही कार्यरत रहा है . जो थोड़ी बहुत जन भागीदारी बिजली के क्षेत्र में रही है वह सलाहकार समितियों या अवलोकन व समीक्षा जन समितियों तक ही सीमित है .अभी तक एन जी ओ के माध्यम से बिजली क्षेत्र में कोई बड़े कार्य नही हो रहे हैं . इसका एक कारण बिजली क्षेत्र का एक पूर्णतः तकनीकी विभाग होना है . विद्युत उत्पादन पूरी तरह तकनीकी कार्य है , उच्च दाब पारेषण में भी जन भागीदारी के योगदान की नगण्य संभावनायें हैं . किन्तु निम्नदाब वितरण प्रणाली में , जिससे हम सब सीधे एक उपभोक्ता के रूप में जुड़े हुये हैं वह क्ृेत्र है जिसमें जन भागीदारी की विपुल संभावनाये हैं . आज सारा देश बिजली की कमी से जूझ रहा है .बिजली चोरी की समस्या सुरसा के मुख सी बढ़ती ही जा रही है . ऐसे परिदृश्य में स्वयं सेवी संगठन आगे आकर विद्युत वितरण कंपनियो का हाथ बंटा सकती हें , कुछ कार्य जिनमें जन भागीदारी की विपुल संभावनायें हैं,कुछ इस तरह हो सकते हैं ,
बिजली चोरी के विरुद्ध जनजागरण अभियान
बिजली की बचत हेतु जन प्रेरणा अभियान
नियमित व एरियर के राजस्व वसूली में सहयोग , बिल वितरण , फ्यूज आफ काल्स अटेंड करने में सहयोग
वितरण हानियो को कम करने हेतु वितरण लाइनो के रखरखाव में सहयोग
कैप्टिव पावर प्लांट लगाने हेतु प्रेरक की भूमिका एवं वांछित जानकारी , विभागीय क्लियरेंस आदि
ट्रांस्फारमरों में तीनो फेज पर समान लोड वितरण में सहयोग
विद्युत संयत्रों , बिजली की लाइनो की सुरक्षा , तथा चोरी गई विद्युत सामग्री को पकड़वाने में सहयोग
आई एस आई मार्क उपकरणो के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
सी एफ एल के प्रयोग को बढ़ावा देने के अभियान में सहयोग
दिन में प्राकृतिक प्रकाश के उपयोग , पीकिंग अवर में न्यूनतम विद्युत प्रयोग , घरों में हल्के रंग संयोजन को बढ़ावा , छतों में बाहरी तरफ सफेद रंग की पुताई जिससे शीतलन हेतु कम बिजली लगे , आदि जागृति अभियान
कहां नई विद्युत लाइनो की आवश्यकता है , कहां नये उपकेंद्र बनने चाहिये यह सब भी जनप्रतिनिधियों के तालमेल से बेहतर तरीके से तय किया जा सकता है . विद्युत सेवा का क्षेत्र सीधे तौर पर राजस्व से जुड़ा हुआ है ,अतः वितरण कंपनियों को सहयोग कर जनसेवी संस्थान संस्था के संचालन हेतु आवश्यक धनार्जन स्वतः ही बिजली कंपनियो से कर सकती हैं . वर्तमान परिदृश्य में बिजली चोरी पकड़वाने पर , एरियर का राजस्व वसूली होने पर , वितरण हानि कम होने पर , वितरण ट्रांस्फारमरों की खराबी की दर कम होने पर आदि बिजली क्षेत्र से जुड़े घटक सीधे रूप से वितरण कंपनियों के आर्थिक लाभ से जुड़े हैं , वितरण कंपनियो के सी एम डी इतने शक्ति संपन्न हैं कि वे सहज ही जनभागीदारी संस्थानो को ये आर्थिक लाभ देकर , विद्युत क्षेत्र में जनसहयोग की नई शुरुवात कर सकते हैं . चूंकि बिजली का क्षेत्र तकनीक आधारित है , अतः इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी के लिये जनसहयोगी संगठनो को किंचित तकनीकी संज्ञान जरूरी हो सकता है . सतत क्रियाशीलता से इस दिशा में बहुत व्यापक , दूरगामी , अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं . बिजली के क्षेत्र में जनसहयोग को बढ़ावा देना समय की मांग है , जिसमें विपुल संभावनायें हैं .
11 मार्च, 2010
REMOTE METERING: A BREAKTHROUGH
REMOTE METERING: A BREAKTHROUGH
INTRODUCTION:
Previously meter reading activity of HT consumers in
East Discom (as well as in other discoms in MP) was
undertaken manually and the billing was carried out
through punching of manually recorded reading data.
Despite the meters having data downloading features MRI
downloading was carried out merely by the Meter Testing
officials and that too was limited to once or twice in a
year owing to limited resources in comparison to number
of HT installations. Accordingly MRI downloads were not
available with MT wing for remaining period of year to
monitor /analyse the functioning of the metering system as
well as reading parameters.
To overcome this constraint, it was decided by the
company that billing of HT consumers should be carried
out through MRI downloads. Accordingly, after
successfully carrying out pilot and parallel billing this
billing system was implemented throughout the company
from September’ 06. In process monthly downloading of
reading data was made obligatory resulting into timely
detection and rectification of defects developed in
metering system. In addition to this discrepancies in the
consumption parameters billed could be detected and
rectified. Moreover the probability of error due to human
intervention was minimized to some extent.
During the exercise of billing of HT
Consumers through MRI downloads, it was observed that
substantial amount of time & manpower (in form of the 02
officers- one each from STM and O&M divisions) was
engaged in monthly meter reading of the HT consumers.
As per prevailing practice the meter reading officials were
also expected to carry out general inspection of the
consumer premises to obviate any probability of
malfunctioning of metering system as well as irregularity
connected with purpose of use. But, looking to the tight
‘Billing-Schedule’ inspection work during reading was
hardly possible.
In view of the above, it was decided by the
company in Oct’06 that meter reading & inspection
activities be dealt separately. The meter reading activity
was decided to be undertaken through Remote Metering,
so that the valuable man power involved in meter reading
activity could be utilized in the more purposeful & result
oriented activities including Installation-Audit of the H.T.
Consumers/ high value L.T. Consumers.
ADVANCEMENT IN TECHNOLOGY
The advancement in metering technology has
enabled measurement and logging of various parameters,
e.g. Energy, Load Survey, Events, Transactions and
Tampers which are available in the electronic meters for
downloading / capturing through automated means in a
very short period of time. This, combined with
advancements in communication and software technology
has made it possible to automate and integrate the
metering, billing and monitoring processes by
implementing computerized systems which can seamlessly
integrate these processes by sharing a common database.
Considering the advantages it was decided to
develop and implement systems to achieve the objectives
in a phased manner.
OBJECTIVES
The project was initiated with the following broad
objectives:
I. End-to-end automation of metering and billing
process.
II. Reduce time lag between meter reading and
billing.
III. Eliminate (manual) logistics and effort in meter
reading.
IV. Synchronized meter readings.
V. Improved vigilance.
VI. Monitoring and control of high value
consumers.
VII. Centralized monitoring, control, database and
applications with distributed access and
distributed operations.
VIII. Recognition of meter location in the network
and interfacing with energy audit.
IX. Meter history and tracking.
DRIVING CONSIDERATIONS
I. A centralized, flexible, open ended, scalable and
componentized system.
II. Possible to integrate with external (third party)
systems.
III. End-to-end automation of the MBC (metering,
billing and collection) process.
IV. Interfacing with other system (MIS, billing,
energy audit, CRM, data warehousing).
V. Common interface for multi vendor metering
scenario.
VI. Technology conformance to open standards.
VII. Inbuilt security.
VIII. System recovery and availability.
TECHNOLOGY
I. Standardization in metering solutions provided
by meter vendors.
II. Open standards technology conformance in all
components:
- Back-end RDBMS
- System architecture (Designed as n-tier,
present deployment on C/S platform).
- Application development and deployment
tools (Power Builder, SQL, Jaguar).
- Front end
- Data communication and acquisition: All
Meters , GSM Modems and BCS from M/s
Secure Meters Ltd.
Security Features
- Network level
- O/s level: User Id / Password
- Application level: User Id / Password,
CRC checking in AMR data validation
stage.
- Database level: Access rights.
EXPENDITURE
The overall expenses on the project, including Rs.32
lac approx. in respect of the Meter Monitoring Cell
building works out to be around Rs. 97 lac. The running
cost towards rental charges of SIMS are approximately
Rs.26000=00 per month which is very less as compared to
the expenses incurred previously on meter reading activity
at site.
ACHIEVEMENTS
- Implementation of business process change
resulting in consumer satisfaction, saving of time
and manpower, synchronization of meter reading,
accurate and timely reading for billing, validation
of meter reading before billing etc.
- Saving of operational expenses towards manual
meter reading (transportation and manpower).
- Disciplined billing cycle.
- Timely detection and rectification of defects
developed over period of time in the metering
system.
- Elimination of errors inherent in the manual
reading process.
- Automated reading and billing through remote
reading of 100 % HT consumers
- In-house Development of software for interfacing
meter reading data with billing system and
metering module.
- End-to-end integration of metering and billing
process.
- Additional Revenue recovery of Rs. 630 lac
through monitoring of AMR data against the
historical billing data.
- Daily monitoring of Tamper-events of all
consumers through event based dialing.
- Daily reading and analysis of consumption of
consumers having Contract Demand 5MVA and
above, power intensive units (rolling mills, ferro
alloys, steel plants) and seasonal consumers
during their season.
CONCLUSION AND FUTURE SCOPE
The AMR project initiated by the company has
been a big success as all its 731 HT consumers have
already been covered under it. Out of nearly 3600 high
value consumers above 25 hp nearly 49% have been
covered under the Project
INTRODUCTION:
Previously meter reading activity of HT consumers in
East Discom (as well as in other discoms in MP) was
undertaken manually and the billing was carried out
through punching of manually recorded reading data.
Despite the meters having data downloading features MRI
downloading was carried out merely by the Meter Testing
officials and that too was limited to once or twice in a
year owing to limited resources in comparison to number
of HT installations. Accordingly MRI downloads were not
available with MT wing for remaining period of year to
monitor /analyse the functioning of the metering system as
well as reading parameters.
To overcome this constraint, it was decided by the
company that billing of HT consumers should be carried
out through MRI downloads. Accordingly, after
successfully carrying out pilot and parallel billing this
billing system was implemented throughout the company
from September’ 06. In process monthly downloading of
reading data was made obligatory resulting into timely
detection and rectification of defects developed in
metering system. In addition to this discrepancies in the
consumption parameters billed could be detected and
rectified. Moreover the probability of error due to human
intervention was minimized to some extent.
During the exercise of billing of HT
Consumers through MRI downloads, it was observed that
substantial amount of time & manpower (in form of the 02
officers- one each from STM and O&M divisions) was
engaged in monthly meter reading of the HT consumers.
As per prevailing practice the meter reading officials were
also expected to carry out general inspection of the
consumer premises to obviate any probability of
malfunctioning of metering system as well as irregularity
connected with purpose of use. But, looking to the tight
‘Billing-Schedule’ inspection work during reading was
hardly possible.
In view of the above, it was decided by the
company in Oct’06 that meter reading & inspection
activities be dealt separately. The meter reading activity
was decided to be undertaken through Remote Metering,
so that the valuable man power involved in meter reading
activity could be utilized in the more purposeful & result
oriented activities including Installation-Audit of the H.T.
Consumers/ high value L.T. Consumers.
ADVANCEMENT IN TECHNOLOGY
The advancement in metering technology has
enabled measurement and logging of various parameters,
e.g. Energy, Load Survey, Events, Transactions and
Tampers which are available in the electronic meters for
downloading / capturing through automated means in a
very short period of time. This, combined with
advancements in communication and software technology
has made it possible to automate and integrate the
metering, billing and monitoring processes by
implementing computerized systems which can seamlessly
integrate these processes by sharing a common database.
Considering the advantages it was decided to
develop and implement systems to achieve the objectives
in a phased manner.
OBJECTIVES
The project was initiated with the following broad
objectives:
I. End-to-end automation of metering and billing
process.
II. Reduce time lag between meter reading and
billing.
III. Eliminate (manual) logistics and effort in meter
reading.
IV. Synchronized meter readings.
V. Improved vigilance.
VI. Monitoring and control of high value
consumers.
VII. Centralized monitoring, control, database and
applications with distributed access and
distributed operations.
VIII. Recognition of meter location in the network
and interfacing with energy audit.
IX. Meter history and tracking.
DRIVING CONSIDERATIONS
I. A centralized, flexible, open ended, scalable and
componentized system.
II. Possible to integrate with external (third party)
systems.
III. End-to-end automation of the MBC (metering,
billing and collection) process.
IV. Interfacing with other system (MIS, billing,
energy audit, CRM, data warehousing).
V. Common interface for multi vendor metering
scenario.
VI. Technology conformance to open standards.
VII. Inbuilt security.
VIII. System recovery and availability.
TECHNOLOGY
I. Standardization in metering solutions provided
by meter vendors.
II. Open standards technology conformance in all
components:
- Back-end RDBMS
- System architecture (Designed as n-tier,
present deployment on C/S platform).
- Application development and deployment
tools (Power Builder, SQL, Jaguar).
- Front end
- Data communication and acquisition: All
Meters , GSM Modems and BCS from M/s
Secure Meters Ltd.
Security Features
- Network level
- O/s level: User Id / Password
- Application level: User Id / Password,
CRC checking in AMR data validation
stage.
- Database level: Access rights.
EXPENDITURE
The overall expenses on the project, including Rs.32
lac approx. in respect of the Meter Monitoring Cell
building works out to be around Rs. 97 lac. The running
cost towards rental charges of SIMS are approximately
Rs.26000=00 per month which is very less as compared to
the expenses incurred previously on meter reading activity
at site.
ACHIEVEMENTS
- Implementation of business process change
resulting in consumer satisfaction, saving of time
and manpower, synchronization of meter reading,
accurate and timely reading for billing, validation
of meter reading before billing etc.
- Saving of operational expenses towards manual
meter reading (transportation and manpower).
- Disciplined billing cycle.
- Timely detection and rectification of defects
developed over period of time in the metering
system.
- Elimination of errors inherent in the manual
reading process.
- Automated reading and billing through remote
reading of 100 % HT consumers
- In-house Development of software for interfacing
meter reading data with billing system and
metering module.
- End-to-end integration of metering and billing
process.
- Additional Revenue recovery of Rs. 630 lac
through monitoring of AMR data against the
historical billing data.
- Daily monitoring of Tamper-events of all
consumers through event based dialing.
- Daily reading and analysis of consumption of
consumers having Contract Demand 5MVA and
above, power intensive units (rolling mills, ferro
alloys, steel plants) and seasonal consumers
during their season.
CONCLUSION AND FUTURE SCOPE
The AMR project initiated by the company has
been a big success as all its 731 HT consumers have
already been covered under it. Out of nearly 3600 high
value consumers above 25 hp nearly 49% have been
covered under the Project
04 मार्च, 2010
पावरमीटर बतायेगा घर में बिजली कहाँ और कितनी खर्च होती है
साभार............
गुगल का पावरमीटर बतायेगा घर में बिजली कहाँ और कितनी खर्च होती है
गुगल ने स्मार्ट ग्रिड की दिशा में अपने कदम बड़ा लिये हैं और अब गेंद बिजली कंपनियों के पाले में है। ये स्मार्ट ग्रिड कंप्यूटर की नही बल्कि बिजली के लिये है। दरअसल बात एक ऐसी स्मार्टर इलेक्ट्रीसिटी ग्रिड बनाने की हो रही है जिसका हुकअप कंप्यूटर तकनीक के साथ किया जा सके। अभी अमेरिका में फिलहाल सभी ग्रिड एनालॉग हैं और जिन्हें धीरे धीरे स्मार्ट ग्रिड में बदलने का प्लान है।
How much does it cost to leave your TV on all day? What about turning your air conditioning 1 degree cooler? Which uses more power every month — your fridge or your dishwasher? Is your household more or less energy efficient than similar homes in your neighborhood?
गुगल का मानना है कि उसका सोफ्टवेयर ये सब इनफोर्मेसन आपको देगा और फिर आप डिसाइड कर सकते हैं कहाँ क्या चेंज करना है।
कई बिजली कंपनियाँ धीरे धीरे स्मार्ट मीटर लगा रही हैं, अब आप लोग सोच रहे होंगे इसमें गुगल कहाँ से फिट बैठता है। दरअसल गुगल ने एक ऐसा सोफ्टवेयर बनाया है जो इन स्मार्ट मीटर से डॉटा लेकर आपके कंप्यूटर तक पहुँचायेगा। ये बतायेगा कि आपके घर में उपयोग में आने वाले किस प्रोडक्ट में कितनी बिजली खर्च हो रही है। इससे उन उपकरणों का पता आसानी से चल जायेगा जिनका बेहतर विकल्प उपलब्ध है और जिनको बदलने की जरूरत है। यही नही बिजली
कंपनियाँ भी चाहती हैं कि उनके पास बिजली के उपयोग के लिये Variable Rate चार्ज करने का आप्शन हो। यानि कि डिमांड के हिसाब से रेट कम बाकी होंगे, ऐसे में गुगल का ये सोफ्टवेयर बता सकता है कि किस उपकरण को किस समय चलाने में कम खर्च आता है क्योंकि ये सब रियल टाईम होगा इसलिये तुरंत ये सब पता चल सकता है। जैसे डिशवाशर रात को चलाने में कम खर्चा आयेगा जब बिजली की डिमांड कम होने लगती है और इसलिये रेट भी कम होंगे।
गुगल का पावरमीटर (PowerMeter) स्मार्ट ग्रिड सोफ्टवेयर है जो उपभोक्ताओं को उनके घर में होने वाली बिजली की खपत की डिटेल जानकारी देगा। पावरमीटर एक मुफ्त में उपलब्ध होने वाल ओपन सोर्स सोप्टवेयर होगा, इस दिशा में और भी कई कंपनियाँ काम कर रही हैं।
फिलहाल तो गुगल अपने इस पावरमीटर की टेस्टिंग अपने कर्मचारियों के बीच कर रहा है, सिर्फ गुगल ही नही बल्कि आइबीएम भी इस दिशा में कार्यरत है।
IBM (IBM), which has become the leading player integrating smart grid technology for utilities and managing the data produced by a digital power grid।
फिलहाल तो ये प्रोटोटाईप प्रोजेक्ट है और बहुत जल्द हकीकत भी बन जायेगा
वैसे तो पावर कंजम्पसन डिवाइस मार्केट में उपलब्ध हैं जिससे आप यही सब पता लगा सकते हो लेकिन उसे डिवाइस टू डिवाइस लगा के देखना होता है। जबकि गुगल पावरमीटर घर के सभी उपकरण के कंजम्पसन की डिजिटल इनोर्फेशन को हमारे डेस्कटॉप पर उपलब्ध करायेगा स्मार्ट ग्रिड की मदद से।
गुगल का पावरमीटर बतायेगा घर में बिजली कहाँ और कितनी खर्च होती है
गुगल ने स्मार्ट ग्रिड की दिशा में अपने कदम बड़ा लिये हैं और अब गेंद बिजली कंपनियों के पाले में है। ये स्मार्ट ग्रिड कंप्यूटर की नही बल्कि बिजली के लिये है। दरअसल बात एक ऐसी स्मार्टर इलेक्ट्रीसिटी ग्रिड बनाने की हो रही है जिसका हुकअप कंप्यूटर तकनीक के साथ किया जा सके। अभी अमेरिका में फिलहाल सभी ग्रिड एनालॉग हैं और जिन्हें धीरे धीरे स्मार्ट ग्रिड में बदलने का प्लान है।
How much does it cost to leave your TV on all day? What about turning your air conditioning 1 degree cooler? Which uses more power every month — your fridge or your dishwasher? Is your household more or less energy efficient than similar homes in your neighborhood?
गुगल का मानना है कि उसका सोफ्टवेयर ये सब इनफोर्मेसन आपको देगा और फिर आप डिसाइड कर सकते हैं कहाँ क्या चेंज करना है।
कई बिजली कंपनियाँ धीरे धीरे स्मार्ट मीटर लगा रही हैं, अब आप लोग सोच रहे होंगे इसमें गुगल कहाँ से फिट बैठता है। दरअसल गुगल ने एक ऐसा सोफ्टवेयर बनाया है जो इन स्मार्ट मीटर से डॉटा लेकर आपके कंप्यूटर तक पहुँचायेगा। ये बतायेगा कि आपके घर में उपयोग में आने वाले किस प्रोडक्ट में कितनी बिजली खर्च हो रही है। इससे उन उपकरणों का पता आसानी से चल जायेगा जिनका बेहतर विकल्प उपलब्ध है और जिनको बदलने की जरूरत है। यही नही बिजली
कंपनियाँ भी चाहती हैं कि उनके पास बिजली के उपयोग के लिये Variable Rate चार्ज करने का आप्शन हो। यानि कि डिमांड के हिसाब से रेट कम बाकी होंगे, ऐसे में गुगल का ये सोफ्टवेयर बता सकता है कि किस उपकरण को किस समय चलाने में कम खर्च आता है क्योंकि ये सब रियल टाईम होगा इसलिये तुरंत ये सब पता चल सकता है। जैसे डिशवाशर रात को चलाने में कम खर्चा आयेगा जब बिजली की डिमांड कम होने लगती है और इसलिये रेट भी कम होंगे।
गुगल का पावरमीटर (PowerMeter) स्मार्ट ग्रिड सोफ्टवेयर है जो उपभोक्ताओं को उनके घर में होने वाली बिजली की खपत की डिटेल जानकारी देगा। पावरमीटर एक मुफ्त में उपलब्ध होने वाल ओपन सोर्स सोप्टवेयर होगा, इस दिशा में और भी कई कंपनियाँ काम कर रही हैं।
फिलहाल तो गुगल अपने इस पावरमीटर की टेस्टिंग अपने कर्मचारियों के बीच कर रहा है, सिर्फ गुगल ही नही बल्कि आइबीएम भी इस दिशा में कार्यरत है।
IBM (IBM), which has become the leading player integrating smart grid technology for utilities and managing the data produced by a digital power grid।
फिलहाल तो ये प्रोटोटाईप प्रोजेक्ट है और बहुत जल्द हकीकत भी बन जायेगा
वैसे तो पावर कंजम्पसन डिवाइस मार्केट में उपलब्ध हैं जिससे आप यही सब पता लगा सकते हो लेकिन उसे डिवाइस टू डिवाइस लगा के देखना होता है। जबकि गुगल पावरमीटर घर के सभी उपकरण के कंजम्पसन की डिजिटल इनोर्फेशन को हमारे डेस्कटॉप पर उपलब्ध करायेगा स्मार्ट ग्रिड की मदद से।
बैल बनायेंगे बिजली
गुजरात के वडोदरा जिले के छोटाउदयपुर क्षेत्र के 24 जनजातीय गांवों में एक अनोखा प्रयोग चल रहा है, जिसके अंतर्गत बैलों की शक्ति को बिजली में बदला जा रहा है।
बिजली निर्माण की यह नई तकनीक श्री कांतिभाई श्रोफ के दिमाग की उपज है और इसे श्रोफ प्रतिष्ठान का वित्तीय समर्थन प्राप्त है। श्री कांतिभाई एक सफल उद्योगपति एवं वैज्ञानिक हैं।
इस खोज से एक नया नवीकरणीय उर्जा स्रोत प्रकट हुआ है। इस विधि में बैल एक अक्ष के चारों ओर एक दंड को घुमाते हैं। यह दंड एक गियर-बक्स के जरिए जनित्र के साथ जुड़ा होता है। इस विधि से बनी बिजली की प्रति इकाई लागत लगभग चार रुपया है जबकि धूप-पैनलों से बनी बिजली की प्रित इकाई लागत हजार रुपया होता है और पवन चक्कियों से बनी बिजली का चालीस रुपया होता है। अभी गियर बक्से का खर्चा लगभग 40,000 रुपया आता है, पर इसे घटाकर लगभग 1500 रुपया तक लाने की काफी गुंजाइश है, जो इस विधि के व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने पर संभव होगा।
बारी-बारी से काम करते हुए यदि चार बैल प्रतिदिन 50 इकाई बिजली पैदा करें, तो साल भर में 15,000 इकाई बिजली उत्पन्न हो सकती है। इस दर से देश के सभी बैल मिलकर 20,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकते हैं, और इससे देश में बिजली की किल्लत बीते दिनों की बात हो जाएगी।
बैलों से बिजली निर्माण की पहली परियोजना गुजरात के कलाली गांव में चल रही है। बैलों से निर्मित बिजली से यहां चारा काटने की एक मशीन, धान कूटने की एक मशीन और भूजल को ऊपर खींचने का एक पंप चल रहा है।
कृषि में साधारणतः बैलों की जरूरत साल भर में केवल 90 दिनों के लिए ही होती है। बाकी दिनों उन्हें यों ही खिलाना पड़ता है। यदि इन दिनों उन्हें बिजली उत्पादन में लगाया जाए तो उनकी खाली शक्ति से बिजली बनाकर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।
बैलों से बिजली निर्माण में मुख्य समस्या यह आती है कि इस बिजली को संचित करने का कोई कारगर उपाय नहीं है। यदि अनुसंधान को इस ओर केंद्रित करके इस कमी को दूर किया जा सके, तो स्वायत्त गांवों का गांधी जी का सपना साकार हो सकता है, और आयातित तेल पर देश की निर्भरता कुछ कम हो सकती है। पर्यावरण पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
बिजली निर्माण की यह नई तकनीक श्री कांतिभाई श्रोफ के दिमाग की उपज है और इसे श्रोफ प्रतिष्ठान का वित्तीय समर्थन प्राप्त है। श्री कांतिभाई एक सफल उद्योगपति एवं वैज्ञानिक हैं।
इस खोज से एक नया नवीकरणीय उर्जा स्रोत प्रकट हुआ है। इस विधि में बैल एक अक्ष के चारों ओर एक दंड को घुमाते हैं। यह दंड एक गियर-बक्स के जरिए जनित्र के साथ जुड़ा होता है। इस विधि से बनी बिजली की प्रति इकाई लागत लगभग चार रुपया है जबकि धूप-पैनलों से बनी बिजली की प्रित इकाई लागत हजार रुपया होता है और पवन चक्कियों से बनी बिजली का चालीस रुपया होता है। अभी गियर बक्से का खर्चा लगभग 40,000 रुपया आता है, पर इसे घटाकर लगभग 1500 रुपया तक लाने की काफी गुंजाइश है, जो इस विधि के व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने पर संभव होगा।
बारी-बारी से काम करते हुए यदि चार बैल प्रतिदिन 50 इकाई बिजली पैदा करें, तो साल भर में 15,000 इकाई बिजली उत्पन्न हो सकती है। इस दर से देश के सभी बैल मिलकर 20,000 मेगावाट बिजली पैदा कर सकते हैं, और इससे देश में बिजली की किल्लत बीते दिनों की बात हो जाएगी।
बैलों से बिजली निर्माण की पहली परियोजना गुजरात के कलाली गांव में चल रही है। बैलों से निर्मित बिजली से यहां चारा काटने की एक मशीन, धान कूटने की एक मशीन और भूजल को ऊपर खींचने का एक पंप चल रहा है।
कृषि में साधारणतः बैलों की जरूरत साल भर में केवल 90 दिनों के लिए ही होती है। बाकी दिनों उन्हें यों ही खिलाना पड़ता है। यदि इन दिनों उन्हें बिजली उत्पादन में लगाया जाए तो उनकी खाली शक्ति से बिजली बनाकर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है।
बैलों से बिजली निर्माण में मुख्य समस्या यह आती है कि इस बिजली को संचित करने का कोई कारगर उपाय नहीं है। यदि अनुसंधान को इस ओर केंद्रित करके इस कमी को दूर किया जा सके, तो स्वायत्त गांवों का गांधी जी का सपना साकार हो सकता है, और आयातित तेल पर देश की निर्भरता कुछ कम हो सकती है। पर्यावरण पर भी इसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
25 फ़रवरी, 2010
शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।...Pankaj Agrawal IAS
शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है।...Pankaj Agrawal IAS , CMD , M P P K V V Comp.
हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है....... ‘थ्री इडियट्स‘ फिल्म ने इस विचार के विपरीत आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है.... दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है। हमारे माननीय सी.एम.डी. श्री पंकज अग्रवाल, आई.ए.एस हम सबके लिये प्रेरणा स्त्रोत है।
विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च षिक्षा हेतु विदेश गये थे। ओपन युनिवर्सिटी के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना, आप सब भी सीख सकते है। माननीय सी.एम.डी. महोदय की बिदाई के समय मैंने लिखा था ‘‘हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है!‘‘ ... आज वे पुनः हमारे बीच है। स्वागत है सर! नई ऊर्जा के साथ, ऊर्जा जगत के नेतृत्व का .... स्वागत।
हमने उनसे उनके विगत वर्ष के शैक्षिक पाठ्यक्रम के अनुभवो पर बातचीत की, प्रस्तुत है, कुछ अंश-
सबसे पहले हमने जानना चाहा कि-
मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा लेने की प्रेरणा किस तरह हुई ?
धीर, गंभीर, सहज, सरल स्वर में उन्होंने बताया - इंजीनियरिंग की षिक्षा के साथ मैं प्रशासनिक सेवा में हूं। प्रशासनिक मैनेजमेंट की नवीनतम तकनीको के प्रति मेरी गहन रूचि रही है। इंटरनेट, विभिन्न सेमीनार इत्यादि के माध्यम से मैं लगातार ज्ञान के विस्तार में रूचि रखता हूं। मेरा मानना है कि शिक्षा से हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विस्तार होता है। अतः मैंने यह पाठ्यक्रम करने का मन बनाया।
यह कोर्स किस संस्थान से किया जावे इसका निर्णय आपने किस तरह लिया ?
ली कूएन यू स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, सिंगापुर विश्व का एक ऐसा संस्थान है, जो कि एशिया के विभिन्न देशो की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों पर फोकस करते हुये यह पाठ्यक्रम चलाता है, जिसमें शैक्षिक गतिविधि दो हिस्सों में बंटी हुई है, पहले हिस्से में जनवरी से अगस्त तक सिंगापुर में ही क्लासरूम आधारित पाठ्यक्रम होता है। दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल, यू.एस.ए. में अगस्त से दिसम्बर तक शिक्षार्थी द्वारा चुने गये विषयों पर (इलेक्टिव) शिक्षण होता है। यह पाठ्यक्रम वैश्विक स्तर का है, एवं अपनी तरह का विशिष्ट है, जिसमें विश्व स्तर पर एक्सपोजर के अवसर मिलते है।
आपने आई.आई.टी. से बी.टेक एवं आई.आई.एम. अहमदाबाद से शार्ट टर्म कोर्स भी किया था तो विदेशो की शिक्षण व्यवस्था और भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों की शिक्षण प्रणाली में आपको कोई आधारभूत अंतर लगा ? वहां आप वैश्विक रूप से विभिन्न देशों के शिक्षार्थियों के बीच रहे आपके विशेष अनुभव-
शिक्षण व्यवस्था में हमारे उच्च षिक्षा संस्थान किसी भी विष्व स्तरीय संस्थान से कम नहीं है, आई.आई.एम. एवं वहा की षिक्षण पद्धति समान है, सिंगापुर में 8 विभिन्न देषों के 22 षिक्षार्थियों का हमारा ग्रुप था। जब हम दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल यू.एस.ए. में थे, तब यू.एस. एवं अन्य देषों के 900 छात्रों के बीच, विभिन्न इलेक्टिव विषयों के लिये अलग-अलग गु्रप थे। अतः विष्व स्तर के श्रेष्ठ लोगों से मिलने, उन्हें समझने के अवसर प्राप्त हुये। हावर्ड केनली स्कूल में एवं जो विषेष बात मैने नोट की, वह यह थी कि वहाॅं छात्रों के विचारो का सम्मान करने की बहुत अच्छी परम्परा है। वहाॅं विषय विषेषज्ञ अपने विचार षिक्षार्थियों पर थोपते नहीं हैं, वरन् ‘‘दे आर ओपन टु अवर आइडियाज्‘‘, कानसेप्ट बेस्ट षिक्षा है। न केवल उच्च षिक्षा में, वरन् वहाॅं स्कूलों में भी सारी षिक्षा प्रणाली प्रेक्टिकल बेस्ड है, मेरी बेटी ने वहाॅं ग्रेड फोर (क्लास चार) की पढ़ाई की, जब उसे इलेक्ट्रिसिटी का पाठ पढ़ाया गया तो उसे प्रयोगषाला में बल्ब बैटरी और तार के साथ प्रयोग करने के लिये छोड दिया गया, स्वंय ही बल्ब को जलाकर उसने इलेक्ट्रिसिटी के विषय में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया।
पारिवारिक जिम्मेदारियाॅं कई लोगों को चाहते हुये भी नौकरी में आने के बाद उच्च षिक्षा लेने में बाधा बन जाती है, आपके इस पाठ्यक्रम में श्रीमती अग्रवाल व आपकी बिटिया के सहयोग पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
मैं सपरिवार ही पूरे वर्ष अध्ययन कार्य पर रहा । श्रविती अग्रवाल को अवष्य ही अपने कार्य से एक वर्ष का अवकाष लेना पडा, बिटिया छोटी है, वह अभी क्लास चार में है। अतः उसकी पढ़ाई वहाॅं दोनों ही स्थानो पर सुगमता से जारी रह सकी। यह अध्ययन का एक वर्ष हम सबके लिये अनेक सुखद, चिरस्मरणीय एवं नई-नई यादों का समय रहा है। इस समय में हमने दुनिया का श्रेष्ठ देखा, समझा, जाना और अनुभव किया । बिना परिवार के सहयोग के यह अध्ययन संभव नहीं था, पर हाॅं किसी को कोई कम्प्रोमाइज नहीं करना पड़ा।
आम कर्मचारियों के नौकरी के साथ उच्च षिक्षा को नौकरी में आर्थिक लाभ से जोड़कर देखने के दृष्टिकोण पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
हमें जीवन में षिक्षा जैसे व्यक्तित्व विकास के संसाधन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से जोडकर नहीं देखना चाहिये। ज्ञान का विस्तार इससे कहीं अधिक महत्तवपूर्ण है। यदि मैनेजमेंट की भाषा में कहे तो इससे हमारी ‘‘मार्केट वैल्यू‘‘ स्वतः सदा के लिये ही बढ़ जाती है, जिसके सामने एक-दो इंक्रीमेंट के आर्थिक लाभ नगण्य है।
आपके द्वारा किये गये कोर्स से आपको क्या लाभ लग रहे है ?
निष्चित ही इस समूचे अनुभव से मेरे आउटलुक में बदलाव आया है, सोचने, समझने तथा क्रियान्वयन के दृष्टिकोण में भारतीय परिपेक्ष्य में पब्लिक मैनेजमेंट के इस पाठ्यक्रम के सकारात्मक लाभ है, जो दीर्धकालिक है।
इस परिपेक्ष्य में हमारे लिये आप क्या संदेष देना चाहेंगे ?
‘‘आत्म निरीक्षण आवष्यक है। स्वंय अपनी समीक्षा करें। अपने दीर्धकालिक लक्ष्य बनाये, और सकारात्मक विचारधारा के लाभ उनकी पूर्ति हेतु संपूर्ण प्रयास करें। इससे आप स्वंय अपने लिये एवं कंपनी के लिये भी अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर पायेंगे। इन सर्विस ट्रेनिंग, रिफ्रेषर कोर्स, सेमीनारों में भागीदारी आपको अपडेट रखती है, इसी दृष्टिकोण से मैंने कंपनी का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करवाया है, हमारे अधिकारियों, कर्मचारियों को भी अन्य संस्थानों में समय-समय पर प्रषिक्षण हेतु भेजा जाता है। आवष्यक है कि इस समूचे व्यय का कंपनी के हित में रचनात्मक उपयोग किया जावे, जो आपको ही करना है।‘‘
साक्षात्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण यंत्री (सिविल), जबलपुर
हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है....... ‘थ्री इडियट्स‘ फिल्म ने इस विचार के विपरीत आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है.... दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है। हमारे माननीय सी.एम.डी. श्री पंकज अग्रवाल, आई.ए.एस हम सबके लिये प्रेरणा स्त्रोत है।
विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च षिक्षा हेतु विदेश गये थे। ओपन युनिवर्सिटी के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना, आप सब भी सीख सकते है। माननीय सी.एम.डी. महोदय की बिदाई के समय मैंने लिखा था ‘‘हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है!‘‘ ... आज वे पुनः हमारे बीच है। स्वागत है सर! नई ऊर्जा के साथ, ऊर्जा जगत के नेतृत्व का .... स्वागत।
हमने उनसे उनके विगत वर्ष के शैक्षिक पाठ्यक्रम के अनुभवो पर बातचीत की, प्रस्तुत है, कुछ अंश-
सबसे पहले हमने जानना चाहा कि-
मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा लेने की प्रेरणा किस तरह हुई ?
धीर, गंभीर, सहज, सरल स्वर में उन्होंने बताया - इंजीनियरिंग की षिक्षा के साथ मैं प्रशासनिक सेवा में हूं। प्रशासनिक मैनेजमेंट की नवीनतम तकनीको के प्रति मेरी गहन रूचि रही है। इंटरनेट, विभिन्न सेमीनार इत्यादि के माध्यम से मैं लगातार ज्ञान के विस्तार में रूचि रखता हूं। मेरा मानना है कि शिक्षा से हमारे व्यक्तित्व का सकारात्मक विस्तार होता है। अतः मैंने यह पाठ्यक्रम करने का मन बनाया।
यह कोर्स किस संस्थान से किया जावे इसका निर्णय आपने किस तरह लिया ?
ली कूएन यू स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, सिंगापुर विश्व का एक ऐसा संस्थान है, जो कि एशिया के विभिन्न देशो की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों पर फोकस करते हुये यह पाठ्यक्रम चलाता है, जिसमें शैक्षिक गतिविधि दो हिस्सों में बंटी हुई है, पहले हिस्से में जनवरी से अगस्त तक सिंगापुर में ही क्लासरूम आधारित पाठ्यक्रम होता है। दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल, यू.एस.ए. में अगस्त से दिसम्बर तक शिक्षार्थी द्वारा चुने गये विषयों पर (इलेक्टिव) शिक्षण होता है। यह पाठ्यक्रम वैश्विक स्तर का है, एवं अपनी तरह का विशिष्ट है, जिसमें विश्व स्तर पर एक्सपोजर के अवसर मिलते है।
आपने आई.आई.टी. से बी.टेक एवं आई.आई.एम. अहमदाबाद से शार्ट टर्म कोर्स भी किया था तो विदेशो की शिक्षण व्यवस्था और भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों की शिक्षण प्रणाली में आपको कोई आधारभूत अंतर लगा ? वहां आप वैश्विक रूप से विभिन्न देशों के शिक्षार्थियों के बीच रहे आपके विशेष अनुभव-
शिक्षण व्यवस्था में हमारे उच्च षिक्षा संस्थान किसी भी विष्व स्तरीय संस्थान से कम नहीं है, आई.आई.एम. एवं वहा की षिक्षण पद्धति समान है, सिंगापुर में 8 विभिन्न देषों के 22 षिक्षार्थियों का हमारा ग्रुप था। जब हम दूसरे चरण में हावर्ड केनली स्कूल यू.एस.ए. में थे, तब यू.एस. एवं अन्य देषों के 900 छात्रों के बीच, विभिन्न इलेक्टिव विषयों के लिये अलग-अलग गु्रप थे। अतः विष्व स्तर के श्रेष्ठ लोगों से मिलने, उन्हें समझने के अवसर प्राप्त हुये। हावर्ड केनली स्कूल में एवं जो विषेष बात मैने नोट की, वह यह थी कि वहाॅं छात्रों के विचारो का सम्मान करने की बहुत अच्छी परम्परा है। वहाॅं विषय विषेषज्ञ अपने विचार षिक्षार्थियों पर थोपते नहीं हैं, वरन् ‘‘दे आर ओपन टु अवर आइडियाज्‘‘, कानसेप्ट बेस्ट षिक्षा है। न केवल उच्च षिक्षा में, वरन् वहाॅं स्कूलों में भी सारी षिक्षा प्रणाली प्रेक्टिकल बेस्ड है, मेरी बेटी ने वहाॅं ग्रेड फोर (क्लास चार) की पढ़ाई की, जब उसे इलेक्ट्रिसिटी का पाठ पढ़ाया गया तो उसे प्रयोगषाला में बल्ब बैटरी और तार के साथ प्रयोग करने के लिये छोड दिया गया, स्वंय ही बल्ब को जलाकर उसने इलेक्ट्रिसिटी के विषय में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त किया।
पारिवारिक जिम्मेदारियाॅं कई लोगों को चाहते हुये भी नौकरी में आने के बाद उच्च षिक्षा लेने में बाधा बन जाती है, आपके इस पाठ्यक्रम में श्रीमती अग्रवाल व आपकी बिटिया के सहयोग पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
मैं सपरिवार ही पूरे वर्ष अध्ययन कार्य पर रहा । श्रविती अग्रवाल को अवष्य ही अपने कार्य से एक वर्ष का अवकाष लेना पडा, बिटिया छोटी है, वह अभी क्लास चार में है। अतः उसकी पढ़ाई वहाॅं दोनों ही स्थानो पर सुगमता से जारी रह सकी। यह अध्ययन का एक वर्ष हम सबके लिये अनेक सुखद, चिरस्मरणीय एवं नई-नई यादों का समय रहा है। इस समय में हमने दुनिया का श्रेष्ठ देखा, समझा, जाना और अनुभव किया । बिना परिवार के सहयोग के यह अध्ययन संभव नहीं था, पर हाॅं किसी को कोई कम्प्रोमाइज नहीं करना पड़ा।
आम कर्मचारियों के नौकरी के साथ उच्च षिक्षा को नौकरी में आर्थिक लाभ से जोड़कर देखने के दृष्टिकोण पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
हमें जीवन में षिक्षा जैसे व्यक्तित्व विकास के संसाधन को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से जोडकर नहीं देखना चाहिये। ज्ञान का विस्तार इससे कहीं अधिक महत्तवपूर्ण है। यदि मैनेजमेंट की भाषा में कहे तो इससे हमारी ‘‘मार्केट वैल्यू‘‘ स्वतः सदा के लिये ही बढ़ जाती है, जिसके सामने एक-दो इंक्रीमेंट के आर्थिक लाभ नगण्य है।
आपके द्वारा किये गये कोर्स से आपको क्या लाभ लग रहे है ?
निष्चित ही इस समूचे अनुभव से मेरे आउटलुक में बदलाव आया है, सोचने, समझने तथा क्रियान्वयन के दृष्टिकोण में भारतीय परिपेक्ष्य में पब्लिक मैनेजमेंट के इस पाठ्यक्रम के सकारात्मक लाभ है, जो दीर्धकालिक है।
इस परिपेक्ष्य में हमारे लिये आप क्या संदेष देना चाहेंगे ?
‘‘आत्म निरीक्षण आवष्यक है। स्वंय अपनी समीक्षा करें। अपने दीर्धकालिक लक्ष्य बनाये, और सकारात्मक विचारधारा के लाभ उनकी पूर्ति हेतु संपूर्ण प्रयास करें। इससे आप स्वंय अपने लिये एवं कंपनी के लिये भी अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर पायेंगे। इन सर्विस ट्रेनिंग, रिफ्रेषर कोर्स, सेमीनारों में भागीदारी आपको अपडेट रखती है, इसी दृष्टिकोण से मैंने कंपनी का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करवाया है, हमारे अधिकारियों, कर्मचारियों को भी अन्य संस्थानों में समय-समय पर प्रषिक्षण हेतु भेजा जाता है। आवष्यक है कि इस समूचे व्यय का कंपनी के हित में रचनात्मक उपयोग किया जावे, जो आपको ही करना है।‘‘
साक्षात्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण यंत्री (सिविल), जबलपुर
सकारात्मक ऊर्जा से अभिरंजित हमारे नये मुख्य अभियंता जबलपुर क्षेत्राश्री अशोक सक्सेना
सकारात्मक ऊर्जा से अभिरंजित हमारे नये मुख्य अभियंता जबलपुर क्षेत्र
श्री अशोक सक्सेना
दिनांक 31.01.2010 को अधिवार्षिकी आयु पूर्ण कर, कुशल नेतृत्व की अपनी विषिष्ट छवि स्थापित कर श्री एल.एन. उपाध्याय जबलपुर क्षेत्र के कार्यपालक निदेषक के पद से सेवानिवृत हुये, उनके स्थान पर भोपाल से पदोन्नति पर आये हुये मुख्य अभियंता श्री अशोक सक्सेना ने जबलपुर क्षेत्र का नेवृत्व संभाला है। सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर श्री अशोक सक्सेना ने बताया है कि सबको साथ लेकर, कंपनी को उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर प्रशस्त करना उनकी प्राथमिकता है। उन्होने बताया है कि कंपनी एवं विद्युत क्षेत्र का मुख्यालय जबलपुर में होने के कारण, जबलपुर क्षेत्र के महत्वपूर्ण पदभार का दायित्व बोध उन्हें है। उन्होने कहा है कि कोई भी अधिकारी, कर्मचारी अपनी कार्यालयीन दायित्व या व्यक्तिगत समस्या को लेकर उनसे बेझिझक किसी भी समय मिल सकता है, नियमों की सीमाओं में कपंनी हित में उनके स्तर की हर समस्या के निदान का वे हर संभव प्रयत्न करेंगे। उच्च षिक्षित श्री सक्सेना ने आई.आई.टी. दिल्ली से एम टेक किया है। उन्होनें वर्ष 1978 में सहायक अभियंता के रूप में अपनी सेवायें विद्युत मंडल में प्रारंभ की थीं। वे मंडला, दतिया, षिवपुरी, गुना, मुरैना, ग्वालियर, भोपाल इत्यादि स्थानो पर विभिन्न पदों पर अपनी उत्कृष्ट सेवायें दे चुके है। जबलपुर क्षेत्र के अधिकारियों, कर्मचारियों ने श्री सक्सेना का स्वागत किया है, एवं उनके नेतृत्व में कीर्तिमान स्थापित करने के संकल्प दोहराये है।
श्री अशोक सक्सेना
दिनांक 31.01.2010 को अधिवार्षिकी आयु पूर्ण कर, कुशल नेतृत्व की अपनी विषिष्ट छवि स्थापित कर श्री एल.एन. उपाध्याय जबलपुर क्षेत्र के कार्यपालक निदेषक के पद से सेवानिवृत हुये, उनके स्थान पर भोपाल से पदोन्नति पर आये हुये मुख्य अभियंता श्री अशोक सक्सेना ने जबलपुर क्षेत्र का नेवृत्व संभाला है। सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर श्री अशोक सक्सेना ने बताया है कि सबको साथ लेकर, कंपनी को उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर प्रशस्त करना उनकी प्राथमिकता है। उन्होने बताया है कि कंपनी एवं विद्युत क्षेत्र का मुख्यालय जबलपुर में होने के कारण, जबलपुर क्षेत्र के महत्वपूर्ण पदभार का दायित्व बोध उन्हें है। उन्होने कहा है कि कोई भी अधिकारी, कर्मचारी अपनी कार्यालयीन दायित्व या व्यक्तिगत समस्या को लेकर उनसे बेझिझक किसी भी समय मिल सकता है, नियमों की सीमाओं में कपंनी हित में उनके स्तर की हर समस्या के निदान का वे हर संभव प्रयत्न करेंगे। उच्च षिक्षित श्री सक्सेना ने आई.आई.टी. दिल्ली से एम टेक किया है। उन्होनें वर्ष 1978 में सहायक अभियंता के रूप में अपनी सेवायें विद्युत मंडल में प्रारंभ की थीं। वे मंडला, दतिया, षिवपुरी, गुना, मुरैना, ग्वालियर, भोपाल इत्यादि स्थानो पर विभिन्न पदों पर अपनी उत्कृष्ट सेवायें दे चुके है। जबलपुर क्षेत्र के अधिकारियों, कर्मचारियों ने श्री सक्सेना का स्वागत किया है, एवं उनके नेतृत्व में कीर्तिमान स्थापित करने के संकल्प दोहराये है।
17 जनवरी, 2010
Er. Shri Pankaj Agrawal , I A S स्वागत है ... सर !
हमारे देश में शिक्षा सामान्यतः केवल अच्छी नौकरी पाने का एक माध्यम ही मानी जाती है ,.... थ्री इडियेट्स फिल्म ने इस विचार को तोड़कर आदर्श स्थापित करने का एक छोटा सा प्रयत्न किया है ...दरअसल शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली एक अंतहीन प्रक्रिया है . हमारे माननीय सी एम डी Er. Shri Pankaj Agrawal , I A S हम सब के लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं . विगत वर्ष वे मैनेजमेंट में उच्च शिक्षा हेतु विदेश गये थे ...तब उनकी बिदाई के अवसर पर मैने जो कविता प्रस्तुत की थी उसे पुनः उद्ृत करना प्रासंगिक होगा ... ओपन ठुनिवर्सिटी , के कानसेप्ट के अनुरूप नौकरी करते हुये अपने ज्ञान का विस्तार करते रहना हम सब भी सीख सकते हैं ... मैने लोखा था हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !.... और आज वे पुनः लौट कर आ गये हैं नई उर्जा , नये प्रेरणा के रूप में स्वागत है ... सर !
माननीय पंकज अग्रवाल IAS , सी एम डी महोदय की उच्च शिक्षा हेतु बिदाई के अवसर पर प्रस्तुत शब्द सुमन
विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
09425484452
होते होते बन गये हिस्सा हमारा
और फिर कहने लगे कि लौट जाना है !
जब समझने लग गये थे हम इशारे
कर दिया यह क्यों इशारा लौट जाना है !!
लोग खुश थे छाते से छोटे आसमां में
संभव बनाया आसमाँ से लक्ष्य पाना
मुश्किलों का हल निकाला सौभाग्य था तेरा नेतृत्व पाना
हुई खता क्या कहने लगे जो लौट जाना है !
जा रहे हो जो यहां से जा न पाओगे
याद आओगे सदा हम भी याद आयेंगे
रोशनी घर की चमचमाती रोशनी हो तुम बस जगमगाओगे
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !
शुभकामना है हमारी और औपचारिक यह बिदाई
हो सदा आनंदमय नव वर्ष का यह पथ तुम्हारा
भूल सारी भूल कर के आजन्म है नाता निभाना
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !
जीवन पर्यन्त आपका
विवेक रंजन श्रीवास्तव
माननीय पंकज अग्रवाल IAS , सी एम डी महोदय की उच्च शिक्षा हेतु बिदाई के अवसर पर प्रस्तुत शब्द सुमन
विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivek1959@yahoo.co.in
09425484452
होते होते बन गये हिस्सा हमारा
और फिर कहने लगे कि लौट जाना है !
जब समझने लग गये थे हम इशारे
कर दिया यह क्यों इशारा लौट जाना है !!
लोग खुश थे छाते से छोटे आसमां में
संभव बनाया आसमाँ से लक्ष्य पाना
मुश्किलों का हल निकाला सौभाग्य था तेरा नेतृत्व पाना
हुई खता क्या कहने लगे जो लौट जाना है !
जा रहे हो जो यहां से जा न पाओगे
याद आओगे सदा हम भी याद आयेंगे
रोशनी घर की चमचमाती रोशनी हो तुम बस जगमगाओगे
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !
शुभकामना है हमारी और औपचारिक यह बिदाई
हो सदा आनंदमय नव वर्ष का यह पथ तुम्हारा
भूल सारी भूल कर के आजन्म है नाता निभाना
हो सके तो लौटकर कहना कि फिर से लौट आना है !
जीवन पर्यन्त आपका
विवेक रंजन श्रीवास्तव
03 जनवरी, 2010
Want to Save power? Don't wear ties
By siliconindia news bureau
Saturday,02 January 2010,
Mumbai: A group of people in Mumbai came launched a campaign named as 'No-Tie' to save energy and protect the environment, reports BBC.
Campaigners believe that not wearing a tie will make people feel cooler with less need to use air conditioners so extensively. Currently, in Mumbai air-conditioners consume about 1,000 MW of the 2,700 MW power used daily by the city.
Dhiraj Shrinivasan, Co-founder of the "No-Tie Campaign" said, "I have read that wearing a tie makes one feel warm. Naturally then people ask for office temperatures to be reduced, causing higher carbon emissions because of more air conditioning. When I consulted an energy expert he explained to me that nearly 25 percent more is consumed when temperatures are maintained between 18 to 20 degrees Celsius instead of an ideal 24 to 26 degrees Celsius."
Shrinivasan believes that the the culture of wearing ties is British. "Their peak summer temperature would be our lowest winter temperature. We need to see if we really need to wear a tie at our workplace. We should wear clothes that are suitable to Indian climactic conditions like shirts or kurtas."
The campaigners are planning to to organise a "No Tie Day" on May 3, 2010. "It will be the peak of summer and it will have an impact then. At the local level we will discuss how to save power, at the national level we will talk about how we need to dress according to weather conditions and at the international level we will discuss the impact of global warming," said Shrinivasan.
Earlier in September, Bangladesh ordered government employees to not wear suits and ties to ease the country's energy shortage.
Saturday,02 January 2010,
Mumbai: A group of people in Mumbai came launched a campaign named as 'No-Tie' to save energy and protect the environment, reports BBC.
Campaigners believe that not wearing a tie will make people feel cooler with less need to use air conditioners so extensively. Currently, in Mumbai air-conditioners consume about 1,000 MW of the 2,700 MW power used daily by the city.
Dhiraj Shrinivasan, Co-founder of the "No-Tie Campaign" said, "I have read that wearing a tie makes one feel warm. Naturally then people ask for office temperatures to be reduced, causing higher carbon emissions because of more air conditioning. When I consulted an energy expert he explained to me that nearly 25 percent more is consumed when temperatures are maintained between 18 to 20 degrees Celsius instead of an ideal 24 to 26 degrees Celsius."
Shrinivasan believes that the the culture of wearing ties is British. "Their peak summer temperature would be our lowest winter temperature. We need to see if we really need to wear a tie at our workplace. We should wear clothes that are suitable to Indian climactic conditions like shirts or kurtas."
The campaigners are planning to to organise a "No Tie Day" on May 3, 2010. "It will be the peak of summer and it will have an impact then. At the local level we will discuss how to save power, at the national level we will talk about how we need to dress according to weather conditions and at the international level we will discuss the impact of global warming," said Shrinivasan.
Earlier in September, Bangladesh ordered government employees to not wear suits and ties to ease the country's energy shortage.
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