11 नवंबर, 2014

कटियाबाज बिजली चोरी की सामाजिक बुराई प्रदर्शित करती एक महत्वपूर्ण डाक्युमेंट्री

कटियाबाज बिजली चोरी  की सामाजिक बुराई प्रदर्शित करती  एक महत्वपूर्ण डाक्युमेंट्री


विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता व जनसंपर्क अधिकारी
म. प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर
मो ९४२५८०६२५२ ई मेल vivek1959@yahoo.co.in

म. प्र. पावर मैनेजमेंट कम्पनी के सी एम डी श्री मनु श्रीवास्तव आई ए एस के इनीशियेटिव पर , विद्युत मण्डल परिसर के  तरंग प्रेक्षागृह में विगत दिवस समानांतर सिनेमा और फीचर फिल्मो को चुनौती देती   'कटियाबाज' नाम की एक डॉक्यूमेंट्री विद्युत कर्मियो के लिये विशेष रूप से आयोजित शो में प्रदर्शित की गई । इस अवसर पर फिल्म के सह निर्देशक श्री फहद मुस्तफा विशेष रूप से उपस्थित रहे , जिन्होने शो के उपरांत दर्शको से विस्तृत संवाद भी किया तथा कटियाबाज को लेकर अपने अनुभव साझा किये .  दीप्ति कक्कड़ भी इस फिल्म की सह निर्देशिका हैं . कटियाबाज का अर्थ होता है  वे लोग जो बिजली लाइन पर तार फंसाकर बिजली चोरी करते हैं। इस सामाजिक बुराई से बिल भरने वाले नियम पसंद उपभोक्ताओ पर व्यर्थ बिजली बिलो का भार बढ़ता है , तथा बिजली कंपनियो का घाटा बढ़ता जा रहा है .
इस महत्वपूर्ण समस्या पर निर्मित यह पहली बड़ी फिल्म है .

इससे पहले भी कुछ फिल्मो के कुछ अंश बिजली से संबंधित विषयो पर संदेश देने वाले रहे हैं जैसे 
विवाह समारोहो में बिजली चोरी के खिलाफ संदेशा .. फिल्म बैंड बाजा बारात में ...दिया गया है .
.शादी विवाह , अन्य सार्वजनिक , धार्मिक  समारोहो में बिना बिजली का नियमित कनेक्शन लिये हुये खंभे से सीधे तार जोड़कर बिजली ले लेना जैसे हमारे यहाँ अधिकार ही माना जाने लगा है ...  इस बिजली चोरी के विरुद्ध बैंड बाजा बारात में फिल्म की हीरोइन अनुष्का शर्मा एक डायलाग में संदेश  देती हैं तथा इसे गलत ठहराती हैं . ... भई वाह ! लेखक , निर्देशक को भी बधाई !

अनुष्का शर्मा की पिछली फिल्म "रब ने बना दी जोडी" में भी शाहरूख खान का " पंजाब पावर लाइटनिंग योर लाइफ्स " वाला डायलाग भी बिजली सैक्टर के लोगो के लिये इंस्पायरिंग था .

'स्वदेश' फिल्म में शाहरुख खान को हमने बिजली तैयार करते देखा । जम्मू में किश्तवाड़ का गुलाबगढ़ इलाका , यहां इस फिल्म को देखकर प्रेरणा ली ध्यान सिंह और जोगिन्दर ने तथा खराब चक्की से बनाया पनबिजली यंत्र और बना ली बिजली . जम्मू से ३०० किमी दूर  गुलाबगढ़ के चशोती गांव में यह  प्रयोग कर दिखाया .आसपास 20 किमी तक कोई बसाहट नहीं। सड़क भी नहीं। करीब 22 हजार की आबादी बिजली न होने से अंधेरे में रहती है। लेकिन यहां के दो युवा रोशनी ले आए हैं। उन्होंने घर के पास से गुजरने वाली पहाड़ी नदी की धारा से बिजली बना ली। घर में खराब पड़ी चक्की में डेढ़ वर्ष पहले डायनामो लगाया और उसी से बिजली तैयार की। इस परिवार ने घर के अलावा मंदिर में बिजली दी हुई है। घर में डिश टीवी समेत इलैक्ट्रानिक सामान का खूब इस्तेमाल करते हैं।


'कटियाबाज' कहानी है कानपुर की, जहां किसी जमाने में चार सौ कारखाने होते थे, लेकिन अब बिजली की किल्लत के कारण करीब दो सौ कारखाने ही बचे हैं। इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाया गया है कि कैसे 15 से 18 घंटे बिजली गुल होने की वजह से लोग बेहाल हैं। 'कटियाबाज' में बिजली चोर और उसके उपभोक्ता दोनों ही गरिमा और बिजली के साथ जीने के लिए संघर्ष करते दिखाई देते हैं।

इस फिल्म का मुख्य किरदार है लोहा सिंह, जो शहर का मशहूर कटियाबाज है। लोहा सिंह लोगों के लिए बिजली की तारों पर कटिया डालता है और यह काम वह फख्र से करता है, क्योंकि उसे लगता है कि वह बिजली से बेहाल लोगों की मदद कर रहा है।

दीवालिया हो चुकी सरकारी बिजली कंपनी में एक योग्य महिला अधिकारी काम संभालती हैं, जिनका नाम है ऋतु महेश्वरी। उल्लेखनीय है कि ऋतु महेश्वरी का किरदार वास्तविक है , वे उ. प्र. की आई ए एस अधिकारी हैं . वे  उपभोक्ताओं को समय पर बिजली बिलों का भुगतान करने को कहती हैं, साथ ही बिजली चोरों के खिलाफ एक अभियान भी शुरू करती हैं, पर लोगों की नजरों में वह विलेन बन जाती हैं।

इस फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह डॉक्यूमेंट्री होते हुए भी आपको फिल्म का मजा देगी। जो लोग छोटे शहरों में रहते हैं या फिर उन गांव या शहरों में जहां बिजली के नाम पर सिर्फ तार और खंभा हैं, तथा जो बिजली कंपनियो में कार्यरत है , वे खुद को इस फिल्म से बखूबी जोड़ पाते हैं । इस फिल्म में इमोशन है, ड्रामा है, एक्शन है और इंटरटेनमेंट भी। यहां हीरो भी है, विलेन भी और नेता भी।

ये डॉक्यूमेंट्री देखकर आप अंदाजा लगा पाएंगे कि उन शहरों की हालत कैसी होती है, जहां बिजली न के बराबर आती है और कैसे सिस्टम में फंसकर मुद्दा धरा का धरा रह जाता है। फिल्म में ऋतु महेश्वरी का एक डायलॉग है कि पहली बार ऐसा हुआ है कि उनका तबादला नहीं किया गया और उनके बेटे ने एक ही शहर में रहकर अपनी क्लास का सालाना इम्तिहान पास किया है। यह डायलॉग दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर सकता है कि आखिर इस परिस्थिति का जिम्मेदार कौन है और कैसे जनता, राजनेता और नौकरशाह अपनी-अपनी लड़ाइयां लड़ रहे हैं, पर यह ऐसी लड़ाई है जिसमें सही मायने में जीत किसी की नहीं होती।

डॉक्यूमेंट्री में बैकग्राउंड स्कोर जरा फिल्मी रखा गया है। सबसे अच्छी बात यह कि फिल्म एकतरफा नहीं है। इस परिस्थिति से जूझने वाले हर शख्स के पहलू इसमें रखे गए हैं। यह फिल्म किसी एक शख्स पर नहीं, बल्कि बिजली चोरी की समस्या पर अंगुली उठाती है।
कहानी को थोड़ा और ढंग से बांधा जा सकता था, जैसे कि कई जगहों पर घटनाक्रम या सीन्स बिखरे हुए लगे। अगर कहानी परत दर परत खुलती, तो और बेहतर होता, कथानक का अंत भी बेहतर बनाया जा सकता था , जिससे बिजली चोरी के विरुद्ध एक प्रतिबद्धता व संदेश दिया जा सकता था . वास्तविकता के चित्रांकन के चक्कर में फिल्म में कई अश्लील संवाद कानो में गड़ते हैं .  लेकिन निर्देशकों ने एक डॉक्यूमेंट्री को भी रोचक बनाकर शानदार काम किया है।

यद्यपि यह सुखद हे कि म.प्र. में अटल ज्योति अभियान के बाद से आम उपभोक्ताओ को अनवरत २४ घंटो बिजली मिल रही है .

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