................................power is key for development, let us save power,
14 अक्टूबर, 2013
04 अक्टूबर, 2013
मितव्ययी विद्युत प्रणाली के विकास का सर्वथा नया बाजार ....
देश में मितव्ययी विद्युत प्रणाली के विकास का सर्वथा नया बाजार ....
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर , ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंशी
सदस्य ..डिमांड साइड मैनेजमेंट कमेटी , म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह बिजली ही है . बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .बिजली का निर्धारित मूल्य चुका देने से भी कोई इसके दुरुपयोग करने का अधिकारी नहीं बन सकता , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी पर आधारित हैं .राजनैतिक कारणों से बिना दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाये १९९० के दशक में कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों मुफ्त बिजली बांटी .जो तमाम सुधार कानूनो के बाद भी आज तक जारी है . इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि एक समूची पीढ़ी को मुफ्त विद्युत के दुरुपयोग की आदत पड गई है . लोग बिजली को हवा , पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझने लगे हैं . विद्युत प्रणाली के साथ बुफे डिनर सा मनमाना व्यवहार होने लगा है . जिसे जब जहाँ जरूरत हुई स्वयं ही लंगर ,हुक ,आंकडा डालकर तार जोड कर लोग अपना काम निकालने में माहिर हो गये हैं . खेतों में पम्प , थ्रेशर, गावों में घरों में उजाले के लिये , सामाजिक , धार्मिक आयोजनों , निर्माण कार्यों के लिये अवैधानिक कनेक्शन से विद्युत के उपयोग को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है . ऐसा करने में लोगों को अपराध बोध नहीं होता . यह दुखद स्थिति है . मुफ्त बिजली देश में मितव्ययी विद्युत उपयोग की विकास योजनाओ की एक बहुत बड़ी बाधा है . वर्तमान बिजली संकट से निपटने हेतु जहाँ विद्युत उत्पादन बढ़ाना एवं न्यूनतम हानि के साथ बिजली का पारेषण जरूरी है वहीं डिमांड साइड मैनेजमेंट महत्वपूर्ण है .
हमारे देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से होता है, जिनमें कोयले , प्राकृतिक गैस , व खनिज तेल को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,और इन प्राकृतिक संसाधनो के भण्डार सीमित हैं . इतना ही नही बिजली उत्पादन बिन्दु पर बिजली घरो से फैलने वाला प्रदूषण , तथा बिजली के अनियंत्रित उपयोग से खपत बिन्दु पर प्रयुक्त उपकरणो से जनित प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रदूषण जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चिंता का कारण भी है .
हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत ८ मिशन निर्धारित किये गये हैं . इनमें राष्ट्रीय सौर मिशन , राष्ट्रीय जल मिशन , ग्रीन इंडिया मिशन , सस्टेनेबल कृषि मिशन , स्ट्रेटेजिक नालेज मिशन , सतत पर्यावास मिशन , हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को कायम रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन तथा इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं .
इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन को क्रियांवित करने हेतु ,केंद्र और राज्य सरकारों या उसकी एजेंसियों की उर्जा दक्षता नीतियों ,योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिए दिसम्बर २००९ में कंपनी एक्ट १९५६ के अंतर्गत ई ई एस एळ अर्थात इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड का गठन किया गया है . भारत सरकार के उर्जा मंत्रालय द्वारा प्रवर्तित तथा नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन , पावर फाइनेंस कारपोरेशन , ग्रामीण विद्युतीकरण कारपोरेशन एवं पावर ग्रिड की संयुक्त भागीदारी से बनाई गई यह कंपनी देश में ऊर्जा दक्षता बाजार के विकास हेतु प्रयत्नशील है .विकास शील देशो में पूंजी का संकट नवाचारी परियोजनाओ को लागू करने में बहुत बड़ी बाधा होता है , अतः उपभोक्ता त्वरित बड़े व्यय को टालने के लिये उपलब्ध पुरानी तकनीक व संसाधनो पर आश्रित बने रहते हैं . इस जड़ता को दूर करने के लिये ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी के साथ मिलकर ई ई एस एळ , इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए व्यवसायिक गतिविधियो को विकसित कर रही है .एक अनुमान के अनुसार भारत में उर्जा दक्षता के क्षेत्र में ७५००० करोड़ के व्यवसाय की संभावनायें हैं जो अब तक अछूती पड़ी हैं . इससे वर्तमान बिजली की खपत १५ प्रतिशत तक कम की जा सकती है . निरंतर बढ़ते हुयी बिजली की दरो के चलते इससे जो आर्थिक बचत होगी वह अनुमान से लगातार अधिक होती जायेगी .
विद्युत ऊर्जा आधारित औद्योगिक संयंत्रो में उत्पाद का न्यूनतम मूल्य रखने की गला काट वर्तमान प्रतिस्पर्धा व श्रेष्ठतम उत्पाद बाजार में लाने की होड़ कारपोरेट जगत को नवीनतम वैश्विक तकनीक को अपनाकर कम से कम संभव लागत में अपने उत्पाद प्रस्तुत करने हेतु प्रेरित कर रही है , यही मितव्ययता का मूल सिद्धांत है . यदि एटी एण्ड सी हानियो को ध्यान में रखें तो खपत बिंदु पर लाई गई कमी उत्पादन बिंदु पर अति महत्व पूर्ण आर्थिक प्रभाव छोड़ती है . देश के विभिन्न क्षेत्रो में वर्तमान में ए टी एण्ड सी हानि लगभग २५ प्रतिशत है . यही वित्तीय प्रभाव ई ई एस एळ की पूंजी है .
उद्योगो के अतिरिक्त उर्जा मांग के कुछ बड़े कार्य क्षेत्र नगर निगमों के कार्य , कृषि कार्य जिनमें सिंचाई के कार्य प्रमुख हैं , सार्वजनिक निर्माण, प्रकाश व्यवस्था आदि हैं . इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड , ESCO कंपनी है और अन्य कंपनियों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के साथ साझेदारी को प्रोत्साहन देकर मितव्ययी विद्युत खपत हेतु कार्यरत है . मितव्ययता का मूल अर्थ ही होता है कि सुविधाओ में कटौती किये हुये बिना उर्जा के व्यय में कमी लाना अर्थात खपत की जा रही ऊर्जा का श्रेष्ठतम संभव उपयोग करने की व्यवस्था करना . इसके लिये एस्को विधि अपनाई जाती है . आइये समझें कि एस्को का अर्थ क्या है ? व यह व्यवस्था किस तरह व्यवसायिक रूप से मैदानी कार्य करती है .
" इनर्जी सर्विसेज कंपनी " (ESCO) औद्योगिक इकाइयों , वाणिज्यिक परिसरों, अस्पतालों, नगर पालिकाओं, बड़ी इमारतों और व्यापक खपत वाले परिसरो में सर्वप्रथम इनर्जी ऑडिट करती है . तथा यह पता लगाती है कि बिना सुविधाओ में कटौती किये हुये उर्जा दक्ष उपकरणों का उपयोग करके , विद्युत की खपत में कमी लाकर कितनी आर्थिक बचत वार्षिक रूप से की जा सकती है . इस आर्थिक बचत से यह कंपनी उपभोक्ता हेतु सुझाये गये सुधारों के पैकेज पर व्यय की गई अपनी पूंजी को पुनः एक निश्चित समयावधि में वापस प्राप्त करते हैं . इस तरह ESCO द्वारा सुधार पैकेज के क्रियांवयन से , बिना स्वयं किसी निवेश के तथा अपनी वांछित जरूरतो में कोई कटौती किये बिना ही उपभोक्ता के परिसर में नवीनतम विश्व स्तरीय तकनीक व उर्जा दक्ष उपकरण स्थापित कर दिये जाते हैं , जो ESCO के निवेश पुनर्प्राप्त कर लिये जाने के बाद उपभोक्ता की ही संपत्ति बन जाते हैं तथा इस तरह उपभोक्ता बाद में भी अपने बिजली बिल में नियमित बचत करता रहता है , जिसका पूरा लाभ उसे निरंतर होता रहता है , और व्यापक रूप से देश व समाज लाभान्वित होता है . यही इनर्जी सर्विसेज कंपनियो की स्थापना का उद्देश्य भी है . ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के लागू होने तथा अगले पांच वर्षों में चुनिंदा सरकारी संगठनों में ऊर्जा की खपत को 30% कम करने के लिए केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता के लागू होने के साथ, ESCO व्यापार को बढ़ावा मिला है. ESCO कंपनी व्यापक सेवाओं के साथ अपने ग्राहकों को इनर्जी आडिट ,ऊर्जा की बचत का स्पष्ट प्रदर्शन,उर्जा संरक्षण के उपायों की डिजाइन और कार्यान्वयन , रखरखाव, परियोजना संचालन , वित्तीय व्यवस्था सुलभ करवाती है . सामान्यतः ESCOs पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना ऊर्जा संरक्षण के लिए 5 से 10 साल की अवधि में पूरी परियोजना की लागत को कवर करने की गारंटी के साथ कार्य करती हैं .
ESCO आधारित व्यापार मॉडल के माध्यम से ऊर्जा बचत के करार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
ग्राहक द्वारा 'शून्य' निवेश.
ESCO मौजूदा अक्षम प्रणाली की जगह ऊर्जा कुशल उपाय की पहचान करती है .
ESCO अनुबंध अवधि के दौरान ऊर्जा कुशल उपाय स्थापित करती है और उसे बनाये रखने हेतु जरूरी संचालन संधारण करती है.
परस्पर सहमति के अनुसार अनुबंध अवधि 3-5 या 10 साल तक भी हो सकती है.
सहमत शर्तों के अनुसार ऊर्जा की बचत ESCO और ग्राहक के बीच बांटी जाती है जबकि सुधार परियोजना की लागत ESCO द्वारा वित्त पोषित होती है.
ESCO ऊर्जा बचत की गारंटी देती है .
परियोजना अवधि के बाद जब ब्याज और अन्य खर्च सहित ESCO अपने निवेश की पुनर्प्राप्ति कर लेती है तो समस्त सुधार अधोसंरचना ग्राहक की हो जाती है , व वह उससे बचत का नियमित लाभ लेता रहता है .
इस बीच ESCO ग्राहक के कर्मचारियो को नई संरचना के समुचित उपयोग हेतु आवश्यक प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वयं सक्षम बना देती है जिससे अनुबंध अवधि के बाद भी परियोजना यथावत जारी रह सके .
प्रकाश के लिये उर्जा दक्ष उपकरण ...
जो प्रकाश उपकरण सामान्य तौर पर प्रचलित हैं , फोकस के अभाव में उनसे ७० प्रतिशत प्रकाश व्यर्थ हो जाता है . रिफ्लेक्टर व फोकस के द्वारा एल ई डी के अति कम बिजली खपत करने वाले महत्वपूर्ण लैम्प अब उपलब्ध हैं . घरो में कैंडेंसेंट लैम्प से सी एफ एल की यात्रा अब एल ई डी लैम्प की ओर चल चुकी है . इसी तरह मरकरी व सोडियम वेपर लेम्प की जगह एल ई डी स्ट्रीट लाइट और टी ८ ट्यूब के परिवर्तन आ चुके हैं .नगर निकाय संस्थायें पारम्परिक सड़क बत्तियो के बिजली बिल पर जो व्यय करती हैं , वे इन नयी तकनीको को अपना कर एस्को माध्यम से बिना अतिरिक्त व्यय किये बिजली बचत के कीर्तिमान बना सकती है . इस बचत से जो कार्बन क्रेडिट कमाई जाती है , उससे देश वैश्विक समझौतो के अनुसार विकास के नये सोपान लिख सकता है .
जबलपुर के पास ही नर्मदा नदी के बरगी बांध डूब क्षेत्र के ग्राम खामखेड़ा को एचसीएल कम्प्यूटर के संस्थापक सदस्य पदम्भूषण अजय चौधरी के आर्थिक सहयोग से महात्मा गांधी की आत्म निर्भर गांव की फिलासफी के अनुरूप , प्रकाश के मामले में सौर्य उर्जा से प्रकाशित ग्रिड पावर रहित , गांव के रूप में विकसित करने का सफल प्रयोग हुआ है . जबलपुर के पेशे से छायाकार रजनीकांत यादव ने अपनी मेहनत से सोलर विद्युत व्यवस्था पर काम करके गांव की छोटी सी बस्ती को नन्हें एल ई डी से रोशन करने की तकनीक को मूर्त रूप दिया और परिणाम स्वरूप ७ अक्टूबर १२ को खामखेड़ा गांव रात में भी सूरज की रोशनी से नन्हें नन्हें एल ई डी के प्रकाश से नहा उठा . इस अभिनव प्रयोग को एक वर्ष पूरा होने को है और अब तक वहां से सफलता और ग्राम वासियो के संतोष की कहानी ही सुनने को मिल रही हैं . उल्लेखनीय है कि अक्टूबर २०१२ से पहले तक मिट्टी का तेल ही इस गांव में रोशनी का सहारा था , प्रति माह हर परिवार रात की रोशनी के लिये लालटेन , पैट्रोमेक्स या ढ़िबरी पर लगभग १५० से २०० रुपये खर्च कर रहा था । विद्युत वितरण कंपनी यहां बिजली पहुचाना चाहती है पर केवल ३० घरो के लिये पहुंच विहीन गांव में लंबी लाइन डालना कठिन और मंहगा कार्य था , इसके चलते अब तक यह गांव बिजली की रोशनी से दूर था . गांव के निवासियो को उद्घाटन के अवसर पर गुल्लक बांटी गई है , आशय है कि वे प्रतिदिन मिट्टीतेल से बचत होने वाली राशि संग्रहित करते जावें जिससे कि योजना का रखरखाव किया जा सके. सोलर सैल से रिचार्ज होने वाली जो बैटरी गांव वालो को दी गई है , उसकी गारंटी २ वर्ष की है , इन दो बरसो में जो राशि मिट्टी तेल की बचत से एकत्रित होगी उन लगभग ३६०० रुपयो से सहज ही नई बैटरी खरीदी जा सकेगी . यदि सूरज बादलों से ढ़का हो तो एक साइकिल चलाकर बैटरी रिचार्ज की जा सकने का प्रावधान भी किया गया है . इस तरह यह छोटा सा गैर सरकारी प्रोजेक्ट जनभागीदारी और स्व संचालित एस्को तकनीक का उदाहरण बनकर सामने आया है . वर्तमान में म. प्र. में ऐसे बिजली विहीन दूर दराज स्थित लगभग ७०० गांव हैं ,जहां यह तकनीक विस्तारित की जा सकती है .
म्युनिसिपल पीने के पानी की पम्पिंग प्रणाली में उर्जा दक्षता ...
जल प्रदाय व्यवस्था में उर्जा दक्षता की व्यापक संभावनायें है . पुराने बार बार रिवाइंडेड पम्प जिनकी दक्षता २० से ३० प्रतिशत से अधिक नही होती नये स्टार रेटेड पम्प से बदले जाते हैं . टाइमर , आटोमेटिक ट्रिपिंग स्विच लगाकर केंद्रीय नियंत्रण कक्ष की स्थापना की जाती है , जहां से सारे जल प्रदाय की देखरेख की जाती है .जल संग्रहण टंकियो में ओवर फ्लो रोकने हेतु वाटर लेवल इंडीकेटर व कट आफ स्विच लगाये जाते हैं . कैपेसिटर स्थापित करके पावर फैक्टर सुधारा जाता है, अधिकतम मांग को कनेक्शन की शर्तो के अनुसार नियंत्रित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप बिजली बिल में भारी कमी लाई जा सकती है . एक बड़े पम्प की जगह समानांतर रूप से २ या ३ पम्प लगाये जाते हैं . पीवीसी की घर्षण रहित पाइपलाइन का प्रयोग किया जाता है . इन उपायो से बिजली की खपत में बड़ी कमी लाने के अनेक सफल प्रयोग देश भर में जगह जगह हो चुके हैं .
हम अपने घरो में भी प्रकाश व पम्प इत्यादि के ये उन्नत स्टार रेटेड उपकरण प्रयोग करके बिजली बिल की बचत से उन्नत उपकरणो के किंचित अधिक मूल्य की भरपाई सहज ही कर सकते हैं .
जल्दी ही स्टार रेटेड पंखे भी बाजार में उतारे जा रहे हैं . जिनका मूल्य निश्चित ही वर्तमान उपलब्ध पंखो से ज्यादा होगा पर उनकी उर्जा खपत वर्तमान पंखो की तुलना में ३० प्रतिशत ही होगी .
कृषि कार्यो हेतु भी सिचाई के लिये उपरोक्त तकनीकी व्यवस्थाओ से कृषको द्वारा बिना कोई व्यय किये उनके पम्प निकाल कर नष्ट कर दिये जाते हैं व उनके स्थान पर स्टार रेटिंग के नये पम्प लगा दिये जाते हैं .अनुबंध अवधि में खराब होने पर एस्को ही खराब पम्प को बिना मूल्य लिये बदलती है . इस तरह किसानो को बिना किसी व्यय के नये पम्प सुलभ हो जाते हैं , डिस्काम की बिजली बचती है . डिस्काम को इस परिवर्तन से जो बिजली की बचत होती है , वह उसे अंयत्र बेचकर धनार्जन करती है , जिसका आनुपातिक बंटवारा डिस्काम व एस्को में किया जाता है . इससे ही एस्को अपनी परियोजना व्यय की पूर्ति करती है . महाराष्ट्र , आंध्र , कर्नाटक आदि प्रदेशो में बड़ी संख्या में इस तरह के करार विद्युत वितरण कंपनियो से हुये हैं ,म प्र में भी इस हेतु उच्च स्तरीय वार्तायें चल रही है .
औद्योगिक संस्थानो के लिये परफार्म , एचीव एण्ड ट्रेड . " पी ए टी" तकनीक लाई गई है . जिसमें एक नियत समय में उर्जा बचत के लक्ष्य पूर्ति पर इंसेंटिव की व्यवस्था की गई है . साथ ही उच्च मापदण्ड पूर्ण करने पर बाजार में ट्रेडेबल इनर्जी सेविंग सर्टिफिकेट जारी किये जाते हैं , जो उन संस्थानो द्वारा क्रय किये जा सकते हैं जिन्होने किन्ही कारणो से अपने लक्ष्य समय पर पूरे न किये हो .
इसी तरह लघु व मध्यम उद्योगो के क्लस्टर्स हेतु भी अनेक योजनाये उर्जा बचत को प्रोत्साहित करने के लिये बनाई गई हैं , जो उद्योग विशेष के अनुसार नवीनतम तकनीक के प्रशिक्षण व प्रयोग को लेकर हैं . आवश्यकता है कि अभियंता अपने अपने कार्य क्षेत्रो में इन नवीनतम तकनीको को प्रयोग करे तथा प्रोत्साहित करें जिससे उर्जा दक्षता के लक्ष्य पाये जा सकें तथा एस्को कंपनियो के सर्वथा नये कारोबार को विस्तार मिल सके . इस तरह जब उर्जा दक्ष उपकरणो की खपत बढ़ जायेगी तो इन स्टार रेटेड उपकरणो का मूल्य स्वतः ही कम होगा व गैर स्टार रेटेड उपकरण बाजार से स्वयं ही बाहर हो जावेंगे व उनका उत्पादन कम होता जायेगा .
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एलियन इनर्जी नामक एस्को कंपनी की दो संपन्न परियोजनाओ के आंकड़े योजनाओ की सफलता की कहानी कहते हैं .....
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता
सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर , ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंशी
सदस्य ..डिमांड साइड मैनेजमेंट कमेटी , म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह बिजली ही है . बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .बिजली का निर्धारित मूल्य चुका देने से भी कोई इसके दुरुपयोग करने का अधिकारी नहीं बन सकता , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी पर आधारित हैं .राजनैतिक कारणों से बिना दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाये १९९० के दशक में कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों मुफ्त बिजली बांटी .जो तमाम सुधार कानूनो के बाद भी आज तक जारी है . इसका दुष्परिणाम यह हुआ है कि एक समूची पीढ़ी को मुफ्त विद्युत के दुरुपयोग की आदत पड गई है . लोग बिजली को हवा , पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझने लगे हैं . विद्युत प्रणाली के साथ बुफे डिनर सा मनमाना व्यवहार होने लगा है . जिसे जब जहाँ जरूरत हुई स्वयं ही लंगर ,हुक ,आंकडा डालकर तार जोड कर लोग अपना काम निकालने में माहिर हो गये हैं . खेतों में पम्प , थ्रेशर, गावों में घरों में उजाले के लिये , सामाजिक , धार्मिक आयोजनों , निर्माण कार्यों के लिये अवैधानिक कनेक्शन से विद्युत के उपयोग को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है . ऐसा करने में लोगों को अपराध बोध नहीं होता . यह दुखद स्थिति है . मुफ्त बिजली देश में मितव्ययी विद्युत उपयोग की विकास योजनाओ की एक बहुत बड़ी बाधा है . वर्तमान बिजली संकट से निपटने हेतु जहाँ विद्युत उत्पादन बढ़ाना एवं न्यूनतम हानि के साथ बिजली का पारेषण जरूरी है वहीं डिमांड साइड मैनेजमेंट महत्वपूर्ण है .
हमारे देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से होता है, जिनमें कोयले , प्राकृतिक गैस , व खनिज तेल को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,और इन प्राकृतिक संसाधनो के भण्डार सीमित हैं . इतना ही नही बिजली उत्पादन बिन्दु पर बिजली घरो से फैलने वाला प्रदूषण , तथा बिजली के अनियंत्रित उपयोग से खपत बिन्दु पर प्रयुक्त उपकरणो से जनित प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रदूषण जलवायु परिवर्तन की वैश्विक चिंता का कारण भी है .
हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत ८ मिशन निर्धारित किये गये हैं . इनमें राष्ट्रीय सौर मिशन , राष्ट्रीय जल मिशन , ग्रीन इंडिया मिशन , सस्टेनेबल कृषि मिशन , स्ट्रेटेजिक नालेज मिशन , सतत पर्यावास मिशन , हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र को कायम रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन तथा इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन शामिल हैं .
इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए राष्ट्रीय मिशन को क्रियांवित करने हेतु ,केंद्र और राज्य सरकारों या उसकी एजेंसियों की उर्जा दक्षता नीतियों ,योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिए दिसम्बर २००९ में कंपनी एक्ट १९५६ के अंतर्गत ई ई एस एळ अर्थात इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड का गठन किया गया है . भारत सरकार के उर्जा मंत्रालय द्वारा प्रवर्तित तथा नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन , पावर फाइनेंस कारपोरेशन , ग्रामीण विद्युतीकरण कारपोरेशन एवं पावर ग्रिड की संयुक्त भागीदारी से बनाई गई यह कंपनी देश में ऊर्जा दक्षता बाजार के विकास हेतु प्रयत्नशील है .विकास शील देशो में पूंजी का संकट नवाचारी परियोजनाओ को लागू करने में बहुत बड़ी बाधा होता है , अतः उपभोक्ता त्वरित बड़े व्यय को टालने के लिये उपलब्ध पुरानी तकनीक व संसाधनो पर आश्रित बने रहते हैं . इस जड़ता को दूर करने के लिये ब्युरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी के साथ मिलकर ई ई एस एळ , इनहेंस्ड इनर्जी एफिशियेंसी के लिए व्यवसायिक गतिविधियो को विकसित कर रही है .एक अनुमान के अनुसार भारत में उर्जा दक्षता के क्षेत्र में ७५००० करोड़ के व्यवसाय की संभावनायें हैं जो अब तक अछूती पड़ी हैं . इससे वर्तमान बिजली की खपत १५ प्रतिशत तक कम की जा सकती है . निरंतर बढ़ते हुयी बिजली की दरो के चलते इससे जो आर्थिक बचत होगी वह अनुमान से लगातार अधिक होती जायेगी .
विद्युत ऊर्जा आधारित औद्योगिक संयंत्रो में उत्पाद का न्यूनतम मूल्य रखने की गला काट वर्तमान प्रतिस्पर्धा व श्रेष्ठतम उत्पाद बाजार में लाने की होड़ कारपोरेट जगत को नवीनतम वैश्विक तकनीक को अपनाकर कम से कम संभव लागत में अपने उत्पाद प्रस्तुत करने हेतु प्रेरित कर रही है , यही मितव्ययता का मूल सिद्धांत है . यदि एटी एण्ड सी हानियो को ध्यान में रखें तो खपत बिंदु पर लाई गई कमी उत्पादन बिंदु पर अति महत्व पूर्ण आर्थिक प्रभाव छोड़ती है . देश के विभिन्न क्षेत्रो में वर्तमान में ए टी एण्ड सी हानि लगभग २५ प्रतिशत है . यही वित्तीय प्रभाव ई ई एस एळ की पूंजी है .
उद्योगो के अतिरिक्त उर्जा मांग के कुछ बड़े कार्य क्षेत्र नगर निगमों के कार्य , कृषि कार्य जिनमें सिंचाई के कार्य प्रमुख हैं , सार्वजनिक निर्माण, प्रकाश व्यवस्था आदि हैं . इनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेज लिमिटेड , ESCO कंपनी है और अन्य कंपनियों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के साथ साझेदारी को प्रोत्साहन देकर मितव्ययी विद्युत खपत हेतु कार्यरत है . मितव्ययता का मूल अर्थ ही होता है कि सुविधाओ में कटौती किये हुये बिना उर्जा के व्यय में कमी लाना अर्थात खपत की जा रही ऊर्जा का श्रेष्ठतम संभव उपयोग करने की व्यवस्था करना . इसके लिये एस्को विधि अपनाई जाती है . आइये समझें कि एस्को का अर्थ क्या है ? व यह व्यवस्था किस तरह व्यवसायिक रूप से मैदानी कार्य करती है .
" इनर्जी सर्विसेज कंपनी " (ESCO) औद्योगिक इकाइयों , वाणिज्यिक परिसरों, अस्पतालों, नगर पालिकाओं, बड़ी इमारतों और व्यापक खपत वाले परिसरो में सर्वप्रथम इनर्जी ऑडिट करती है . तथा यह पता लगाती है कि बिना सुविधाओ में कटौती किये हुये उर्जा दक्ष उपकरणों का उपयोग करके , विद्युत की खपत में कमी लाकर कितनी आर्थिक बचत वार्षिक रूप से की जा सकती है . इस आर्थिक बचत से यह कंपनी उपभोक्ता हेतु सुझाये गये सुधारों के पैकेज पर व्यय की गई अपनी पूंजी को पुनः एक निश्चित समयावधि में वापस प्राप्त करते हैं . इस तरह ESCO द्वारा सुधार पैकेज के क्रियांवयन से , बिना स्वयं किसी निवेश के तथा अपनी वांछित जरूरतो में कोई कटौती किये बिना ही उपभोक्ता के परिसर में नवीनतम विश्व स्तरीय तकनीक व उर्जा दक्ष उपकरण स्थापित कर दिये जाते हैं , जो ESCO के निवेश पुनर्प्राप्त कर लिये जाने के बाद उपभोक्ता की ही संपत्ति बन जाते हैं तथा इस तरह उपभोक्ता बाद में भी अपने बिजली बिल में नियमित बचत करता रहता है , जिसका पूरा लाभ उसे निरंतर होता रहता है , और व्यापक रूप से देश व समाज लाभान्वित होता है . यही इनर्जी सर्विसेज कंपनियो की स्थापना का उद्देश्य भी है . ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 के लागू होने तथा अगले पांच वर्षों में चुनिंदा सरकारी संगठनों में ऊर्जा की खपत को 30% कम करने के लिए केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता के लागू होने के साथ, ESCO व्यापार को बढ़ावा मिला है. ESCO कंपनी व्यापक सेवाओं के साथ अपने ग्राहकों को इनर्जी आडिट ,ऊर्जा की बचत का स्पष्ट प्रदर्शन,उर्जा संरक्षण के उपायों की डिजाइन और कार्यान्वयन , रखरखाव, परियोजना संचालन , वित्तीय व्यवस्था सुलभ करवाती है . सामान्यतः ESCOs पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना ऊर्जा संरक्षण के लिए 5 से 10 साल की अवधि में पूरी परियोजना की लागत को कवर करने की गारंटी के साथ कार्य करती हैं .
ESCO आधारित व्यापार मॉडल के माध्यम से ऊर्जा बचत के करार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
ग्राहक द्वारा 'शून्य' निवेश.
ESCO मौजूदा अक्षम प्रणाली की जगह ऊर्जा कुशल उपाय की पहचान करती है .
ESCO अनुबंध अवधि के दौरान ऊर्जा कुशल उपाय स्थापित करती है और उसे बनाये रखने हेतु जरूरी संचालन संधारण करती है.
परस्पर सहमति के अनुसार अनुबंध अवधि 3-5 या 10 साल तक भी हो सकती है.
सहमत शर्तों के अनुसार ऊर्जा की बचत ESCO और ग्राहक के बीच बांटी जाती है जबकि सुधार परियोजना की लागत ESCO द्वारा वित्त पोषित होती है.
ESCO ऊर्जा बचत की गारंटी देती है .
परियोजना अवधि के बाद जब ब्याज और अन्य खर्च सहित ESCO अपने निवेश की पुनर्प्राप्ति कर लेती है तो समस्त सुधार अधोसंरचना ग्राहक की हो जाती है , व वह उससे बचत का नियमित लाभ लेता रहता है .
इस बीच ESCO ग्राहक के कर्मचारियो को नई संरचना के समुचित उपयोग हेतु आवश्यक प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वयं सक्षम बना देती है जिससे अनुबंध अवधि के बाद भी परियोजना यथावत जारी रह सके .
प्रकाश के लिये उर्जा दक्ष उपकरण ...
जो प्रकाश उपकरण सामान्य तौर पर प्रचलित हैं , फोकस के अभाव में उनसे ७० प्रतिशत प्रकाश व्यर्थ हो जाता है . रिफ्लेक्टर व फोकस के द्वारा एल ई डी के अति कम बिजली खपत करने वाले महत्वपूर्ण लैम्प अब उपलब्ध हैं . घरो में कैंडेंसेंट लैम्प से सी एफ एल की यात्रा अब एल ई डी लैम्प की ओर चल चुकी है . इसी तरह मरकरी व सोडियम वेपर लेम्प की जगह एल ई डी स्ट्रीट लाइट और टी ८ ट्यूब के परिवर्तन आ चुके हैं .नगर निकाय संस्थायें पारम्परिक सड़क बत्तियो के बिजली बिल पर जो व्यय करती हैं , वे इन नयी तकनीको को अपना कर एस्को माध्यम से बिना अतिरिक्त व्यय किये बिजली बचत के कीर्तिमान बना सकती है . इस बचत से जो कार्बन क्रेडिट कमाई जाती है , उससे देश वैश्विक समझौतो के अनुसार विकास के नये सोपान लिख सकता है .
जबलपुर के पास ही नर्मदा नदी के बरगी बांध डूब क्षेत्र के ग्राम खामखेड़ा को एचसीएल कम्प्यूटर के संस्थापक सदस्य पदम्भूषण अजय चौधरी के आर्थिक सहयोग से महात्मा गांधी की आत्म निर्भर गांव की फिलासफी के अनुरूप , प्रकाश के मामले में सौर्य उर्जा से प्रकाशित ग्रिड पावर रहित , गांव के रूप में विकसित करने का सफल प्रयोग हुआ है . जबलपुर के पेशे से छायाकार रजनीकांत यादव ने अपनी मेहनत से सोलर विद्युत व्यवस्था पर काम करके गांव की छोटी सी बस्ती को नन्हें एल ई डी से रोशन करने की तकनीक को मूर्त रूप दिया और परिणाम स्वरूप ७ अक्टूबर १२ को खामखेड़ा गांव रात में भी सूरज की रोशनी से नन्हें नन्हें एल ई डी के प्रकाश से नहा उठा . इस अभिनव प्रयोग को एक वर्ष पूरा होने को है और अब तक वहां से सफलता और ग्राम वासियो के संतोष की कहानी ही सुनने को मिल रही हैं . उल्लेखनीय है कि अक्टूबर २०१२ से पहले तक मिट्टी का तेल ही इस गांव में रोशनी का सहारा था , प्रति माह हर परिवार रात की रोशनी के लिये लालटेन , पैट्रोमेक्स या ढ़िबरी पर लगभग १५० से २०० रुपये खर्च कर रहा था । विद्युत वितरण कंपनी यहां बिजली पहुचाना चाहती है पर केवल ३० घरो के लिये पहुंच विहीन गांव में लंबी लाइन डालना कठिन और मंहगा कार्य था , इसके चलते अब तक यह गांव बिजली की रोशनी से दूर था . गांव के निवासियो को उद्घाटन के अवसर पर गुल्लक बांटी गई है , आशय है कि वे प्रतिदिन मिट्टीतेल से बचत होने वाली राशि संग्रहित करते जावें जिससे कि योजना का रखरखाव किया जा सके. सोलर सैल से रिचार्ज होने वाली जो बैटरी गांव वालो को दी गई है , उसकी गारंटी २ वर्ष की है , इन दो बरसो में जो राशि मिट्टी तेल की बचत से एकत्रित होगी उन लगभग ३६०० रुपयो से सहज ही नई बैटरी खरीदी जा सकेगी . यदि सूरज बादलों से ढ़का हो तो एक साइकिल चलाकर बैटरी रिचार्ज की जा सकने का प्रावधान भी किया गया है . इस तरह यह छोटा सा गैर सरकारी प्रोजेक्ट जनभागीदारी और स्व संचालित एस्को तकनीक का उदाहरण बनकर सामने आया है . वर्तमान में म. प्र. में ऐसे बिजली विहीन दूर दराज स्थित लगभग ७०० गांव हैं ,जहां यह तकनीक विस्तारित की जा सकती है .
म्युनिसिपल पीने के पानी की पम्पिंग प्रणाली में उर्जा दक्षता ...
जल प्रदाय व्यवस्था में उर्जा दक्षता की व्यापक संभावनायें है . पुराने बार बार रिवाइंडेड पम्प जिनकी दक्षता २० से ३० प्रतिशत से अधिक नही होती नये स्टार रेटेड पम्प से बदले जाते हैं . टाइमर , आटोमेटिक ट्रिपिंग स्विच लगाकर केंद्रीय नियंत्रण कक्ष की स्थापना की जाती है , जहां से सारे जल प्रदाय की देखरेख की जाती है .जल संग्रहण टंकियो में ओवर फ्लो रोकने हेतु वाटर लेवल इंडीकेटर व कट आफ स्विच लगाये जाते हैं . कैपेसिटर स्थापित करके पावर फैक्टर सुधारा जाता है, अधिकतम मांग को कनेक्शन की शर्तो के अनुसार नियंत्रित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप बिजली बिल में भारी कमी लाई जा सकती है . एक बड़े पम्प की जगह समानांतर रूप से २ या ३ पम्प लगाये जाते हैं . पीवीसी की घर्षण रहित पाइपलाइन का प्रयोग किया जाता है . इन उपायो से बिजली की खपत में बड़ी कमी लाने के अनेक सफल प्रयोग देश भर में जगह जगह हो चुके हैं .
हम अपने घरो में भी प्रकाश व पम्प इत्यादि के ये उन्नत स्टार रेटेड उपकरण प्रयोग करके बिजली बिल की बचत से उन्नत उपकरणो के किंचित अधिक मूल्य की भरपाई सहज ही कर सकते हैं .
जल्दी ही स्टार रेटेड पंखे भी बाजार में उतारे जा रहे हैं . जिनका मूल्य निश्चित ही वर्तमान उपलब्ध पंखो से ज्यादा होगा पर उनकी उर्जा खपत वर्तमान पंखो की तुलना में ३० प्रतिशत ही होगी .
कृषि कार्यो हेतु भी सिचाई के लिये उपरोक्त तकनीकी व्यवस्थाओ से कृषको द्वारा बिना कोई व्यय किये उनके पम्प निकाल कर नष्ट कर दिये जाते हैं व उनके स्थान पर स्टार रेटिंग के नये पम्प लगा दिये जाते हैं .अनुबंध अवधि में खराब होने पर एस्को ही खराब पम्प को बिना मूल्य लिये बदलती है . इस तरह किसानो को बिना किसी व्यय के नये पम्प सुलभ हो जाते हैं , डिस्काम की बिजली बचती है . डिस्काम को इस परिवर्तन से जो बिजली की बचत होती है , वह उसे अंयत्र बेचकर धनार्जन करती है , जिसका आनुपातिक बंटवारा डिस्काम व एस्को में किया जाता है . इससे ही एस्को अपनी परियोजना व्यय की पूर्ति करती है . महाराष्ट्र , आंध्र , कर्नाटक आदि प्रदेशो में बड़ी संख्या में इस तरह के करार विद्युत वितरण कंपनियो से हुये हैं ,म प्र में भी इस हेतु उच्च स्तरीय वार्तायें चल रही है .
औद्योगिक संस्थानो के लिये परफार्म , एचीव एण्ड ट्रेड . " पी ए टी" तकनीक लाई गई है . जिसमें एक नियत समय में उर्जा बचत के लक्ष्य पूर्ति पर इंसेंटिव की व्यवस्था की गई है . साथ ही उच्च मापदण्ड पूर्ण करने पर बाजार में ट्रेडेबल इनर्जी सेविंग सर्टिफिकेट जारी किये जाते हैं , जो उन संस्थानो द्वारा क्रय किये जा सकते हैं जिन्होने किन्ही कारणो से अपने लक्ष्य समय पर पूरे न किये हो .
इसी तरह लघु व मध्यम उद्योगो के क्लस्टर्स हेतु भी अनेक योजनाये उर्जा बचत को प्रोत्साहित करने के लिये बनाई गई हैं , जो उद्योग विशेष के अनुसार नवीनतम तकनीक के प्रशिक्षण व प्रयोग को लेकर हैं . आवश्यकता है कि अभियंता अपने अपने कार्य क्षेत्रो में इन नवीनतम तकनीको को प्रयोग करे तथा प्रोत्साहित करें जिससे उर्जा दक्षता के लक्ष्य पाये जा सकें तथा एस्को कंपनियो के सर्वथा नये कारोबार को विस्तार मिल सके . इस तरह जब उर्जा दक्ष उपकरणो की खपत बढ़ जायेगी तो इन स्टार रेटेड उपकरणो का मूल्य स्वतः ही कम होगा व गैर स्टार रेटेड उपकरण बाजार से स्वयं ही बाहर हो जावेंगे व उनका उत्पादन कम होता जायेगा .
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एलियन इनर्जी नामक एस्को कंपनी की दो संपन्न परियोजनाओ के आंकड़े योजनाओ की सफलता की कहानी कहते हैं .....
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के बिजली के खम्भे ... निर्माण विधि , परीक्षण , तथा सुधार हेतु सुझाव
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के बिजली के खम्भे ... निर्माण विधि , परीक्षण , तथा सुधार हेतु सुझाव
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी व अधीक्षण अभियंता सिविल , म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर
बी ई सिविल , पोस्ट ग्रेजुएट मशीन फाउण्डेशन ,डिप्लोमा इन मैनेजमेंट , सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर , फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स
लेखक की हिन्दी कृति "बिजली का बदलता परिदृश्य" चर्चित है . इंस्टीट्यूशन के हिन्दी जरनल , विज्ञान प्रगति , आविष्कार सहित अनेक पत्र पत्रिकाओ में हिन्दी में नियमित लेखन करते रहे हैं . सम्मानित व पुरस्कृत हुये हैं .
हमारी जानकारी में हिन्दी में पी सी सी पोल पर यह अब तक का पहला आलेख है .
विभिन्न तरह के बिजली के खम्भे ......
हमारा देश आकार में बहुत बड़ा है , विद्युत उत्पादन केंद्र से विद्युत उपभोग के बिन्दु तक बिजली तारो पर उच्च दाब एवं निम्न दाब के उपकेंद्रो से होते हुये लंबा मार्ग तय करके हम तक पहुंचती है . उच्च दाब की बिजली की लाइनें स्टील के टावर अर्थात फ्रेम्ड स्ट्रक्चर पर बनाई गई हैं . ३३ किलोवोल्ट की लाइने भी शहरी मार्गो में तथा घने जंगलो में भी रेल पोल या रोल्ड स्टील की ज्वाइस्ट के आई सेक्शन की बनायी जाती हैं . मितव्ययता की दृष्टि से रीनफोर्सड सीमेंट कांक्रीट , प्रिस्ट्रेस्ड सीमेंट कांक्रीट , स्पन्ड सीमेंट क्रांक्रीट के पाइप के खंबे भी अलग अलग डिजाइन तथा लंबाई के बहतायत में प्रयुक्त किये जा रहे हैं . देश की अलग अलग वितरण कंपनियां अपने अपने कार्य क्षेत्रो में किंचित परिवर्तनो के साथ पी सी सी खंबे ही विद्युतीकरण के लिये कर रही हैं . सामान्यतः ८ मीटर लंबाई, १४० किलो स्ट्रेन्ग्थ के खंभे ४४० तथा २२० वोल्ट की वितरण लाइन हेतु एवं ९.१ मीटर लंबाई , २८० किलो स्ट्रेंग्थ के खंबे ३३ किलोवोल्ट की लाइनो हेतु मध्य प्रदेश में उपयोग किये जा रहे हैं .
क्या है प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट .....
यदि हमें अलमारी में साथ रखी हुई कुछ किताबो को एक ही बार में कुछ दूरी तक ले जाना हो तो हम क्या करते हैं ? हम किताबो के उस समूह को बांये व दाहिने दोनो ओर से अपने दोनो हाथो से भीतर की ओर दबाते हैं और पूरी किताबें बिना किसी तरह के अन्य सपोर्ट के एक साथ ले जाते हैं . दरअसल इस प्रक्रिया में दोनो हाथो के दबाव से हम किताबो को प्री स्ट्रैस देते हैं . यही प्री स्ट्रैसिंग का मूल सिद्धांत है . जहां रीनफोर्सड सीमेंट कांक्रीट में लोहे की छड़ें डालनी पड़ती हैं , वहीं
प्रिस्ट्रेस्ड सीमेंट कांक्रीट के खंभो में छड़ो की जगह उच्च तनाव क्षमता के ४ मिली मीटर व्यास के तारो से रीनफोर्समेंट के साथ प्रिस्ट्रेसिंग का भी काम हो जाता है तथा अधिक लचीलापन प्राप्त किया जाता है . प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के खंबे निर्माण के समय उच्च तनाव क्षमता के तारो को तानकर ही कांक्रीटिंग की जाती है जिससे शुरू से ही कांक्रीट उच्च काम्प्रेशन में रहता है .
निर्माण सामग्री की गुणवत्ता .....
पी सी सी खम्भो के निर्माण हेतु उपयोग की जा रही रेत व गिट्टि अर्थात फाइन व कोर्स एग्रीगेट IS: 383-1970 के अनुरूप होना चाहिये . विभिन्न तरह की अम्लीय , क्षारीय , लवणीय अशुद्धियो से मुक्त ,समुचित रूप से ग्रेडेड ,फाइन एवं कोर्स एग्रीगेट ही निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है . रेत की ग्रैडिंग हेतु IS:2386-1963 के निर्देशो का पालन किया जाना चाहिये .
सीमेंट IS:8112 या IS: 12269 के अनुरूप होनी चाहिये . ओ पी सी अथवा पी पी सी सीमेंट का प्रयोग किया जाता है . प्रयुक्त सीमेंट का भंडारण इस तरह किया जाना चाहिये कि उसमें कोई बाहरी अशुद्धियां न मिल पावें तथा नमी के कारण उसका कोई सेटलमेंट न हुआ हो .
हाई टेंसाइल का ४ मि मी व्यास का स्टील तार 17500 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंमी टेंसाइल स्ट्रेंग्थ का उपयोग किया जाता है . IS:6003-1970 के अनुरूप Cold drawn indented wire अर्थात ठंडी विधि से खिंचा गया तार जिस पर कांक्रीट की समुचित पकड़ के लिये नियमत दूरी पर कट लगे हो का उपयोग किया जाना चाहिये . लगाये जाने से पहले तार में किसी तरह का जंग आदि नही लगना चाहिये .
कांक्रीट मिक्स बनाने तथा निर्मित खम्भों की क्युरिंग में जो पानी उपयोग में लाया जावे वह क्लोराइड , सल्फेट , लवणो व आर्गेनिक पदार्थो से मुक्त होना चाहिये .
चित्र १
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट खम्भों की निर्माण विधि .......
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के खम्भों की ढ़लाई फैक्ट्री में , स्थान की उपलब्धता के अनुसार सामान्यतः ६ से १० खम्भों की लाइन में एक साथ की जाती है . इसके लिये लोहे की प्लेट के सांचे स्थापित किये जाते हैं . सांचो के आधार में खम्भे की डिजाइन के अनुसार ढ़ाल या संकीर्णनन बनाया गया होता है , जिससे खम्भा आधार में चौड़ा तथा उपर पतला बनता है . दो दो खम्भो की संयुक्त लाइनें बनाई जाती हैं .
प्रत्येक खम्भे के दोनो छोर पर एक प्लेट लगाई जाती है ,जिसमें रीनफोर्समेंट के लिये नियत स्थान पर छेद बने होते हैं .निर्माण लाइन के एक सिरे पर हाइ टेंसाइल स्ट्रेंग्थ के तार को वेज के द्वारा फिक्स कर दिया जाता है . दूसरे सिरे को कुशल मजदूर के द्वारा प्रत्येक खम्भे के सिरे पर लगी प्लेट में बने निर्धारित छेद में पिरोते हुये निर्माण लाइन के अंतिम सिरे तक पहुंचाया जाता है , जहां एक टेंशनिंग गेंट्री लगी होती है . टेंशनिंग गेंट्री की मोटर को चलाकर तय किया टेंशन तार में दिया जाता है एवं तार के सिरे को प्रत्येक खंबे के सिरो पर वेज के द्वारा फिक्स कर दिया जाता है .ड्राइंग के अनुसार लगाये गये सभी तारो में बराबरी का टेंशन दिया जाना जरूरी होता है . यह प्रक्रिया सांचे की सफाई के बाद की जाती है , जिससे ढ़लाई साफ सुथरी हो . लम्बाई में हर खम्भे के सांचे के बाद लगभग ५० सेंटीमीटर की जगह खाली छोड़ी जाती है , जिसमें कांक्रीटिंग नही होती , कास्टिंग किये जाने के बाद ३ दिनो की प्रारंभिक स्ट्रेंग्थ मिल जाने पर, हाई स्टील वायर को वेल्डिंग मशीन से या कटर से काट कर खंभो को अलग अलग कर लिया जाता है .
चित्र २ , ३ , ४
पी सी सी खंभो का निर्माण IS 1678-1998 के दिशा निर्देशो के अनुसार किया जाता है .
जरूरी है कि निर्माण हेतु जब कांक्रीट मिक्स तैयार किया जावे तो उसमें न्यूनतम आवश्यक पानी ही मिलाया जावे जिससे सूखने पर खम्भे मे किसी तरह की केपलरी पोरोसिटी न हो व उच्च घनत्व का खम्भा निर्मित हो . कांक्रीट IS:1343-1980 एवं IS:456-2000 के अनुसार डिजाइन मिक्स होना चाहिये जिसके क्यूब परीक्षण पर 28 दिनो बाद कम से कम 420 किलोग्राम प्रति सेमी की स्ट्रेंग्थ मिलनी चाहिये अर्थात पी सी सी खम्बो के लिये एम ४२ कांक्रीट का प्रयोग किया जाता है . सीमेंट रेत तथा गिट्टी को पानी के साथ मिक्सर में डिजाइन के अनुरूप वजन से आनुपातिक रूप से समुचित तरीके से मिलाकर ही प्रयुक्त करना चाहिये .
सांचो में निश्चित समय सीमा में ही तुरंत बनाया गया कांक्रीट डाला जाना चाहिये . तार के उपर कम से कम २० मिली मीटर का निर्धारित कांक्रीट कवर सुनिश्चित किया जाना चाहिये . वाइब्रेटर तथा काम्पेक्शन निर्धारित गुणवत्ता के अनुरूप होना बहुत जरूरी है . देखना चाहिये कि गीले कांक्रीट का तापमान ठंडे मौसम में ४.५ डिग्री सेंटीग्रेड कम पर तथा गरम मौसम में ३८ डिग्री से अधिक न होवे .
कांक्रीटिंग के तुरंत बाद जब कांक्रीट हलका गीला होता है , खंभे पर निर्माता अपनी फैक्ट्री का नाम एवं निर्माण तिथि , कास्टिंग का बैच नम्बर तथा यदि निर्देश हो तो जिस कंपनी के लिये खंभो का निर्माण किया जा रहा हो उसका नाम भी अंकित कर सकता है .
चित्र ५
खम्भे की डिटेंशनिंग अर्थात प्रिस्ट्रेसिंग के दौरान जब तार का टेंशन कांक्रीट में स्थानांतरित होता है ,लगातार क्यूरिंग की जाना जरूरी है . स्टीम क्युरिंग की जावे तो इसे कुशल निरीक्षण में ही किया जाना चाहिये . स्टीम क्युरिंग से प्रारंभिक सेटिंग बहुत जल्दी हो जाती है तथा एक ही सांचे से पोल निर्माण की आवृतियां बढ़ जाती हैं .
क्युरिंग के लिये स्प्रिंकलर या टेंक क्यूरिंग में से टेंक क्युरिंग ही बेहतर विकल्प है , समुचित सट्रेंग्थ हेतु २५ दिनो की टेंक क्युरिंग व कम से कम ३ दिनो की सांचे पर निरंतर क्यूरिंग की जानी चाहिये . निर्माण स्थल से क्युरिंग टेंक तक खम्भे की हैंडलिंग बहुत सावधानी पूर्वक की जानी चाहिये अन्यथा जोर से पटकने अथवा धक्का लगने से स्थान विशेष पर खम्भा कमजोर हो सकता है . खम्भो की हैंडलिंग के लिये तार के दो आई हुक समुचित दूरी पर कास्टिग के समय ही लगाये जाने चाहिये . इसी तरह अर्थिग हेतु भी गैल्वेनाइजिंग आयरन का ४ मि मी व्यास का तार न्यूनतम कांक्रीट कवर के साथ प्रत्येक खम्भे में नियत स्थान पर लगाया जाना चाहिये .
बने हुये खंभो का भंडारण
क्यूरिंग टेंक से निकाल कर खंभो को समतल पक्की जमीन पर थप्पी बनाकर एक के उपर एक रखा जाना चाहिये , जिससे कम से कम जगह में सुरक्षित तरीके से भंडारण किया जा सके एवं ट्रक पर लोडिंग करके कार्यस्थल पर भेजने में कठिनाई व किसी तरह की दुर्घटना न हो . चूंकि खंबे एक ओर मोट तथा दूसरी ओर चौड़े होते हैं अतः हर तह अलटी पलटी स्थिति में रखी जाना उचित होता है . खंभो को निर्माण स्थल पर परिवहन के लिये क्रेन का प्रयोग होता है अतः भंडारण स्थल खुली हुई मैदानी जगह होनी चाहिये . भंडारण इस तरह किया जाता है कि खंभो के दोनो छोर पर तारकोल पोता जा सके जिससे एक एंटी कोरोजिव कोट बन सके .
चित्र ६
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल का परीक्षण ......
IS: 1678-1998. परीक्षण हेतु भंडारित खंभो में से परीक्षण हेतु नमूने चुनने के लिये दिशा दर्शन करता है . प्रत्येक १०० खम्भो में से कम से कम १ खम्भा ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण ,एवं डाइमेंशन टेस्ट हेतु चुना जाता है . ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण के प्रत्येक १० खम्भो में से कम से कम ३ खम्भो का डिस्टार्शन टेस्ट किया जाता है . डिस्टार्शन टेस्ट द्वारा देखा जाता है कि खम्भा टूटने से पहले अंततोगत्वा कितना लोड सह पाता है . ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण में IS:2905-1989 में प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल की परीक्षण विधि के अनुसार टेस्टिग बेंच पर परीक्षण किया जाता है . टेस्ट खम्भे को खड़ा फिक्स करके या जमीन पर आड़ा लिटाकर किया जा सकता है . टेस्टिंग बेंच पर खंबे के आधार से १.५ मीटर तक खम्भे को एक पक्का सपोर्ट दिया जाता है , क्योकि जब खम्भे को विद्युत लाइन में उपयोग किया जाता है तब भी उसे जमीन में १.५ मीटर का गड्ढ़ा करके पक्का गाड़ा जाता है . खम्भे के उपरी सिरे से ६० सेंटी मीटर पर एक तार बाँध कर लोड लगा कर परीक्षण किया जाता है , यह माना जाता है कि खम्भे पर जब लाइन खींची जाती है तो उसका औसत लोड ऊपरी सिरे से ६० सेटीमीटर नीचे लगता है . फैक्टर आफ सेफ्टी २.५ लिया जाता है अतः ८ मीटर लंबाई, १४० किलो स्ट्रेन्ग्थ के खंभे को ३५० किलो तक के भार पर डिस्टार्शन टेस्ट में टूटना नही चाहिये , तथा खम्भे को इतना लचीला होना चाहिये कि ३५० किलो से कम भार पर उत्पन्न हेयर क्रेक , लोड हटाने पर पूरी तरह मिट जाने चाहिये . इसी तरह ९.१ मीटर लंबाई , २८० किलो स्ट्रेंग्थ के खंबे के परीक्षण में डिस्टार्शन ७०० किलो के लोड से पहले नही होना चाहिये तथा उससे कम के लोड पर लोड हटाने पर उत्पन्न हेयर क्रेक पूरी तरह मिट जाने चाहिये . तभी खम्भे को स्वीकार किया जाता है . डाइमेंशन टेस्ट में लम्बाई धन ऋण १५ मि मी तथा चौड़ाई में धन ऋण ३ मि मी तक के परिवर्तन स्वीकार्य होते हैं . परीक्षण हेतु उपयोग में लाये जा रहे इलेक्ट्रनिक या अन्य तरह के गेज मान्य शासकीय विभाग से केलीब्रेटेड होने चाहिये .
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल का परिवहन , व उन्हें मौके पर लगाने के संबंध में IS:7321-1974 में आवश्यक निर्देश दिये गये हैं , जिनका समुचित परिपालन लाइन खड़े करते समय किया जाना चाहिये .
चित्र ७ , ८ , ९
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल के निर्माण व उपयोग में मैदानी समस्यायें तथा सुधार हेतु विचारणीय सुझाव ......
बिजली की लाइने विभिन्न तरह की जमीन , जंगल , और खेतो से होकर गुजरती हैं .काली मिट्टी गर्मी में सिकुड़ती है तथा बरसात में फूलकर अत्यंत मुलायम हो जाती है तथा उसकी बियरिंग कैपेसिटी नगण्य रह जाती है . पथरीली जमीन में निर्धारित १.५ मीटर की गहराई का गद्ढ़ा करना संभव नही होता . खेतो में पानी भरने पर खम्भे टेढ़े हो जाते हैं . अतः पी सी सी खम्भो की फाउण्डेशन पर विचार करना तथा आवश्यक सुधार अपनाना जरूरी है . फाउण्डेशन पिट को कांक्रीट से भरना एक उपाय हो सकता है . खम्भे के फाउण्डेशन के गड्ढ़े में खम्भे के नीचे आधार पर बड़ी चीप का टुकड़ा या प्रीकास्टेड आर सी सी ब्लाक रखना एक अन्य उपाय हो सकता है , जिससे खम्भे तिरछे होने की समस्या से निपटा जा सकता है . . खम्भे के निचले हिस्से में नीचे से ७५ सेंटी मीटर की उंचाई पर यदि एक छेद बनाया जावे तथा खम्भे को खड़ा करते समय उसमें एक मीटर की लोहे की छड़ स्पाइक की तरह डाली जावे तो वह भी खम्भे को सीधा खड़ा रखने में मददगार साबित हो सकती है .
अनेक पोल निर्माण संयंत्रो में पोल परीक्षण हेतु मैंने भ्रमण किया है , एवं पोल निर्माताओ से विस्तृत चर्चायें की हैं . नवोन्मेषी प्रयोगो हेतु उद्यत कुछ निर्माताओ ने मुझसे नदी की रेत के स्थान पर फाइन क्रशर डस्ट के साथ ताप बिजली घरो से निकली राख के उपयोग के संबंध में अपने सुझाव तथा उसके पोल की स्ट्रेंग्थ पर उसके प्रभाव पर शंकाये व्यक्त की .कुछ निर्माता कोर्स एग्रीग्रेट के स्थान पर क्रशर डस्ट का उपयोग करने के विकल्प प्रस्तुत करते हैं . कुछ निर्माता कांक्रीट की जल्दी सैटिंग के लिये एडमिक्सचर्स मिलाने के विषय में जानना चाहते हैं . तो कुछ लोग खम्भे के उपरी सिरे पर जहाँ तार लगाने के लिये छेद रखे जाते हैं वहां प्लास्टिक पाइप के टुकड़े कास्टिंग के दौरान डाल कर स्मूथ छेद बनाने या अतिरिक्त रिंग या तार डालकर खम्भे को टूटने से बचाने के विषय में सुझाव देते हैं . पी सी सी पोल निर्माण उद्योग मात्र व्यापार नही है . पोल की स्ट्रेंग्थ सीधे तौर पर उस पर चढ़ने वाले लाइन मैन की जान की सुरक्षा से जुड़ी होती है तथा किसी एक खम्भे के टूटने से भी जो विद्युत प्रवाह अवरुद्ध होता है उससे प्रगट अप्रगट रूप से उस विद्युत लाइन से जुड़े उपभोक्ताओ पर गहरा प्रभाव होता है.यह महत्व २.५ का जो फैक्टर आफ सेफ्टी रखा गया है उससे कही बढ़कर है , अतः पर्याप्त परीक्षण के बाद ही कोई परिवर्तन स्वीकार किया जाना चाहिये किन्तु राष्ट्र के व्यापक हित में इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलेपमेंट में मितव्ययता एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये इस दिशा में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना भी जरूरी है .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी व अधीक्षण अभियंता सिविल , म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी जबलपुर
बी ई सिविल , पोस्ट ग्रेजुएट मशीन फाउण्डेशन ,डिप्लोमा इन मैनेजमेंट , सर्टीफाइड इनर्जी मैनेजर , फैलो आफ इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स
लेखक की हिन्दी कृति "बिजली का बदलता परिदृश्य" चर्चित है . इंस्टीट्यूशन के हिन्दी जरनल , विज्ञान प्रगति , आविष्कार सहित अनेक पत्र पत्रिकाओ में हिन्दी में नियमित लेखन करते रहे हैं . सम्मानित व पुरस्कृत हुये हैं .
हमारी जानकारी में हिन्दी में पी सी सी पोल पर यह अब तक का पहला आलेख है .
विभिन्न तरह के बिजली के खम्भे ......
हमारा देश आकार में बहुत बड़ा है , विद्युत उत्पादन केंद्र से विद्युत उपभोग के बिन्दु तक बिजली तारो पर उच्च दाब एवं निम्न दाब के उपकेंद्रो से होते हुये लंबा मार्ग तय करके हम तक पहुंचती है . उच्च दाब की बिजली की लाइनें स्टील के टावर अर्थात फ्रेम्ड स्ट्रक्चर पर बनाई गई हैं . ३३ किलोवोल्ट की लाइने भी शहरी मार्गो में तथा घने जंगलो में भी रेल पोल या रोल्ड स्टील की ज्वाइस्ट के आई सेक्शन की बनायी जाती हैं . मितव्ययता की दृष्टि से रीनफोर्सड सीमेंट कांक्रीट , प्रिस्ट्रेस्ड सीमेंट कांक्रीट , स्पन्ड सीमेंट क्रांक्रीट के पाइप के खंबे भी अलग अलग डिजाइन तथा लंबाई के बहतायत में प्रयुक्त किये जा रहे हैं . देश की अलग अलग वितरण कंपनियां अपने अपने कार्य क्षेत्रो में किंचित परिवर्तनो के साथ पी सी सी खंबे ही विद्युतीकरण के लिये कर रही हैं . सामान्यतः ८ मीटर लंबाई, १४० किलो स्ट्रेन्ग्थ के खंभे ४४० तथा २२० वोल्ट की वितरण लाइन हेतु एवं ९.१ मीटर लंबाई , २८० किलो स्ट्रेंग्थ के खंबे ३३ किलोवोल्ट की लाइनो हेतु मध्य प्रदेश में उपयोग किये जा रहे हैं .
क्या है प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट .....
यदि हमें अलमारी में साथ रखी हुई कुछ किताबो को एक ही बार में कुछ दूरी तक ले जाना हो तो हम क्या करते हैं ? हम किताबो के उस समूह को बांये व दाहिने दोनो ओर से अपने दोनो हाथो से भीतर की ओर दबाते हैं और पूरी किताबें बिना किसी तरह के अन्य सपोर्ट के एक साथ ले जाते हैं . दरअसल इस प्रक्रिया में दोनो हाथो के दबाव से हम किताबो को प्री स्ट्रैस देते हैं . यही प्री स्ट्रैसिंग का मूल सिद्धांत है . जहां रीनफोर्सड सीमेंट कांक्रीट में लोहे की छड़ें डालनी पड़ती हैं , वहीं
प्रिस्ट्रेस्ड सीमेंट कांक्रीट के खंभो में छड़ो की जगह उच्च तनाव क्षमता के ४ मिली मीटर व्यास के तारो से रीनफोर्समेंट के साथ प्रिस्ट्रेसिंग का भी काम हो जाता है तथा अधिक लचीलापन प्राप्त किया जाता है . प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के खंबे निर्माण के समय उच्च तनाव क्षमता के तारो को तानकर ही कांक्रीटिंग की जाती है जिससे शुरू से ही कांक्रीट उच्च काम्प्रेशन में रहता है .
निर्माण सामग्री की गुणवत्ता .....
पी सी सी खम्भो के निर्माण हेतु उपयोग की जा रही रेत व गिट्टि अर्थात फाइन व कोर्स एग्रीगेट IS: 383-1970 के अनुरूप होना चाहिये . विभिन्न तरह की अम्लीय , क्षारीय , लवणीय अशुद्धियो से मुक्त ,समुचित रूप से ग्रेडेड ,फाइन एवं कोर्स एग्रीगेट ही निर्माण में प्रयुक्त किया जाता है . रेत की ग्रैडिंग हेतु IS:2386-1963 के निर्देशो का पालन किया जाना चाहिये .
सीमेंट IS:8112 या IS: 12269 के अनुरूप होनी चाहिये . ओ पी सी अथवा पी पी सी सीमेंट का प्रयोग किया जाता है . प्रयुक्त सीमेंट का भंडारण इस तरह किया जाना चाहिये कि उसमें कोई बाहरी अशुद्धियां न मिल पावें तथा नमी के कारण उसका कोई सेटलमेंट न हुआ हो .
हाई टेंसाइल का ४ मि मी व्यास का स्टील तार 17500 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंमी टेंसाइल स्ट्रेंग्थ का उपयोग किया जाता है . IS:6003-1970 के अनुरूप Cold drawn indented wire अर्थात ठंडी विधि से खिंचा गया तार जिस पर कांक्रीट की समुचित पकड़ के लिये नियमत दूरी पर कट लगे हो का उपयोग किया जाना चाहिये . लगाये जाने से पहले तार में किसी तरह का जंग आदि नही लगना चाहिये .
कांक्रीट मिक्स बनाने तथा निर्मित खम्भों की क्युरिंग में जो पानी उपयोग में लाया जावे वह क्लोराइड , सल्फेट , लवणो व आर्गेनिक पदार्थो से मुक्त होना चाहिये .
चित्र १
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट खम्भों की निर्माण विधि .......
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट के खम्भों की ढ़लाई फैक्ट्री में , स्थान की उपलब्धता के अनुसार सामान्यतः ६ से १० खम्भों की लाइन में एक साथ की जाती है . इसके लिये लोहे की प्लेट के सांचे स्थापित किये जाते हैं . सांचो के आधार में खम्भे की डिजाइन के अनुसार ढ़ाल या संकीर्णनन बनाया गया होता है , जिससे खम्भा आधार में चौड़ा तथा उपर पतला बनता है . दो दो खम्भो की संयुक्त लाइनें बनाई जाती हैं .
प्रत्येक खम्भे के दोनो छोर पर एक प्लेट लगाई जाती है ,जिसमें रीनफोर्समेंट के लिये नियत स्थान पर छेद बने होते हैं .निर्माण लाइन के एक सिरे पर हाइ टेंसाइल स्ट्रेंग्थ के तार को वेज के द्वारा फिक्स कर दिया जाता है . दूसरे सिरे को कुशल मजदूर के द्वारा प्रत्येक खम्भे के सिरे पर लगी प्लेट में बने निर्धारित छेद में पिरोते हुये निर्माण लाइन के अंतिम सिरे तक पहुंचाया जाता है , जहां एक टेंशनिंग गेंट्री लगी होती है . टेंशनिंग गेंट्री की मोटर को चलाकर तय किया टेंशन तार में दिया जाता है एवं तार के सिरे को प्रत्येक खंबे के सिरो पर वेज के द्वारा फिक्स कर दिया जाता है .ड्राइंग के अनुसार लगाये गये सभी तारो में बराबरी का टेंशन दिया जाना जरूरी होता है . यह प्रक्रिया सांचे की सफाई के बाद की जाती है , जिससे ढ़लाई साफ सुथरी हो . लम्बाई में हर खम्भे के सांचे के बाद लगभग ५० सेंटीमीटर की जगह खाली छोड़ी जाती है , जिसमें कांक्रीटिंग नही होती , कास्टिंग किये जाने के बाद ३ दिनो की प्रारंभिक स्ट्रेंग्थ मिल जाने पर, हाई स्टील वायर को वेल्डिंग मशीन से या कटर से काट कर खंभो को अलग अलग कर लिया जाता है .
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पी सी सी खंभो का निर्माण IS 1678-1998 के दिशा निर्देशो के अनुसार किया जाता है .
जरूरी है कि निर्माण हेतु जब कांक्रीट मिक्स तैयार किया जावे तो उसमें न्यूनतम आवश्यक पानी ही मिलाया जावे जिससे सूखने पर खम्भे मे किसी तरह की केपलरी पोरोसिटी न हो व उच्च घनत्व का खम्भा निर्मित हो . कांक्रीट IS:1343-1980 एवं IS:456-2000 के अनुसार डिजाइन मिक्स होना चाहिये जिसके क्यूब परीक्षण पर 28 दिनो बाद कम से कम 420 किलोग्राम प्रति सेमी की स्ट्रेंग्थ मिलनी चाहिये अर्थात पी सी सी खम्बो के लिये एम ४२ कांक्रीट का प्रयोग किया जाता है . सीमेंट रेत तथा गिट्टी को पानी के साथ मिक्सर में डिजाइन के अनुरूप वजन से आनुपातिक रूप से समुचित तरीके से मिलाकर ही प्रयुक्त करना चाहिये .
सांचो में निश्चित समय सीमा में ही तुरंत बनाया गया कांक्रीट डाला जाना चाहिये . तार के उपर कम से कम २० मिली मीटर का निर्धारित कांक्रीट कवर सुनिश्चित किया जाना चाहिये . वाइब्रेटर तथा काम्पेक्शन निर्धारित गुणवत्ता के अनुरूप होना बहुत जरूरी है . देखना चाहिये कि गीले कांक्रीट का तापमान ठंडे मौसम में ४.५ डिग्री सेंटीग्रेड कम पर तथा गरम मौसम में ३८ डिग्री से अधिक न होवे .
कांक्रीटिंग के तुरंत बाद जब कांक्रीट हलका गीला होता है , खंभे पर निर्माता अपनी फैक्ट्री का नाम एवं निर्माण तिथि , कास्टिंग का बैच नम्बर तथा यदि निर्देश हो तो जिस कंपनी के लिये खंभो का निर्माण किया जा रहा हो उसका नाम भी अंकित कर सकता है .
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खम्भे की डिटेंशनिंग अर्थात प्रिस्ट्रेसिंग के दौरान जब तार का टेंशन कांक्रीट में स्थानांतरित होता है ,लगातार क्यूरिंग की जाना जरूरी है . स्टीम क्युरिंग की जावे तो इसे कुशल निरीक्षण में ही किया जाना चाहिये . स्टीम क्युरिंग से प्रारंभिक सेटिंग बहुत जल्दी हो जाती है तथा एक ही सांचे से पोल निर्माण की आवृतियां बढ़ जाती हैं .
क्युरिंग के लिये स्प्रिंकलर या टेंक क्यूरिंग में से टेंक क्युरिंग ही बेहतर विकल्प है , समुचित सट्रेंग्थ हेतु २५ दिनो की टेंक क्युरिंग व कम से कम ३ दिनो की सांचे पर निरंतर क्यूरिंग की जानी चाहिये . निर्माण स्थल से क्युरिंग टेंक तक खम्भे की हैंडलिंग बहुत सावधानी पूर्वक की जानी चाहिये अन्यथा जोर से पटकने अथवा धक्का लगने से स्थान विशेष पर खम्भा कमजोर हो सकता है . खम्भो की हैंडलिंग के लिये तार के दो आई हुक समुचित दूरी पर कास्टिग के समय ही लगाये जाने चाहिये . इसी तरह अर्थिग हेतु भी गैल्वेनाइजिंग आयरन का ४ मि मी व्यास का तार न्यूनतम कांक्रीट कवर के साथ प्रत्येक खम्भे में नियत स्थान पर लगाया जाना चाहिये .
बने हुये खंभो का भंडारण
क्यूरिंग टेंक से निकाल कर खंभो को समतल पक्की जमीन पर थप्पी बनाकर एक के उपर एक रखा जाना चाहिये , जिससे कम से कम जगह में सुरक्षित तरीके से भंडारण किया जा सके एवं ट्रक पर लोडिंग करके कार्यस्थल पर भेजने में कठिनाई व किसी तरह की दुर्घटना न हो . चूंकि खंबे एक ओर मोट तथा दूसरी ओर चौड़े होते हैं अतः हर तह अलटी पलटी स्थिति में रखी जाना उचित होता है . खंभो को निर्माण स्थल पर परिवहन के लिये क्रेन का प्रयोग होता है अतः भंडारण स्थल खुली हुई मैदानी जगह होनी चाहिये . भंडारण इस तरह किया जाता है कि खंभो के दोनो छोर पर तारकोल पोता जा सके जिससे एक एंटी कोरोजिव कोट बन सके .
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प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल का परीक्षण ......
IS: 1678-1998. परीक्षण हेतु भंडारित खंभो में से परीक्षण हेतु नमूने चुनने के लिये दिशा दर्शन करता है . प्रत्येक १०० खम्भो में से कम से कम १ खम्भा ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण ,एवं डाइमेंशन टेस्ट हेतु चुना जाता है . ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण के प्रत्येक १० खम्भो में से कम से कम ३ खम्भो का डिस्टार्शन टेस्ट किया जाता है . डिस्टार्शन टेस्ट द्वारा देखा जाता है कि खम्भा टूटने से पहले अंततोगत्वा कितना लोड सह पाता है . ट्रान्सवर्स लोड परीक्षण में IS:2905-1989 में प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल की परीक्षण विधि के अनुसार टेस्टिग बेंच पर परीक्षण किया जाता है . टेस्ट खम्भे को खड़ा फिक्स करके या जमीन पर आड़ा लिटाकर किया जा सकता है . टेस्टिंग बेंच पर खंबे के आधार से १.५ मीटर तक खम्भे को एक पक्का सपोर्ट दिया जाता है , क्योकि जब खम्भे को विद्युत लाइन में उपयोग किया जाता है तब भी उसे जमीन में १.५ मीटर का गड्ढ़ा करके पक्का गाड़ा जाता है . खम्भे के उपरी सिरे से ६० सेंटी मीटर पर एक तार बाँध कर लोड लगा कर परीक्षण किया जाता है , यह माना जाता है कि खम्भे पर जब लाइन खींची जाती है तो उसका औसत लोड ऊपरी सिरे से ६० सेटीमीटर नीचे लगता है . फैक्टर आफ सेफ्टी २.५ लिया जाता है अतः ८ मीटर लंबाई, १४० किलो स्ट्रेन्ग्थ के खंभे को ३५० किलो तक के भार पर डिस्टार्शन टेस्ट में टूटना नही चाहिये , तथा खम्भे को इतना लचीला होना चाहिये कि ३५० किलो से कम भार पर उत्पन्न हेयर क्रेक , लोड हटाने पर पूरी तरह मिट जाने चाहिये . इसी तरह ९.१ मीटर लंबाई , २८० किलो स्ट्रेंग्थ के खंबे के परीक्षण में डिस्टार्शन ७०० किलो के लोड से पहले नही होना चाहिये तथा उससे कम के लोड पर लोड हटाने पर उत्पन्न हेयर क्रेक पूरी तरह मिट जाने चाहिये . तभी खम्भे को स्वीकार किया जाता है . डाइमेंशन टेस्ट में लम्बाई धन ऋण १५ मि मी तथा चौड़ाई में धन ऋण ३ मि मी तक के परिवर्तन स्वीकार्य होते हैं . परीक्षण हेतु उपयोग में लाये जा रहे इलेक्ट्रनिक या अन्य तरह के गेज मान्य शासकीय विभाग से केलीब्रेटेड होने चाहिये .
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल का परिवहन , व उन्हें मौके पर लगाने के संबंध में IS:7321-1974 में आवश्यक निर्देश दिये गये हैं , जिनका समुचित परिपालन लाइन खड़े करते समय किया जाना चाहिये .
चित्र ७ , ८ , ९
प्री स्ट्रैस्ड सीमेंट कांक्रीट पोल के निर्माण व उपयोग में मैदानी समस्यायें तथा सुधार हेतु विचारणीय सुझाव ......
बिजली की लाइने विभिन्न तरह की जमीन , जंगल , और खेतो से होकर गुजरती हैं .काली मिट्टी गर्मी में सिकुड़ती है तथा बरसात में फूलकर अत्यंत मुलायम हो जाती है तथा उसकी बियरिंग कैपेसिटी नगण्य रह जाती है . पथरीली जमीन में निर्धारित १.५ मीटर की गहराई का गद्ढ़ा करना संभव नही होता . खेतो में पानी भरने पर खम्भे टेढ़े हो जाते हैं . अतः पी सी सी खम्भो की फाउण्डेशन पर विचार करना तथा आवश्यक सुधार अपनाना जरूरी है . फाउण्डेशन पिट को कांक्रीट से भरना एक उपाय हो सकता है . खम्भे के फाउण्डेशन के गड्ढ़े में खम्भे के नीचे आधार पर बड़ी चीप का टुकड़ा या प्रीकास्टेड आर सी सी ब्लाक रखना एक अन्य उपाय हो सकता है , जिससे खम्भे तिरछे होने की समस्या से निपटा जा सकता है . . खम्भे के निचले हिस्से में नीचे से ७५ सेंटी मीटर की उंचाई पर यदि एक छेद बनाया जावे तथा खम्भे को खड़ा करते समय उसमें एक मीटर की लोहे की छड़ स्पाइक की तरह डाली जावे तो वह भी खम्भे को सीधा खड़ा रखने में मददगार साबित हो सकती है .
अनेक पोल निर्माण संयंत्रो में पोल परीक्षण हेतु मैंने भ्रमण किया है , एवं पोल निर्माताओ से विस्तृत चर्चायें की हैं . नवोन्मेषी प्रयोगो हेतु उद्यत कुछ निर्माताओ ने मुझसे नदी की रेत के स्थान पर फाइन क्रशर डस्ट के साथ ताप बिजली घरो से निकली राख के उपयोग के संबंध में अपने सुझाव तथा उसके पोल की स्ट्रेंग्थ पर उसके प्रभाव पर शंकाये व्यक्त की .कुछ निर्माता कोर्स एग्रीग्रेट के स्थान पर क्रशर डस्ट का उपयोग करने के विकल्प प्रस्तुत करते हैं . कुछ निर्माता कांक्रीट की जल्दी सैटिंग के लिये एडमिक्सचर्स मिलाने के विषय में जानना चाहते हैं . तो कुछ लोग खम्भे के उपरी सिरे पर जहाँ तार लगाने के लिये छेद रखे जाते हैं वहां प्लास्टिक पाइप के टुकड़े कास्टिंग के दौरान डाल कर स्मूथ छेद बनाने या अतिरिक्त रिंग या तार डालकर खम्भे को टूटने से बचाने के विषय में सुझाव देते हैं . पी सी सी पोल निर्माण उद्योग मात्र व्यापार नही है . पोल की स्ट्रेंग्थ सीधे तौर पर उस पर चढ़ने वाले लाइन मैन की जान की सुरक्षा से जुड़ी होती है तथा किसी एक खम्भे के टूटने से भी जो विद्युत प्रवाह अवरुद्ध होता है उससे प्रगट अप्रगट रूप से उस विद्युत लाइन से जुड़े उपभोक्ताओ पर गहरा प्रभाव होता है.यह महत्व २.५ का जो फैक्टर आफ सेफ्टी रखा गया है उससे कही बढ़कर है , अतः पर्याप्त परीक्षण के बाद ही कोई परिवर्तन स्वीकार किया जाना चाहिये किन्तु राष्ट्र के व्यापक हित में इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलेपमेंट में मितव्ययता एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये इस दिशा में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना भी जरूरी है .
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