SABHAR .......NAIDUNIA 28.02.2012
हाईकोर्ट के जस्टिस आरएस झा की एकलपीठ ने मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल को कंपनी विकल्प चयन मामले में पूर्व निर्देश के परिपालन में हलफिया प्रगति प्रतिवेदन पेश करने निर्देशित किया है। इसके लिए दो सप्ताह की मोहलत दी गई है।
निर्देश का पालन सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी महाधिवक्ता आरडी जैन को सौंपी गई है। विगत सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मप्रराविमं को अस्थाई सूची (टेंटेटिव लिस्ट) जारी करने स्वतंत्र कर दिया था। हालांकि आगे की कार्रवाई को अंतिम रूप दिए जाने पर रोक बरकरार रखी गई थी। इस प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए चार सप्ताह की समय-सीमा नियत करते हुए मामले की अगली सुनवाई २७ फरवरी को नियत की गई थी।
मामला मध्यप्रदेश विद्युत मंडल अभियंता संघ की याचिका से संबंधित है, जिसकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता वीएस श्रोती पक्ष प्रवर्तित कर रहे हैं। राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता नमन नागरथ व मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल की ओर से अधिवक्ता स्वप्निल गांगुली पैरोकार हैं।
कोर्ट ने विगत सुनवाई के दौरान राज्य शासन द्वारा १८ जनवरी २०१२ को प्रस्तुत किए गए हलफनामे को रिकॉर्ड पर लिया था। जिसके जरिए मंडल के ४७ हजार कर्मियों के ६ कंपनियों के मध्य प्रस्तावित वितरण के संबंध में जानकारी पेश की गई थी। कोर्ट को कंपनियों के विकल्प चयन के मामले में लंबित १८०२ आवेदनों के बारे में भी अवगत कराया गया। ये वे कर्मचारी हैं जिनकी ओर से कंपनी का विकल्प भर दिया गया है। सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता नमन नागरथ ने तर्क दिया था कि कोर्ट के पूर्व स्थगनादेश के कारण कर्मचारियों के कंपनियों में आवंटन की योजना अधर में लटकी हुई है। याचिकाकर्ता की मांग है कि जब तक कर्मियों की पेंशन आदि सेवा शर्त संबंधी जिम्मेदारी का निर्धारण नहीं हो जाता कंपनियों में आवंटन नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि इसके बावजूद वस्तुस्थिति यह है कि सरकार २००३ से ही अपनी प्रक्रिया जारी रखे हुए है लेकिन कोर्ट से स्टे के कारण प्रक्रिया अंतिम रूप नहीं ले पा रही है। इसके चलते अंततः नुकसान कर्मियों का ही हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि ४७ हजार कर्मियों के नियुक्ति व पदोन्नति सहित अन्य तरह के हित बाधित हो रहे हैं।इधर कंपनियां सीधी भर्ती के तहत पद भर रही हैं जिससे मप्रराविमं कर्मियों के प्रमोशन के हक पर कुठाराघात हो रहा है। ऐसे में कंपनी संबंधी विकल्पों की सूची जारी करना कर्मियों के हित में होगा। लिहाजा, व्यापक हित में रोक हटाने योग्य है। कोर्ट ने इस तर्क को शर्त के साथ मंजूर कर लिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट को पेंशन के परिप्रेक्ष्य में मप्र विद्युत नियामक आयोग के समक्ष प्रकरण विचाराधीन होने की जानकारी भी दी गई, जिसे रिकॉर्ड पर ले लिया गया।
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