................................power is key for development, let us save power,
06 जून, 2007
जरूरी है बिजली चोरी के विरूद्ध जन जागरण
जरूरी है बिजली चोरी के विरूद्ध जन जागरण
इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्छण इंजी. सर्तकता
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , मण्डला
विवेक सदन , नर्मदा गंज , मण्डला
म.प्र. भारत पिन ४८१६६१
फोन ०७६४२ २५००६८ ,
मोबाइल ९१ ९४२५१६३९५२
email vivek1959@yahoo.co.in
visit my web page http//www.vikasprakashan.blogspot.com
॰॰॰॰॰॰॰॰लेखक सामाजिक कार्यो हेतु राज्यपाल महोदय द्वारा रेड एण्ड व्हाईट पुरुस्कार से सम्मानित हैं॓॰॰॰॰॰॰॰॰
चपला , चंचला ,द्रुतगामिनी , विद्युत ,को हमने आसमान से धरती पर क्या उतारा बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी . बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन मेँ परिर्वतित सी हो गई हैं . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्छ या परोक्छ , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,शीतलीकरण, गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन सबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत आपकी सेवा में हाजिर हो जाती है .
प्रति व्यक्ति बिजली की खपत विकास का मापदण्ड बन गया है . यदि आज कुछ शत प्रतिशत शुद्ध है तो वह बिजली ही है . वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है . बिजली को बडे व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता . इसका उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है . शाम के समय जब सारे देश में एक साथ प्रकाश के लिये बिजली का उपयोग बढ़ता है , मांग व आपूर्ति का अंतर सबसे ज्यादा हो जाता है . तब पनबिजली का उत्पादन ,जिसे त्वरित रूप से बढ़ाया घटाया जा सकता है , उसे बढ़ाकर उपभोक्ताओं की सेवा में, इस अंतर को कम करने के लिये विद्युत कर्मी जुटे रहते हैं .
आज समय की मांग है कि सामाजिक संस्थायें जनजागरण कर ऐसा वातावरण बनायें कि हममें से जिन लोगों के पास जनरेटर , इनवर्टर आदि विद्युत उपकरण हैं वे शाम के पीकिंग अवर्स में बिना हानि लाभ की गणना किये उनका पूरा उपयोग करें . इस समय हम सबको न्यूनतम विद्युत उपकरणों का प्रयोग करना चाहिये . बूंद बूंद से ही घट भरता है .बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं . हमारे देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से होता है, जिनमें कोयले को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ,और कोयले के भण्डार सीमित हैं .
बिजली उत्पादन का दूसरा बडा तरीका बांध बनाकर , जल संग्रहण कर पानी की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत में बदलना है .परमाणु विद्युत , अपारम्परिक ऊर्जा स्त्रोतों जैसे सौर्य ऊर्जा , विंड पावर, टाइडल पावर आदि से भी व्यवसायिक विद्युत के उत्पादन के व्यापक प्रयास हो रहे हैं .
राजनैतिक कारणों से बिना दूरदर्शी दृष्तटकोण अपनाये १९९० के दशक में कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों मुफ्त बिजली बांटी . इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि एक समूची पीढ़ी को मुफ्त विद्युत उपयोग की आदत पड गई है . लोग बिजली को हवा , पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझने लगे हैं . विद्युत प्रणाली के साथ बुफे डिनर सा मनमाना व्यवहार होने लगा है . जिसे जब जहाँ जरूरत हुई स्वयं ही लंगर ,हुक ,आंकडा डालकर तार जोड कर लोग अपना काम निकालने में माहिर हो गये हैं . खेतों में पम्प , थ्रेशर गावों में घरों में उजाले के लिये , सामाजिक , धार्मिक आयोजनों , निर्माण कार्यों के लिये अवैधानिक कनेक्शन से विद्युत के उपयोग को सामाजिक मान्यता मिल चुकी है . ऐसा करने में लोगों को अपराध बोध नहीं होता . यह दुखद स्थिति है .
बिजली घर से उपयोग स्थल तक बिजली के सफर में यह स्टेप अप ट्रांसफारमर , अतिउच्चदाब बिजली की लाइनों , उपकेंद्रों में स्टेप डाउन होते हुये निम्नदाब बिजली लाइनों पर सवार होकर आप तक पहुँचती है . नये परिदृश्य में देश के बिजली बोर्डों को उत्पादन ,पारेषण , व वितरण कम्पनियों में विखण्डित कर बेहतर बिजली व्यवस्था बनाने के प्रयास जारी हैं . हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बिजली केंद्र व राज्य की संयुक्त व्यवस्था का विषय है .
विद्युत प्रदाय अधिनियम १९१० व १९४८ को एकीकृत कर संशोधित करते हुये वर्ष २००३ में एक नया कानून विद्युत अधिनियम के रूप में लागू किया गया है . इसके पीछे आधार भूत सोच बिजली कम्पनियों को ज्यादा जबाबदेह , उपभोक्ता उन्मुखी , स्पर्धात्मक बनाकर , वैश्विक वित्त संस्थाओं से ॠण लेकर बिजली के छेत्र में निवेश बढ़ाना है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी ,व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है . उत्पादन के स्तर से उपभोग तक तकनीकी दछता ५० प्रतिशत है , इसका मतलब एक यूनिट बिजली चोरी रोक पाने का अर्थ २ यूनिट बिजली का उत्पादन है .
नये विद्युत अधिनियम के अनुसार विद्युत नियामक आयोग राज्य स्तर पर विद्युत उपभोग की दरें तय कर रहे हैं . ये दरें शुद्ध व्यवसायिक आकलन पर आधारित न होकर कृषि , घरेलू , व्यवसायिक , औद्योगिक आदि अलग अलग उपभोक्ता वर्गों हेतु विभिन्न नीतियों के आधार पर तय की जाती हैं . विद्युत उत्पादन हेतु प्रकृतिदत्त कोयले के भण्डार तेजी से प्रयुक्त हो रहे हैं , ताप विद्युत गृह से होता प्रदूषण , या पनबिजली के लिये बनाये गये बांधों से जंगलों के डूबने से पर्यावरण को जो अपूरणीय छति हो रही है , उसके चलते बिजली का दुरुपयोग सामाजिक अपराध निरूपित किया जा सकता है .
ऐसी स्थिति में बिजली चोरी कितना संगीन अपराध है , यह समझना बहुत सरल है . बिजली के मुफ्त उपयोग को बढ़ावा देकर , दी गई सुविधायें वापस लेने के नियम तो सरकारों ने बिजली व्यवस्था के सुधार हेतु बना दिये हैं पर अब तक बिजली चोरी के विरूद्ध कोई बडा जन शिक्छा अभियान किसी ने नहीं चलाया है . सर्व शिक्छा अभियान , पल्स पोलियो , आयोडीन नमक , एड्स , परिवार नियोजन , भूजल संवर्धन आदि राष्टीय कार्यक्रमों के लिये व्यापक जन जागरण , रैली , विग्यापन , भाषण , लेख , फिल्म आदि द्वारा जनचेतना जगाने के प्रयास हम सब ने देखे हैं . इनका महत्व निर्विवाद है .
वर्तमान परिदृश्य में अनिवार्य आवश्यकता है कि बिजली चोरी के विरुद्ध भी गांव गांव , शहर शहर , स्कूल कालेज , समाज के प्रत्येक स्तर पर बृहद आयोजन हों . आम आदमी के मन में बिजली चोरी को एक सामाजिक अपराध के रूप में प्रतिष्ठित किया जावे . इस कार्य के लिये गैर शासकीय सामाजिक संस्थाओं की भागीदारी भी तय की जानी चाहिये .
केवल कानून बना देने से , और उसके सीधे इस्तेमाल से बिजली चोरी की विकराल समस्या हल नहीं हो सकती . कानूनी रूप से तो भीख मांगना भी अपराध है पर स्वयं न्यायालयों के सामने ही भिखारियों को सहजता से देखा जा सकता है . हमारे जैसे लोकतांत्रिक जन कल्याणी देश में वही कानून प्रभावी हो सकता है जिसे जन समर्थन प्राप्त हो .
आंध्रप्रदेश के मुख्य मंत्री चँद्रबाबू नायडु ने ढ़ृड इच्छा शक्ति से बिजली चोरी के विरूद्ध देश में सर्व प्रथम कशे कदम उठाये पर इससे किंचित बिजली चोरी भले ही रुकी हो पर उन्हें सत्ता गंवानी पडी . मध्य प्रदेश सहित प्रायः राज्यों में विद्युत वितरण कम्पनियों ने विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के अंर्तगत बिजली चोरी के अपराध कायम करने के लिये उडनदस्तों का गठन किया है . पर विभिन्न शासकीय सीमाओं के चलते , इन दलों में विशेष बिजली चोरी रोकने के विशेषग्यों की नई भर्ती की अपेछा कम्पनी में ही अन्य कार्यों में कार्यरत कर्मचारियों का उपयोग किया जा रहा है .किसी और कार्य में दछ कर्मचारियों से , बेमन से , विवशता में उडनदस्ता कार्य करवाये जाने से अनुकूल परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं .बिजली चोरी पर जन शिछा के अभाव में इन उडनदस्तों को जगह जगह नागरिकों के गहन प्रतिरोध का सामना करना पड रहा है .मारपीट , गाली गलौच , झूठे आरोप एक आम समस्या है .
बिजली चोरी के खिलाफ जन जागरण से बिजली चोरी करते हुये भी लोग एक दूसरे से वैसे ही डरेंगे जैसे अन्य किसी चोरी के प्रति उनमें अपराध भाव होता है . ऐसा सामाजिक वातावरण बन जाने पर लोग बिजली चोरी करने वाले को हिकारत की दृष्टि से देखेंगे . तब बिजली चोरी रोकने में लगे अमले को जन सहयोग मिल सकेगा .
बिजली देश के विकास की सतत प्रवाही ऊर्जा है . बिजली लिंग , जाति , धर्म , राज्य , प्रत्येक कुत्सित सीमा से परे सबके प्रति समदर्शी है . इसका मितव्ययी , विवेक पूर्ण , सदुपयोग समय की जरूरत है . आइये बिजली चोरी के विरूद्ध जनजागरण में अपना योगदान दें . बच्चों के पाठ्यक्रम में इस विषय पर सामग्री शामिल की जानी चाहिये . अशासकीय समाजसेवी संस्थायें बिजली को अपना विषय बनायें . केंद्र व राज्यों की उत्पादन ,पारेषण ,वितरण से जुडी सभी संस्थायें , ब्यूरो आफ इनर्जी एफिसियेंशी आदि संस्थान बिजली चोरी के विरुद्ध ठोस ,रचनात्मक ,जागरूखता अभियान मीडिया के माध्यम से प्रारंभ करें . पहले लोगों को बिजली चोरी कानून की पूरी जानकारी दी जाये , तभी उसके परिपालन की प्रभावी कार्यवाही हो सकती है .
इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव
अतिरिक्त अधीक्छण इंजी. सर्तकता
म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल , मण्डला
सचिव , विकास (पंजीकृत सामाजिक संस्था, पंजीकरण क्रमांक j m 7014 dt. 14.08.2003 )
विवेक सदन , नर्मदा गंज , मण्डला
म.प्र. भारत पिन ४८१६६१
फोन ०७६४२ २५००६८ ,
मोबाइल ९१ ९४२५१६३९५२
email vivek1959@yahoo.co.in
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बिजली चोरी के विरुद्ध आपका सहयोग , सुझाव सादर आमंत्रित हैं
बिजली चोरी समूचे विकास तंत्र को खोखला कर रही है .
बिजली चोरी के प्रकरणों में लोक अदालतें बडी भूमिका निभा सकती हैं .
बिजली चोरी रोकने में महिलाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है , क्योंकि घरों पर आचरण , चरित्र , व चोरी की बिजली के उपयोग के विरुद्ध धार्मिकता जन जागरण का विषय है .
समुदाय विशेष के लोग प्रायः एक ही बस्ती में रहते हैं , वे महिलाओं के पर्दे की आड लेकर उडनदस्ता टीमो को चैकिंग ही नही करने देते ,व व्यापक बिजली चोरी करते हैं . हैदराबाद में यह सिद्ध हो चुका है . अतः ऐसे प्रकरणों में अप्रिय कटुता से बचने के लिये व्यापक स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है .
सावधान !बिजली चोरी की कानूनी सामान्य सजा , १ वर्ष की अनुमानित खपत का दुगना बिल है . साथ ही अपराधिक जबाबदेही के तहत कम्पाउंडिंग शुल्क व जेल की सजा का प्रावधान भी है .
बिजली के मीटर तकनीकी कारणों से फोन के मीटर की तरह एक ही स्थल पर नहीं लगाये जा सकते , वे उपभोक्ता के परिसर में लगाये जाते हैं , समय के साथ उपभोक्ता भवन में अतिरिक्त निर्माण कर डालता है , जिससे बिजली के मीटर घरों के भीतर बिजली कर्मचारियों की सहज पहुँच से बाहर हो जाते हैं . यह गलत है . इसके विरुद्ध कानून बनाये जाने की जरूरत है .
सामान्य रूप से मीटर की टर्मिनल सील उपभोक्ता तोड लेते हैं , इस पर कानूनी व्यवस्था जरूरी है .
बिजली के मीटर घर के एकदम बाहर हों , उनमें इनकमिंग तार बोर्ड के बाहर से मीटर में आयें . सर्विस लाइन बिना जोड की हो यह उपभोक्ता की जबाबदारी होनी चाहिये .
बिजली चोरी रोकने के लिये पुलिस का हस्तछेप जरूरी है , क्योंकि चोर पुलिस से डरता है न कि इंजीनियर्स से.
बिजली बिल से बचने के लिये बिजली चोरी करने की अपेछा इनर्जी आडिट करें . प्रकाश हेतु सी.एफ.एल. , आई. एस .आई. उपकरणों के उपयोग से बिना बिल बढ़ाये , बिना सुविधायें घटाये आप बेहतर प्रबंधन से मितव्ययी तरीके से बिजली का उपयोग कर सकते हैं .
अनेक सुसंपन्न लोगों के नाम भी आंशिक बिजली चोरी के प्रकरणों में दर्ज हैं जो इस बात का द्योतक है कि बिजली चोरी के विरुद्ध व्यापक कार्य किये जाने की आवश्यकता है .
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इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव
सचिव , विकास (पंजीकृत सामाजिक संस्था, पंजीकरण क्रमांक j m 7014 dt. 14.08.2003 )
बिजली चोरी के विरुद्ध आपका सहयोग , सुझाव सादर आमंत्रित हैं . बिजली चोरी की सूचना देकर इस महायग्य में अपनी आहुती दें .
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आये दिन अखबारों में हम बिजली से संबंधित समाचार पढ़ रहे हैं .
जवाब देंहटाएंदिनांक ०८.०६.०७ जबलपुर में कांग्रेस के युवा प्रकोष्ठ ने बिजली बिलों की होली जलाकर विरोध प्रकट किया .
जबलपुर के ही एक स्वयंभू उपभोक्ता मंच जिसे एक व्यक्ति विशेष संस्था के रूप में चला रहे हैं , हर बार नियामक आयोग के द्वारा बिजली की दरें बढ़ाये जाने पर , नियम पूर्वक तर्क कुतर्क से उसका विरोध ही करते हैं .
दमोह में , छिंदवाडा में , गाडासरई में , सतना में , जबलपुर में , पन्ना में , ग्वालियर में ,.................... देश के लगभग प्रत्येक छेत्र में अलग अलग घटनाओं में जिनमें से अनेक पुलिस में दर्ज तक नहीं हो रहीं हैं , जमीनी विद्युत कर्मियों लाइनमैन ,कनिष्ठ यंत्री , विजिलेंस टीम आदि को बहुतायत में लोगों के आक्रोश का सामना लगातार करना पड रहा है . बिजली की कमी ...., स्टाफ की कमी ....., ज्यादा बिल होना ...., संसाधनों की कमी ... आदि इस आक्रोश के प्रमुख कारण हैं .
ये घटनायें इस तथ्य को उजागर करती हैं कि सिस्टम में कहीं न कहीं कोई कमी है जरूर ............ .
आइये साथ दीजिये हम सब मिलकर सिस्टम सुधारें , न कि व्यर्थ परस्पर दोषारोपण , मैनहैण्डलिग , आंदोलन करके ॠणात्मक कार्य करें .
Dear sir
जवाब देंहटाएंyour artical is realy motivational.write now lack of this type of activities. my suggestion is more data of power theft is comes from your blog. these data helps writer and journalist.
wah wah. shabash.
जवाब देंहटाएंbijali ki chori karne walon ko jinda aag me jala dalne aur nanga karke bijli ke tar se latka dene ka idea bakee rah gaya. ye bhi likh dete to kam ban jata.
badi badi factory wale kitni bijli chori karte hain, agar aap bata sake aur unko rok sake to shayad utne me sare bijli choro ko muft bijli di ja sakti hai. par unke khilaf bolane ki himmat na to aap me hai aur na hi sarkar me.
Garib hai sabki joru, chahe bijali chori ke nam par gariya lijiye chahe phansi ki saja de daliye.
Likhne ka itna shok hai to is par likhiye ki kaun se haramjado ki vajah se lakhon gharon tak aaj tak bijli nahi pahunch payi aur kaun se haramjado ki vajah se 30 karod log bijli ka conection lene ki aukat nahi rakhte. tabhi ham manege aap bhi usi haramkhor biradari ke member nahi hain.