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निराकार पर सर्व व्याप्त है , आभास दायिनी है बिजली !
मेघ प्रिया की गगन गर्जना , क्षितिज छोर से नभ तक है,
वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित , तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !
क्षण भर में ही कर उजियारा , अंधकार को विगलित करती ,
हर पल बनती , तिल तिल जलती , तीव्र गामिनी है बिजली !
कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनों का ईंधन बन
रूप बदल , सेवा में तत्पर , हर पल हाजिर है बिजली !
सावधान ! चोरी से इसकी , छूने से भी दुर्घटना घट सकती है ,
मितव्ययिता से सदुपयोग हो , माँग अधिक , कम है बिजली !
गिरे अगर दिल पर दामिनि तो , सचमुच , बचना मुश्किल है,
प्रिये हमारी ! हम घायल, कातिल हो तुम, अदा तुम्हारी है बिजली !
सर्वधर्म समभाव सिखाये , छुआछूत से परे तार से , घर घर जोड़े ,
एक देश है ज्यों शरीर और, तार नसों से, दिल की धड़कन है बिजली !!
- विवेक रंजन श्रीवास्तव
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