04 अक्तूबर, 2013

मितव्ययी विद्युत प्रणाली के विकास का सर्वथा नया बाजार ....

देश में मितव्ययी विद्युत प्रणाली के विकास का सर्वथा नया बाजार ....

इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर , ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंशी
सदस्य ..डिमांड साइड मैनेजमेंट कमेटी , म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर

     वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह  बिजली ही है . बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .बिजली का निर्धारित मूल्य चुका देने   से भी कोई इसके दुरुपयोग करने का अधिकारी नहीं बन सकता , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी पर आधारित हैं .राजनैतिक कारणों से बिना दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाये १९९० के दशक में कुछ राजनेताओं  ने खुले हाथों मुफ्त बिजली बांटी .जो तमाम सुधार कानूनो के बाद भी आज तक जारी है .  इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि एक समूची पीढ़ी को मुफ्त विद्युत के दुरुपयोग की आदत पड गई है . लोग बिजली को हवा , पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझने लगे हैं . विद्युत प्रणाली के साथ बुफे डिनर सा मनमाना व्यवहार होने लगा है . जिसे जब जहाँ जरूरत हुई स्वयं ही लंगर ,हुक ,आंकडा डालकर तार जोड कर लोग अपना काम निकालने में माहिर हो गये हैं . खेतों में पम्प , थ्रेशर,  गावों में घरों में उजाले के लिये , सामाजिक , धार्मिक आयोजनों , निर्माण कार्यों के लिये अवैधानिक कनेक्शन से विद्युत के उपयोग को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है . ऐसा करने में लोगों को अपराध बोध नहीं होता . यह दुखद स्थिति है . मुफ्त बिजली देश में मितव्ययी विद्युत उपयोग की विकास योजनाओ की एक बहुत बड़ी बाधा है . वर्तमान  बिजली संकट से निपटने हेतु जहाँ विद्युत उत्पादन बढ़ाना  एवं न्यूनतम हानि के साथ बिजली का पारेषण जरूरी है वहीं डिमांड साइड मैनेजमेंट महत्वपूर्ण है .
   हमारे देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से होता है, जिनमें कोयले , प्राकृतिक गैस , व खनिज तेल को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,और इन प्राकृतिक संसाधनो के भण्डार सीमित हैं . इतना ही नही  बिजली उत्पादन बिन्दु पर बिजली घरो से फैलने वाला प्रदूषण , तथा बिजली के अनियंत्रित उपयोग से खपत बिन्दु पर प्रयुक्त उपकरणो से जनित प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रदूषण जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चिंता का कारण भी  है . 
    हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत ८  मिशन निर्धारित किये गये हैं  .  इनमें राष्ट्रीय सौर मिशन ,  राष्ट्रीय जल मिशन , ग्रीन इंडिया मिशन , सस्टेनेबल कृषि मिशन , स्ट्रेटेजिक नालेज मिशन , सतत पर्यावास मिशन , हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को कायम रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन तथा इनहेंस्ड इनर्जी  एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं .
      इनहेंस्ड इनर्जी  एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन को क्रियांवित करने हेतु ,केंद्र और राज्य सरकारों या उसकी एजेंसियों की उर्जा दक्षता नीतियों ,योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिए दिसम्बर २००९ में कंपनी एक्ट १९५६ के अंतर्गत ई ई एस एळ अर्थात इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड का गठन किया गया है . भारत सरकार के उर्जा मंत्रालय द्वारा प्रवर्तित तथा नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन , पावर फाइनेंस कारपोरेशन , ग्रामीण विद्युतीकरण कारपोरेशन एवं पावर ग्रिड की संयुक्त भागीदारी से बनाई गई यह कंपनी देश में ऊर्जा दक्षता बाजार के विकास हेतु प्रयत्नशील है .विकास शील देशो में पूंजी का संकट नवाचारी परियोजनाओ को लागू करने में बहुत बड़ी बाधा होता है , अतः उपभोक्ता त्वरित बड़े व्यय को टालने के लिये उपलब्ध पुरानी तकनीक व संसाधनो पर आश्रित बने रहते हैं . इस जड़ता को दूर करने के लिये  ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी के साथ मिलकर ई ई एस एळ , इनहेंस्ड इनर्जी  एफिशियेंसी के लिए व्यवसायिक गतिविधियो को विकसित कर रही है .एक अनुमान के अनुसार भारत में उर्जा दक्षता के क्षेत्र में ७५००० करोड़ के व्यवसाय की संभावनायें हैं जो अब तक अछूती पड़ी हैं . इससे वर्तमान बिजली की खपत १५ प्रतिशत तक कम की जा सकती है . निरंतर बढ़ते हुयी बिजली की दरो के चलते इससे जो आर्थिक बचत होगी वह अनुमान से लगातार अधिक होती जायेगी .
    विद्युत ऊर्जा आधारित औद्योगिक संयंत्रो में उत्पाद का न्यूनतम मूल्य रखने की गला काट वर्तमान प्रतिस्पर्धा व श्रेष्ठतम उत्पाद बाजार में लाने की होड़  कारपोरेट जगत को नवीनतम वैश्विक तकनीक को अपनाकर कम से कम संभव लागत में अपने उत्पाद प्रस्तुत करने हेतु प्रेरित कर रही है , यही मितव्ययता का मूल सिद्धांत है . यदि एटी एण्ड सी हानियो को ध्यान में रखें तो खपत बिंदु पर लाई गई कमी उत्पादन बिंदु पर अति महत्व पूर्ण आर्थिक प्रभाव छोड़ती है .  देश के विभिन्न क्षेत्रो में वर्तमान में ए टी एण्ड सी हानि लगभग २५ प्रतिशत है . यही वित्तीय प्रभाव ई ई एस एळ की पूंजी है .

      उद्योगो के अतिरिक्त उर्जा मांग के कुछ बड़े कार्य क्षेत्र नगर निगमों के कार्य ,  कृषि कार्य जिनमें सिंचाई के कार्य प्रमुख हैं , सार्वजनिक निर्माण, प्रकाश व्यवस्था आदि हैं . इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड ,  ESCO कंपनी है और अन्य कंपनियों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के साथ साझेदारी को प्रोत्साहन देकर मितव्ययी विद्युत खपत हेतु कार्यरत है . मितव्ययता का मूल अर्थ ही होता है कि  सुविधाओ में कटौती किये हुये बिना उर्जा के व्यय में कमी लाना अर्थात खपत की जा रही ऊर्जा का श्रेष्ठतम संभव उपयोग करने की व्यवस्था करना . इसके लिये एस्को विधि अपनाई जाती है . आइये समझें कि एस्को का अर्थ क्या है ? व यह व्यवस्था किस तरह व्यवसायिक रूप से मैदानी कार्य करती है .

 " इनर्जी सर्विसेज कंपनी " (ESCO)  औद्योगिक इकाइयों , वाणिज्यिक परिसरों, अस्पतालों, नगर पालिकाओं, बड़ी इमारतों और व्यापक खपत वाले परिसरो में  सर्वप्रथम इनर्जी ऑडिट करती है . तथा यह पता लगाती है कि बिना सुविधाओ में कटौती किये हुये उर्जा दक्ष उपकरणों का उपयोग करके , विद्युत की खपत में कमी लाकर  कितनी आर्थिक बचत वार्षिक रूप से की जा सकती है . इस आर्थिक बचत से यह कंपनी उपभोक्ता हेतु सुझाये गये सुधारों के  पैकेज पर व्यय की गई अपनी पूंजी को पुनः एक निश्चित समयावधि में वापस प्राप्त करते हैं  . इस तरह ESCO द्वारा सुधार पैकेज के क्रियांवयन से ,  बिना स्वयं किसी निवेश के तथा अपनी वांछित जरूरतो में कोई कटौती किये बिना ही  उपभोक्ता के परिसर में नवीनतम विश्व स्तरीय तकनीक व उर्जा दक्ष उपकरण स्थापित कर दिये जाते हैं , जो ESCO के निवेश पुनर्प्राप्त कर लिये जाने के बाद उपभोक्ता की ही संपत्ति बन जाते हैं तथा इस तरह उपभोक्ता बाद में भी अपने बिजली बिल में नियमित बचत करता रहता है , जिसका पूरा लाभ उसे निरंतर होता रहता है , और व्यापक रूप से देश व समाज लाभान्वित होता है  . यही इनर्जी सर्विसेज कंपनियो की  स्थापना का उद्देश्य भी है . ऊर्जा संरक्षण  अधिनियम 2001 के लागू होने तथा अगले पांच वर्षों में  चुनिंदा सरकारी संगठनों में ऊर्जा की खपत को 30% कम करने के लिए केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता के लागू होने के साथ, ESCO व्यापार को बढ़ावा मिला है. ESCO कंपनी व्यापक सेवाओं के साथ अपने ग्राहकों को इनर्जी आडिट ,ऊर्जा की बचत का स्पष्ट प्रदर्शन,उर्जा संरक्षण के उपायों की  डिजाइन और कार्यान्वयन , रखरखाव, परियोजना संचालन , वित्तीय व्यवस्था सुलभ करवाती है . सामान्यतः ESCOs पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना ऊर्जा संरक्षण के लिए  5 से 10 साल की अवधि में पूरी परियोजना की लागत को कवर करने की गारंटी के साथ कार्य करती हैं .

    ESCO आधारित व्यापार मॉडल के माध्यम से ऊर्जा बचत के  करार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

ग्राहक द्वारा 'शून्य' निवेश.

ESCO मौजूदा अक्षम प्रणाली की जगह ऊर्जा कुशल उपाय  की पहचान करती है .

ESCO अनुबंध अवधि के दौरान ऊर्जा कुशल उपाय  स्थापित करती है  और उसे बनाये रखने हेतु जरूरी संचालन संधारण करती है.

परस्पर सहमति के अनुसार अनुबंध अवधि 3-5 या 10 साल तक भी हो सकती है.

सहमत शर्तों के अनुसार ऊर्जा की बचत  ESCO और ग्राहक के बीच बांटी  जाती है जबकि  सुधार परियोजना की लागत ESCO द्वारा वित्त पोषित होती है.

ESCO ऊर्जा बचत की गारंटी देती है .

परियोजना अवधि के बाद जब ब्याज और अन्य खर्च सहित  ESCO अपने निवेश की पुनर्प्राप्ति कर लेती है तो समस्त सुधार अधोसंरचना ग्राहक की हो जाती है , व वह उससे बचत का नियमित लाभ लेता रहता है .

इस बीच ESCO ग्राहक के कर्मचारियो को नई संरचना के समुचित उपयोग हेतु आवश्यक प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वयं सक्षम बना देती है जिससे अनुबंध अवधि के बाद भी परियोजना यथावत जारी रह सके .
   
प्रकाश के लिये उर्जा दक्ष उपकरण ...
जो प्रकाश उपकरण सामान्य तौर पर प्रचलित हैं , फोकस के अभाव में उनसे ७० प्रतिशत प्रकाश व्यर्थ हो जाता है . रिफ्लेक्टर व फोकस के द्वारा एल ई डी के अति कम बिजली खपत करने वाले  महत्वपूर्ण लैम्प अब उपलब्ध हैं . घरो में कैंडेंसेंट लैम्प से सी एफ एल की यात्रा  अब एल ई डी लैम्प की ओर चल चुकी है . इसी तरह मरकरी व   सोडियम वेपर लेम्प की जगह एल ई डी स्ट्रीट लाइट  और टी ८ ट्यूब के परिवर्तन आ चुके  हैं .नगर निकाय संस्थायें पारम्परिक  सड़क बत्तियो के बिजली बिल पर जो व्यय करती हैं , वे इन नयी तकनीको को अपना कर एस्को माध्यम से बिना अतिरिक्त व्यय किये बिजली बचत के कीर्तिमान बना सकती है . इस बचत से जो कार्बन क्रेडिट कमाई जाती है , उससे देश वैश्विक समझौतो के अनुसार विकास के नये सोपान लिख सकता है .
 जबलपुर के पास ही नर्मदा नदी के बरगी बांध डूब क्षेत्र के ग्राम खामखेड़ा को  एचसीएल कम्प्यूटर के संस्थापक सदस्य पदम्‌भूषण अजय चौधरी के आर्थिक सहयोग से  महात्मा गांधी की आत्म निर्भर गांव की फिलासफी के अनुरूप ,  प्रकाश के मामले में  सौर्य उर्जा से प्रकाशित ग्रिड पावर रहित , गांव   के रूप में विकसित करने का सफल प्रयोग हुआ है . जबलपुर के  पेशे से छायाकार रजनीकांत यादव ने अपनी मेहनत से सोलर विद्युत व्यवस्था पर काम करके गांव की छोटी सी बस्ती को नन्हें एल ई डी से रोशन करने की तकनीक को मूर्त रूप दिया और परिणाम स्वरूप ७ अक्टूबर १२ को खामखेड़ा गांव रात में भी सूरज की रोशनी से नन्हें नन्हें एल ई डी के प्रकाश से नहा उठा . इस अभिनव प्रयोग को एक वर्ष पूरा होने को है और अब तक वहां से सफलता और ग्राम वासियो के संतोष की कहानी ही सुनने को मिल रही हैं . उल्लेखनीय है कि अक्टूबर २०१२ से पहले तक मिट्टी का तेल ही इस गांव में  रोशनी का सहारा था , प्रति माह हर परिवार रात की रोशनी के लिये लालटेन , पैट्रोमेक्स या ढ़िबरी पर लगभग १५० से २०० रुपये खर्च कर रहा था  । विद्युत वितरण कंपनी यहां बिजली पहुचाना चाहती है पर केवल ३०  घरो के लिये पहुंच विहीन गांव में लंबी लाइन डालना कठिन और मंहगा कार्य था , इसके चलते अब तक यह गांव  बिजली की रोशनी से दूर था .  गांव के निवासियो को उद्घाटन के अवसर पर गुल्लक बांटी गई है , आशय है कि वे प्रतिदिन मिट्टीतेल से बचत होने वाली राशि संग्रहित करते जावें जिससे कि योजना का रखरखाव किया जा सके. सोलर सैल से  रिचार्ज होने वाली जो बैटरी गांव वालो को दी गई है , उसकी गारंटी २ वर्ष की है , इन दो बरसो में जो राशि मिट्टी तेल की बचत से एकत्रित होगी उन लगभग ३६०० रुपयो से सहज ही नई बैटरी खरीदी जा सकेगी . यदि सूरज बादलों से ढ़का हो तो एक साइकिल चलाकर बैटरी रिचार्ज की जा सकने का प्रावधान भी किया गया है . इस तरह यह छोटा सा गैर सरकारी प्रोजेक्ट जनभागीदारी और स्व संचालित एस्को तकनीक का उदाहरण बनकर सामने आया है .  वर्तमान में म. प्र. में ऐसे बिजली विहीन दूर दराज स्थित लगभग ७०० गांव हैं ,जहां यह तकनीक विस्तारित की जा सकती है .

म्युनिसिपल पीने के पानी की पम्पिंग प्रणाली में उर्जा दक्षता ...
जल प्रदाय व्यवस्था में उर्जा दक्षता की व्यापक संभावनायें है . पुराने बार बार रिवाइंडेड पम्प जिनकी दक्षता २० से ३० प्रतिशत से अधिक नही होती नये स्टार रेटेड पम्प से बदले जाते हैं . टाइमर , आटोमेटिक ट्रिपिंग स्विच लगाकर  केंद्रीय नियंत्रण कक्ष की स्थापना की  जाती है , जहां से सारे जल प्रदाय की देखरेख की जाती है .जल संग्रहण टंकियो में ओवर फ्लो रोकने हेतु वाटर लेवल इंडीकेटर व कट आफ स्विच लगाये जाते हैं . कैपेसिटर स्थापित करके पावर फैक्टर सुधारा जाता है, अधिकतम मांग को कनेक्शन की शर्तो के अनुसार  नियंत्रित किया जाता है  जिसके परिणाम स्वरूप बिजली बिल में भारी कमी लाई जा सकती है .  एक बड़े पम्प की जगह समानांतर रूप से २ या ३ पम्प लगाये जाते हैं . पीवीसी की घर्षण रहित पाइपलाइन का प्रयोग किया जाता है . इन उपायो से बिजली की खपत में बड़ी कमी लाने के अनेक सफल प्रयोग देश भर में जगह जगह हो चुके हैं .
हम अपने घरो में भी प्रकाश व पम्प इत्यादि के ये उन्नत स्टार रेटेड उपकरण प्रयोग करके बिजली बिल की बचत से उन्नत उपकरणो के किंचित अधिक मूल्य की भरपाई सहज ही कर सकते हैं .
जल्दी ही स्टार रेटेड पंखे भी  बाजार में उतारे जा रहे हैं . जिनका मूल्य निश्चित ही वर्तमान उपलब्ध पंखो से ज्यादा होगा पर उनकी उर्जा खपत वर्तमान पंखो की तुलना में ३० प्रतिशत ही होगी .

कृषि कार्यो हेतु भी सिचाई के लिये उपरोक्त तकनीकी व्यवस्थाओ से कृषको द्वारा बिना कोई व्यय किये उनके पम्प निकाल कर नष्ट कर दिये जाते हैं व उनके स्थान पर स्टार रेटिंग के नये पम्प लगा दिये जाते हैं .अनुबंध अवधि में खराब होने पर एस्को ही खराब पम्प को बिना मूल्य लिये बदलती है . इस तरह किसानो को बिना किसी व्यय के नये पम्प सुलभ हो जाते हैं , डिस्काम की बिजली बचती है .  डिस्काम को इस परिवर्तन से जो बिजली की बचत होती है , वह उसे अंयत्र बेचकर धनार्जन करती है , जिसका आनुपातिक बंटवारा डिस्काम व एस्को में किया जाता है . इससे ही एस्को अपनी परियोजना  व्यय की पूर्ति करती है . महाराष्ट्र , आंध्र , कर्नाटक आदि प्रदेशो में बड़ी संख्या में इस तरह के करार विद्युत वितरण कंपनियो से हुये हैं ,म प्र में भी इस हेतु उच्च स्तरीय वार्तायें चल रही है .

औद्योगिक संस्थानो के लिये परफार्म , एचीव एण्ड ट्रेड . " पी ए टी" तकनीक लाई गई है . जिसमें एक नियत समय में उर्जा बचत के लक्ष्य पूर्ति पर इंसेंटिव की व्यवस्था की गई है . साथ ही उच्च मापदण्ड पूर्ण करने पर बाजार में ट्रेडेबल इनर्जी सेविंग सर्टिफिकेट जारी किये जाते हैं , जो उन संस्थानो द्वारा क्रय किये जा सकते हैं जिन्होने किन्ही कारणो से अपने लक्ष्य समय पर पूरे न किये हो .
 इसी तरह लघु व मध्यम उद्योगो के क्लस्टर्स हेतु भी अनेक योजनाये उर्जा बचत को प्रोत्साहित करने के लिये बनाई गई हैं , जो उद्योग विशेष के अनुसार नवीनतम तकनीक के प्रशिक्षण व प्रयोग को लेकर हैं  . आवश्यकता है कि अभियंता अपने अपने कार्य क्षेत्रो में इन नवीनतम तकनीको को प्रयोग करे तथा प्रोत्साहित करें जिससे उर्जा दक्षता के लक्ष्य पाये जा सकें तथा एस्को कंपनियो के सर्वथा नये कारोबार को विस्तार मिल सके . इस तरह जब उर्जा दक्ष उपकरणो की खपत बढ़ जायेगी तो इन स्टार रेटेड उपकरणो का मूल्य स्वतः ही कम होगा  व गैर स्टार रेटेड उपकरण बाजार से स्वयं ही बाहर हो जावेंगे व उनका उत्पादन कम होता जायेगा .

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एलियन इनर्जी नामक एस्को कंपनी की  दो संपन्न परियोजनाओ के आंकड़े योजनाओ की सफलता की कहानी कहते हैं .....



    

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