बैक्टीरिया रोशन करेंगे शहर
वास्तुविद्एक ऐसे शहर का सपना देख रहे हैं, जहाँ आकाश सफेद और नीले प्रकाश से जगमगा रहा हो, जो कार्बन सोखता हो और रोशनी के लिए मछलियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर रहा हो। ....मुकुल व्यास
जरा कल्पना कीजिए ऐसी जीवित इमारतों की जो कार्बन डाई ऑक्साइड का भोजन करती हों। ऐसी सड़कों की कल्पना करें, जो बैक्टीरिया की रोशनी से जगमगाती हों। यह साइंस फिक्शन नहीं है। यह जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हुए विश्व का एक नजारा है। तापमान वृद्धि और बर्फ पिघलने के बाद अब धीरे-धीरे स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रकृति को अपनी इच्छानुसार मोड़ने की कोशिशें कारगर नहीं होंगी। जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए विभिन्ना विकल्पों पर कई स्तरों पर काम चल रहा है।
वास्तुविद एक ऐसे शहर का सपना देख रहे हैं, जहाँ आकाश सफेद और नीले प्रकाश से जगमगा रहा हो। ऐसा शहर जो कार्बन सोखता हो और रोशनी के लिए मछलियों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर रहा हो। लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की शोधकर्ता डॉ. रेशल आर्मस्ट्रांग का मानना है कि कम ऊर्जा की खपत के लिए बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये बैक्टीरिया नीली-हरी चमक पैदा करते हैं। इमारतों और साइन बोर्डों को चमकीले बैक्टीरिया की परतों से कवर किया जा सकता है। एक दूसरी दिलचस्प संभावना बैक्टीरिया को फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया से गुजारने की है ताकि वे कार्बन डाई ऑक्साइड हजम कर सूरज की रोशनी को ऊर्जा में तब्दील कर सकें। वैज्ञानिकों ने फोटोसिंथेसिस के लिए बैक्टीरिया की कई किस्मों की पहचान की है। डॉ. रेशल आर्मस्ट्रांग की शोधकर्ता टीम वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने के लिए सायनोबैक्टीरिया यानी ग्रीन एलगी के इस्तेमाल की संभावना पर भी विचार कर रही है।
आर्मस्ट्रांग और उनके सहयोगी जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए प्रकृति से एक और गुर सीखना चाहते हैं। यह है चूने के निर्माण का रहस्य। इस प्रक्रिया में वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड ठोस कार्बोनेट रूप में तब्दील हो जाती है। कुदरती तौर पर यह प्रक्रिया हजारों वर्ष में पूरी होती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले वायुमंडलीय कार्बन डाई ऑक्साइड तेजाबी वर्षा जल में घुलती है और फिर कैल्शियम के साथ मिलकर ठोस कैल्शियम कार्बोनेट अथवा लाइमस्टोन में तब्दील हो जाती है। वैज्ञानिकों की टीम इस कुदरती प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से दोहराना चाहती है और चूना बनाने की प्रक्रिया को हजारों वर्ष के बजाय कुछ ही दिनों में पूरा करना चाहती है। रिसर्चरों का मानना है कि दीवारों पर इंजन में प्रयुक्त होने वाले ग्रीज की नन्ही बूँदों की परत बिछाकर यह काम आसानी से किया जा सकता है। ग्रीज में मैग्नीशियम क्लोराइड जैसा कोई साल्ट मिलाया जाएगा। जब मैग्नेशियम हवा में मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड से क्रिया करता है तो मैग्नीशियम कार्बोनेट के ठोस मोती बनने लगते हैं। धीरे-धीरे ये मोती सफेद चमकीले क्रिस्टल में तब्दील होने लगते हैं। ये परतें कुछ ही दिनों में बर्फबारी जैसा आभास देंगी। इस प्रक्रिया में न सिर्फ इमारत का सौंदर्य बढ़ेगा बल्कि आवारा घूम रहे कार्बन को भी मुट्ठी में किया जा सकेगा।
क्या बात है..
जवाब देंहटाएंअद्भुत जानकारी दी आपने ...मजा आ गया पढ के ..रोमांचक है जी
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
बड़ी रोचक जानकारी दी आपने.
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