28 जुलाई, 2011

मण्डला जिले में प्रस्तावित चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर आशंकाओं का वैज्ञानिक समाधान

मण्डला जिले में प्रस्तावित  चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं का तार्किक  समाधान .
विवेक रंजन श्रीवास्तव

 न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के वैज्ञानिको से चर्चा
 ये पहला मौका था जब चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं- कुशंकाओं का तार्किक और वैज्ञानिक समाधान न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और जबलपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में किया गया .
विश्व परिदृश्य
तारापुर १९६९ में प्रथम परमाणु बिजली घर बना  था, जो अब तक सुरक्षित चल रहा है , अब और भी बेहतर निर्माण तकनीको के विकास के कारण ज्यादा सुरक्षित बिजली घर बनेगा . वर्तमान में  देश में कुल बिजली उत्पादन का २.७ प्रतिशत शेयर न्यूक्लियर पावर का है।पूरे विश्व में ४४० परमाणु केन्द्र जहां विश्व के कुल विद्युत उत्पादन का लगभग १७ प्रतिशत शेयर परमाणु बिजली का।इस समय विश्व में ६५ परमाणु बिजली घर निर्माणाधीन हैं।फ्रांस में कुल बिजली उत्पादन का ७५ फीसदी हिस्सा न्यूक्लियर पावर का है और जापान में ३० प्रतिशत। ७०० मेगावॉट क्षमता वाली १४ यूनिट पूरे देश में लगाने की अनुमति मिली है।थोरियम के साथ द्वितीय चरण में  बिजली उत्पादन होगा .पहले चरण में यूरेनियम से ही उत्पादन प्रारंभ किया जावेगा . जो आयातित होगा .
प्रस्तावित चुटका बिजली घर से डरें नहीं बल्कि विकास की दिशा में मील का पत्थर बनने वाले इस प्लांट का स्वागत करें .
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि चुटका का परमाणु बिजली घर चक्रव्यूह के समान सुरक्षित होगा। हमारे दूसरे परमाणु बिजली घरों में भी ऐसी ही सुरक्षा है। ये भूकंप से सुरक्षित होगा। नर्मदा का १२८ क्यूसेक पानी ही लिया जाएगा जो बांध का मात्र तीन प्रतिशत होगा। नर्मदा में किसी तरह का प्रदूषण नहीं होगा। चुटका सहित आसपास के विस्थापितों को उचित मुआवजा मिलेगा। उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे। स्कूली सहित तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बनाए जाएंगे। आवासीय परिसरों का भी निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया ने हमें परमाणु मामलों में १९७४ में अलग- थलग कर दिया था। इसके बाद भी हमने नई तकनीक बनाई।
 विदेशों पर निर्भरता
 बताया गया कि अभी हमें विदेश से यूरेनियम चाहिए। परमाणु बिजली घरों से निकले अपशिष्ट के जरिए हम थोरियम को यूरेनियम में बदलने में सक्षम होंगे फिर हमें कोई जरूरत नहीं होगी। घटते कोयला भंडारों के कारण नाभिकीय बिजली जरूरी है। सोलर सहित अन्य रिन्यूवल एनर्जी को सप्लीमेंट के रूप में ही लिया जा सकता है। उन पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। केन्द्र और परमाणु ऊर्जा आयोग की गाइड लाइन पर चुटका का चयन किया गया है। इनके मानकों पर ही निर्माण होगा। इसे वैश्विक संगठन भी देखेगा।
सफलता की कहानियां
राजस्थान के कोटा में चल रही ८ परमाणु बिजली घर यूनिटो की सफलता की चर्चा करते हुये बताया गया कि जिन्हें तकनीक की कुशलता पर संशय हो वे वहां  निरीक्षण कर सकते हैं।  राजस्थान में ही बांसवा़ड़ा में नया प्लांट लगाने राज्य सरकार ने अनुरोध किया है।परमाणु बिजली घरो के निर्माण के समय  पांच स्तरों पर निरीक्षण किया जाता  है ,प्रत्येक माह मॉनीटरिंग मीटिंग होती है। परमाणु आयोग के अधिकारी विजिट करते हैं। हर स्तर पर सेम्पल रिकार्ड में रखे जाते हैं।न्यूक्लियर लायबिल्टी बिल में सभी को जवाबदार बनाया गया है। इस प्लांट से उत्पादित पचास फीसदी बिजली मध्यप्रदेश को दी जाएगी। राज्य सरकार चाहे तो १५ प्रतिशत अतिरिक्त बिजली भी ले सकती है।
भूकंप जनित की आशंकाओ का निदान
चुटका में भूकंप सेंसर लगेंगे जो ऐसी घटना के पहले प्लांट को बंद करने की चेतावनी देंगे।  चुटका परमाणु बिजली घर भूकंप के लिहाज से जोन तीन में है। ये सभी सुरक्षित जोन माने जाते हैं। केवल नरोरा संवेदनशील में है। नई तकनीक में कहीं भी डिजाइन किया जा सकता है। जापान में सभी प्लांट जोन चार, पांच व  छह में हैं। यूएसए में १०४ में से दस जोन पांच में हैं। जापान में भूकंप से रिएक्टर में दुर्घटना नहीं हुई। सुनामी के पानी ने पंप में पानी भर दिया जिससे फ्यूल को ठंडा नहीं किया जा सका।

रेडिएशन से डरें नहीं
वैज्ञानिकों ने बताया कि चुटका में संभावित रेडिएशन को लेकर डरें नहीं। वर्तमान में एयर ट्रेवल, कांक्रीट मकान, मोबाइल फोन, एक्सरे, सब्जियों में सभी में रेडिएशन मिलता है। एक्सरे में २५० माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन लेते हैं। तारापुर में १३ माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन मिलता है। एटॉमिक इनर्जी आयोग ने ३४०० माइक्रो सिवर्ट की अनुमति दी है। इसमें से २४०० नेचुरल मिलता है। अमेरिका की हवाई यात्रा में एक बार में जितना रेडिएशन लेते हैं वो २५ साल तक प्लांट के पास नहीं मिलने वाला।

सिर्फ हमारे यहां अपशिष्ट का प्रबंधन
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि केवल हमारे देश में ही न्यूक्लियर वेस्ट को यूज कर प्लूटोनियम में बदलते हैं। तमिलनाडु और बाम्बे में ही दो रिप्रोसेसिंग प्लांट हैं। वेस्ट नगण्य मात्रा में बचता है। अमेरिका, फ्रांस में ऐसा नहीं होता।

सस्ती बिजली मिलेगी
चुटका परमाणु बिजली घर से प्रदेश को सस्ती बिजली मिलेगी। वर्तमान में ताप बिजली दो से तीन रुपए में मिल रही है वहीं महाराष्ट्र में हम तारापुर प्लांट से ९४ पैसे में बिजली दे रहे हैं।
अतः उर्जा की जरूरतो और देश को दुनिया में महत्वपूर्ण बनाये रखने के लिये चुटका सहित अन्य स्थलो पर  परमाणू बिजलीघरो की स्थापना करनी ही चाहिये .

भारत के हरीश हांडे,को भी मैग्सेसे अवार्ड जिन्होंने अपनी कंपनी सेल्को के माध्यम से लाखों ग़रीबों तक सौर ऊर्जा की प्रौद्योगिकी पहुंचाई.

Dr. H Harish Hande, Managing Director,
SELCO-India, which he co-founded with Neville Williams in 1995. Dr. Hande earned his Doctorate in energy engineering (solar specialty) at the University of Massachusetts (Lowell). He has an undergraduate degree in Energy Engineering from the Indian Institute of Technology (IIT), Kharagpur. Dr. Hande serves on the boards of many organizations, both national and international.




Harish Hande,  was recognised for "his passionate and pragmatic efforts to put solar power technology in the hands of the poor, through a social enterprise that brings customized, affordable, and sustainable electricity to India's vast rural populace, encouraging the poor to become asset creators".

community-based renewable energy ..CITATION for Tri Mumpuni , Indonatia

community-based renewable energy  ..CITATION for Tri Mumpuni
Ramon Magsaysay Award Presentation Ceremonies
31 August 2011, Manila, Philippines

In electing Tri Mumpuni to receive the 2011 Ramon Magsaysay Award, the board of trustees recognizes her determined and collaborative efforts to promote micro hydropower technology, catalyze needed policy changes, and ensure full community participation, in bringing electricity and the fruits of development to the rural areas of Indonesia.


Mumpuni had to struggle with restrictive state regulations, complex financing requirements, and the draining demands of social mobilization work. To meet the twin challenges of a social enterprise.remaining viable as a business without compromising its social mission.she had to focus all her energies on working at the level of the poorest communities, as well as with the highest government authorities.From its base in Subang, West Java, IBEKA (Indonaition name of her orgnisation "People-Centered Business and Economic Institute")has built 60 micro hydropower plants, with capacities ranging from 5 kilowatts to 250 kilowatts, providing electricity to half a million people in rural Indonesia. Equally important, it has done this through a community-based development approach that goes beyond the technology to the socioeconomic empowerment of communities. Putting a premium on community participation and ownership, IBEKA organizes electric cooperatives, trains villagers in technical management and resource conservation, and provides support in fund-facilitation Mumpuni works at the national level in promoting the role of hydropower in development, and in designing and implementing new models of government-business-community joint ventures in micro hydropower facilities. Boldly enterprising, she has effectively lobbied for changes in state policy that now allow independent micro hydropower plants to sell electricity to the government.s national grid.Skill, creativity, and determination, however, have turned IBEKA into an outstanding Indonesian example of social entrepreneurship, and cast Mumpuni as a much-admired and influential leader in the field of community-based renewable energy.  and income-generating activities.







22 जुलाई, 2011

परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता

जापान में परमाणु रिएक्टर दुर्घटना के परिप्रेक्ष्य में , भारत में परमाणु शक्ति जनित बिजली.

विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी , म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर म प्र. ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२


        फुकुशिमा जापान की परमाणु दुर्घटना पूरी दुनियां के अस्तित्व के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है . अब तक इतनी भीषण परमाणु दुर्घटना पहले कभी नही घटी थी .
 तीन दशक पहले अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड में परमाणु दुर्घटना हुई थी। इस परमाणु दुर्घटना ने वहां के असैन्य परमाणु कार्यक्रम पर ग्रहण लगा दिया। इसका असर यह हुआ कि 1978 के बाद अमेरिका में कोई परमाणु रिएक्टर नहीं लगा। दो दशक पहले 1986 में रूस के चेर्नोबिल की परमाणु दुर्घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया। ऐसा अनुमान है कि इस दुर्घटना की वजह से तकरीबन नब्बे हजार लोग काल के गाल में समा गए। इस परमाणु केंद्र को स्थापित करने में जितनी लागत लगी थी उससे तीन गुना अधिक नुकसान हुआ। भारत के परमाणु बिजलीघरों में भी दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन संयोग से अभी तक ये बेहद घातक नहीं साबित हुईं . आज हम सोचने पर विवश हैं कि  रिएक्टर के तौर पर हम कहीं अपनी ही मौत का सामान तो नहीं बना रहे। फुकुशिमा के परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट के बाद पूरी दुनिया में आणविक ऊर्जा की जरूरत को लेकर बहस छिड़ गई है . जर्मनी ने तो वहां परमाणु बिजली का उत्पादन क्रमशः बंद करने का फैसला तक ले लिया है .चीन ने भी नए रिएक्टरों पर फिलहाल रोक लगा दी है .दरअसल परमाणु दुर्घटनाओ के भयावह प्रभाव तुरंत नही दिखते , बिजलीघर के आसपास रहने वाले और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों पर विकिरण का असर आने वाले दिनों में दिखेगा, विकृत पीढ़ी का जन्म बरसो तक एसी दुर्गटना की याद दिलाता है .  हवा में जो रेडियोधर्मिता फैली है, वह अपना असर कब, कहां और किस तरह दिखाएगी इसके बारे में साफ तौर पर कोई बता नहीं सकता .अभी के परमाणु ज्ञान के अनुसार हमारी स्थिति अभिमन्यु जैसी है , जो चक्रव्यू में घुस तो सकता है , पर उससे निकलने का रास्ता अब तक हमारे पास नही है .
         भारत में भी परमाणु मामले में विशेषज्ञ दो खेमे में बंटे हुए हैं , एक खेमा वह है जो इस बात की वकालत करते हुए नहीं थकता  कि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का अहम जरिया आणविक ऊर्जा है , क्योकि हमारे यहां कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली की भागीदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है , वहीं दूसरा पक्ष दूसरो की गलतियो से सीख लेने की बात करता है और आणविक ऊर्जा को विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बता रहा है. इस सारी बहस के बीच हमारे २५वें परमाणु बिजली घर का कार्य राजस्थान में प्रारंभ किया जा चुका है .प्रधानमंत्री ने भी संसद में कहा कि परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी,केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश  कह चुके हैं कि भारत परमाणु ऊर्जा उत्पादन के मामले में बहुत आगे बढ़ गया है और अब पीछे नहीं हटा जा सकता . दरअसल, आज सरकारी स्तर पर परमाणु ऊर्जा को लेकर जिस भाषा में बात की जा रही है, वह भाषा अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जुड़ी हुई है। सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि परमाणु करार सही ढंग से लागू हो जाए तो हम इतनी बिजली पैदा कर पाएंगे कि घर-घर तक उजियारा फैल जाएगा और गांवों में सदियों से चला आ रहा अंधियारा पलक झपकते दूर हो जाएगा . वर्ल्ड बैंक ,एशियन डेवलेपमेंट बैंक ,  जापान ,आदि विदेशी सहायता से पावर इवेक्युएशन के लिये देश भर में हाईटेंशन ग्रिड और वितरण लाइनो तथा सबस्टेशनो का जाल बिछा दिया गया है . विभिन्न प्रदेशो में केंद्र सरकार की आर ए पी डी आर पी आदि पावर रिफार्म योजनाओ के विभिन्न चरण तेजी से लागू किये जा रहे हैं .
        अध्ययन प्रमाणित कर चुके हैं कि परमाणु ऊर्जा की लागत ताप विद्युत ऊर्जा से दुगनी होती  है . महाराष्ट्र में कुछ साल पहले बिजली जरूरतों को पूरा करने के नाम पर एनरान नेप्था बिजली परियोजना लगाई गई थी,  उस समय यह दावा किया गया था कि इससे महाराष्ट्र की बिजली की समस्या से काफी हद तक पार पा लिया जाएगा,  पर नतीजा इसके उलटा ही निकला. एनरान में उत्पादित बिजली इतनी महंगी साबित हुयी कि इसे बंद ही करना पड़ा . इस प्रकरण में सरकार को तकरीबन दस हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा. अब एक बार फिर महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट क्षमता वाला परमाणु बिजलीघर लगाने की कोशिश हो रही है, स्थानीय लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार इस परियोजना को बंद करने के सवाल पर टस से मस नहीं हो रही.
         अमेरिका ने पिछले तीन दशकों में कोई भी परमाणु बिजली घर  नहीं लगाया है. उल्लेखनीय है कि वहां 104 परमाणु बिजली घर हैं. इसमें से सभी तीस साल से अधिक पुराने हैं. परमाणु ऊर्जा के समर्थक बड़े जोर-शोर से फ्रांस का उदाहरण देते हैं. फ्रांस को 75 फीसदी बिजली परमाणु बिजली घरों से मिलती है. यह बिल्कुल सही है, लेकिन अगर परमाणु रिएक्टरों से बिजली पैदा करना वाकई लाभप्रद है तो फ्रांस अपने यहां और परमाणु बिजली घर क्यों नहीं स्थापित कर रहा है .उल्लेखनीय  है कि आने वाले दिनों में वहां सिर्फ एक परमाणु रिएक्टर प्रस्तावित है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आणविक बिजली बेहद महंगी साबित हो रही है. एक  उदाहरण आस्ट्रेलिया का भी है, आस्ट्रेलिया के पास दुनिया में सबसे ज्यादा यूरेनियम है, पर वहां एक भी परमाणु बिजली घर नहीं है.इसका सीधा संबंध लागत और सुरक्षा से है. जब कम लागत पर वही चीज उत्पादित की जा सकती है तो कोई भी उसका उत्पादन ज्यादा लागत पर क्यों करेगा? वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में परमाणु बिजलीघरों के जरिए 3,72,000 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है और इसकी विकास दर आधा प्रतिशत मात्र है. आधा फीसदी की यह विकास दर भी स्थाई नहीं है। 1964 से अब तक दुनिया में 124 रिएक्टर बंद कर दिए गए जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 36800 मेगावाट थी. 1990 में विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी सोलह प्रतिशत थी. 2007 में यह घटकर पंद्रह प्रतिशत हो गई. दुनिया के ज्यादातर देश परमाणु ऊर्जा के उत्पादन से किनारा करते जा रहे हैं
जब तकनीकी तौर पर बेहद सक्षम जापान के लिए परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट पर काबू पाना बेहद मुश्किल साबित हुआ तो ऐसी स्थिति में भारत का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
        अनुमान है कि 2020 में भारत में आठ लाख मेगावाट बिजली पैदा होगी, अगर आणविक ऊर्जा की योजना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी तो 20,000 मेगावाट पैदा कर पाएगी, जिसकी लागत  11 लाख करोड़ रुपए होगी . इसके लिए आठ लाख हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. रिएक्टर के पांच किलोमीटर की परिधि में आबादी नहीं रहेगी। इन क्षेत्रों से बेदखल कर दिए जाने वाले लोगों का पुनर्वास कैसे होगा ? लागत के अनुमान के अनुसार परमाणु बिजली की उत्पादन लागत  21 रुपए प्रति यूनिट होगी .देश में परमाणु बिजली के क्षेत्र में कारोबार की काफी संभावना है, सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के मौके तलाश रही हैं . ऐसा नहीं है कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रिटर्न की भारी संभावना है .लेकिन निजी  कंपनियां इस क्षेत्र में जो दिलचस्पी दिखा रही है उसका कारण यह  है कि ऊर्जा क्षेत्र में नीति-निर्माण के स्तर पर अहम फैसले लिये जा रहे हैं. सरकार चाहती है कि परमाणु बिजली का उत्पादन बढ़ाया जावे . सरकार इंडियन ऑयल कॉरपोरशन, नाल्को और एनटीपीसी जैसी कंपनियो को  परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रेरित कर रही है .  सरकार चाहती है कि 2020 तक देश में 20,000 मेगावाट  परमाणु बिजली पैदा होने की क्षमता स्थापित हो जाए . परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के मामले में एक गंभीर समस्या इसके कचरे का निस्तारण भी है, उपयोग में लाए गए परमाणु ईंधन का निस्तारण करना बेहद जटिल प्रक्रिया है. कुछ समय पहले ब्रिटेन में एक परमाणु ईंधन स्टोर लीक हो गया जिससे हजार किलोमीटर के दायरे का पानी प्रदूषित हो गया. भारत को आणविक कचरा सुरक्षित फेंकने के लिए हर साल तीन अरब डालर खर्च करने होंगे. यह भी तय नहीं है कि भारत अपना परमाणु कचरा कहां फेंकेगा.  जापान की परमाणु त्रासदी हमारे लिए एक सबक है , हमे परमाणु सयंत्र के डिजाईन फुल प्रूफ बनाने होंगे .
        वर्तमान में दुनिया में बिजली का सबसे अहम स्रोत कोयला और पेट्रोलियम है लेकिन दोनों स्रोत करोड़ों साल पहले धरती के नीचे दब गए जीव और वनस्पति के सड़ने गलने से बनते हैं और इनको बनने में करोड़ों साल लग जाते हैं। इसलिए अगर ये एक बार खत्म हो गए तो दुबारा बनने में अरबों साल लग जाएंगे। दुनिया की कुल बिजली का करीब 50 फीसदी उत्पादन कोयले से होता है और अगर हम मौजूदा दर से खपत करते हैं तो अगले डेढ़ सौ सालों में कोयले के भंडार खत्म हो जाएंगे. पेट्रोलियम के भंडार भी कोयले की तरह ही सीमित हैं. कार्बन के भण्डार वाले कोयले और पेट्रोलियम के इस्तेमाल से हम धरती के निरंतर बढ़ते तापमान पर  कैसे काबू रख पाएंगे ?  बढ़ता कार्बन उत्सर्जन भी इंसानी वजूद के लिए खतरा है .
तो अब विकल्प क्या है ? क्या अब बिजली के लिये पूर्णतः समुद्र की लहरो , सूर्य और वायुदेव की शरण में जाने का वक्त आ गया है ?
        विकल्प ज्यादा नही है , बिना बिजली के जीवन की कल्पना दुष्कर है . एक संतुलित राह बनानी जरुरी है , कम से कम बिजली का उपयोग , वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो का हर संभव दोहन , सुरक्षित परमाणु बिजली का उत्पादन और इस सबके साथ ऊर्जा के लिये नये अनुसंधान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये . क्या समुद्रतल पर अथाह जलराशि के भीतर परमाणु बिजलीघर बनाये जावें ? या अंतरिक्ष में परमाणु बिजली उत्पादन किया जावे ? क्या बादल से बरसते पानी को आकाश में ही एकत्रित करके  नियंत्रित करके जमीन पर नही उतारा जा सकता ? बिजली भी बन जायेगी और बाढ़ की विभीषिका भि नही होगी ! क्या ये परिकल्पनाये केवल मेरी विज्ञान कथाओ तक सीमित रहेंगी ? यदि इन्हें साकार करना है तो समूचे विश्व के वैज्ञानिको को एक होकर नये अनुसंधान करने पड़ेंगे , क्योकि परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता . उर्जा क्षेत्र में अनुसंधान दुनिया के अस्तित्व के लिये जरुरी हो चला है . 

sabhar ..BBC HINDI अंधकार से प्रकाश की ओर...

अंधकार से प्रकाश की ओर...

सिटीज़न रिपोर्टर रत्ननेश यादव
बिजली बनाने के काम में जुटे सिटीज़न रिपोर्टर रत्ननेश यादव.
शहरों की चकाचौंध रातों के बीच गांव की घुप्प अंधेरी रातों में ज़िंदगी आज भी जगमगाती नहीं टिमटिमाती है.
लेकिन इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत के हज़ारों गांव बिजली की पहुंच से दूर हैं और लोगों के पास अपनी ज़रूरतों के लिए भी ये सुविधा उपलब्ध नहीं है.
गांव की इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए बिहार के कुछ नौजवान इक्कठा हुए और एक ऐसा तरीका इजाद किया जिसमें मुनाफ़ा भी है और समाज सेवा भी.
सिटीज़न रिपोर्ट की इस कड़ी में पेश है इन नौजवानों की अनोखी कोशिश से जुड़ी रत्नेश यादव की रिपोर्ट.
'' मेरा नाम रत्नेश यादव है और अपनी इस रिपोर्ट के ज़रिये मैं आपको बताना चाहता हूँ की मैंने और मेरे कुछ साथियों ने मिलकर 'बायोमास' के ज़रिए किस तरह बिहार के कई सौ गाँव को रोशन किया है.
मेरा जन्म बिहार में हुआ लेकिन पढ़ाई-लिखाई के लिए बचपन में ही मैं नैनिताल चला गया. कई साल बाद परिवार की ज़िम्मेदारियां मुझे अपने गांव खींच लाईं, लेकिन गांव लौटकर पहली बार मुझे भारत की दो तस्वीरों का फर्क महसूस हुआ.
साल 2003 में जब मैं बिहार आया तो यहां आकर मुझे एहसास हुआ कि शहरों में हम जिस बिजली को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मान लेते हैं वो गांव के लिए आज भी कितना बड़ा सपना है.

अंधकार में डूबे गांव

पटना से बाहर निकलते ही मानो बिहार अंधेरे में डूब जाता था. रात को तो ज़िंदगी पूरी तरह ठहर जाती थी. ऐसे में मैंने तय किया कि मैं इस इलाके के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में काम करूंगा.
पहले गांवभर में लोग आठ बजते-बजते सो जाते थे. रात को सांप-बिच्छु का डर रहता था और चोरियां भी हो जाती थीं. बिजली आने के बाद ऐसा नहीं होता. अब हमें तेल खत्म होने पर पढ़ाई रोकने का गर भी नहीं है. हम जब चाहे पढ़ सकते हैं.
हरेश, छात्र एवं स्थानीय निवासी
अंधकार में डूबे इन गांव और कस्बों तक रोशनी पहुंचाने के लिए मैंने अपने कुछ साथियों से भी बातचीत की और मेरे साथ जुड़े स्कूल के दिनों के मेरे साथी ग्यानेश पांडेय.
हम लोगों को एक ऐसी तकनीक की तलाश थी जो सस्ती हो, किफ़ायती हो और गांव की व्यवस्था से मेल खाए.
हमने बिजली बनाने और उसके लिए 'बायोमास गैसिफ़िकेशन' की तकनीक का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया.
ये एक ऐसी तकनीक है जिसमें ईंधन के तौर पर बायोमास का इस्तेमाल किया जाता है और उससे पैदा हुई गैस को जलाकर बिजली बनाई जा सकती है.
ये इलाका धान की खेती के लिए मशहूर है और खेती के बाद कचरे के रुप में धान की भूसी इस इलाके में बहुतायत में मौजूद थी.
ऐसे में हमने ईंधन के तौर पर धान की भूसी का ही इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया. हमने अपनी इस परियोजना को ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ का नाम दिया.
लालटेन और ढिबरी की रोशनी में जी रहे गांववालों को एकाएक इस नए तरीके पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन आधी से भी कम कीमत पर मिल रही बिजली की सुविधा को वो ज़्यादा दिन तक नकार नहीं सके.
आमतौर पर गांव में हर घर दो से तीन घंटे लालटेन या ढिबरी जलाने के लिए कैरोसीन तेल पर 120 से 150 रुपए खर्च करता है.
ऐसे में ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ के ज़रिए हमने गांववालों को 100 रुपए महीना पर छह घंटे रोज़ के लिए दो सीएफएल जलाने की सुविधा दी
आखिरकार साल 2007 को ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ की पहली कोशिश क़ामयाब हुई. हमने बिहार के ‘तमकुआ’ गांव में धान की भूसी से बिजली पैदा करने का पहला प्लांट लगया और गांव तक रौशनी पहुंचाई.
संयोग से ‘तमकुआ’ का मतलब होता है 'अंधकार भरा कोहरा' और इस तरह 15 अगस्त 2007 को भारत की आज़ादी की 60वीं वर्षगांठ पर हमने ‘तमकुआ’ को उसके अंधेरे से आज़ादी दिलाई.

कचरे से बिजली.

भारत में सिर्फ धान के भूसे से 27 गीगा-वॉट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है. उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में बड़े स्तर पर धान की खेती होती है और कचरे के रुप में धान की भूसी निकलती है. इन सभी राज्यों मे इसका इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है.
कुलमिलाकर अपनी इस कोशिश के ज़रिए हमने गांव में बहुतायत में मौजूद एक बेकार सी चीज़ का नायाब इस्तेमाल ढूंढ निकाला.
यही नहीं ईंधन के रुप में इस्तेमाल के बाद बचे भूसे की राख से महिलाएं अगरबत्तियां बनाती हैं और हर दिन का 60 रुपए तक कमा लेती हैं.
साथ ही 'हस्क पावर सिस्टम' के ज़रिए स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है क्योंकि प्लांट का सारा काम स्थानीय लोग और गांववाले ही करते हैं.
बिजली ने कई मायने में तमकुआ के लोगों की ज़िंदगी बदल दी है.
छठी कक्षा में पढ़ने वाला हरेश कहता है, ''पहले गांवभर में लोग आठ बजते-बजते सो जाते थे. रात को सांप-बिच्छु का डर रहता था और चोरियां भी हो जाती थीं. बिजली आने के बाद ऐसा नहीं होता. अब हमें तेल खत्म होने पर पढ़ाई रोकने का डर भी नहीं है. हम जब चाहे पढ़ सकते हैं.''
हमारी इस कोशिश को व्यापार और समाजसेवा की एक नायाब कोशिश के रुप में पहचान देने के लिए साल 2011 में हमें 'एशडेन पुरस्कार' से भी नवाज़ा गया.
मेरा और मेरे साथियों का मानना है कि ये बदलाव सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहना चाहिए.
भारत में सिर्फ धान के भूसे से 27 गीगा-वॉट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है. उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में बड़े स्तर पर धान की खेती होती है और कचरे के रुप में धान की भूसी निकलती है. इन सभी राज्यों मे इसका इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है.
हमारा लक्ष्य है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय...' यानि अंधकार से प्रकाश की ओर और हम अपनी इस कोशिश को अंधेरे में डूबे भारत के हर गांव तक पहुंचना चाहते हैं.''

बिजली की कटौती..जापान ने बनाई एसी के साथ जैकेट

 साभार रेडियो दायचेवेली
गर्मी से मारे जापान ने बनाई एसी के साथ जैकेट

मार्च में फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र में खराबी आने के बाद जापान को बिजली की कमी से जूझना पड़ रहा है. गर्मी से निजात पाने के लिए जापान में एयरकंडीशंड जैकेट बिक रही हैं.


गर्मी के मौसम में बिजली की कटौती ने जापान के लोगों को परेशान किया हुआ है. लेकिन जापान के लोगों को नई नई तकनीक के लिए जाना जाता है. इस समस्या का भी हल वहां के लोगों ने निकाल लिया है. कुचोफुकू नाम की कंपनी ने एयरकंडीशंड जैकेट तैयार किए हैं. मजेदार बात यह है कि जापानी भाषा में कुचोफुकू का मतलब होता है हवादार कपड़े.

जापान में ये जैकेट हाथों हाथ बिक रहे हैं. मांग इतनी ज्यादा है कि कंपनी के लिए उसे पूरा करना भी मुश्किल पड़ रहा है. इस जैकेट में दो पंखे लगे हुए हैं. दोनों को अलग अलग स्पीड पर चलाया जा सकता है. ये पंखे बैटरी से चलते हैं. हवा इतनी तेज कि जैकेट के कॉलर और कफ तक आराम से पहुंच पाती है. इस जैकेट से आप पसीना तो सुखा ही सकते हैं, साथ ही तरोताजा भी महसूस करते हैं. एक जैकेट का दाम 11 हजार येन यानी करीब छह हजार रुपये है.

मजदूरी करने वाले 33 वर्षीय रेयो इगारशी ने भी यह जैकेट खरीदी है. वह बताते हैं, "मैं बहुत गर्म जगह पर काम करता हूं और मुझे पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने पड़ते हैं. इसलिए मैं यहां यह जैकेट खरीदने आया हूं ताकि गर्मी से बच सकूं... आम तौर पर गर्मी लगने पर लोग कम कपड़े पहनते हैं, लेकिन कुचोफोकू तो ऐसा है कि ज्यादा गर्मी में और भी ज्यादा कपड़े."

एयरकंडीशंड तकिए और कालीन

कुचोफुकू जैकेट्स को जापान की करीब एक हजार कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. कंपनियां की इमारतों में लगे एयरकंडीशन तो अब काम नहीं कर रहे, लेकिन लोगों की ये एयरकंडीशंड जैकेट्स उन्हें गर्मी से दूर रखने का काम बखूबी करती हैं. जैकेट्स के अलावा यह कंपनी एयरकंडीशंड तकिए और कालीन भी बनाती हैं. इनमें पंखे तो नहीं लगे होते, लेकिन एक खास तरह की तकनीक हवा को फैलाने का काम करती है. यह कंपनी 2004 से इस तरह की चीजें बना रही है. अब तक इसे फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन साइटों से ऑर्डर मिला करते थे, लेकिन अब दफ्तर जाने वाले लोग और घर पर रहने वाली महिलाओं में भी इनकी मांग बढ़ गई है.

दो दशक पहले

कुचोफुकू कंपनी के अध्यक्ष हिरोशी इचिगाया को यह अनोखा आइडिया आज से दो दशक पहले 1990 में आया. तब वे सोनी कंपनी में एयरकंडीशन बनाने का काम किया करते थे. इचिगाया बताते हैं, "मैंने सोचा कि हमें पूरे कमरे को ठंडा करने की क्या जरूरत है, बस उसमें बैठे लोगों को ही अगर गर्मी से निजाद मिल जाए तो उतना ही काफी है." हाल ही में इन्हें सरकार की ओर से पांच लाख जैकेट्स का ऑर्डर आया, जो उन्हें ठुकराना पड़ा क्योंकि उनके पास इतनी सारी जैकेट्स बनाने की क्षमता नहीं है. इस साल वे 40 हजार जैकेट्स और अन्य चीजें बेच चुके हैं. इचिगाया उम्मीद करते हैं कि साल के अंत तक वो इस संख्या को 80 हजार तक पहुंचा पाएंगे.

फुकुशीमा संयंत्र के खराब होने के बाद से सरकार ने आदेश दिए हैं कि टोक्यो और तोहोकू में कंपनियां बिजली की कटौती से बचने के लिए खपत में 15 प्रतिशत की कमी लाएं. इसलिए वहां गर्मी के मौसम में भी एसी बंद पड़े हैं.

रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया

11 जुलाई, 2011

सुधार के लिए तकनीक और निवेश दोनों पर जोर

पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के सीएमडी श्री मनीष रस्तोगी का कहना
अधिकारी भी भुगतेंगे चोरी का खामियाजा
 सुधार के लिए तकनीक और निवेश दोनों पर जोर

जबलपुर। बिजली चोरी का खामियाजा अब अकेले आम उपभोक्ता ही नहीं बल्कि अधिकारी भी भुगतेंगे। ये दो टूक बात पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के नवपदस्थ सीएमडी मनीष रस्तोगी ने संवाददाताओं से पहली दफा मुखातिब होने के दौरान कही।

श्री रस्तोगी ने कहा कि अभी वितरण हानि के आधार पर फीडरवार बिजली कटौती हो रही है। इसके कारण ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं को भी बिजली कटौती की सजा भुगतनी पड़ती है। अब हम फीडरवार हानि के साथ उपभोक्ता के घर तक नई तकनीक से ये जानने का प्रयास करेंगे कि कहां कितना लॉस है? इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन इस दौरान हम अपने अधिकारियों को भी इस बात के लिए जवाबदेह बना रहे हैं कि वो बिजली चोरी को पूरी तरह से रोंके। यदि कहीं लॉस ज्यादा है तो उसके लिए संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाएगा और उन पर वित्तीय जुर्माना निर्धारित किया जाएगा। श्री रस्तोगी के अनुसार, पहले भी वेतन रोकने जैसी पहल हुई है लेकिन अब हम इसके लिए विधिवत एक प्लान बनाने जा रहे हैं। उन्होंने माना कि बिजली चोरी बिना सख्ती के नहीं रुक सकती। बड़े बकायादारों के खिलाफ भी वसूली अभियान तेजी से और सख्ती से चलाया जाएगा। इसमें ये नहीं देखा जाएगा कि कौन रसूखदार है और कौन नहीं? एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि बिजली वितरण क्षेत्र के उन्नयन के लिए व्यापक स्तर पर आर्थिक निवेश और नई तकनीक को शामिल करने की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। जिसके परिणाम अच्छे आएंगे। उन्होंने फीडर विभक्तिकरण प्रोजेक्ट की जानकारी देते हुए कहा कि इसके लिए टेंडर जारी हो चुके हैं और फेज टू के इस काम को हम तेजी से पूरा कराएंगे। इस प्रोजेक्ट से प्रदेश सरकार किसानों और ग्रामीणों को भरपूर बिजली देना चाहती है। हम उसे निराश होने का मौका नहीं देंगे। कर्मियों की कमी संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि हम उनकी भूमिका को चिन्हित कर उनकी जवाबदारियां नए सिरे से तय कर रहे हैं। इससे मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो सकेगा। इसके साथ ही नई भर्तियों के लिए जो निर्णय हो चुके हैं उनको पूरी प्राथमिकता से किया जाएगा। जहां तक पूर्व क्षेत्र से बड़ी संख्या में अधिकारियों कर्मचारियों का दूसरी कंपनियों में जाने आवेदन करने का सवाल है, इस प्रक्रिया को पूरा हो जाने के बाद ही हम देखेंगे कि कंपनी के लिए क्या कदम उठाए जाना जरूरी है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि केवल नाभिकीय बिजली उत्पादन बढ़ाने के बजाए हमें अपरंपरागत बिजली उत्पादन की दिशा में भी तेजी से सोचना होगा। खासकर सोलर इनर्जी के क्षेत्र में। पत्रवार्ता के दौरान कंपनी के अतिरिक्त सचिव एससी गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी राकेश पाठक, विवेक रंजन श्रीवास्तव व अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

06 जुलाई, 2011

पूर्वी क्षेत्र वितरण कंपनी , जबलपुर के सी एम डी का पदभार संभाला श्री मनीष रस्तोगी ने...

श्री मनीष रस्तोगी  ने पूर्वी क्षेत्र  वितरण कंपनी , जबलपुर के सी एम डी का पदभार संभाल लिया है . स्वागत . उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी श्री रस्तोगी , कलेक्टर भोपाल , सतना , नरसिंगपुर जैसे महत्वपूर्ण तथा चुनौती पूर्ण जिलो में जनअपेक्षाओ पर खरे उतरते हुये अपनी सेवाये दे चुके हैं . वे इंजीनियरिंग में बी टेक स्नातक हैं , इस दृष्टि से ,एक आधारभूत रूप से इंजीनियर ,विद्युत आपूर्ति जैसे अति संवेदनशील , तेजी से बदलती व्यवस्थाओ के बीच व मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग विभाग के प्रशासक की भूमिका में उनका नेतृत्व सृजनात्मक परिणाम दे सकेगा यही अपेक्षायें हैं . स्वागत है सर ! हम  आपके अनुगामी  हैं.