................................power is key for development, let us save power,
13 मई, 2012
बिजली जोड़ेगी देशो के दिल
बिजली जोड़ेगी देशो के दिल
विवेक रंजन श्रीवास्तव
देश दुनिया को एक सूत्र में पिरोये रखने और परस्पर निकट लाने में भाषा , संस्कृति सभ्यता का व्यापक प्रभाव होता है . भौतिक संसाधनो की दृष्टि से देखें तो सड़कें , रेल या अन्य यात्रा मार्ग व संसाधन दूरियो को समेट देते हैं . यही कारण है कि भारतीय रेल की पटरियो को देश की शिरायें कहा जाता है जिनके द्वारा सारा देश एक सूत्र में जुड़ा हुआ है . मोबाइल व इंटरनेट क्रांति से दुनिया कुछ नंबरो में स्क्रीन पर सिमट गई है . अंतर्देशीय व्यापार पुराने समय से देशो के बीच राजनैतिक संबंधो का आधार रहा है , आज भी है . समय के साथ हो रहे वैज्ञानिक व तकनीकी बदलावो से अंतर्देशीय व्यापार के मुद्दो व व्यापारिक सामग्री में व्यापक परिवर्तन हो रहे हैं . अब किसी अमेरिकी कंपनी हेतु उसके उपभोक्ताओ को आनलाइन कालसेंटर सुविधायें दुनिया के किसी दूसरे ही कोने में बैठा कोई चीनी या भारतीय दे रहा है , तो किसी देश का कोई कृत्रिम उपग्रह किसी दूसरे देश का राकेट अंतरिक्ष में छोड़ रहा है .किसी देश के तकनीकी विशेषज्ञ किसी अन्य देश की परियोजनायें बना और चला रहे हैं , तो किसी देश के युवा किसी दूसरे देश में उच्च शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं . अंतर्देशीय व्यापार अब केवल भौतिक सामग्रियो के आदान प्रदान तक सीमित नही है .पैट्रोलियम पदार्थो की अंतर्देशीय आपूर्ति के लिये पाइप लाइनें बिछाई गई हैं , तो संचार सुविधाओ के विस्तार के लिये समुद्र में केबल डाली गई है . इन नये नये व्यवसायिक हितो से दुनिया में नया शक्ति संतुलन बना है तथा भूगोल की दूरियो के बाद भी देशो में राजनैतिक व सांस्कृतिक निकटता आ रही है .
इसी कड़ी में बिजली का व्यापार एक अपेक्षाकृत नई कड़ी है . बिजली ही वह उर्जा सेवा है जो पलक झपकते , बटन दबाते ही आपकी सेवा में हाजिर रहती है . बिजली विकास की धुरी बन चुकी है . अतः बिजली की आवश्यकता सार्वभौमिक व निर्विवाद है , पर दुनिया में प्रायः विकास शील देश बिजली की कमी से जूझ रहे हैं . ज्यादातर देशो में बिजली की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर है . प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से देखें तो भारत के आस पास ही पर्वतीय क्षेत्रो वाले देशो जैसे नेपाल , भूटान में जल विद्युत उत्पादन की विपुल संभावनायें हैं , किन्तु इन छोटे देशो के पास तकनीकी ज्ञान तथा आर्थिक कमी के चलते ये देश इन नैसर्गिक संसाधनो का दोहन नहीं कर पा रहे हैं . पाकिस्तान जैसा देश जो आजादी के साथ ही भारत का धुर्र दुश्मन रहा है , तथा जहाँ की राजनीति ही भारत के विरोध पर आधारित रही है , बदलते परिवेश में हमसे बिजली खरीदने के करार कर रहा है , और हमारी उदारता है कि स्वयं बिजली की बड़ी कमी से जूझते हुये भी हम पाकिस्तान को बिजली निर्यात करने की पेशकश स्वीकार कर रहे हैं . अब समय आ चुका है कि बिजली की उच्चदाब लाइनो पर तारो में बहती बिजली देशो के दिल जोड़ेगी .
भारत नेपाल को जोड़ती बिजली योजनायें
एक अनुमान के अनुसार नेपाल के पास हिमालय की पर्वत श्रंखला में सहज उपलब्ध झीलो से लगभग ८५००० मेगावाट जल विद्युत के उत्पादन की प्रचुर संभावना है , जबकि वर्तमान में वहाँ पर इस विशाल क्षमता में से मात्र एक प्रतिशत का ही दोहन हो पा रहा है . नेपाल की सरकार ने अपने विजन २०२० प्रोग्राम के अनुसार वर्ष २०२० तक कुल दस हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है . अर्थात शेष पनबिजली व्यर्थ बह जायेगी . नेपाल सरकार की स्वायत्तता तथा स्वतंत्रता को पूर्ण समर्थन के साथ , मेरा व्यक्तिगत मत है कि प्राकृतिक संसाधनो का इस तरह का अपव्यय मानव मात्र के प्रति अपराध है . छोटी छोटी बातो पर अमेरिकी हस्तक्षेप की तो दुनिया आदि है किन्तु क्या ऐसे नैसर्गिक संसाधनो के दोहन के लिये विश्व संस्थाओ को सामने नही आना चाहिये , वह भी तब जब सारी दुनिया परमाणु बिजली घरो तथा ताप बिजली उत्पादन से फैलते प्रदूषण व संकटो से ग्रस्त जूझ रही है . आवश्यकता है कि आर्थिक व तकनीकी मदद देकर नेपाल जैसे देशो में न केवल वहां सुलभ पनबिजली का दोहन किया जावे वरन उस देश का विकास में भी भागीदार बना जावे . भारत ने इस दिशा में कदम बढ़ाये हैं , केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार नेपाल में पंचेश्वर परियोजना ५६०० मेगावाट जल विद्युत योजना , साप्ता कोसी व सन कोसी परियोजना ३००० मेगावाट , अपर करनाली रन आफ द रिवर प्रोजेक्ट ३०० मेगावाट , बुरखी गंडकी ६०० मेगावाट , करनाली १०८०० मेगावाट , नेम्यूर २०० मेगावाट , अरुन रनआफ द रिवर प्रोजेक्ट ४०० मेगावाट , आदि अनेक पन बिजली परियोजनाओ हेतु रिपोर्ट , सतलज जल विद्युत निगम , केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण आदि संस्थाओ ने तैयार की हैं पर नेपाल सरकार द्वारा वांछित स्वीकृतियो , चीन , माओवादी , या अन्य विदेशी शक्तियो के दबाव के कारण अब तक मूर्त रूप में कुछ बड़ा नही हो पाया है .भारत ने इन परियोजनाओ में से कई हेतु अनुदान की भी पेशकश की है . यह अत्यंत खेद जनक स्थिति है कि जल विद्युत की ऐसी अपार क्षमता वाला नेपाल आज भी हमसे गंडक रामनगर , दुहाबी कटेया , व महेंद्रनगर टनकपुर लाइनो के जरिये बिहार तथा उत्तर प्रदेश से बिजली खरीदता है , जिसके लिये हमने ही १३२ किलोवोल्ट की लाइने डाली हुई हैं . ४०० किलोवोल्ट की बिजली की लाइनें डाली जा रही हैं ताकि नेपाल की बढ़ती बिजली की जरुरतें पूरी की जा सकें व बाद में जब नेपाल उसकी जरूरत से अधिक बिजली उत्पादित करने लगे तो इन लाइनो से वह भारत को बिजली बेच सके .
भारत भूटान को जोड़ती बिजली योजनायें
जारी संयुक्त पन बिजली परियोजनाओ के मामले में भूटान की स्थिति कुछ बेहतर है . भूटान में ३० हजार मेगावाट पन बिजली उत्पादन की क्षमता आकलित है . अब तक इस क्षमता का लगभग ५ प्रतिशत ही वहां का कुल बिजली उत्पादन है. भूटान ४०० केवी , २२० केवी व १३२ केवि लाइनो से हमसे जुड़ा हुआ है . १०२० मे.वा. उत्पादन क्षमता की ताला परियोजना दोनो देशो के लिये गौरवशाली परियोजना है . इसके अतिरिक्त वहां अमोचू रिजरवायर ६२० मेगावाट , कुरीगोंगरी परियोजना १८०० मेगावाट , खोलोनगचू परियोजना ४८६ मेगा वाट , चमखारचू परियोजना ६७० मे .वा. आदि संयुक्त परियोजनायें विभिन्न स्तरो पर हैं .डगाचू हाइडल प्रोजेक्ट जिसकी क्षमता ११४ मेगावाट है , वर्ष २०१३ तक पूर्ण होने की संभावना है . भूटान पन बिजली के निर्यात से समृद्धि के नये सोपान स्थापित कर सकता है व भारत जैसे शक्तिशाली व साधन संपन्न देश से बिजली के द्वारा प्रगाढ़ संबंध बना रहा है . भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी वाटर एण्ड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज WAPCOS भूटान में जल बिजली परियोजनाओ के क्षेत्र में महत्व पुर्ण कार्य कर रही है . पुनात्सांगचू परियोजना २ जो ९९० मेगावाट की है , मांगदेचू परियोजना ७२० मेगा वाट , संकोश परियोजना ४०६० मेगावाट , बुनाखा १८० मेगा वाट आदि परियोजनाओ हेतु भी सर्वे , विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के कार्यो हेतु दोनो देशो के बीच करार हुये हैं .
भारत श्रीलंका को जोड़ती बिजली योजनायें
श्रीलंका में त्रिंकोमाली में ५०० मेगावाट ताप विद्युत योजना हेतु भारत अनुदान व तकनीकी सहयोग दे रहा है . एन टी पी सी इस योजना का कर्य करेगा . इसके अतिरिक्त उच्च दाब की बिजली लाइन बिछाने का काम भी दोनो देशो के बीच हो रहा है , यह २८५ कि मी लंबी उच्चदाब बिजली लाइन समुद्र के भीतर से तमिलनाडु के रामेश्वरम् से श्रीलंका के द्वीप तलाई मन्नार के बीच स्थापित होनी है .
भारत बंगलादेश को जोड़ती बिजली योजनायें
बांगलादेश के खुलना में १३२० मेगावाट की स्थापित क्षमता के ताप विद्युत गृह की स्थापना हेतु एनटीपीसी व बाग्लादेश पावर डेवलेपमेंट बोर्ड के बीच करार हुआ है . इसके सिवाय १३० किमी लंबी ४०० किवोल्ट की उच्चदाब बिजली लाइन भारत की नेशनल पावर ग्रिड तथा बाग्लादेश पावर डेवलेपमेंट बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में भारत के बेहरामपुर तथा बांगलादेश के बेहरामारा के बीच प्रस्तावित है . इसके लिये करार हो चुका है . इस लाइन का ८५ किमी हिस्सा भारत में व ३५ किमी हिस्सा बांगलादेश में होगा .
भारत पाकिस्तान बिजली जोड़ेगी देशो के दिल
इन दिनो पाकिस्तान बिजली की कमी से बुरी तरह परेशान है . इसका कारण वहाँ की सरकार द्वारा बिजली सुधारो , उत्पादन बढ़ौत्री , पर ध्यान न देते हुये
अन्य मसलो पर उलझे रहना ही है . ऐसे हालात में कम कीमत में पाकिस्तान को बिजली देने का बहुत दोस्ती भरा पैगाम भारत ने पाकिस्तान के समक्ष रखकर पड़ोसी धर्म का निर्वाह किया है . दोनो ही पक्ष इस प्रस्ताव पर पूर्णतः सहमत हैं और आशा है कि जल्दी ही भारत के पाकिस्तानी सीमा से लगे प्रदेशो की बिजली से पाकिस्तान के खेतो में फसलें लहलहायेंगी तथा वहाँ के गांव शहर रोशन होंगे .
भारत ने पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशो से बिजली के क्षेत्र में सहयोग तथा व्यापार का सर्वथा नया सूत्र विकसित किया है . समय के साथ यदि पश्चिमी देशो के साथ भी बिजली का आदान प्रदान संभव हो सकेगा तो देशो में समय के अंतर का लाभ बिजली व्यापार को मिल सकता है . जैसा हम सब जानते हैं सुबह व शाम के पीकिंग अवर्स में ही बिजली की जरूरत सबसे अधिक होती है , जब हमारे देश में देर रात हो और यहाँ बिजली की मांग कम हो तब उस देश को बिजली की आपूर्ति की जा सकती है जहाँ उस वक्त शाम हो तथा , उस देश से अपने देश में शाम के समय बिजली वापस ली जा सकती है , क्योकि तब उस देश में रात होगी व उनकी बिजली की मांग कम होगी . इस तकनीक से दोनो ही देशो के ताप व परमाणु बिजली घर पूरे लोड पर चल सकते हैं . वसुधैव कुटुंबकम् कि भारतीय संस्कृति की मूल भावना का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विकास समय की जरूरत है . पन बिजली जैसे प्राकृतिक संसाधनो का समय रहते मानव मात्र के कल्याण हेतु हर संभावित दोहन आवश्यक है अन्यथा साधन हीन छोटे देश अपनी स्वायत्तता के चक्कर में उलझे रहेंगे और प्रकृति की सौगात व्यर्थ बहती रहेगी , तो दूसरी ओर ताप बिजली के उत्पादन से प्रदूषण तो फैलेगा ही व कोयले के रूप में करोड़ों बरसों में बने प्रकृति के अनमोल खजाने को दुनिया यूं ही लुटा देगी , यह आने वाली पीढ़ी को होने वाली अपूरणीय क्षति होगी , फिर वह पीढ़ी चाहे किसी भी देश की क्यो न हो .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर व जन संपर्क अधिकारी
म. प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर
मो ०९४२५८०६२५२
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
OB 11 विद्युत मंडल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र.४८२००८
लेखक उर्जा क्षेत्र के जानकार हैं , व अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं .
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत है आपकी प्रतिक्रिया का.....