जमीन पर पार्क, नीचे विद्युत सब स्टेशन
नई दिल्ली , नए-नए रिकॉर्ड बना रहे दिल्ली मेट्रो ने राष्ट्रपति भवन के ठीक पीछे चर्च रोड पर राजधानी का पहला भूमिगत और एकदम अनोखा विद्युत सब स्टेशन बनाकर विद्युत इंजीनियरिंग का एक नया नमूना पेश किया है। दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के निदेशक (इलेक्ट्रिक) सतीश कुमार ने इस सब स्टेशन को गुरुवार को पत्रकारों को दिखाते हुए बताया कि पथरीला इलाका होने और अति विशिष्ट क्षेत्र होने के कारण इसे बनाते समय बहुत अधिक ऐहतियात बरती गई। उन्होंने कहा कि स्टेशन बनाने से योजनाकारों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इसका कोई भी हिस्सा स़ड़क से नहीं दिखाई देना चाहिए।
सवा साल में हुआ निर्माण : श्री कुमार ने बताया कि दिल्ली परिवहन निगम के केंद्रीय सचिवालय टर्मिनल की भूमि पर एक पार्क के २० फुट नीचे साठ करो़ड़ रुपए की लागत से लगभग सवा साल के रिकॉर्ड समय में बनकर तैयार हुए इन दो सब स्टेशनों से दिल्ली मेट्रो की बदरपुर लाइन और एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन को बिजली दी जाती है। साथ-साथ बने इन स्टेशनों के अलग-अलग कंट्रोल रूम हैं और आपात स्थिति में ये एक दूसरी लाइन को बिजली दे सकते हैं। इन दोनों की क्षमता ६६ किलोवॉट है।
................................power is key for development, let us save power,
29 दिसंबर, 2011
सबसे बड़ा सोलर प्लांट म.प्र. प्रदेश में होगा
सबसे बड़ा सोलर प्लांट म.प्र. प्रदेश में होगा
देश का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट प्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थापित होने जा रहा है। फोटो वोल्टिक तकनीक पर बनने ५० मेगावाट वाले इस प्लांट का निर्माण एनटीपीसी कर रहा है। इस प्लांट से उत्पादित बिजली प्रदेश को बेचे जाने के लिए पावर ट्रेडिंग कंपनी और एनटीपीसी के बीच गत दिवस भोपाल में करार हुआ।
जानकारी के अनुसार राजगढ़ के गणेशपुर गांव में बनने वाला ये प्लांट फोटो वोल्टिक तकनीक पर बनने वाला देश का सबसे बड़ा प्लांट होगा। इसकी लागत लगभग ६०० करोड़ रुपये होगी। ये प्लांट लगभग २०० एकड़ क्षेत्र में स्थापित होगा। इससे २०१३ में प्रदेश को बिजली मिलने लगेगी। वर्तमान में सोलर बिजली की दर १५ रुपये प्रति यूनिट है लेकिन नए प्लांट के लिए बिजली दरों का निर्धारण केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग करेगा। ट्रेडको के एमडी पीके वैश्य ने बताया कि एनटीपीसी ५० मेगावाट सोलर बिजली के साथ अनावंटित कोटे से ५० मेगावाट अतिरिक्त बिजली प्रदेश को देगा। इससे बिजली की औसत दर ५ रुपये यूनिट होगी। उल्लेखनीय है कि मप्र विद्युत नियामक आयोग ने प्रदेश को अगले दो वर्षों में २५५ मेगावाट सोलर बिजली खरीदने का लक्ष्य दिया है। इससे पहले राजीव गांधी सोलर मिशन के अंतर्गत तीन लघु संयंत्रों से ५ मेगावाट सोलर पावर के पीपीए किए जा चुके हैं। शेष बिजली खरीदने निविदाएं आमंत्रित की जा रही हैं।
देश का सबसे बड़ा सोलर पावर प्लांट प्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थापित होने जा रहा है। फोटो वोल्टिक तकनीक पर बनने ५० मेगावाट वाले इस प्लांट का निर्माण एनटीपीसी कर रहा है। इस प्लांट से उत्पादित बिजली प्रदेश को बेचे जाने के लिए पावर ट्रेडिंग कंपनी और एनटीपीसी के बीच गत दिवस भोपाल में करार हुआ।
जानकारी के अनुसार राजगढ़ के गणेशपुर गांव में बनने वाला ये प्लांट फोटो वोल्टिक तकनीक पर बनने वाला देश का सबसे बड़ा प्लांट होगा। इसकी लागत लगभग ६०० करोड़ रुपये होगी। ये प्लांट लगभग २०० एकड़ क्षेत्र में स्थापित होगा। इससे २०१३ में प्रदेश को बिजली मिलने लगेगी। वर्तमान में सोलर बिजली की दर १५ रुपये प्रति यूनिट है लेकिन नए प्लांट के लिए बिजली दरों का निर्धारण केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग करेगा। ट्रेडको के एमडी पीके वैश्य ने बताया कि एनटीपीसी ५० मेगावाट सोलर बिजली के साथ अनावंटित कोटे से ५० मेगावाट अतिरिक्त बिजली प्रदेश को देगा। इससे बिजली की औसत दर ५ रुपये यूनिट होगी। उल्लेखनीय है कि मप्र विद्युत नियामक आयोग ने प्रदेश को अगले दो वर्षों में २५५ मेगावाट सोलर बिजली खरीदने का लक्ष्य दिया है। इससे पहले राजीव गांधी सोलर मिशन के अंतर्गत तीन लघु संयंत्रों से ५ मेगावाट सोलर पावर के पीपीए किए जा चुके हैं। शेष बिजली खरीदने निविदाएं आमंत्रित की जा रही हैं।
25 दिसंबर, 2011
24 दिसंबर, 2011
20 दिसंबर, 2011
जल विद्युत नीति , बांधो के निर्माण , समीक्षा की आवश्यकता
जल विद्युत नीति , बांधो के निर्माण , समीक्षा की आवश्यकता
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी एवं अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर
मो ०९४२५८०६२५२
ब्लाग http://nomorepowertheft.blogspot.com
email vivek1959@yahoo.co.in
व्यवसायिक बिजली उत्पादन की जो विधियां वर्तमान में प्रयुक्त हो रही हैं उनमें कोयले से ताप विद्युत , परमाणु विद्युत या बाँधो के द्वारा जल विद्युत का उत्पादन प्रमुख हैं . पानी को उंचाई से नीचे गिराकर उसकी स्थितिज उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने की जल विद्युत उत्पादन प्रणाली लिये बाँध बनाकर ऊंचाई पर जल संग्रहण करना होता है . तापविद्युत या परमाणु विद्युत के उत्पादन हेतु भी टरबाइन चलाने के लिये वाष्प बनाना पड़ता है और इसके लिये भी बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है अतः जल संग्रहण के लिये बांध अनिवार्य हो जाता है . ताप विद्युत संयत्र से निकलने वाली ढ़ेर सी राख के समुचित निस्तारण के लिये एशबंड बनाये जाते हैं , जिसके लिये भी बाँध बनाना पड़ता है . शायद इसीलिये बांधो और कल कारखानो को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के तीर्थ कहा था .पर वर्तमान संदर्भो में बड़े बाँधों से समृद्धि की बात शायद पुरानी मानी जाने लगी है . संभवतः इसके अनेक कारणो में से कुछ इस तरह हैं .
१ बड़े क्षेत्रफल के वन डूब क्षेत्र में आने से नदी के केचमेंट एरिया में भूमि का क्षरण
२ सिल्टिंग से बांध का पूरा उपयोग न हो पाना ,वाटर लागिंग और जमीन के सेलिनाईज़ेशन की समस्यायें
३ वनो के विनाश से पर्यावरण के प्रति वैश्विक चिंतायें , अनुपूरक वृक्षारोपण की असफलतायें
४ बहुत अधिक लागत के कारण नियत समय पर परियोजना का पूरा न हो पाना
५ भू अधिग्रहण की समस्यायें ,पुनरीक्षित आकलनो में लागत में निरंतर अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि
६ सिंचाई ,मत्स्यपालन व विद्युत उत्पादन जैसी एकीकृत बहुआयामी परियोजनाओ में विभिन्न विभागो के परस्पर समन्वय की कमी
७ डूब क्षेत्र के विस्थापितों की पीड़ा , उनका समुचित पुनर्वास न हो पाना
८ बड़े बांधो से भूगर्भीय परिवर्तन एवं भूकंप
९ डूब क्षेत्र में भू गर्भीय खनिज संपदा की व्यापक हानि ,हैबीटैट (पशु व पौधों के प्राकृतिक-वास) का नुकसान
१० बड़े स्तर पर धन तथा लोगो के प्रभावित होने से भ्रष्टाचार व राजनीतीक समस्यायें
विकास गौण हो गया , मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बन गया
नर्मदा घाटी पर डिंडोरी में नर्मदा के उद्गम से लेकर गुजरात के सरदार सरोवर तक अनेक बांधो की श्रंखला की विशद परियोजनायें बनाई गई थी , किंतु इन्ही सब कारणो से उनमें से अनेक ५० वर्षो बाद आज तक रिपोर्ट के स्तर पर ही हैं . डूब क्षेत्र की जमीन और जनता के मनोभावो का समुचित आकलन न किये जाने , विशेष रूप से विस्थापितो के पुनर्वास के संवेदन शील मुद्दे पर समय पर सही तरीके से जन भावनाओ के अनुरूप काम न हो पाने के कारण नर्मदा बचाओ आंदोलन का जन्म हुआ .इन लोगों की अगुवाई करने वाली मेधा पाटकर ने एक वृहद, अहिंसक सामाजिक आंदोलन का रूप देकर समाज के समक्ष सरदार सरोवर बाँध की कमियो को उजागर किया. मेधा तेज़तर्रार, साहसी और सहनशील आंदोलनकारी रही हैं. मेधा के नर्मदा बचाओ आंदोलन से सरकार और विदेशी निवेशकों पर दबाव भी पड़ा, 1993 में विश्व बैंक ने मानावाधिकारों पर चिंता जताते हुए पूँजीनिवेश वापस ले लिया. उच्चतम न्यायालय ने पहले परियोजना पर रोक लगाई और फिर 2000 में हरी झंडी भी देखा दी .प्रत्यक्ष और परोक्ष वैश्विक हस्तक्षेप के चलते विकास गौण हो गया , मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बन गया . मानव अधिकार , पर्यावरण आदि प्रसंगो को लेकर आंदोलनकारियो को पुरस्कार , सम्मान घोषित होने लगे . बांधो के विषय में तकनीकी दृष्टिकोण की उपेक्षा करते हुये , स्वार्थो , राजनैतिक लाभ को लेकर पक्ष विपक्ष की लाबियिंग हो रही है . मेधा पाटकर और उनके साथियों को 1991 में प्रतिष्ठित राईट लाईवलीहुड पुरस्कार मिला , जिसकी तुलना नोबल पुरस्कार से की जाती है.मेघा मुक्त वैश्विक संस्था “वर्ल्ड कमीशन ओन डैम्स” में शामिल रह चुकी हैं. 1992 में उन्हें गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार भी मिला.
इन समस्याओ के निदान हेतु जल-विद्युत योजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी के बारे में विमर्श हो रहा है . बड़े बांधो की अपेक्षा छोटी परियोजनाओ पर कार्य किये जाने का वैचारिक परिवर्तन नीती निर्धारको के स्तर पर हुआ है .
क्लीन ग्रीन बिजली पन बिजली
जल विद्युत के उत्पादन में संचालन संधारण व्यय बहुत ही कम होता है साथ ही पीकिंग अवर्स में आवश्यकता के अनुसार जल निकासी नियंत्रित करके विद्युत उत्पादन घटाने बढ़ाने की सुविधा के चलते किसी भी विद्युत सिस्टम में जल विद्युत बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है , इससे औद्योगिक प्रदूषण भी नही होता किंतु जल विद्युत उत्पादन संयत्र की स्थापना का बहुत अधिक लागत मूल्य एवं परियोजना का लंबा निर्माण काल इसकी बड़ी कमी है . भारत में हिमालय के तराई वाले क्षेत्र में जल विद्युत की व्यापक संभावनायें हैं , जिनका दोहन न हो पाने के कारण कितनी ही बिजली बही जा रही है .वर्तमान बिजली की कमी को दृष्टिगत रखते हुये , लागत मूल्य के आर्थिक पक्ष की उपेक्षा करते हुये , प्रत्येक छोटे बड़े बांध से सिंचाई हेतु प्रयुक्त नहरो में निकाले जाने वाले पानी से हैडरेस पर ही जल विद्युत उत्पादन टरबाईन लगाया जाना आवश्यक है . किसी भी संतुलित विद्युत उत्पादन सिस्टम में जल विद्युत की न्यूनतम ४० प्रतिशत हिस्सेदारी होनी ही चाहिये , जिसकी अभी हमारे देश व राज्य में कमी है . वैसे भी कोयले के हर क्षण घटते भंडारो के परिप्रेक्ष्य में वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है .
जल विद्युत और उत्तराखंड
भारत में उत्तराखंड में जल विद्युत की प्रचुर सँभावनाओ के संदर्भ में वहां की परियोजनाओ पर समीक्षा जरूरी लगती है . दुखद है कि बाँध परियोजनाओं के माध्यम से उत्तराखंड में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति चल रही है. शुरूआती दौर से स्थानीय जनता बाँधों का विरोध करती आयी है तो कम्पनियाँ धनबल और प्रशासन की मदद से अवाम के एक वर्ग को बाँधों के पक्ष में खड़ी करती रही है. ‘नदी बचाओ आन्दोलन’ की संयोजक और गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन भट्ट का कहना है कि ऊर्जा की जरूरत जरूर है, लेकिन सूक्ष्म परियोजनायें प्रत्येक गाँव में बनाकर बिजली के साथ रोजगार पैदा करना बेहतर विकल्प है. इस वर्ष इण्डोनेशिया की मुनिपुनी को गांव गांव में सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओ के निर्माण हेतु ही मैग्सेसे अवार्ड भी मिला है . क्या बड़े टनल और डैम रोजगार दे सकेंगे? पहाड़ी क्षेत्रो में कृषि भूमि सीमित है ,लोगों ने अपनी यह बहुमूल्य भूमि बड़ी परियोजनाओं के लिये दी, बाँध बनने तक रोजगार के नाम पर उन्हें बरगलाया गया तथा उत्पादन शुरू होते ही बाँध प्रभावित लोग परियोजनाओं के हिस्से नहीं रहे, मनेरी भाली द्वितीय पर चर्चा करते हुए राधा बहन ने विफोली गाँव का दर्द बताया, जहाँ प्रभावित ग्रामीणों ने अपनी जमीन और आजीविका के साथ बाँध कर्मचारियों की विस्तृत बस्ती की तुलना में वोटर लिस्ट में अल्पमत में आकर लोकतांत्रिक तरीको से अपनी बात मनवाने का अधिकार भी खो दिया.
चिपको आन्दोलन की प्रणेता गौरा देवी के गाँव रैणी के नीचे भी टनल बनाना इस महान आन्दोलन की तौहीन है। वर्षों पूर्व रैणी के महिला मंगल दल द्वारा इस परियोजना क्षेत्र में पौधे लगाये गये थे। मोहन काण्डपाल के सर्वेक्षण के अनुसार परियोजना द्वारा सड़क ले जाने में 200 पेड़ काटे गये और मुआवजा वन विभाग को दे दिया गया। पेड़ लगाने वाले लोगों को पता भी नहीं चला कि कब ठेका हुआ। गौरा देवी की निकट सहयोगी गोमती देवी को दुःख है कि पैसे के आगे सब बिक गये। रैणी से 6 किमी दूर लाता में एन.टी.पी.सी द्वारा प्रारम्भ की जा रही परियोजना में सुरंग बनाने का गाँव वालों ने पुरजोर विरोध किया। मलारी गाँव में भी मलारी झेलम नाम से टीएचडीसी विद्युत परियोजना लगा रही है। मलारी के महिला मंगल दल ने कम्पनी को गाँव में नहीं घुसने दिया तथा परियोजना के बोर्ड को उखाड़कर फैंक दिया। कम्पनी ने कुछ लोगों पर मुकदमे लगा रखे हैं। इसके अलावा धौलीगंगा और उसकी सहायक नदियों में पीपलकोटी, जुम्मा, भ्यूँडार, काकभुसण्डी, द्रोणगिरी में प्रस्तावित परियोजनाओं का प्रबल विरोध है।
उत्तराखंड की जल-विद्युत परियोजनाओं पर कन्ट्रोलर तथा ऑडिटर जनरल (कैग) की रपट
उत्तराखंड की जल-विद्युत परियोजनाओं पर भारत के कन्ट्रोलर तथा ऑडिटर जनरल (कैग) ने 30 सितंबर 2009 को एक बहुत कड़ी टिप्पणी कर स्पष्ट कहा है कि योजनाओं का कार्यान्वयन निराशाजनक रहा है। उनमें पर्यावरण संरक्षण की कतई परवाह नहीं की गई है जिससे उसकी क्षति हो रही है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्तराखंड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी कि वह अपनी जलशक्ति का उपयोग तथा विकास सरकारी तथा निजी क्षेत्र के सहयोग से करेगा. राज्य की जल-विद्युत बनाने की नीति अक्टूबर 2002 को बनी। उसका मुख्य उद्देश्य था राज्य को ऊर्जा प्रदेश बनाया जाय और उसकी बनाई बिजली राज्य को ही नहीं बल्कि देश के उत्तरी विद्युत वितरण केन्द्र को भी मिले. उसके निजी क्षेत्र की जल-विद्युत योजनाओं के कार्यांवयन की बांट, क्रिया तथा पर्यावरण पर प्रभाव को जाँचने तथा निरीक्षण करने के बाद पता लगा कि 48 योजनाएं जो 1993 से 2006 तक स्वीकृत की गई थीं, 15 वर्षों के बाद केवल दस प्रतिशत ही पूरी हो पाईं. उन सब की विद्युत उत्पादन क्षमता 2,423.10 मेगावाट आंकी गई थी, लेकिन मार्च 2009 तक वह केवल 418.05 मेगावाट ही हो पाईं. कैग के अनुसार इसके मुख्य कारण थे भूमि प्राप्ति में देरी, वन विभाग से समय पर आज्ञा न ले पाना तथा विद्युत उत्पादन क्षमता में लगातार बदलाव करते रहना, जिससे राज्य सरकार को आर्थिक हानि हुई. अन्य प्रमुख कारण थे, योजना संभावनाओं की अपूर्ण समीक्षा, उनके कार्यान्वयन में कमी तथा उनका सही मूल्यांकन, जिसे उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड को करना था, न कर पाना. प्रगति की जाँच के लिए सही मूल्यांकन पद्धति की आवश्यकता थी जो बनाने, मशीनरी तथा सामान लगने के समय में हुई त्रुटियों को जाँच करने का काम नहीं कर पाई, न ही यह निश्चित कर पाई कि वह त्रुटियाँ फिर न हों. निजी कंपनियों पर समझौते की जो शर्तें लगाई गई थीं उनका पालन भी नहीं हो पाया.यह रिपोर्ट कैग की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
जरूरी है कि सजग सामयिक नीति ही न बनाई जावे उसका समुचित परिपालन भी हो
इन संदर्भो में समूची जल विद्युत नीति , बांधो के निर्माण , उनके आकार प्रकार की निरंतर समीक्षा हो , वैश्विक स्तर की निर्माण प्रणालियो को अपनाया जावे , गुणवत्ता , समय , जनभावनाओ के अनुरूप कार्य सुनिश्चित कया जावे . प्रोजेक्ट रिपोर्ट को यथावत मूर्त रूप दिया जाना जरूरी है , तभी बिजली उत्पादन में बांधो की वास्तविक भूमिका का सकारात्मक उपयोग हो सकेगा .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी एवं अतिरिक्त अधीक्षण इंजीनियर
म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर
मो ०९४२५८०६२५२
ब्लाग http://nomorepowertheft.blogspot.com
email vivek1959@yahoo.co.in
व्यवसायिक बिजली उत्पादन की जो विधियां वर्तमान में प्रयुक्त हो रही हैं उनमें कोयले से ताप विद्युत , परमाणु विद्युत या बाँधो के द्वारा जल विद्युत का उत्पादन प्रमुख हैं . पानी को उंचाई से नीचे गिराकर उसकी स्थितिज उर्जा को विद्युत उर्जा में बदलने की जल विद्युत उत्पादन प्रणाली लिये बाँध बनाकर ऊंचाई पर जल संग्रहण करना होता है . तापविद्युत या परमाणु विद्युत के उत्पादन हेतु भी टरबाइन चलाने के लिये वाष्प बनाना पड़ता है और इसके लिये भी बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है अतः जल संग्रहण के लिये बांध अनिवार्य हो जाता है . ताप विद्युत संयत्र से निकलने वाली ढ़ेर सी राख के समुचित निस्तारण के लिये एशबंड बनाये जाते हैं , जिसके लिये भी बाँध बनाना पड़ता है . शायद इसीलिये बांधो और कल कारखानो को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के तीर्थ कहा था .पर वर्तमान संदर्भो में बड़े बाँधों से समृद्धि की बात शायद पुरानी मानी जाने लगी है . संभवतः इसके अनेक कारणो में से कुछ इस तरह हैं .
१ बड़े क्षेत्रफल के वन डूब क्षेत्र में आने से नदी के केचमेंट एरिया में भूमि का क्षरण
२ सिल्टिंग से बांध का पूरा उपयोग न हो पाना ,वाटर लागिंग और जमीन के सेलिनाईज़ेशन की समस्यायें
३ वनो के विनाश से पर्यावरण के प्रति वैश्विक चिंतायें , अनुपूरक वृक्षारोपण की असफलतायें
४ बहुत अधिक लागत के कारण नियत समय पर परियोजना का पूरा न हो पाना
५ भू अधिग्रहण की समस्यायें ,पुनरीक्षित आकलनो में लागत में निरंतर अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि
६ सिंचाई ,मत्स्यपालन व विद्युत उत्पादन जैसी एकीकृत बहुआयामी परियोजनाओ में विभिन्न विभागो के परस्पर समन्वय की कमी
७ डूब क्षेत्र के विस्थापितों की पीड़ा , उनका समुचित पुनर्वास न हो पाना
८ बड़े बांधो से भूगर्भीय परिवर्तन एवं भूकंप
९ डूब क्षेत्र में भू गर्भीय खनिज संपदा की व्यापक हानि ,हैबीटैट (पशु व पौधों के प्राकृतिक-वास) का नुकसान
१० बड़े स्तर पर धन तथा लोगो के प्रभावित होने से भ्रष्टाचार व राजनीतीक समस्यायें
विकास गौण हो गया , मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बन गया
नर्मदा घाटी पर डिंडोरी में नर्मदा के उद्गम से लेकर गुजरात के सरदार सरोवर तक अनेक बांधो की श्रंखला की विशद परियोजनायें बनाई गई थी , किंतु इन्ही सब कारणो से उनमें से अनेक ५० वर्षो बाद आज तक रिपोर्ट के स्तर पर ही हैं . डूब क्षेत्र की जमीन और जनता के मनोभावो का समुचित आकलन न किये जाने , विशेष रूप से विस्थापितो के पुनर्वास के संवेदन शील मुद्दे पर समय पर सही तरीके से जन भावनाओ के अनुरूप काम न हो पाने के कारण नर्मदा बचाओ आंदोलन का जन्म हुआ .इन लोगों की अगुवाई करने वाली मेधा पाटकर ने एक वृहद, अहिंसक सामाजिक आंदोलन का रूप देकर समाज के समक्ष सरदार सरोवर बाँध की कमियो को उजागर किया. मेधा तेज़तर्रार, साहसी और सहनशील आंदोलनकारी रही हैं. मेधा के नर्मदा बचाओ आंदोलन से सरकार और विदेशी निवेशकों पर दबाव भी पड़ा, 1993 में विश्व बैंक ने मानावाधिकारों पर चिंता जताते हुए पूँजीनिवेश वापस ले लिया. उच्चतम न्यायालय ने पहले परियोजना पर रोक लगाई और फिर 2000 में हरी झंडी भी देखा दी .प्रत्यक्ष और परोक्ष वैश्विक हस्तक्षेप के चलते विकास गौण हो गया , मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बन गया . मानव अधिकार , पर्यावरण आदि प्रसंगो को लेकर आंदोलनकारियो को पुरस्कार , सम्मान घोषित होने लगे . बांधो के विषय में तकनीकी दृष्टिकोण की उपेक्षा करते हुये , स्वार्थो , राजनैतिक लाभ को लेकर पक्ष विपक्ष की लाबियिंग हो रही है . मेधा पाटकर और उनके साथियों को 1991 में प्रतिष्ठित राईट लाईवलीहुड पुरस्कार मिला , जिसकी तुलना नोबल पुरस्कार से की जाती है.मेघा मुक्त वैश्विक संस्था “वर्ल्ड कमीशन ओन डैम्स” में शामिल रह चुकी हैं. 1992 में उन्हें गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार भी मिला.
इन समस्याओ के निदान हेतु जल-विद्युत योजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी के बारे में विमर्श हो रहा है . बड़े बांधो की अपेक्षा छोटी परियोजनाओ पर कार्य किये जाने का वैचारिक परिवर्तन नीती निर्धारको के स्तर पर हुआ है .
क्लीन ग्रीन बिजली पन बिजली
जल विद्युत के उत्पादन में संचालन संधारण व्यय बहुत ही कम होता है साथ ही पीकिंग अवर्स में आवश्यकता के अनुसार जल निकासी नियंत्रित करके विद्युत उत्पादन घटाने बढ़ाने की सुविधा के चलते किसी भी विद्युत सिस्टम में जल विद्युत बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा होता है , इससे औद्योगिक प्रदूषण भी नही होता किंतु जल विद्युत उत्पादन संयत्र की स्थापना का बहुत अधिक लागत मूल्य एवं परियोजना का लंबा निर्माण काल इसकी बड़ी कमी है . भारत में हिमालय के तराई वाले क्षेत्र में जल विद्युत की व्यापक संभावनायें हैं , जिनका दोहन न हो पाने के कारण कितनी ही बिजली बही जा रही है .वर्तमान बिजली की कमी को दृष्टिगत रखते हुये , लागत मूल्य के आर्थिक पक्ष की उपेक्षा करते हुये , प्रत्येक छोटे बड़े बांध से सिंचाई हेतु प्रयुक्त नहरो में निकाले जाने वाले पानी से हैडरेस पर ही जल विद्युत उत्पादन टरबाईन लगाया जाना आवश्यक है . किसी भी संतुलित विद्युत उत्पादन सिस्टम में जल विद्युत की न्यूनतम ४० प्रतिशत हिस्सेदारी होनी ही चाहिये , जिसकी अभी हमारे देश व राज्य में कमी है . वैसे भी कोयले के हर क्षण घटते भंडारो के परिप्रेक्ष्य में वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है .
जल विद्युत और उत्तराखंड
भारत में उत्तराखंड में जल विद्युत की प्रचुर सँभावनाओ के संदर्भ में वहां की परियोजनाओ पर समीक्षा जरूरी लगती है . दुखद है कि बाँध परियोजनाओं के माध्यम से उत्तराखंड में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति चल रही है. शुरूआती दौर से स्थानीय जनता बाँधों का विरोध करती आयी है तो कम्पनियाँ धनबल और प्रशासन की मदद से अवाम के एक वर्ग को बाँधों के पक्ष में खड़ी करती रही है. ‘नदी बचाओ आन्दोलन’ की संयोजक और गांधी शान्ति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष राधा बहन भट्ट का कहना है कि ऊर्जा की जरूरत जरूर है, लेकिन सूक्ष्म परियोजनायें प्रत्येक गाँव में बनाकर बिजली के साथ रोजगार पैदा करना बेहतर विकल्प है. इस वर्ष इण्डोनेशिया की मुनिपुनी को गांव गांव में सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओ के निर्माण हेतु ही मैग्सेसे अवार्ड भी मिला है . क्या बड़े टनल और डैम रोजगार दे सकेंगे? पहाड़ी क्षेत्रो में कृषि भूमि सीमित है ,लोगों ने अपनी यह बहुमूल्य भूमि बड़ी परियोजनाओं के लिये दी, बाँध बनने तक रोजगार के नाम पर उन्हें बरगलाया गया तथा उत्पादन शुरू होते ही बाँध प्रभावित लोग परियोजनाओं के हिस्से नहीं रहे, मनेरी भाली द्वितीय पर चर्चा करते हुए राधा बहन ने विफोली गाँव का दर्द बताया, जहाँ प्रभावित ग्रामीणों ने अपनी जमीन और आजीविका के साथ बाँध कर्मचारियों की विस्तृत बस्ती की तुलना में वोटर लिस्ट में अल्पमत में आकर लोकतांत्रिक तरीको से अपनी बात मनवाने का अधिकार भी खो दिया.
चिपको आन्दोलन की प्रणेता गौरा देवी के गाँव रैणी के नीचे भी टनल बनाना इस महान आन्दोलन की तौहीन है। वर्षों पूर्व रैणी के महिला मंगल दल द्वारा इस परियोजना क्षेत्र में पौधे लगाये गये थे। मोहन काण्डपाल के सर्वेक्षण के अनुसार परियोजना द्वारा सड़क ले जाने में 200 पेड़ काटे गये और मुआवजा वन विभाग को दे दिया गया। पेड़ लगाने वाले लोगों को पता भी नहीं चला कि कब ठेका हुआ। गौरा देवी की निकट सहयोगी गोमती देवी को दुःख है कि पैसे के आगे सब बिक गये। रैणी से 6 किमी दूर लाता में एन.टी.पी.सी द्वारा प्रारम्भ की जा रही परियोजना में सुरंग बनाने का गाँव वालों ने पुरजोर विरोध किया। मलारी गाँव में भी मलारी झेलम नाम से टीएचडीसी विद्युत परियोजना लगा रही है। मलारी के महिला मंगल दल ने कम्पनी को गाँव में नहीं घुसने दिया तथा परियोजना के बोर्ड को उखाड़कर फैंक दिया। कम्पनी ने कुछ लोगों पर मुकदमे लगा रखे हैं। इसके अलावा धौलीगंगा और उसकी सहायक नदियों में पीपलकोटी, जुम्मा, भ्यूँडार, काकभुसण्डी, द्रोणगिरी में प्रस्तावित परियोजनाओं का प्रबल विरोध है।
उत्तराखंड की जल-विद्युत परियोजनाओं पर कन्ट्रोलर तथा ऑडिटर जनरल (कैग) की रपट
उत्तराखंड की जल-विद्युत परियोजनाओं पर भारत के कन्ट्रोलर तथा ऑडिटर जनरल (कैग) ने 30 सितंबर 2009 को एक बहुत कड़ी टिप्पणी कर स्पष्ट कहा है कि योजनाओं का कार्यान्वयन निराशाजनक रहा है। उनमें पर्यावरण संरक्षण की कतई परवाह नहीं की गई है जिससे उसकी क्षति हो रही है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्तराखंड सरकार की महत्वाकांक्षी योजना थी कि वह अपनी जलशक्ति का उपयोग तथा विकास सरकारी तथा निजी क्षेत्र के सहयोग से करेगा. राज्य की जल-विद्युत बनाने की नीति अक्टूबर 2002 को बनी। उसका मुख्य उद्देश्य था राज्य को ऊर्जा प्रदेश बनाया जाय और उसकी बनाई बिजली राज्य को ही नहीं बल्कि देश के उत्तरी विद्युत वितरण केन्द्र को भी मिले. उसके निजी क्षेत्र की जल-विद्युत योजनाओं के कार्यांवयन की बांट, क्रिया तथा पर्यावरण पर प्रभाव को जाँचने तथा निरीक्षण करने के बाद पता लगा कि 48 योजनाएं जो 1993 से 2006 तक स्वीकृत की गई थीं, 15 वर्षों के बाद केवल दस प्रतिशत ही पूरी हो पाईं. उन सब की विद्युत उत्पादन क्षमता 2,423.10 मेगावाट आंकी गई थी, लेकिन मार्च 2009 तक वह केवल 418.05 मेगावाट ही हो पाईं. कैग के अनुसार इसके मुख्य कारण थे भूमि प्राप्ति में देरी, वन विभाग से समय पर आज्ञा न ले पाना तथा विद्युत उत्पादन क्षमता में लगातार बदलाव करते रहना, जिससे राज्य सरकार को आर्थिक हानि हुई. अन्य प्रमुख कारण थे, योजना संभावनाओं की अपूर्ण समीक्षा, उनके कार्यान्वयन में कमी तथा उनका सही मूल्यांकन, जिसे उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड को करना था, न कर पाना. प्रगति की जाँच के लिए सही मूल्यांकन पद्धति की आवश्यकता थी जो बनाने, मशीनरी तथा सामान लगने के समय में हुई त्रुटियों को जाँच करने का काम नहीं कर पाई, न ही यह निश्चित कर पाई कि वह त्रुटियाँ फिर न हों. निजी कंपनियों पर समझौते की जो शर्तें लगाई गई थीं उनका पालन भी नहीं हो पाया.यह रिपोर्ट कैग की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
जरूरी है कि सजग सामयिक नीति ही न बनाई जावे उसका समुचित परिपालन भी हो
इन संदर्भो में समूची जल विद्युत नीति , बांधो के निर्माण , उनके आकार प्रकार की निरंतर समीक्षा हो , वैश्विक स्तर की निर्माण प्रणालियो को अपनाया जावे , गुणवत्ता , समय , जनभावनाओ के अनुरूप कार्य सुनिश्चित कया जावे . प्रोजेक्ट रिपोर्ट को यथावत मूर्त रूप दिया जाना जरूरी है , तभी बिजली उत्पादन में बांधो की वास्तविक भूमिका का सकारात्मक उपयोग हो सकेगा .
13 दिसंबर, 2011
07 दिसंबर, 2011
05 दिसंबर, 2011
Energy audit
Energy is often the single largest controllable cost in manufacturing. Proper management of energy has a direct positive impact on a company’s bottom line. Energy audit is the first step in knowing the potential energy savings. It identifies area where the energy is being wasted by taking measurements at the key energy consumption points and the systematic study. It determines existing level of energy usage and recommends possible measures that would result in energy savings.
Moreover the fact that the Energy Audit can identify the wastage and save a 15% of the energy bill.
Moreover the fact that the Energy Audit can identify the wastage and save a 15% of the energy bill.
30 नवंबर, 2011
LED Summit 2011
The LED Summit 2011 is an exclusive conference for the LED industry stake holders & end users. It is an endeavour to emphasise & enlighten on the usage of LEDs in various areas & bring forth its energy efficiency, products & technology to end users. In addition to addressing technical issues, standards & standardization.
The summit will include specialised sessions spread over two days by prominent industry players to help maximize your exposure to the entire Industry. It is the definitive platform that brings together the manufacturers, importers, distributors, end users, etc with a focus to discuss, manage and chart the future of this very powerful & growing industry.
As per industry reports, LED Lighting market in India is expected to grow at a CAGR of 41.5% till 2015.Outdoor applications represent the biggest end user segment for LED Lighting. Thus, LED is emerging as the new avatar of the lighting industry & the clean green energy source which is sure to grow by leaps & bounds. All industry stalwarts, market leaders are going to present strategies for tapping & unleashing the power of LEDs.
The summit will include specialised sessions spread over two days by prominent industry players to help maximize your exposure to the entire Industry. It is the definitive platform that brings together the manufacturers, importers, distributors, end users, etc with a focus to discuss, manage and chart the future of this very powerful & growing industry.
As per industry reports, LED Lighting market in India is expected to grow at a CAGR of 41.5% till 2015.Outdoor applications represent the biggest end user segment for LED Lighting. Thus, LED is emerging as the new avatar of the lighting industry & the clean green energy source which is sure to grow by leaps & bounds. All industry stalwarts, market leaders are going to present strategies for tapping & unleashing the power of LEDs.
29 नवंबर, 2011
सूचना प्रौद्योगिकी और विद्युत वितरण
सूचना प्रौद्योगिकी और विद्युत वितरण
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता एवं जन संपर्क अधिकारी
म. प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ,
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , जबलपुर ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२, ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग कहा जाता है . सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व को स्वीकारते हुये ही केंद्र व राज्य सरकारो ने अलग से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयो का गठन किया है . वर्ष २००० में हमारे देश में सूचना प्रौद्योगिकी कानून लाया गया , जिससे सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से त्वरित व्यापार , सूचनाओ व पत्रों का आदान प्रदान वैधानिक दर्जा प्राप्त कर सके . सूचना प्रौद्योगिकी के व्यापक विस्तार से पेपरलैस आफिस की परिकल्पना मूर्त रूप ले सकती है . अनेक विभागो ने कागज बचाकर जंगल और पर्यावरण की सुरक्षा हेतु सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उल्लेखनीय पहल की है . हाल ही भारतीय रेल ने ई टिकिट के पेपर प्रिंट की जगह लैपटाप या मोबाईल पर टिकिट को इलेक्ट्रानिक रुप में लेकर यात्रा करने की महत्वपूर्ण सुविधा प्रदान की है . बिजली के क्षेत्र में भी सूचना प्रौद्योगिकी ने क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं .
क्या है सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक ?
भारतीय संसद ने मई २००० में सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक पारित किया था . इस विधेयक को अगस्त 2000 में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई और इसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के रूप में मान्यता मिली . इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में ई-वाणिज्य के लिए कानूनी बुनियादी ढांचा उपलब्ध करना है, और साइबर कानून का भारत में ई-व्यवसायों और नई अर्थव्यवस्था बड़ा व्यापक प्रभाव हुआ है.
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
प्रथम अध्याय परिचयात्मक है . अधिनियम का द्वितीय अध्याय विशेष रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपने डिजिटल हस्ताक्षर जोड कर एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रमाणित कर सकता है.अधिनियम का तृतीय अध्याय ई गवर्नेंस के बारे में है . अधिनियम का चतुर्थ अध्याय विनियमन के प्रमाण पत्र अधिकारियों को प्रमाण पत्र के लिए एक व्यवस्था देता है. यह अधिनियम प्रमाणपत्र प्राधिकरणों के नियंत्रक की परिकल्पना पूर्ण करता है, जो अधिकारियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने का काम करेगा .षष्ठम अध्याय डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र से संबंधित बातों के विवरण देता है। उपभोक्ताओं के कर्तव्य एवं शुल्क भी इस अधिनियम में निहित हैं.
अधिनियम का नवम अध्याय पेनल्टीज़/दंड/जुर्माना और विभिन्न अपराधों के लिए अधिनिर्णयन कानून के बारे में विवरण देता है. प्रभावित व्यक्तियों के कंप्यूटर को, कम्प्यूटर प्रणाली आदि के नुकसान के रूप में क्षतिपूर्ति के रूप में अधिकतम 1 करोड रुपये का दंड तय किया गया है. अधिनियम एक निर्णायक अधिकारी की नियुक्ति के बारे में कहता है जिसके अनुसार वह अधिकारी सुनिश्चित करेगा कि किसी व्यक्ति द्वारा सूचना प्राद्योगिकी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है अथवा नहीं . यह अधिकारी भारत सरकार या राज्य सरकार का समकक्ष अधिकारी होगा जो एक निदेशक के रैंक से नीचे नहीं होगा. इस निर्णायक अधिकारी को इस अधिनियम के द्वारा एक नागरिक न्यायालय का अधिकार दिया गया है.अधिनियम का दशम अध्याय सायबर रेग्लुलेशन्स अपीलेट ट्रिब्यूनल की स्थापना के बारे में विवरण देता है, जिसमें अपील निर्णायक अधिकारियों द्वारा पारित आदेश के विरूध्द अपील की जा सकेगी .
अधिनियम का ग्यारहवाँ अध्याय विभिन्न साइबर अपराधों के बारे में विवरण देता है और बताता है कि अपराधों की जाँच एक पुलिस अधिकारी , जो उप पुलिस अधीक्षक के पद नहीं नीचे होगा, उसी के द्वारा की जाएगी. इन अपराधों में कंप्यूटर स्रोत दस्तावेजों के साथ हस्तक्षेप , इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में अश्लील प्रकाशन, और हैकिंग आदि का समावेश है.यह अधिनियम साइबर विनियम सलाहकार समिति के गठन के लिये भी व्यवस्था देता है, जो सरकार को किसी भी नियम से संबंधित या अधिनियम संबंधी किसी अन्य उद्देश्य के संबंध में सलाह दे सकता है . इस अधिनियम में भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, द बैंकर्स बुक साक्ष्य अधिनियम, 1891, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 को अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप बनाने के लिए उनमें संशोधन करने का प्रस्ताव है.
विद्युत क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी से क्रांति
दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत एक्सिलरेटेड पॉवर डेवलपमेंट ऐंड रिफॉर्म प्रोग्राम (एपीडीआरपी) में वितरण क्षेत्र में 17,500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया . इसमें सब स्टेशनों में सुधार के लिए उपकरणों की खरीद के लिए कोष आवंटित किया गया था लेकिन तकनीकी और व्यावसायिक क्षति (एटीऐंडसी)को कम करने के लिए कोई विशेष काम स्पष्ट लक्ष्य न होने से नहीं हो पाया . अतः 11वीं पंचवर्षीय योजना में रीस्ट्रक्चर्ड एक्सिलरेटेड पॉवर डेवलपमेंट ऐंड रिफॉर्म प्रोग्राम (आरएपीडीआरपी) लाया गया. इस योजना के लक्ष्य स्पष्ट थे .इसमें सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए घाटे में कमी लाना, वितरण प्रणाली को मजबूत बनाना और विद्युत क्षमता में वृद्धि करना शामिल थे.
10,000 करोड़ रुपये बजट वाला योजना का पहला भाग सूचना एवं संचार तकनीक के जरिए ए टी ऐंड सी क्षति की आधार सीमा तय करता है. दूसरे भाग में 40,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित है और उसका लक्ष्य वितरण प्रणाली का पुनरुद्घार, आधुनिकीकरण और उसे मजबूत बनाना है.पहले भाग में केंद्रीय कोषों के 100 फीसदी हिस्से को ऋण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा और एक बार जरूरी देयता तय हो जाने के बाद उसे अनुदान में बदला जा सकेगा. आवंटन के तीन वर्ष के भीतर इसे पूरा करना अनिवार्य है,समय सीमा तय होने से योजना की पूर्णता अवधि को लेकर लक्ष्य निश्चित हैं .
दूसरे भाग के अंतर्गत आने वाली परियोजनाएं तभी आरंभ होंगी जब इन पूर्व निर्धारित विशेष लक्ष्यो को पूरा कर लिया जाएगा . इसमें वही क्षेत्र सहायता राशि के हकदार होंगे जहां ए टी ऐंड सी लासेज 15 फीसदी से अधिक होंगे. इस भाग के अंतर्गत अपनाई गई परियोजनाओं में ऋण को हर साल लक्ष्य प्राप्ति पर अनुदान में बदला जाएगा. स्पष्ट है कि आरएपीडीआरपी का दो चरणों वाला कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि इससे जुड़े तंत्र के प्रदर्शन में सुधार का निरपेक्ष ढंग से आकलन किया जा सके और समय सीमा तथा ए टी ऐंड सी लक्ष्यों के तहत आंतरिक जवाबदेही तय की जा सके . इतने बड़े व्यय के साथ ही आर ए पी डी आर पी घरेलू और अंतरराष्ट्रारीय स्तर पर व्यापक अवसरो तथा संभावनाओ के साथ सूचना प्राद्यौगिकी के माध्यम से बिजली क्षेत्र में युग परिवर्तनकारी योजना के रूप में सामने आई है . सलाहकारों ,प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, निगरानी, सत्यापन, प्रशिक्षण , वेंडर्स (ऑटोमेशन, सूचना प्रौद्योगिकी सुविधाएं, मीटरिंग, नेटवर्क और संचार सुविधाएं), सिस्टम इंटीग्रेटर्स और उपकरण निर्माताओं के लिए इस योजना ने असंख्य अवसर उपलब्ध करवाये हैं. देश विदेश की अनेक निजी कंपनियो ने इन अवसरो को पहचानकर बिजली क्षेत्र में काम करने की पहल की है .
प्राथमिक अनुमान बता रहे हैं कि इस योजना से एटीऐंडसी लासेज नियंत्रित हो रहे हैं . केंद्रीकृत कोष आवंटन किया गया है और कड़ी निगरानी के लिए पॉवर फाइनैंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) को नोडल एजेंसी बनाया गया है. इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि यह कार्यक्रम व्यापक तौर पर पारदर्शी और प्रभावी ढंग से चल रहा है . वास्तविक आकलन के अनुसार अनेक चुनौतियां सामने आ रही हैं , जिनका समय सापेक्ष निदान सूचना प्राद्योगिकी के उपयोग से अब त्वरित ढ़ंग से संभव हो सका है .
विद्युत क्षेत्र में व्यापक सुधार से सूचना प्राद्यौगिकी में प्रगति
विभिन्न क्षेत्रो में सूचना प्राद्यौगिकी का उपयोग तभी बढ़ सकता है जब सबको गुणवत्तापूर्ण बिजली की नियमित आपूर्ति होती रहे , क्योकि सूचना प्राद्यौगिकी के उपकरणो को चलाने के लिये बिजली अनिवार्य आवश्यकता है . राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है, धीरे धीरे गांवो में बिजली की आपूर्ति बेहतर होती जा रही है . शहरी-विद्युत वितरण सुधार ने भी उपभोक्ताओ तक निर्बाध बिजली आपूर्ति का स्वरूप सुधारा है. विद्युत उत्पादन , वितरण में निजीकरण,फ्रैंचाइजी की व्यवस्था लागू की गई जा रही है , इस परिदृश्य से परस्पर निर्भर विद्युत क्षेत्र और सूचना प्राद्यौगिकी निरंतर प्रगतिशील हैं .
बिजली क्षेत्र में सूचना प्राद्यौगिकी के विस्तार में बाधायें
सूचना प्राद्यौगिकी एक नया विषय है , इसके जानकारो की औसत आयु २५ से ३० वर्ष मात्र है . जबकि बिजली क्षेत्र में काम करने वालों की औसत उम्र ४५ से ५० वर्ष है , ऐसी स्थिति में नई प्राद्यौगिकी तकनीक को लेकर बिजली क्षेत्र में स्वीकार्यता का स्तर कम है, कौतुहल भरी स्वीकार्यता है भी तो स्वाभाविक रूप से जानकारी का अभाव तथा झिझक के कारण परिवर्तन की गति तेज नही है . इसके अलावा बिजली क्षेत्र में सूचना प्राद्यौगिकी की विशेषज्ञता वाले लोग भी कम ही हैं.
सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रबंधक नयी उम्र के युवा हैं उनके पास अनुभव की कमी है जिसके कारण विद्युत और सूचना प्रौद्योगिकी में तालमेल की समस्या आना स्वाभाविक है . मौजूदा तकनीक से भविष्य की नई तकनीक अपनाने में मानसिक परिवर्तन की आवश्यकता होती है जो सरल नहीं है.सूचना प्रौद्योगिकी के क्रियान्वयन की दृष्टि से नये उपकरणो की व्यवस्था, प्रमाणीकरण, खरीद तथा उनको स्थापित करने की प्रक्रिया धीमी है और क्रियान्वयन की प्रक्रिया पर इसका असर पड़ रहा है. साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आते साफ्टवेयर तथा हार्डवेयर बदलाव भी एक बाधा हैं , बिजली क्षेत्र अभी भी बहुतायत में सरकारी है , और नित बदलते नये उपकरणो की लगातार खरीद सरकारी व्यवस्थाओ में बहुत आसान नही होती . डाटा सेंटर और ग्राहक सेवा केंद्रों का बुनियादी ढांचा पूर्व निर्मित नही है .बेहतर वित्तीय प्रबंधन और स्मार्ट ग्रिड्स के बुनियादी ढांचा विकास से आप्टिमम त्वरित विद्युत आपूर्ति , रिमोट मीटरिंग , स्काडा , के चलते सूचना प्राद्योगिकी विद्युत यूटिलिटीज के लिए तो ठीक है ही साथ ही यह निजी क्षेत्र के कारोबारियों के लिए भी बेहतर है क्योंकि यह बड़ा ग्राहक आधार और ग्राहक संतुष्टि की आटोमेटेड समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराती है, ई टेंडरिंग से विश्वस्तरीय व्यापारिक भागीदारी संभव हो पाई है . उपभोक्ता की दृष्टि से भी सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रयोग सबके लिये लाभकारी है , ई बिलिंग , ई पेमेंट सुविधायें , ई कम्प्लेंटस प्रभावी हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से वेबसाइट्स के जरिये उपभोक्ता घर बैठे पारदर्शी तरीके से न केवल बिजली क्षेत्र की सारी जानकारियां जुटा सकता है , वरन् अपने सुझाव प्रबंधन तक पहुंचाकर इस सारे सुधार कार्यक्रम का हिस्सा भी बन सकता है . सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से आने वाले समय में हमें बिजली के क्षेत्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेंगे यह सुनिश्चित है .
(लेखक को सकारात्मक लेखन हेतु अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं)
विवेक रंजन श्रीवास्तव
अधीक्षण अभियंता एवं जन संपर्क अधिकारी
म. प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ,
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , जबलपुर ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२, ई मेल vivek1959@yahoo.co.in
वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग कहा जाता है . सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व को स्वीकारते हुये ही केंद्र व राज्य सरकारो ने अलग से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयो का गठन किया है . वर्ष २००० में हमारे देश में सूचना प्रौद्योगिकी कानून लाया गया , जिससे सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से त्वरित व्यापार , सूचनाओ व पत्रों का आदान प्रदान वैधानिक दर्जा प्राप्त कर सके . सूचना प्रौद्योगिकी के व्यापक विस्तार से पेपरलैस आफिस की परिकल्पना मूर्त रूप ले सकती है . अनेक विभागो ने कागज बचाकर जंगल और पर्यावरण की सुरक्षा हेतु सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से उल्लेखनीय पहल की है . हाल ही भारतीय रेल ने ई टिकिट के पेपर प्रिंट की जगह लैपटाप या मोबाईल पर टिकिट को इलेक्ट्रानिक रुप में लेकर यात्रा करने की महत्वपूर्ण सुविधा प्रदान की है . बिजली के क्षेत्र में भी सूचना प्रौद्योगिकी ने क्रांतिकारी परिवर्तन किये हैं .
क्या है सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक ?
भारतीय संसद ने मई २००० में सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक पारित किया था . इस विधेयक को अगस्त 2000 में राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई और इसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के रूप में मान्यता मिली . इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में ई-वाणिज्य के लिए कानूनी बुनियादी ढांचा उपलब्ध करना है, और साइबर कानून का भारत में ई-व्यवसायों और नई अर्थव्यवस्था बड़ा व्यापक प्रभाव हुआ है.
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
प्रथम अध्याय परिचयात्मक है . अधिनियम का द्वितीय अध्याय विशेष रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपने डिजिटल हस्ताक्षर जोड कर एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रमाणित कर सकता है.अधिनियम का तृतीय अध्याय ई गवर्नेंस के बारे में है . अधिनियम का चतुर्थ अध्याय विनियमन के प्रमाण पत्र अधिकारियों को प्रमाण पत्र के लिए एक व्यवस्था देता है. यह अधिनियम प्रमाणपत्र प्राधिकरणों के नियंत्रक की परिकल्पना पूर्ण करता है, जो अधिकारियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने का काम करेगा .षष्ठम अध्याय डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र से संबंधित बातों के विवरण देता है। उपभोक्ताओं के कर्तव्य एवं शुल्क भी इस अधिनियम में निहित हैं.
अधिनियम का नवम अध्याय पेनल्टीज़/दंड/जुर्माना और विभिन्न अपराधों के लिए अधिनिर्णयन कानून के बारे में विवरण देता है. प्रभावित व्यक्तियों के कंप्यूटर को, कम्प्यूटर प्रणाली आदि के नुकसान के रूप में क्षतिपूर्ति के रूप में अधिकतम 1 करोड रुपये का दंड तय किया गया है. अधिनियम एक निर्णायक अधिकारी की नियुक्ति के बारे में कहता है जिसके अनुसार वह अधिकारी सुनिश्चित करेगा कि किसी व्यक्ति द्वारा सूचना प्राद्योगिकी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है अथवा नहीं . यह अधिकारी भारत सरकार या राज्य सरकार का समकक्ष अधिकारी होगा जो एक निदेशक के रैंक से नीचे नहीं होगा. इस निर्णायक अधिकारी को इस अधिनियम के द्वारा एक नागरिक न्यायालय का अधिकार दिया गया है.अधिनियम का दशम अध्याय सायबर रेग्लुलेशन्स अपीलेट ट्रिब्यूनल की स्थापना के बारे में विवरण देता है, जिसमें अपील निर्णायक अधिकारियों द्वारा पारित आदेश के विरूध्द अपील की जा सकेगी .
अधिनियम का ग्यारहवाँ अध्याय विभिन्न साइबर अपराधों के बारे में विवरण देता है और बताता है कि अपराधों की जाँच एक पुलिस अधिकारी , जो उप पुलिस अधीक्षक के पद नहीं नीचे होगा, उसी के द्वारा की जाएगी. इन अपराधों में कंप्यूटर स्रोत दस्तावेजों के साथ हस्तक्षेप , इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में अश्लील प्रकाशन, और हैकिंग आदि का समावेश है.यह अधिनियम साइबर विनियम सलाहकार समिति के गठन के लिये भी व्यवस्था देता है, जो सरकार को किसी भी नियम से संबंधित या अधिनियम संबंधी किसी अन्य उद्देश्य के संबंध में सलाह दे सकता है . इस अधिनियम में भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, द बैंकर्स बुक साक्ष्य अधिनियम, 1891, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 को अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप बनाने के लिए उनमें संशोधन करने का प्रस्ताव है.
विद्युत क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी से क्रांति
दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत एक्सिलरेटेड पॉवर डेवलपमेंट ऐंड रिफॉर्म प्रोग्राम (एपीडीआरपी) में वितरण क्षेत्र में 17,500 करोड़ रुपये का निवेश किया गया . इसमें सब स्टेशनों में सुधार के लिए उपकरणों की खरीद के लिए कोष आवंटित किया गया था लेकिन तकनीकी और व्यावसायिक क्षति (एटीऐंडसी)को कम करने के लिए कोई विशेष काम स्पष्ट लक्ष्य न होने से नहीं हो पाया . अतः 11वीं पंचवर्षीय योजना में रीस्ट्रक्चर्ड एक्सिलरेटेड पॉवर डेवलपमेंट ऐंड रिफॉर्म प्रोग्राम (आरएपीडीआरपी) लाया गया. इस योजना के लक्ष्य स्पष्ट थे .इसमें सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए घाटे में कमी लाना, वितरण प्रणाली को मजबूत बनाना और विद्युत क्षमता में वृद्धि करना शामिल थे.
10,000 करोड़ रुपये बजट वाला योजना का पहला भाग सूचना एवं संचार तकनीक के जरिए ए टी ऐंड सी क्षति की आधार सीमा तय करता है. दूसरे भाग में 40,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित है और उसका लक्ष्य वितरण प्रणाली का पुनरुद्घार, आधुनिकीकरण और उसे मजबूत बनाना है.पहले भाग में केंद्रीय कोषों के 100 फीसदी हिस्से को ऋण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा और एक बार जरूरी देयता तय हो जाने के बाद उसे अनुदान में बदला जा सकेगा. आवंटन के तीन वर्ष के भीतर इसे पूरा करना अनिवार्य है,समय सीमा तय होने से योजना की पूर्णता अवधि को लेकर लक्ष्य निश्चित हैं .
दूसरे भाग के अंतर्गत आने वाली परियोजनाएं तभी आरंभ होंगी जब इन पूर्व निर्धारित विशेष लक्ष्यो को पूरा कर लिया जाएगा . इसमें वही क्षेत्र सहायता राशि के हकदार होंगे जहां ए टी ऐंड सी लासेज 15 फीसदी से अधिक होंगे. इस भाग के अंतर्गत अपनाई गई परियोजनाओं में ऋण को हर साल लक्ष्य प्राप्ति पर अनुदान में बदला जाएगा. स्पष्ट है कि आरएपीडीआरपी का दो चरणों वाला कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है कि इससे जुड़े तंत्र के प्रदर्शन में सुधार का निरपेक्ष ढंग से आकलन किया जा सके और समय सीमा तथा ए टी ऐंड सी लक्ष्यों के तहत आंतरिक जवाबदेही तय की जा सके . इतने बड़े व्यय के साथ ही आर ए पी डी आर पी घरेलू और अंतरराष्ट्रारीय स्तर पर व्यापक अवसरो तथा संभावनाओ के साथ सूचना प्राद्यौगिकी के माध्यम से बिजली क्षेत्र में युग परिवर्तनकारी योजना के रूप में सामने आई है . सलाहकारों ,प्रसंस्करण, सूचना प्रौद्योगिकी, निगरानी, सत्यापन, प्रशिक्षण , वेंडर्स (ऑटोमेशन, सूचना प्रौद्योगिकी सुविधाएं, मीटरिंग, नेटवर्क और संचार सुविधाएं), सिस्टम इंटीग्रेटर्स और उपकरण निर्माताओं के लिए इस योजना ने असंख्य अवसर उपलब्ध करवाये हैं. देश विदेश की अनेक निजी कंपनियो ने इन अवसरो को पहचानकर बिजली क्षेत्र में काम करने की पहल की है .
प्राथमिक अनुमान बता रहे हैं कि इस योजना से एटीऐंडसी लासेज नियंत्रित हो रहे हैं . केंद्रीकृत कोष आवंटन किया गया है और कड़ी निगरानी के लिए पॉवर फाइनैंस कॉरपोरेशन (पीएफसी) को नोडल एजेंसी बनाया गया है. इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि यह कार्यक्रम व्यापक तौर पर पारदर्शी और प्रभावी ढंग से चल रहा है . वास्तविक आकलन के अनुसार अनेक चुनौतियां सामने आ रही हैं , जिनका समय सापेक्ष निदान सूचना प्राद्योगिकी के उपयोग से अब त्वरित ढ़ंग से संभव हो सका है .
विद्युत क्षेत्र में व्यापक सुधार से सूचना प्राद्यौगिकी में प्रगति
विभिन्न क्षेत्रो में सूचना प्राद्यौगिकी का उपयोग तभी बढ़ सकता है जब सबको गुणवत्तापूर्ण बिजली की नियमित आपूर्ति होती रहे , क्योकि सूचना प्राद्यौगिकी के उपकरणो को चलाने के लिये बिजली अनिवार्य आवश्यकता है . राजीव गांधी ग्रामीण विद्युत योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है, धीरे धीरे गांवो में बिजली की आपूर्ति बेहतर होती जा रही है . शहरी-विद्युत वितरण सुधार ने भी उपभोक्ताओ तक निर्बाध बिजली आपूर्ति का स्वरूप सुधारा है. विद्युत उत्पादन , वितरण में निजीकरण,फ्रैंचाइजी की व्यवस्था लागू की गई जा रही है , इस परिदृश्य से परस्पर निर्भर विद्युत क्षेत्र और सूचना प्राद्यौगिकी निरंतर प्रगतिशील हैं .
बिजली क्षेत्र में सूचना प्राद्यौगिकी के विस्तार में बाधायें
सूचना प्राद्यौगिकी एक नया विषय है , इसके जानकारो की औसत आयु २५ से ३० वर्ष मात्र है . जबकि बिजली क्षेत्र में काम करने वालों की औसत उम्र ४५ से ५० वर्ष है , ऐसी स्थिति में नई प्राद्यौगिकी तकनीक को लेकर बिजली क्षेत्र में स्वीकार्यता का स्तर कम है, कौतुहल भरी स्वीकार्यता है भी तो स्वाभाविक रूप से जानकारी का अभाव तथा झिझक के कारण परिवर्तन की गति तेज नही है . इसके अलावा बिजली क्षेत्र में सूचना प्राद्यौगिकी की विशेषज्ञता वाले लोग भी कम ही हैं.
सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के प्रबंधक नयी उम्र के युवा हैं उनके पास अनुभव की कमी है जिसके कारण विद्युत और सूचना प्रौद्योगिकी में तालमेल की समस्या आना स्वाभाविक है . मौजूदा तकनीक से भविष्य की नई तकनीक अपनाने में मानसिक परिवर्तन की आवश्यकता होती है जो सरल नहीं है.सूचना प्रौद्योगिकी के क्रियान्वयन की दृष्टि से नये उपकरणो की व्यवस्था, प्रमाणीकरण, खरीद तथा उनको स्थापित करने की प्रक्रिया धीमी है और क्रियान्वयन की प्रक्रिया पर इसका असर पड़ रहा है. साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से आते साफ्टवेयर तथा हार्डवेयर बदलाव भी एक बाधा हैं , बिजली क्षेत्र अभी भी बहुतायत में सरकारी है , और नित बदलते नये उपकरणो की लगातार खरीद सरकारी व्यवस्थाओ में बहुत आसान नही होती . डाटा सेंटर और ग्राहक सेवा केंद्रों का बुनियादी ढांचा पूर्व निर्मित नही है .बेहतर वित्तीय प्रबंधन और स्मार्ट ग्रिड्स के बुनियादी ढांचा विकास से आप्टिमम त्वरित विद्युत आपूर्ति , रिमोट मीटरिंग , स्काडा , के चलते सूचना प्राद्योगिकी विद्युत यूटिलिटीज के लिए तो ठीक है ही साथ ही यह निजी क्षेत्र के कारोबारियों के लिए भी बेहतर है क्योंकि यह बड़ा ग्राहक आधार और ग्राहक संतुष्टि की आटोमेटेड समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराती है, ई टेंडरिंग से विश्वस्तरीय व्यापारिक भागीदारी संभव हो पाई है . उपभोक्ता की दृष्टि से भी सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रयोग सबके लिये लाभकारी है , ई बिलिंग , ई पेमेंट सुविधायें , ई कम्प्लेंटस प्रभावी हैं. सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से वेबसाइट्स के जरिये उपभोक्ता घर बैठे पारदर्शी तरीके से न केवल बिजली क्षेत्र की सारी जानकारियां जुटा सकता है , वरन् अपने सुझाव प्रबंधन तक पहुंचाकर इस सारे सुधार कार्यक्रम का हिस्सा भी बन सकता है . सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से आने वाले समय में हमें बिजली के क्षेत्र में अद्भुत परिवर्तन देखने को मिलेंगे यह सुनिश्चित है .
(लेखक को सकारात्मक लेखन हेतु अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं)
16 नवंबर, 2011
12 नवंबर, 2011
इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें ......
श्रीमद्भगवत गीता विश्व का अप्रतिम ग्रंथ है !
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है !
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है !
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते !
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं .
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके .
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तव
धार्मिक भावना के साथ साथ दिशा दर्शन हेतु सदैव पठनीय है !
जीवन दर्शन का मैनेजमेंट सिखाती है ! पर संस्कृत में है !
हममें से कितने ही हैं जो गीता पढ़ना समझना तो चाहते हैं पर संस्कृत नहीं जानते !
मेरे ८४ वर्षीय पूज्य पिता प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी संस्कृत व हिन्दी के विद्वान तो हैं ही , बहुत ही अच्छे कवि भी हैं , उन्होने महाकवि कालिदास कृत मेघदूत तथा रघुवंश के श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद किये , वे अनुवाद बहुत सराहे गये हैं . हाल ही उन्होने श्रीमद्भगवत गीता का भी श्लोकशः पद्यानुवाद पूर्ण किया . जिसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं .
उनका यह महान कार्य http://vikasprakashan.blogspot.com/ पर सुलभ है . रसास्वादन करें . व अपने अभिमत से सूचित करें . कृति को पुस्तकाकार प्रकाशित करवाना चाहता हूं जिससे इस पद्यानुवाद का हिन्दी जानने वाले किन्तु संस्कृत न समझने वाले पाठक अधिकतम सदुपयोग कर सकें . नई पीढ़ी तक गीता उसी काव्यगत व भावगत आनन्द के साथ पहुंच सके .
प्रसन्नता होगी यदि इस लिंक का विस्तार आपके वेब पन्ने पर भी करेंगे . यदि कोई प्रकाशक जो कृति को छापना चाहें , इसे देखें तो संपर्क करें ..०९४२५८०६२५२, विवेक रंजन श्रीवास्तव
16 अक्टूबर, 2011
07 अक्टूबर, 2011
low head..... Hydro Electric Turbine
low head..... Hydro Electric Turbine
Technology Description:
Mr. Ratnakara started the experiment of making low water head turbine on a hit and trial basis. The turbine set consists of an alternator activated by the turn of the turbine and can produce 3.5 units of electricity per hour. It can generate 60 watt of power. The approximate weight of the machine is 300 kgs.
Opportunities:
The turbine is useful in hilly areas. The total capital requirement is also very less.
Technology Status:
Idea / Prototype Development IPR Status:
Under consideration
Testimonial:
Innovator has already setup 21 power generation projects with a generation of one or two KV in Dakshina Kannada, Kadagu, Hassan and Chikmagalur districts.
Technology Description:
Mr. Ratnakara started the experiment of making low water head turbine on a hit and trial basis. The turbine set consists of an alternator activated by the turn of the turbine and can produce 3.5 units of electricity per hour. It can generate 60 watt of power. The approximate weight of the machine is 300 kgs.
Opportunities:
The turbine is useful in hilly areas. The total capital requirement is also very less.
Technology Status:
Idea / Prototype Development IPR Status:
Under consideration
Testimonial:
Innovator has already setup 21 power generation projects with a generation of one or two KV in Dakshina Kannada, Kadagu, Hassan and Chikmagalur districts.
04 अक्टूबर, 2011
विद्युत वितरण में निजी क्षेत्र को आमंत्रण ...सागर म. प्र शहर को फ्रेंचाईज पर देने हेतु .....
Madhya Pradesh Poorv Kshetra Vidyut Vitran Co. Ltd., Jabalpur
(A wholly-owned Govt. of MP Undertaking)
Shakti Bhawan, Jabalpur- 482008
Tender Specification No. EZ / COMML. / FD /2011 / Sagar City/1 dated 03.10.11
Notice Inviting Tender
(Selection of Input based distribution franchisee on a competitive basis)
Madhya Pradesh Poorv Kshetra Vidyut Vitaran Company Ltd. (MPPKVVCL), Jabalpur, incorporated under the Companies Act, 1956, intends to appoint Franchisee for Distribution of Electricity in Sagar City under the provisions of Section 14 of Electricity Act 2003. For this purpose MPPKVVCL, Jabalpur invites offers from Company duly incorporated under the relevant laws or a Consortium of Companies interested in bidding for this tender.
The project would include all the activities relating to distribution of electricity for the selected franchisee area. The Consumer mix, Geographical Area, present Input and Sale of energy, Distribution assets etc. for the selected area can be seen on our website http//www.mpez-electricity-discom.nic.in/
The necessary information for the selected franchisee area is as under:
Franchisee Area Geographical Area (sq.km.) Consumers (as on 31/03/11) Date of Sale of RFP Date of Pre-Bid conference Last Date of receipt of queries Due Date of submission of the Bid
Sagar City 205 54,641 05.10.11–05.12.11 15.10.11 18.10.11 07.12.2011 upto 15.00 Hrs.
Earnest Money Deposit for the Sagar City shall be Rs. 60 lakhs (Rs. Sixty Lakhs)
Tender document can be obtained from the office of the Chief Engineer (Commercial), MPPKVVCL, Shakti Bhawan, Jabalpur, 482008 on any working day as specified above, between 10:30 to 17:30 hrs. on payment of non-refundable fee of Rs. 10,000/- only by DD/Banker’s cheque/Cash drawn in favour of “Regional Accounts Officer (JC), MPPKVVCL payable at Jabalpur or downloaded from www.mpez-electricity-discom.nic.in. However, in case of download from the website, interested bidders can submit their response to the RFP only on submission of non-refundable fee of Rs.10,000/- as per the details provided in the Bid document.
For any further queries please send your mail to cecommlez@yahoo.com and Fax to 0761-2660128, 2666070
Note: MPPKVVCL, Jabalpur reserves the right to cancel or modify the process without assigning any reasons and any liability.
SAVE ELECTRICITY Chief Engineer (Commercial)
(A wholly-owned Govt. of MP Undertaking)
Shakti Bhawan, Jabalpur- 482008
Tender Specification No. EZ / COMML. / FD /2011 / Sagar City/1 dated 03.10.11
Notice Inviting Tender
(Selection of Input based distribution franchisee on a competitive basis)
Madhya Pradesh Poorv Kshetra Vidyut Vitaran Company Ltd. (MPPKVVCL), Jabalpur, incorporated under the Companies Act, 1956, intends to appoint Franchisee for Distribution of Electricity in Sagar City under the provisions of Section 14 of Electricity Act 2003. For this purpose MPPKVVCL, Jabalpur invites offers from Company duly incorporated under the relevant laws or a Consortium of Companies interested in bidding for this tender.
The project would include all the activities relating to distribution of electricity for the selected franchisee area. The Consumer mix, Geographical Area, present Input and Sale of energy, Distribution assets etc. for the selected area can be seen on our website http//www.mpez-electricity-discom.nic.in/
The necessary information for the selected franchisee area is as under:
Franchisee Area Geographical Area (sq.km.) Consumers (as on 31/03/11) Date of Sale of RFP Date of Pre-Bid conference Last Date of receipt of queries Due Date of submission of the Bid
Sagar City 205 54,641 05.10.11–05.12.11 15.10.11 18.10.11 07.12.2011 upto 15.00 Hrs.
Earnest Money Deposit for the Sagar City shall be Rs. 60 lakhs (Rs. Sixty Lakhs)
Tender document can be obtained from the office of the Chief Engineer (Commercial), MPPKVVCL, Shakti Bhawan, Jabalpur, 482008 on any working day as specified above, between 10:30 to 17:30 hrs. on payment of non-refundable fee of Rs. 10,000/- only by DD/Banker’s cheque/Cash drawn in favour of “Regional Accounts Officer (JC), MPPKVVCL payable at Jabalpur or downloaded from www.mpez-electricity-discom.nic.in. However, in case of download from the website, interested bidders can submit their response to the RFP only on submission of non-refundable fee of Rs.10,000/- as per the details provided in the Bid document.
For any further queries please send your mail to cecommlez@yahoo.com and Fax to 0761-2660128, 2666070
Note: MPPKVVCL, Jabalpur reserves the right to cancel or modify the process without assigning any reasons and any liability.
SAVE ELECTRICITY Chief Engineer (Commercial)
29 सितंबर, 2011
electric current is produced in the human body too
Extremely weak electric current is produced in the human body by the movement of charged particles (ions), called ionic currents. When weak ionic currents flow along the nerve cells, they produce a magnetic field in our body. For example, when we touch something with our hand, our nerves carry electric impulse to the appropriate muscles. And this electric impulse creates a temporary magnetism in the body. The magnetism produced in the human body is very, very weak as compared to the Earth’s magnetism. The two main organs of the human body where the magnetic field produced is quite significant are the Heart and the Brain. In the human eye, an image is formed by the lens on the retina (which is made up of light sensitive cells rods and cones). Optical signals are converted into electrical signals by these optical cells. The Outer ear collects sound which vibrate the ear drum and cochlea converts it into electrical signals. When we taste, taste buds presents on the tongue converts it into electrical signals. For example when we touch lemon juice we feel a strong sensation. In our body electro-chemical reaction is going on due to which we think, feel, see etc. Our brain perceives everything in terms of electrical signals. Our feeling anger, happiness, and sadness are because of electro-chemical reaction which produces electrical signals. The magnetism produced inside the human body forms the basis of a technique called Magnetic Resonance Imaging (MRI) which is used to obtain images of the internal parts of our body. MRI is an important tool in medical diagnosis because through MRI scans doctors see the internal parts of the body. Magnetism in animals like the aquatic bacteria, shrimps, dolphins and whales etc, is due to the presence of little crystal of magnetite (lodestone) in their bodies. These magnetic crystals are formed from iron (which is taken in by the animals from water) and oxygen which they breathe in. The magnetic crystals present in the animals act as internal magnetic compasses and help the animal to respond to the Earth’s magnetic field. For example, several species of aquatic bacteria use their in-built magnets to swim along the Earth’s magnetic field. Interesting and true!
24 सितंबर, 2011
a working zero environmental impact thermal comfort system that does not use grid power, emit any CO2 or water in any form.
a working zero environmental impact thermal comfort system that does not use grid power, emit any CO2 or water in any form.
दुनिया के पहले वाणिज्यिक लहर ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत..स्पेन में लहरों से बनी बिजली
साभार रेडियो डायचेवेली
स्पेन में लहरों से बनी बिजली
शनिवार, 24 सितंबर 2011
समुद्र की लहरों से स्पेन में बिजली बनाई जा रही है। हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी महंगी है, लेकिन कंपनी का कहना है कि तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक अच्छी है। 600 लोगों को बिजली मिल रही है।
इस साल गर्मियों में दक्षिणी स्पेन में दुनिया के पहले वाणिज्यिक लहर ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत हो गई। भारी लागत होने के बावजूद इस संयंत्र से दक्षिणी स्पेन के एक शहर को बिजली की सप्लाई भी हो रही है। यह प्लांट अन्य तटीय इलाकों के लिए एक मॉडल साबित हो सकता है।
स्पेन के छोटे से तटीय शहर मुत्रिको को देखकर यह कहना मुश्किल है कि इस शहर में हाईटेक पावर प्लांट भी लग सकता है। लेकिन सैन सेबास्टियन से 30 किलोमीटर दूर बास्के शहर के 600 लोगों को समुद्र की लहरों से बनने वाली बिजली मिल रही है। समुद्री लहरों से बिजली बनाने वाला संयंत्र इसी जुलाई में शुरू हुआ।
वाह क्या तकनीक है : बास्के शहर के संयंत्र में काम करने वाले ऊर्जा इंजीनियर खोजे इगनाशियो होर्माएचे कहते हैं, 'जब लहरों से ऊर्जा बनाने की बात आएगी तो लोग मुत्रिको का हवाला देंगे।' वह कहते हैं कि लहरों से ऊर्जा बनाने का यह पहला वाणिज्यिक ऑपरेशन है जिससे ग्राहकों को बिजली मिलती है।
यह संयंत्र बंदरगाह की दीवार से टकराने वाली लहरों से ऊर्जा बनाती है। बिजली बनाने वाली कंपनी एंटे वास्को दे ला एनर्जिया (ईवीई) ने बंदरगाह और समुद्र के बीच बनी दीवार में 16 गड्ढे बनाए हैं। जब लहरें इन गड्ढों में पानी लेकर आती हैं तो टरबाइन से हवा को धक्का दिया जाता है और बिजली पैदा होती है।
600 लोगों को बिजली : इसी तरह की तकनीक पर पिछले 10 सालों से स्कॉटलैंड में भी शोध और सुधार हो रहा है, लेकिन अब तक इसे वाणिज्यिक परिपक्वता नहीं मिल पाई है। दुनिया भर में लहरों से बनने वाली ऊर्जा के 60 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कुछ पानी के नीचे स्पिन ब्लेड का इस्तेमाल कर बिजली बनाते हैं तो कुछ लोग अन्य तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन लिस्बन के लहर ऊर्जा केंद्र के शोधकर्ता फ्रैंक न्यूमैन के मुताबिक मुत्रिको का प्लांट आर्थिक रूप से निकट भविष्य में सफल रहेगा। इस प्लांट में 300 किलोवॉट बिजली बनती है जिससे शहर की 10 फीसदी जरूरत पूरी होती है।
ऐसे होगी बिजली की मांग पूरी : इस प्लांट को बनाने में 70 लाख यूरो की लागत आई है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल का अनुमान है कि लहरों से बनने वाली बिजली विश्व की 30 फीसदी ऊर्जा मांग को पूरा कर सकती है। लेकिन अक्षय ऊर्जा के और स्थापित तकनीक के मुकाबले में लहरों से बनने वाली बिजली की तकनीक प्रारंभिक अवस्था में है।
मुत्रिको का संयंत्र दो साल की देरी से तैयार हुआ है। आलोचकों का कहना है प्लांट पर हुए निवेश के मुकाबले में उत्पादन कहीं कम है। लेकिन संयंत्र चलाने वाली कंपनी को विश्वास है कि इस तरह से नई तकनीक बनेगी और नए बाजार खुलेंगे।
रिपोर्ट : गिरो रॉयटर/आमिर अंसारी
संपादन : महेश झा
स्पेन में लहरों से बनी बिजली
शनिवार, 24 सितंबर 2011
समुद्र की लहरों से स्पेन में बिजली बनाई जा रही है। हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी महंगी है, लेकिन कंपनी का कहना है कि तटीय इलाकों के लिए यह तकनीक अच्छी है। 600 लोगों को बिजली मिल रही है।
इस साल गर्मियों में दक्षिणी स्पेन में दुनिया के पहले वाणिज्यिक लहर ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत हो गई। भारी लागत होने के बावजूद इस संयंत्र से दक्षिणी स्पेन के एक शहर को बिजली की सप्लाई भी हो रही है। यह प्लांट अन्य तटीय इलाकों के लिए एक मॉडल साबित हो सकता है।
स्पेन के छोटे से तटीय शहर मुत्रिको को देखकर यह कहना मुश्किल है कि इस शहर में हाईटेक पावर प्लांट भी लग सकता है। लेकिन सैन सेबास्टियन से 30 किलोमीटर दूर बास्के शहर के 600 लोगों को समुद्र की लहरों से बनने वाली बिजली मिल रही है। समुद्री लहरों से बिजली बनाने वाला संयंत्र इसी जुलाई में शुरू हुआ।
वाह क्या तकनीक है : बास्के शहर के संयंत्र में काम करने वाले ऊर्जा इंजीनियर खोजे इगनाशियो होर्माएचे कहते हैं, 'जब लहरों से ऊर्जा बनाने की बात आएगी तो लोग मुत्रिको का हवाला देंगे।' वह कहते हैं कि लहरों से ऊर्जा बनाने का यह पहला वाणिज्यिक ऑपरेशन है जिससे ग्राहकों को बिजली मिलती है।
यह संयंत्र बंदरगाह की दीवार से टकराने वाली लहरों से ऊर्जा बनाती है। बिजली बनाने वाली कंपनी एंटे वास्को दे ला एनर्जिया (ईवीई) ने बंदरगाह और समुद्र के बीच बनी दीवार में 16 गड्ढे बनाए हैं। जब लहरें इन गड्ढों में पानी लेकर आती हैं तो टरबाइन से हवा को धक्का दिया जाता है और बिजली पैदा होती है।
600 लोगों को बिजली : इसी तरह की तकनीक पर पिछले 10 सालों से स्कॉटलैंड में भी शोध और सुधार हो रहा है, लेकिन अब तक इसे वाणिज्यिक परिपक्वता नहीं मिल पाई है। दुनिया भर में लहरों से बनने वाली ऊर्जा के 60 प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कुछ पानी के नीचे स्पिन ब्लेड का इस्तेमाल कर बिजली बनाते हैं तो कुछ लोग अन्य तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन लिस्बन के लहर ऊर्जा केंद्र के शोधकर्ता फ्रैंक न्यूमैन के मुताबिक मुत्रिको का प्लांट आर्थिक रूप से निकट भविष्य में सफल रहेगा। इस प्लांट में 300 किलोवॉट बिजली बनती है जिससे शहर की 10 फीसदी जरूरत पूरी होती है।
ऐसे होगी बिजली की मांग पूरी : इस प्लांट को बनाने में 70 लाख यूरो की लागत आई है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल का अनुमान है कि लहरों से बनने वाली बिजली विश्व की 30 फीसदी ऊर्जा मांग को पूरा कर सकती है। लेकिन अक्षय ऊर्जा के और स्थापित तकनीक के मुकाबले में लहरों से बनने वाली बिजली की तकनीक प्रारंभिक अवस्था में है।
मुत्रिको का संयंत्र दो साल की देरी से तैयार हुआ है। आलोचकों का कहना है प्लांट पर हुए निवेश के मुकाबले में उत्पादन कहीं कम है। लेकिन संयंत्र चलाने वाली कंपनी को विश्वास है कि इस तरह से नई तकनीक बनेगी और नए बाजार खुलेंगे।
रिपोर्ट : गिरो रॉयटर/आमिर अंसारी
संपादन : महेश झा
22 सितंबर, 2011
आखिर सरकार समाज को क्या सिखाना चाहती है ??
किसी की बड़ाई करने के लिये किसी दूसरे की बुराई करना जरूरी है क्या ?
आज ई टीवी म.प्र. पर म. प्र. सरकार का एक विज्ञापन देखा .
लोकसेवा गारंटी अधिनियम की बड़ाई करते हुये , बिजली विभाग के इंजीनियर की सरे आम बुराई की गई है कि वे ट्रांस्फारमर बदलने के लिये वे ग्रामीणो की नही सुनते हैं .
विज्ञापन में ग्रामीणो को सिखाया गया है कि इंजीनियर साहब को लोकसेवा गारंटी अधिनियम की ढ़मकी दो , काम हो जावेगा .
आखिर सरकार समाज को क्या सिखाना चाहती है ?? मेरा मानना है कि इस तरह का नकारात्मक सरकारी विज्ञापन अविलंब बंद किया जाना चाहिये !
19 सितंबर, 2011
गंदे व बदबूदार पानी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है।
उत्तरप्रदेश के हापुड़ में रहने वाले रामपाल नाम के एक मिस्त्री ने गंदे नाले के पानी से बिजली बनाने का दावा किया है। उसने यह जानकारी संबंधित अधिकारियों को दी। सराहना की बजाय उसे हर जगह मिली फटकार। आखिरकार रामपाल ने अपना घर साठ हजार रुपए में गिरवी रख दिया और गंदे पानी से ही दो सौ किलो वॉट बिजली पैदा करके दिखा दी। रामपाल का यह कारनामा किसी चमत्कार से कम नहीं है। जब पूरा देश बिजली की कमी से बेमियादी कटौती की हद तक जूझ रहा है, तब इस वैज्ञानिक उपलब्धि को उपयोगी क्यों नहीं माना जाता? जबकि इस आविष्कार के मंत्र में गंदे पानी के निस्तारण के साथ बिजली की आसान उपलब्धता जुड़ी है।
बात चाहे कूड़े की हो, या फिर संड़ाध भरे पानी की, वैज्ञानिक तरीका अपनाकर उसका बेहतर उपयोग किया जा सकता। अमेरिका के शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों ने हाल ही में मल-मूत्र व अन्य गंदे पानी के उपयोग को सार्थक किया है। नाला-नालियों, पोखरों व नदियों में अरबों गैलन बह जाने वाले गंदे व बदबूदार पानी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि साफ सुथरे पानी की तुलना में गंदे पानी से 20 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। सीवर के पानी का सर्वाधिक उपयोग अमेरिका में करके बिजली बनायी जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका में हर साल औसतन 14 ट्रिलियन गैलन गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने के लिए किया जा रहा है। अमेरिकी शोधकर्ता एलिजाबेथ एस. हैड्रिक कहती हैं ‘गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने में बेहतर साबित हुआ है।’ अमेरिका में बिजली की कुल खपत में करीब डेढ़ प्रतिशत सीवर व अन्य गंदे पानी से बन रही बिजली से पूर्त की जा रही है। शोध व अध्ययन केातीजे बताते हैं, एक गैलन गंदे व बेकार पानी से पांच मिनट तक सौ वॉट का बल्ब आसानी से जलाया जा सकता है। इतना ही नहीं, सीवरेज व गंदे पानी में मौजूद कार्बनिक अणुओं को ईधन में भी बदला जा सकता है जिसका उपयोग अन्य कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह शोध देश दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आज भी अरबों गैलन सीवरेज व अन्य गंदा पानी नाला-नालियों, तालाबों व नदियों में बहाया जाता है क्योंकि इसे व्यर्थ समझा जाता है। गंदे जल के शुद्धीकरण में वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग होने से नदियों का प्रदूषण भी काफी हद तक कम हो सकता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा। इसके लिए सरकार, सामाजिक संस्थाओं व वैज्ञानिकों को सार्थक पहल करनी होगी ताकि घरेलू गंदे पानी का उपयोग बिजली बनाने व अन्य उपयोग के लिए किया जा सके। अपने देश में केवल दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार व पश्चिम बंगाल को ही देखें तो अरबों गैलन सीवरेज हर दिन सीधे गंगा व यमुना नदियों में गिरता है जिससे इन नदियों का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। गंदे जल का शोधन किया जाये तो गंगा-यमुना जैसी नदियों का प्रदूषण ता रोका ही जा सकता है, इससे अरबों की धनराशि बचेगी।
बात चाहे कूड़े की हो, या फिर संड़ाध भरे पानी की, वैज्ञानिक तरीका अपनाकर उसका बेहतर उपयोग किया जा सकता। अमेरिका के शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों ने हाल ही में मल-मूत्र व अन्य गंदे पानी के उपयोग को सार्थक किया है। नाला-नालियों, पोखरों व नदियों में अरबों गैलन बह जाने वाले गंदे व बदबूदार पानी का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि साफ सुथरे पानी की तुलना में गंदे पानी से 20 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। सीवर के पानी का सर्वाधिक उपयोग अमेरिका में करके बिजली बनायी जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका में हर साल औसतन 14 ट्रिलियन गैलन गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने के लिए किया जा रहा है। अमेरिकी शोधकर्ता एलिजाबेथ एस. हैड्रिक कहती हैं ‘गंदे पानी का उपयोग ऊर्जा बनाने में बेहतर साबित हुआ है।’ अमेरिका में बिजली की कुल खपत में करीब डेढ़ प्रतिशत सीवर व अन्य गंदे पानी से बन रही बिजली से पूर्त की जा रही है। शोध व अध्ययन केातीजे बताते हैं, एक गैलन गंदे व बेकार पानी से पांच मिनट तक सौ वॉट का बल्ब आसानी से जलाया जा सकता है। इतना ही नहीं, सीवरेज व गंदे पानी में मौजूद कार्बनिक अणुओं को ईधन में भी बदला जा सकता है जिसका उपयोग अन्य कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह शोध देश दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। आज भी अरबों गैलन सीवरेज व अन्य गंदा पानी नाला-नालियों, तालाबों व नदियों में बहाया जाता है क्योंकि इसे व्यर्थ समझा जाता है। गंदे जल के शुद्धीकरण में वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग होने से नदियों का प्रदूषण भी काफी हद तक कम हो सकता है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा। इसके लिए सरकार, सामाजिक संस्थाओं व वैज्ञानिकों को सार्थक पहल करनी होगी ताकि घरेलू गंदे पानी का उपयोग बिजली बनाने व अन्य उपयोग के लिए किया जा सके। अपने देश में केवल दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार व पश्चिम बंगाल को ही देखें तो अरबों गैलन सीवरेज हर दिन सीधे गंगा व यमुना नदियों में गिरता है जिससे इन नदियों का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। गंदे जल का शोधन किया जाये तो गंगा-यमुना जैसी नदियों का प्रदूषण ता रोका ही जा सकता है, इससे अरबों की धनराशि बचेगी।
मंगलटर्बाइन पम्प
मंगलटर्बाइन पम्प
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के भैलोनी लोध गांव के रहने वाले मंगल सिंह ने ‘मंगल टर्बाइन’ बना डाला है। यह सिंचाई में डीजल और बिजली की कम खपत का बड़ा व देशी उपाय है। मंगल सिंह ने अपने इस अनूठे उपकरण का पेटेंट भी करा लिया है। यह चक्र उपकरण-जल धारा के प्रवाह से गतिशील होता है और फिर इससे आटा चक्की, गन्ना पिराई और फिर इससे आटा चक्की, गन्ना पिराई और चारा-कटाई मशीन आसानी से चल सकती है।
इस चक्र की धुरी को जेनरेटर से जोड़ने पर बिजली का उत्पादन भी शुरू हो जाता है। अब इस तकनीक का विस्तार बुंदेलखण्ड क्षेत्र में तो हो ही रहा है, उत्तराखंड में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया है। पहाड़ पर पेयजल भरने की समस्या से छूट दिलाने के लिए नलजल योजना के रूप में इस तकनीक का प्रयोग सुदूर गांव में भी शुरू हो गया है।
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के भैलोनी लोध गांव के रहने वाले मंगल सिंह ने ‘मंगल टर्बाइन’ बना डाला है। यह सिंचाई में डीजल और बिजली की कम खपत का बड़ा व देशी उपाय है। मंगल सिंह ने अपने इस अनूठे उपकरण का पेटेंट भी करा लिया है। यह चक्र उपकरण-जल धारा के प्रवाह से गतिशील होता है और फिर इससे आटा चक्की, गन्ना पिराई और फिर इससे आटा चक्की, गन्ना पिराई और चारा-कटाई मशीन आसानी से चल सकती है।
इस चक्र की धुरी को जेनरेटर से जोड़ने पर बिजली का उत्पादन भी शुरू हो जाता है। अब इस तकनीक का विस्तार बुंदेलखण्ड क्षेत्र में तो हो ही रहा है, उत्तराखंड में भी इसका इस्तेमाल शुरू हो गया है। पहाड़ पर पेयजल भरने की समस्या से छूट दिलाने के लिए नलजल योजना के रूप में इस तकनीक का प्रयोग सुदूर गांव में भी शुरू हो गया है।
18 सितंबर, 2011
परमाणु बिजलीघर को बंद करना आसान नहीं।
जर्मनी अपने परमाणु बिजलीघरों को क्रमिक रूप से बंद कर रहा है। कुछ बिजलीघरों का लाइसेंस बढ़ाया नहीं गया है और बाकी को आने वाले सालों में धीरे-धीरे बंद कर दिया जाएगा। लेकिन परमाणु बिजलीघर को बंद करना आसान नहीं।
राइनलैंड पलैटिनेट के मुइलहाइम कैरलिष में परमाणु संयंत्र 1988 से बंद पड़ा है। 2004 से उसे डिसमैंटल किया जा रहा है। ग्राइफ्सवाल्ड लुबमीन के बिजलीघर को बंद करने की शुरुआत 1995 में हो चुकी है, लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। लेकिन कार्ल्सरूहे इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रमुख योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि भले ही संयंत्र के डिसमैंटल करने की प्रक्रिया लंबी हो, जैसे ही परमाणु बिजलीघर को बंद किया जाता है दुर्घटना का खतरा नाटकीय रूप से कम हो जाता है।
उनके शब्दों में, 'परमाणु बिजलीघर को बंद करने का मतलब होता है नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया को रोकना। और यही परमाणु बिजली घर में खतरे का मुख्य कारण होता है।'
जर्मन सरकार की ओर से परमाणु बिजलीघरों को बंद करने की निगरानी कर रहे भौतिकशास्त्री श्टेफान थियरफेल्ड कहते हैं, 'यह एक कार की तरह होता है, जिसमें मोटर नहीं है। ऐसी कार अपने आप अचानक चलना शुरू नहीं कर सकती।'
परमाणु बिजलीघर में बड़े अणुओं का विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में ताप निकलता है जो पानी को गरम कर भाप पैदा करता है और इस भाप से एक जेनरेटर बिजली बनाता है। ठीक उसी तरह से जैसे कोयला से चलने वाले बिजलीघरों में होता है। वहां जो काम कोयला करता है वह परमाणु बिजलीघरों में परमाण्विक छड़ें करती हैं।
आम तौर पर यूरेनियम डाई ऑक्साइड की ये छड़ें ईंधन का काम करती हैं। यूरेनियम का न्यूट्रॉन द्वारा विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में नए न्यूट्रॉन पैदा होते हैं जो फिर से यूरेनियम के अणुओं को तोड़ सकते हैं। और इस तरह विखंडन का चेन रिएक्शन शुरू होता है।
परमाणु बिजलीघरों को बंद करने के लिए रेगुलेटर छड़ों को रिएक्टर में डाला जाता है। वह न्यूट्रॉन को सोख लेते हैं और परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को रोक देते हैं। क्नेबेल कहते हैं कि ये छड़ें उसके बाद भी ताप का उत्पादन करती रहती हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा उसकी मात्रा बहुत कम होती है।
ईंधन वाली छड़ों में रेडियो सक्रिय पदार्थों का प्राकृतिक रूप से निकलना बिजलीघर को बंद किए जाने के बाद भी जारी रहता है। बाद में निकलने वाली गर्मी बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर के ताप उत्पादन का करीब 7 प्रतिशत होती है।
क्नेबेल कहते हैं, 'परमाणु बिजलीघर का उत्पादन तुरंत बंद नहीं हो जाता। तीन महीने बाद बची हुई गर्मी गिर कर एक प्रतिशत हो जाती है।'
बंद किए गए परमाणु बिजलीघर में सबसे खतरनाक चीज परमाणु ईंधन होता है। उसे सावधानी से बाहर निकालने की जरूरत होती है। उसकी गर्मी अभी भी इतनी ज्यादा होती है कि उसे हवा से ठंडा नहीं किया जा सकता। इसलिए उसे अगले तीन से पांच साल तक ठंडा करने के लिए पानी से भरे कंटेनर में रखा जाता है। क्नेबेल कहते हैं कि उसे लगातार ठंडा रखने की जरूरत है। यदि गर्मी से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो ईंधन की छड़ें इतनी गर्म हो सकती हैं कि वे गलना शुरू कर दें।
हनोवर की इंटैक कंपनी के विकिरण विशेषज्ञ वोल्फगांग नौएमन बताते हैं कि सबसे पहले छड़ का धातु वाला खोल गलने लगता है। उनका कहना है कि बाद में रासायनिक प्रतिक्रिया से हाइड्रोजन निकल सकता है जिसके कारण धमाका हो सकता है, जैसा कि जापान फुकुशिमा में हुआ।
श्टेफान थियरफेल्ड भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि यह सब सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन व्यवहार में निहायत असंभव। पानी के टैंक छह से आठ मीटर ऊंचे होते हैं और आपातकालीन व्यवस्थाएं भी होती हैं जो छड़ों को ठंडा रखने का काम करती हैं।
तीन से पांच साल में छड़ें इतनी ठंडी हो जाती हैं कि उसे हवा में भी ठंडा रखा जा सकता है। योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि उसके बाद कुछ नहीं हो सकता। उन्हें एक कास्टर कंटेनर में रख कर अंतरिम गोदाम में ले जाया जाता है।
कार्ल्सरूहे के आईटी के प्रोफेसर साशा गेंटेस का कहना है कि ईंधन वाली छड़ों को हटाए जाने के बाद लगभग एक प्रतिशत रेडियोधर्मिता प्लांट में रह जाती है। उसके बाद बाहर से अंदर की ओर प्लांट की डिसमेंटलिंग शुरू होती है। फिर पूरे संयंत्र को एक एक कर तोड़ कर उसे रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाता है। अत्यंत रेडियोधर्मी इलाकों में रिमोट कंट्रोल से काम लिया जाता है ताकि वहां काम कर रहे लोग रेडियोधर्मिता के शिकार न हों। कंक्रीट और इस्पात के हिस्सों को पूरे दबाव के साथ साफ किया जाता है। साफ किए हुए हिस्सों को रिसाइकल किया जा सकता है जबकि बाकी को रेडियोएक्टिव कूड़े के रूप में निबटाया जाता है।
यदि परमाणु संयंत्र की डिसमैंटलिंग उसे बंद करने के फौरन बाद शुरू करनी है तो उसमें 10 साल लगते हैं। लेकिन गेंटेस का कहना है कि व्यवहार में इसमें और ज्यादा साल लगते हैं क्योंकि विभिन्न प्रक्रियाओं का लाइसेंस लेने में भी समय लगता है।
एक अन्य प्रक्रिया में और ज्यादा समय लगता है। इसमें यूरेनियम की छड़ों को रिएक्टर से हटाने के बाद 30 साल तक संयंत्र को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इस बीच छड़ों को लगातार ठंडा किया जाता है। संयंत्र का रखरखाव किया जाता है और उसकी रखवाली की जाती है। 30 साल में रेडियोधर्मिता कम हो जाती है और संयंत्र की डिसमेंटलिंग आसान हो जाती है। जमा रखने के लिए खतरनाक पदार्थ भी कम हो जाता है।
ये दोनों ही प्रक्रियाएं सस्ती नहीं हैं। ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई के अनुसार एक परमाणु बिजलीघर को पूरी तरह बंद करने का खर्च 50 करोड़ से लेकर एक अरब यूरो तक आता है।
बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर में भी दुर्घटना हो सकती है, यदि वहां यूरेनियम की छड़ें रखी हुई हैं। थियरफेल्ड का कहना है कि छड़ें हटा लेने के बाद वहां नाभिकीय प्रक्रिया संभव नहीं है। वोल्फगांग नौएमन का कहना है कि यदि संयंत्र को ठीक तरह से बंद नहीं किया जाता तो रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर निकल सकता है और निवासियों तके लिए खतरनाक हो सकता है, भले ही उसकी क्षमता दुर्घटना जैसी न हो।
रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/मझा
संपादन: वी कुमार
राइनलैंड पलैटिनेट के मुइलहाइम कैरलिष में परमाणु संयंत्र 1988 से बंद पड़ा है। 2004 से उसे डिसमैंटल किया जा रहा है। ग्राइफ्सवाल्ड लुबमीन के बिजलीघर को बंद करने की शुरुआत 1995 में हो चुकी है, लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। लेकिन कार्ल्सरूहे इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रमुख योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि भले ही संयंत्र के डिसमैंटल करने की प्रक्रिया लंबी हो, जैसे ही परमाणु बिजलीघर को बंद किया जाता है दुर्घटना का खतरा नाटकीय रूप से कम हो जाता है।
उनके शब्दों में, 'परमाणु बिजलीघर को बंद करने का मतलब होता है नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया को रोकना। और यही परमाणु बिजली घर में खतरे का मुख्य कारण होता है।'
जर्मन सरकार की ओर से परमाणु बिजलीघरों को बंद करने की निगरानी कर रहे भौतिकशास्त्री श्टेफान थियरफेल्ड कहते हैं, 'यह एक कार की तरह होता है, जिसमें मोटर नहीं है। ऐसी कार अपने आप अचानक चलना शुरू नहीं कर सकती।'
परमाणु बिजलीघर में बड़े अणुओं का विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में ताप निकलता है जो पानी को गरम कर भाप पैदा करता है और इस भाप से एक जेनरेटर बिजली बनाता है। ठीक उसी तरह से जैसे कोयला से चलने वाले बिजलीघरों में होता है। वहां जो काम कोयला करता है वह परमाणु बिजलीघरों में परमाण्विक छड़ें करती हैं।
आम तौर पर यूरेनियम डाई ऑक्साइड की ये छड़ें ईंधन का काम करती हैं। यूरेनियम का न्यूट्रॉन द्वारा विखंडन होता है। इस प्रक्रिया में नए न्यूट्रॉन पैदा होते हैं जो फिर से यूरेनियम के अणुओं को तोड़ सकते हैं। और इस तरह विखंडन का चेन रिएक्शन शुरू होता है।
परमाणु बिजलीघरों को बंद करने के लिए रेगुलेटर छड़ों को रिएक्टर में डाला जाता है। वह न्यूट्रॉन को सोख लेते हैं और परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को रोक देते हैं। क्नेबेल कहते हैं कि ये छड़ें उसके बाद भी ताप का उत्पादन करती रहती हैं। लेकिन पहले की अपेक्षा उसकी मात्रा बहुत कम होती है।
ईंधन वाली छड़ों में रेडियो सक्रिय पदार्थों का प्राकृतिक रूप से निकलना बिजलीघर को बंद किए जाने के बाद भी जारी रहता है। बाद में निकलने वाली गर्मी बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर के ताप उत्पादन का करीब 7 प्रतिशत होती है।
क्नेबेल कहते हैं, 'परमाणु बिजलीघर का उत्पादन तुरंत बंद नहीं हो जाता। तीन महीने बाद बची हुई गर्मी गिर कर एक प्रतिशत हो जाती है।'
बंद किए गए परमाणु बिजलीघर में सबसे खतरनाक चीज परमाणु ईंधन होता है। उसे सावधानी से बाहर निकालने की जरूरत होती है। उसकी गर्मी अभी भी इतनी ज्यादा होती है कि उसे हवा से ठंडा नहीं किया जा सकता। इसलिए उसे अगले तीन से पांच साल तक ठंडा करने के लिए पानी से भरे कंटेनर में रखा जाता है। क्नेबेल कहते हैं कि उसे लगातार ठंडा रखने की जरूरत है। यदि गर्मी से पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो ईंधन की छड़ें इतनी गर्म हो सकती हैं कि वे गलना शुरू कर दें।
हनोवर की इंटैक कंपनी के विकिरण विशेषज्ञ वोल्फगांग नौएमन बताते हैं कि सबसे पहले छड़ का धातु वाला खोल गलने लगता है। उनका कहना है कि बाद में रासायनिक प्रतिक्रिया से हाइड्रोजन निकल सकता है जिसके कारण धमाका हो सकता है, जैसा कि जापान फुकुशिमा में हुआ।
श्टेफान थियरफेल्ड भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि यह सब सैद्धांतिक रूप से संभव है, लेकिन व्यवहार में निहायत असंभव। पानी के टैंक छह से आठ मीटर ऊंचे होते हैं और आपातकालीन व्यवस्थाएं भी होती हैं जो छड़ों को ठंडा रखने का काम करती हैं।
तीन से पांच साल में छड़ें इतनी ठंडी हो जाती हैं कि उसे हवा में भी ठंडा रखा जा सकता है। योआखिम क्नेबेल कहते हैं कि उसके बाद कुछ नहीं हो सकता। उन्हें एक कास्टर कंटेनर में रख कर अंतरिम गोदाम में ले जाया जाता है।
कार्ल्सरूहे के आईटी के प्रोफेसर साशा गेंटेस का कहना है कि ईंधन वाली छड़ों को हटाए जाने के बाद लगभग एक प्रतिशत रेडियोधर्मिता प्लांट में रह जाती है। उसके बाद बाहर से अंदर की ओर प्लांट की डिसमेंटलिंग शुरू होती है। फिर पूरे संयंत्र को एक एक कर तोड़ कर उसे रेडियोधर्मिता से मुक्त किया जाता है। अत्यंत रेडियोधर्मी इलाकों में रिमोट कंट्रोल से काम लिया जाता है ताकि वहां काम कर रहे लोग रेडियोधर्मिता के शिकार न हों। कंक्रीट और इस्पात के हिस्सों को पूरे दबाव के साथ साफ किया जाता है। साफ किए हुए हिस्सों को रिसाइकल किया जा सकता है जबकि बाकी को रेडियोएक्टिव कूड़े के रूप में निबटाया जाता है।
यदि परमाणु संयंत्र की डिसमैंटलिंग उसे बंद करने के फौरन बाद शुरू करनी है तो उसमें 10 साल लगते हैं। लेकिन गेंटेस का कहना है कि व्यवहार में इसमें और ज्यादा साल लगते हैं क्योंकि विभिन्न प्रक्रियाओं का लाइसेंस लेने में भी समय लगता है।
एक अन्य प्रक्रिया में और ज्यादा समय लगता है। इसमें यूरेनियम की छड़ों को रिएक्टर से हटाने के बाद 30 साल तक संयंत्र को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इस बीच छड़ों को लगातार ठंडा किया जाता है। संयंत्र का रखरखाव किया जाता है और उसकी रखवाली की जाती है। 30 साल में रेडियोधर्मिता कम हो जाती है और संयंत्र की डिसमेंटलिंग आसान हो जाती है। जमा रखने के लिए खतरनाक पदार्थ भी कम हो जाता है।
ये दोनों ही प्रक्रियाएं सस्ती नहीं हैं। ऊर्जा कंपनी आरडब्ल्यूई के अनुसार एक परमाणु बिजलीघर को पूरी तरह बंद करने का खर्च 50 करोड़ से लेकर एक अरब यूरो तक आता है।
बंद कर दिए गए परमाणु बिजलीघर में भी दुर्घटना हो सकती है, यदि वहां यूरेनियम की छड़ें रखी हुई हैं। थियरफेल्ड का कहना है कि छड़ें हटा लेने के बाद वहां नाभिकीय प्रक्रिया संभव नहीं है। वोल्फगांग नौएमन का कहना है कि यदि संयंत्र को ठीक तरह से बंद नहीं किया जाता तो रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर निकल सकता है और निवासियों तके लिए खतरनाक हो सकता है, भले ही उसकी क्षमता दुर्घटना जैसी न हो।
रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टराथ/मझा
संपादन: वी कुमार
26 अगस्त, 2011
बिलो के ई-पेमेंट से भ्रष्टाचार तथा कालेधन के नियंत्रण में मदद.....
बिलो के ई-पेमेंट से भ्रष्टाचार तथा कालेधन के नियंत्रण में मदद.....
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी, म. प्र.पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, जबलपुर
९४२५८०६२५२
पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा बिजली बिलो के ई-पेमेंट सेवा का शुभारंभ बिल डेस्क नामक कंपनी के सहयोग से किया गया है . बिलडेस्क द्वारा बी एस एन एल , एल आई सी , व कई अन्य विद्युत वितरण कंपनियो के बिल जमा कराने का कार्य पहले से ही चल रहा है . बिल डेस्क का देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित बैंको से इस सुविधा के लिये करार है . बैंक इस तरह के भुगतान हेतु एक सामान्य प्रभार लेते हैं जो उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है . इस सेवा के प्रथम चरण में जबलपुर, सागर और रीवा शहर के लगभग तीन लाख बिजली उपभोक्ताओं को यह सुविधा प्रदान की जा रही है जिससे किसी भी इंटरनेट कनेक्शन से डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड , कैश कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से उपभोक्ता दुनिया में कही से भी अपना बिजली बिल भुगतान कर सकता है।
एमपी ऑनलाइन के टर्मिनल पर यह सुविधा अभी भी सुलभ है किंतु एमपी ऑनलाइन ने केवल क्रेडिट कार्ड से भुगतान की सुविधा दी थी लिहाजा ये सेवा ज्यादा सफल नहीं हो पाई। इस तथ्य के मद्देनजर कंपनी प्रबंधन ने एक बार फिर ई-पेमेंट को सफल बनाने कमर कसी और खुद की मॉनीटरिंग में नया साफ्टवेयर तैयार कराया।
ई-पेमेंट के लिए अलग से साइट भी बनाई। डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट बिलिंग डॉट एमपीईजेड डॉट ओआरजी नाम की इस साइट पर उपभोक्ता सीधे अपने बिजली बिल को न केवल देख सकेगा बल्कि संबंधित राशि का भुगतान भी कर सकेगा। इस नई सेवा से जबलपुर शहर के सवा दो लाख बिजली उपभोक्ताओं को और रीवा व सागर शहर के चालीस- चालीस हजार उपभोक्ताओं को जो़ड़ा गया है। कंपनी सूत्रों के अनुसार, प्रथम चरण के सफल होने के बाद कंपनी क्षेत्र के दूसरे शहरों को जो़ड़ा जाएगा।
इससे होगा भुगतान......
बिजली उपभोक्ता अपने कैश कार्ड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग के जरिए बिजली बिल का भुगतान कर सकेगा। इससे जहां न केवल ब़ड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को भुगतान में आसानी होगी वहीं कंपनी प्रबंधन को बिजली बिल वसूली के लिए पृथक से काउंटर खोलने की भी जरूरत नहीं होगी। इस सुविधा से एटीपी मशीनों पर भी शुरू हो रही कतारों पर विराम लगेगा।
तो पैसा वापस होगा.......
यदि किसी उपभोक्ता द्वारा पैसा जमा किया जाता है लेकिन किसी कारण से ट्रांजिक्शन फेल होता है तो संबंधित उपभोक्ता के एकाउंट में रेलवे रिजर्वेशन की ही तरह स्वतः ही पैसा वापस हो जाएगा।
रसीद भी मिलेगी......
ई-पेमेंट की वेबसाइट में ही राशि जमा करते ही रसीद भी तैयार हो जाएगी जिसका उपभोक्ता प्रिंट आउट ले सकता है। इतना ही नहीं, बिल के साथ पिछले माहों में जमा किए गए पैसों का ब्यौरा भी स्क्रीन पर आ जाएगा।
भ्रष्टाचार तथा कालेधन के नियंत्रण में मदद.....
चूंकि इस तरह बिजली बिलों का भुगतान इलेक्ट्रानिक विधि से होगा अतः इससे भ्रष्टाचार की संभावना समाप्त हो जायेगी , उपभोक्ता स्वयं ही अपना बिल जमा करेगा .साथ ही इस तरह से कालेधन से बिजली बिल जमा करना संभव नही होगा एवं कालेधन के नियंत्रण में मदद मिलेगी .
यदि इस तरह के भुगतान पर कुछ छूट की योजनाये सरकारी विभाग प्रस्तुत करें तो भीड़ से बचने तथा छूट का लाभ लेने के लिये अनेक लोग इसका प्रयोग करेंगे और इस तरह कालेधन पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो सकेगा .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी, म. प्र.पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, जबलपुर
९४२५८०६२५२
पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी द्वारा बिजली बिलो के ई-पेमेंट सेवा का शुभारंभ बिल डेस्क नामक कंपनी के सहयोग से किया गया है . बिलडेस्क द्वारा बी एस एन एल , एल आई सी , व कई अन्य विद्युत वितरण कंपनियो के बिल जमा कराने का कार्य पहले से ही चल रहा है . बिल डेस्क का देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित बैंको से इस सुविधा के लिये करार है . बैंक इस तरह के भुगतान हेतु एक सामान्य प्रभार लेते हैं जो उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है . इस सेवा के प्रथम चरण में जबलपुर, सागर और रीवा शहर के लगभग तीन लाख बिजली उपभोक्ताओं को यह सुविधा प्रदान की जा रही है जिससे किसी भी इंटरनेट कनेक्शन से डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड , कैश कार्ड या इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से उपभोक्ता दुनिया में कही से भी अपना बिजली बिल भुगतान कर सकता है।
एमपी ऑनलाइन के टर्मिनल पर यह सुविधा अभी भी सुलभ है किंतु एमपी ऑनलाइन ने केवल क्रेडिट कार्ड से भुगतान की सुविधा दी थी लिहाजा ये सेवा ज्यादा सफल नहीं हो पाई। इस तथ्य के मद्देनजर कंपनी प्रबंधन ने एक बार फिर ई-पेमेंट को सफल बनाने कमर कसी और खुद की मॉनीटरिंग में नया साफ्टवेयर तैयार कराया।
ई-पेमेंट के लिए अलग से साइट भी बनाई। डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट बिलिंग डॉट एमपीईजेड डॉट ओआरजी नाम की इस साइट पर उपभोक्ता सीधे अपने बिजली बिल को न केवल देख सकेगा बल्कि संबंधित राशि का भुगतान भी कर सकेगा। इस नई सेवा से जबलपुर शहर के सवा दो लाख बिजली उपभोक्ताओं को और रीवा व सागर शहर के चालीस- चालीस हजार उपभोक्ताओं को जो़ड़ा गया है। कंपनी सूत्रों के अनुसार, प्रथम चरण के सफल होने के बाद कंपनी क्षेत्र के दूसरे शहरों को जो़ड़ा जाएगा।
इससे होगा भुगतान......
बिजली उपभोक्ता अपने कैश कार्ड, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग के जरिए बिजली बिल का भुगतान कर सकेगा। इससे जहां न केवल ब़ड़ी संख्या में उपभोक्ताओं को भुगतान में आसानी होगी वहीं कंपनी प्रबंधन को बिजली बिल वसूली के लिए पृथक से काउंटर खोलने की भी जरूरत नहीं होगी। इस सुविधा से एटीपी मशीनों पर भी शुरू हो रही कतारों पर विराम लगेगा।
तो पैसा वापस होगा.......
यदि किसी उपभोक्ता द्वारा पैसा जमा किया जाता है लेकिन किसी कारण से ट्रांजिक्शन फेल होता है तो संबंधित उपभोक्ता के एकाउंट में रेलवे रिजर्वेशन की ही तरह स्वतः ही पैसा वापस हो जाएगा।
रसीद भी मिलेगी......
ई-पेमेंट की वेबसाइट में ही राशि जमा करते ही रसीद भी तैयार हो जाएगी जिसका उपभोक्ता प्रिंट आउट ले सकता है। इतना ही नहीं, बिल के साथ पिछले माहों में जमा किए गए पैसों का ब्यौरा भी स्क्रीन पर आ जाएगा।
भ्रष्टाचार तथा कालेधन के नियंत्रण में मदद.....
चूंकि इस तरह बिजली बिलों का भुगतान इलेक्ट्रानिक विधि से होगा अतः इससे भ्रष्टाचार की संभावना समाप्त हो जायेगी , उपभोक्ता स्वयं ही अपना बिल जमा करेगा .साथ ही इस तरह से कालेधन से बिजली बिल जमा करना संभव नही होगा एवं कालेधन के नियंत्रण में मदद मिलेगी .
यदि इस तरह के भुगतान पर कुछ छूट की योजनाये सरकारी विभाग प्रस्तुत करें तो भीड़ से बचने तथा छूट का लाभ लेने के लिये अनेक लोग इसका प्रयोग करेंगे और इस तरह कालेधन पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो सकेगा .
24 अगस्त, 2011
निजीकरण के दुष्परिणाम
निजीकरण के दुष्परिणाम ही कहेंगे कि बड़वानी में बस में सवारी बैठाने के विवाद पर लोग जिंदा जला दिये गये बस सहित ...
ऐसा व्यवहार समूचे मध्य प्रदेश में जगह जगह यात्री भुगत रहे हैं .
कल जब विद्युत वितरण में निजीकरण और फ्रेंचाइजी प्रभावी हो जावेंगे तो बिजली बिल की वसूली या न पटाने के विवाद पर किसी को करंट लगाने की धमकी मिले तो आश्चर्य नही ....
ऐसा व्यवहार समूचे मध्य प्रदेश में जगह जगह यात्री भुगत रहे हैं .
कल जब विद्युत वितरण में निजीकरण और फ्रेंचाइजी प्रभावी हो जावेंगे तो बिजली बिल की वसूली या न पटाने के विवाद पर किसी को करंट लगाने की धमकी मिले तो आश्चर्य नही ....
21 अगस्त, 2011
भारत सौर ऊर्जा से चलने वाले यूएवी बनाएगा
भारत सौर ऊर्जा से चलने वाले यूएवी बनाएगा
भारत सौर ऊर्जा से चलने वाले मानवरहित निगरानी विमान (यूएवी) विकसित करने की योजना बना रहा है जो सभी मौसम में कम से कम एक महीने तक लगातार उड़ने में सक्षम होगा।
डीआरडीओ के प्रवक्ता रवि गुप्ता ने कहा कि हम सौर ऊर्जा से चलने में सक्षम मानवरहित निगरानी विमान (यूएवी) विकसित करने की योजना बना रहे है जो लंबी दूरी तक और स्थायी रूप से काम कर सकेगा। हम यूएवी तकनीक में अपनी कुशलता में विविधता लाने की योजना बना रहे हैं। गुप्ता ने कहा कि इन मानवरहित यूएवी में से एक का डिजाइन और विकास लंबी दूरी तक निगरानी के लिये किया गया है जो एक महीने तक हरेक मौसम में आकाश में उड़ान भर सकेगा। इस विमान में विशेष रूप से डिजाइन किये गये सोलर पैनल लगाये गये हैं जो इसे रात में और बादल रहने पर भी उड़ान जारी रखने में सक्षम बनायेंगे ।
डीआरडीओ अधिकारियों ने कहा कि यह यूएवी रियल टाइम सूचना और सुरक्षित डाटा लिंक के जरिये इलाके की सूचनायें देने में समर्थ होगा। रक्षा अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) ने रूस्तम-१ यूएवी विकसित किया है जो २४ से ३६ घंटे तक हवा में रह सकता है, जबकि निशांत पांच घंटे तक उड़ान भर सकता है।
15 अगस्त, 2011
आज रात ८ से ९ बजे अन्य दिनो की तुलना में बिजली की बचत बता देगी कितने लोग अन्ना के साथ हैं ...
आज रात ८ से ९ बजे अन्य दिनो की तुलना में बिजली की बचत बता देगी कितने लोग अन्ना के साथ हैं ...
28 जुलाई, 2011
मण्डला जिले में प्रस्तावित चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर आशंकाओं का वैज्ञानिक समाधान
मण्डला जिले में प्रस्तावित चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं का तार्किक समाधान .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के वैज्ञानिको से चर्चा
ये पहला मौका था जब चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं- कुशंकाओं का तार्किक और वैज्ञानिक समाधान न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और जबलपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में किया गया .
विश्व परिदृश्य
तारापुर १९६९ में प्रथम परमाणु बिजली घर बना था, जो अब तक सुरक्षित चल रहा है , अब और भी बेहतर निर्माण तकनीको के विकास के कारण ज्यादा सुरक्षित बिजली घर बनेगा . वर्तमान में देश में कुल बिजली उत्पादन का २.७ प्रतिशत शेयर न्यूक्लियर पावर का है।पूरे विश्व में ४४० परमाणु केन्द्र जहां विश्व के कुल विद्युत उत्पादन का लगभग १७ प्रतिशत शेयर परमाणु बिजली का।इस समय विश्व में ६५ परमाणु बिजली घर निर्माणाधीन हैं।फ्रांस में कुल बिजली उत्पादन का ७५ फीसदी हिस्सा न्यूक्लियर पावर का है और जापान में ३० प्रतिशत। ७०० मेगावॉट क्षमता वाली १४ यूनिट पूरे देश में लगाने की अनुमति मिली है।थोरियम के साथ द्वितीय चरण में बिजली उत्पादन होगा .पहले चरण में यूरेनियम से ही उत्पादन प्रारंभ किया जावेगा . जो आयातित होगा .
प्रस्तावित चुटका बिजली घर से डरें नहीं बल्कि विकास की दिशा में मील का पत्थर बनने वाले इस प्लांट का स्वागत करें .
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि चुटका का परमाणु बिजली घर चक्रव्यूह के समान सुरक्षित होगा। हमारे दूसरे परमाणु बिजली घरों में भी ऐसी ही सुरक्षा है। ये भूकंप से सुरक्षित होगा। नर्मदा का १२८ क्यूसेक पानी ही लिया जाएगा जो बांध का मात्र तीन प्रतिशत होगा। नर्मदा में किसी तरह का प्रदूषण नहीं होगा। चुटका सहित आसपास के विस्थापितों को उचित मुआवजा मिलेगा। उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे। स्कूली सहित तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बनाए जाएंगे। आवासीय परिसरों का भी निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया ने हमें परमाणु मामलों में १९७४ में अलग- थलग कर दिया था। इसके बाद भी हमने नई तकनीक बनाई।
विदेशों पर निर्भरता
बताया गया कि अभी हमें विदेश से यूरेनियम चाहिए। परमाणु बिजली घरों से निकले अपशिष्ट के जरिए हम थोरियम को यूरेनियम में बदलने में सक्षम होंगे फिर हमें कोई जरूरत नहीं होगी। घटते कोयला भंडारों के कारण नाभिकीय बिजली जरूरी है। सोलर सहित अन्य रिन्यूवल एनर्जी को सप्लीमेंट के रूप में ही लिया जा सकता है। उन पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। केन्द्र और परमाणु ऊर्जा आयोग की गाइड लाइन पर चुटका का चयन किया गया है। इनके मानकों पर ही निर्माण होगा। इसे वैश्विक संगठन भी देखेगा।
सफलता की कहानियां
राजस्थान के कोटा में चल रही ८ परमाणु बिजली घर यूनिटो की सफलता की चर्चा करते हुये बताया गया कि जिन्हें तकनीक की कुशलता पर संशय हो वे वहां निरीक्षण कर सकते हैं। राजस्थान में ही बांसवा़ड़ा में नया प्लांट लगाने राज्य सरकार ने अनुरोध किया है।परमाणु बिजली घरो के निर्माण के समय पांच स्तरों पर निरीक्षण किया जाता है ,प्रत्येक माह मॉनीटरिंग मीटिंग होती है। परमाणु आयोग के अधिकारी विजिट करते हैं। हर स्तर पर सेम्पल रिकार्ड में रखे जाते हैं।न्यूक्लियर लायबिल्टी बिल में सभी को जवाबदार बनाया गया है। इस प्लांट से उत्पादित पचास फीसदी बिजली मध्यप्रदेश को दी जाएगी। राज्य सरकार चाहे तो १५ प्रतिशत अतिरिक्त बिजली भी ले सकती है।
भूकंप जनित की आशंकाओ का निदान
चुटका में भूकंप सेंसर लगेंगे जो ऐसी घटना के पहले प्लांट को बंद करने की चेतावनी देंगे। चुटका परमाणु बिजली घर भूकंप के लिहाज से जोन तीन में है। ये सभी सुरक्षित जोन माने जाते हैं। केवल नरोरा संवेदनशील में है। नई तकनीक में कहीं भी डिजाइन किया जा सकता है। जापान में सभी प्लांट जोन चार, पांच व छह में हैं। यूएसए में १०४ में से दस जोन पांच में हैं। जापान में भूकंप से रिएक्टर में दुर्घटना नहीं हुई। सुनामी के पानी ने पंप में पानी भर दिया जिससे फ्यूल को ठंडा नहीं किया जा सका।
रेडिएशन से डरें नहीं
वैज्ञानिकों ने बताया कि चुटका में संभावित रेडिएशन को लेकर डरें नहीं। वर्तमान में एयर ट्रेवल, कांक्रीट मकान, मोबाइल फोन, एक्सरे, सब्जियों में सभी में रेडिएशन मिलता है। एक्सरे में २५० माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन लेते हैं। तारापुर में १३ माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन मिलता है। एटॉमिक इनर्जी आयोग ने ३४०० माइक्रो सिवर्ट की अनुमति दी है। इसमें से २४०० नेचुरल मिलता है। अमेरिका की हवाई यात्रा में एक बार में जितना रेडिएशन लेते हैं वो २५ साल तक प्लांट के पास नहीं मिलने वाला।
सिर्फ हमारे यहां अपशिष्ट का प्रबंधन
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि केवल हमारे देश में ही न्यूक्लियर वेस्ट को यूज कर प्लूटोनियम में बदलते हैं। तमिलनाडु और बाम्बे में ही दो रिप्रोसेसिंग प्लांट हैं। वेस्ट नगण्य मात्रा में बचता है। अमेरिका, फ्रांस में ऐसा नहीं होता।
सस्ती बिजली मिलेगी
चुटका परमाणु बिजली घर से प्रदेश को सस्ती बिजली मिलेगी। वर्तमान में ताप बिजली दो से तीन रुपए में मिल रही है वहीं महाराष्ट्र में हम तारापुर प्लांट से ९४ पैसे में बिजली दे रहे हैं।
अतः उर्जा की जरूरतो और देश को दुनिया में महत्वपूर्ण बनाये रखने के लिये चुटका सहित अन्य स्थलो पर परमाणू बिजलीघरो की स्थापना करनी ही चाहिये .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के वैज्ञानिको से चर्चा
ये पहला मौका था जब चुटका परमाणु बिजली घर को लेकर चल रही तमाम आशंकाओं- कुशंकाओं का तार्किक और वैज्ञानिक समाधान न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया और जबलपुर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में किया गया .
विश्व परिदृश्य
तारापुर १९६९ में प्रथम परमाणु बिजली घर बना था, जो अब तक सुरक्षित चल रहा है , अब और भी बेहतर निर्माण तकनीको के विकास के कारण ज्यादा सुरक्षित बिजली घर बनेगा . वर्तमान में देश में कुल बिजली उत्पादन का २.७ प्रतिशत शेयर न्यूक्लियर पावर का है।पूरे विश्व में ४४० परमाणु केन्द्र जहां विश्व के कुल विद्युत उत्पादन का लगभग १७ प्रतिशत शेयर परमाणु बिजली का।इस समय विश्व में ६५ परमाणु बिजली घर निर्माणाधीन हैं।फ्रांस में कुल बिजली उत्पादन का ७५ फीसदी हिस्सा न्यूक्लियर पावर का है और जापान में ३० प्रतिशत। ७०० मेगावॉट क्षमता वाली १४ यूनिट पूरे देश में लगाने की अनुमति मिली है।थोरियम के साथ द्वितीय चरण में बिजली उत्पादन होगा .पहले चरण में यूरेनियम से ही उत्पादन प्रारंभ किया जावेगा . जो आयातित होगा .
प्रस्तावित चुटका बिजली घर से डरें नहीं बल्कि विकास की दिशा में मील का पत्थर बनने वाले इस प्लांट का स्वागत करें .
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि चुटका का परमाणु बिजली घर चक्रव्यूह के समान सुरक्षित होगा। हमारे दूसरे परमाणु बिजली घरों में भी ऐसी ही सुरक्षा है। ये भूकंप से सुरक्षित होगा। नर्मदा का १२८ क्यूसेक पानी ही लिया जाएगा जो बांध का मात्र तीन प्रतिशत होगा। नर्मदा में किसी तरह का प्रदूषण नहीं होगा। चुटका सहित आसपास के विस्थापितों को उचित मुआवजा मिलेगा। उन्हें रोजगार के अवसर मिलेंगे। स्कूली सहित तकनीकी शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र बनाए जाएंगे। आवासीय परिसरों का भी निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि दुनिया ने हमें परमाणु मामलों में १९७४ में अलग- थलग कर दिया था। इसके बाद भी हमने नई तकनीक बनाई।
विदेशों पर निर्भरता
बताया गया कि अभी हमें विदेश से यूरेनियम चाहिए। परमाणु बिजली घरों से निकले अपशिष्ट के जरिए हम थोरियम को यूरेनियम में बदलने में सक्षम होंगे फिर हमें कोई जरूरत नहीं होगी। घटते कोयला भंडारों के कारण नाभिकीय बिजली जरूरी है। सोलर सहित अन्य रिन्यूवल एनर्जी को सप्लीमेंट के रूप में ही लिया जा सकता है। उन पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। केन्द्र और परमाणु ऊर्जा आयोग की गाइड लाइन पर चुटका का चयन किया गया है। इनके मानकों पर ही निर्माण होगा। इसे वैश्विक संगठन भी देखेगा।
सफलता की कहानियां
राजस्थान के कोटा में चल रही ८ परमाणु बिजली घर यूनिटो की सफलता की चर्चा करते हुये बताया गया कि जिन्हें तकनीक की कुशलता पर संशय हो वे वहां निरीक्षण कर सकते हैं। राजस्थान में ही बांसवा़ड़ा में नया प्लांट लगाने राज्य सरकार ने अनुरोध किया है।परमाणु बिजली घरो के निर्माण के समय पांच स्तरों पर निरीक्षण किया जाता है ,प्रत्येक माह मॉनीटरिंग मीटिंग होती है। परमाणु आयोग के अधिकारी विजिट करते हैं। हर स्तर पर सेम्पल रिकार्ड में रखे जाते हैं।न्यूक्लियर लायबिल्टी बिल में सभी को जवाबदार बनाया गया है। इस प्लांट से उत्पादित पचास फीसदी बिजली मध्यप्रदेश को दी जाएगी। राज्य सरकार चाहे तो १५ प्रतिशत अतिरिक्त बिजली भी ले सकती है।
भूकंप जनित की आशंकाओ का निदान
चुटका में भूकंप सेंसर लगेंगे जो ऐसी घटना के पहले प्लांट को बंद करने की चेतावनी देंगे। चुटका परमाणु बिजली घर भूकंप के लिहाज से जोन तीन में है। ये सभी सुरक्षित जोन माने जाते हैं। केवल नरोरा संवेदनशील में है। नई तकनीक में कहीं भी डिजाइन किया जा सकता है। जापान में सभी प्लांट जोन चार, पांच व छह में हैं। यूएसए में १०४ में से दस जोन पांच में हैं। जापान में भूकंप से रिएक्टर में दुर्घटना नहीं हुई। सुनामी के पानी ने पंप में पानी भर दिया जिससे फ्यूल को ठंडा नहीं किया जा सका।
रेडिएशन से डरें नहीं
वैज्ञानिकों ने बताया कि चुटका में संभावित रेडिएशन को लेकर डरें नहीं। वर्तमान में एयर ट्रेवल, कांक्रीट मकान, मोबाइल फोन, एक्सरे, सब्जियों में सभी में रेडिएशन मिलता है। एक्सरे में २५० माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन लेते हैं। तारापुर में १३ माइक्रो सिवर्ट का रेडिएशन मिलता है। एटॉमिक इनर्जी आयोग ने ३४०० माइक्रो सिवर्ट की अनुमति दी है। इसमें से २४०० नेचुरल मिलता है। अमेरिका की हवाई यात्रा में एक बार में जितना रेडिएशन लेते हैं वो २५ साल तक प्लांट के पास नहीं मिलने वाला।
सिर्फ हमारे यहां अपशिष्ट का प्रबंधन
न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन के अधिकारियों ने कहा कि केवल हमारे देश में ही न्यूक्लियर वेस्ट को यूज कर प्लूटोनियम में बदलते हैं। तमिलनाडु और बाम्बे में ही दो रिप्रोसेसिंग प्लांट हैं। वेस्ट नगण्य मात्रा में बचता है। अमेरिका, फ्रांस में ऐसा नहीं होता।
सस्ती बिजली मिलेगी
चुटका परमाणु बिजली घर से प्रदेश को सस्ती बिजली मिलेगी। वर्तमान में ताप बिजली दो से तीन रुपए में मिल रही है वहीं महाराष्ट्र में हम तारापुर प्लांट से ९४ पैसे में बिजली दे रहे हैं।
अतः उर्जा की जरूरतो और देश को दुनिया में महत्वपूर्ण बनाये रखने के लिये चुटका सहित अन्य स्थलो पर परमाणू बिजलीघरो की स्थापना करनी ही चाहिये .
भारत के हरीश हांडे,को भी मैग्सेसे अवार्ड जिन्होंने अपनी कंपनी सेल्को के माध्यम से लाखों ग़रीबों तक सौर ऊर्जा की प्रौद्योगिकी पहुंचाई.
Dr. H Harish Hande, Managing Director,
SELCO-India, which he co-founded with Neville Williams in 1995. Dr. Hande earned his Doctorate in energy engineering (solar specialty) at the University of Massachusetts (Lowell). He has an undergraduate degree in Energy Engineering from the Indian Institute of Technology (IIT), Kharagpur. Dr. Hande serves on the boards of many organizations, both national and international.
Harish Hande, was recognised for "his passionate and pragmatic efforts to put solar power technology in the hands of the poor, through a social enterprise that brings customized, affordable, and sustainable electricity to India's vast rural populace, encouraging the poor to become asset creators".
SELCO-India, which he co-founded with Neville Williams in 1995. Dr. Hande earned his Doctorate in energy engineering (solar specialty) at the University of Massachusetts (Lowell). He has an undergraduate degree in Energy Engineering from the Indian Institute of Technology (IIT), Kharagpur. Dr. Hande serves on the boards of many organizations, both national and international.
Harish Hande, was recognised for "his passionate and pragmatic efforts to put solar power technology in the hands of the poor, through a social enterprise that brings customized, affordable, and sustainable electricity to India's vast rural populace, encouraging the poor to become asset creators".
community-based renewable energy ..CITATION for Tri Mumpuni , Indonatia
community-based renewable energy ..CITATION for Tri Mumpuni
Ramon Magsaysay Award Presentation Ceremonies
31 August 2011, Manila, Philippines
In electing Tri Mumpuni to receive the 2011 Ramon Magsaysay Award, the board of trustees recognizes her determined and collaborative efforts to promote micro hydropower technology, catalyze needed policy changes, and ensure full community participation, in bringing electricity and the fruits of development to the rural areas of Indonesia.
Mumpuni had to struggle with restrictive state regulations, complex financing requirements, and the draining demands of social mobilization work. To meet the twin challenges of a social enterprise.remaining viable as a business without compromising its social mission.she had to focus all her energies on working at the level of the poorest communities, as well as with the highest government authorities.From its base in Subang, West Java, IBEKA (Indonaition name of her orgnisation "People-Centered Business and Economic Institute")has built 60 micro hydropower plants, with capacities ranging from 5 kilowatts to 250 kilowatts, providing electricity to half a million people in rural Indonesia. Equally important, it has done this through a community-based development approach that goes beyond the technology to the socioeconomic empowerment of communities. Putting a premium on community participation and ownership, IBEKA organizes electric cooperatives, trains villagers in technical management and resource conservation, and provides support in fund-facilitation Mumpuni works at the national level in promoting the role of hydropower in development, and in designing and implementing new models of government-business-community joint ventures in micro hydropower facilities. Boldly enterprising, she has effectively lobbied for changes in state policy that now allow independent micro hydropower plants to sell electricity to the government.s national grid.Skill, creativity, and determination, however, have turned IBEKA into an outstanding Indonesian example of social entrepreneurship, and cast Mumpuni as a much-admired and influential leader in the field of community-based renewable energy. and income-generating activities.
Ramon Magsaysay Award Presentation Ceremonies
31 August 2011, Manila, Philippines
In electing Tri Mumpuni to receive the 2011 Ramon Magsaysay Award, the board of trustees recognizes her determined and collaborative efforts to promote micro hydropower technology, catalyze needed policy changes, and ensure full community participation, in bringing electricity and the fruits of development to the rural areas of Indonesia.
Mumpuni had to struggle with restrictive state regulations, complex financing requirements, and the draining demands of social mobilization work. To meet the twin challenges of a social enterprise.remaining viable as a business without compromising its social mission.she had to focus all her energies on working at the level of the poorest communities, as well as with the highest government authorities.From its base in Subang, West Java, IBEKA (Indonaition name of her orgnisation "People-Centered Business and Economic Institute")has built 60 micro hydropower plants, with capacities ranging from 5 kilowatts to 250 kilowatts, providing electricity to half a million people in rural Indonesia. Equally important, it has done this through a community-based development approach that goes beyond the technology to the socioeconomic empowerment of communities. Putting a premium on community participation and ownership, IBEKA organizes electric cooperatives, trains villagers in technical management and resource conservation, and provides support in fund-facilitation Mumpuni works at the national level in promoting the role of hydropower in development, and in designing and implementing new models of government-business-community joint ventures in micro hydropower facilities. Boldly enterprising, she has effectively lobbied for changes in state policy that now allow independent micro hydropower plants to sell electricity to the government.s national grid.Skill, creativity, and determination, however, have turned IBEKA into an outstanding Indonesian example of social entrepreneurship, and cast Mumpuni as a much-admired and influential leader in the field of community-based renewable energy. and income-generating activities.
22 जुलाई, 2011
परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता
जापान में परमाणु रिएक्टर दुर्घटना के परिप्रेक्ष्य में , भारत में परमाणु शक्ति जनित बिजली.
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी , म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर म प्र. ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२
फुकुशिमा जापान की परमाणु दुर्घटना पूरी दुनियां के अस्तित्व के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है . अब तक इतनी भीषण परमाणु दुर्घटना पहले कभी नही घटी थी .
तीन दशक पहले अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड में परमाणु दुर्घटना हुई थी। इस परमाणु दुर्घटना ने वहां के असैन्य परमाणु कार्यक्रम पर ग्रहण लगा दिया। इसका असर यह हुआ कि 1978 के बाद अमेरिका में कोई परमाणु रिएक्टर नहीं लगा। दो दशक पहले 1986 में रूस के चेर्नोबिल की परमाणु दुर्घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया। ऐसा अनुमान है कि इस दुर्घटना की वजह से तकरीबन नब्बे हजार लोग काल के गाल में समा गए। इस परमाणु केंद्र को स्थापित करने में जितनी लागत लगी थी उससे तीन गुना अधिक नुकसान हुआ। भारत के परमाणु बिजलीघरों में भी दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन संयोग से अभी तक ये बेहद घातक नहीं साबित हुईं . आज हम सोचने पर विवश हैं कि रिएक्टर के तौर पर हम कहीं अपनी ही मौत का सामान तो नहीं बना रहे। फुकुशिमा के परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट के बाद पूरी दुनिया में आणविक ऊर्जा की जरूरत को लेकर बहस छिड़ गई है . जर्मनी ने तो वहां परमाणु बिजली का उत्पादन क्रमशः बंद करने का फैसला तक ले लिया है .चीन ने भी नए रिएक्टरों पर फिलहाल रोक लगा दी है .दरअसल परमाणु दुर्घटनाओ के भयावह प्रभाव तुरंत नही दिखते , बिजलीघर के आसपास रहने वाले और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों पर विकिरण का असर आने वाले दिनों में दिखेगा, विकृत पीढ़ी का जन्म बरसो तक एसी दुर्गटना की याद दिलाता है . हवा में जो रेडियोधर्मिता फैली है, वह अपना असर कब, कहां और किस तरह दिखाएगी इसके बारे में साफ तौर पर कोई बता नहीं सकता .अभी के परमाणु ज्ञान के अनुसार हमारी स्थिति अभिमन्यु जैसी है , जो चक्रव्यू में घुस तो सकता है , पर उससे निकलने का रास्ता अब तक हमारे पास नही है .
भारत में भी परमाणु मामले में विशेषज्ञ दो खेमे में बंटे हुए हैं , एक खेमा वह है जो इस बात की वकालत करते हुए नहीं थकता कि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का अहम जरिया आणविक ऊर्जा है , क्योकि हमारे यहां कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली की भागीदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है , वहीं दूसरा पक्ष दूसरो की गलतियो से सीख लेने की बात करता है और आणविक ऊर्जा को विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बता रहा है. इस सारी बहस के बीच हमारे २५वें परमाणु बिजली घर का कार्य राजस्थान में प्रारंभ किया जा चुका है .प्रधानमंत्री ने भी संसद में कहा कि परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी,केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश कह चुके हैं कि भारत परमाणु ऊर्जा उत्पादन के मामले में बहुत आगे बढ़ गया है और अब पीछे नहीं हटा जा सकता . दरअसल, आज सरकारी स्तर पर परमाणु ऊर्जा को लेकर जिस भाषा में बात की जा रही है, वह भाषा अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जुड़ी हुई है। सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि परमाणु करार सही ढंग से लागू हो जाए तो हम इतनी बिजली पैदा कर पाएंगे कि घर-घर तक उजियारा फैल जाएगा और गांवों में सदियों से चला आ रहा अंधियारा पलक झपकते दूर हो जाएगा . वर्ल्ड बैंक ,एशियन डेवलेपमेंट बैंक , जापान ,आदि विदेशी सहायता से पावर इवेक्युएशन के लिये देश भर में हाईटेंशन ग्रिड और वितरण लाइनो तथा सबस्टेशनो का जाल बिछा दिया गया है . विभिन्न प्रदेशो में केंद्र सरकार की आर ए पी डी आर पी आदि पावर रिफार्म योजनाओ के विभिन्न चरण तेजी से लागू किये जा रहे हैं .
अध्ययन प्रमाणित कर चुके हैं कि परमाणु ऊर्जा की लागत ताप विद्युत ऊर्जा से दुगनी होती है . महाराष्ट्र में कुछ साल पहले बिजली जरूरतों को पूरा करने के नाम पर एनरान नेप्था बिजली परियोजना लगाई गई थी, उस समय यह दावा किया गया था कि इससे महाराष्ट्र की बिजली की समस्या से काफी हद तक पार पा लिया जाएगा, पर नतीजा इसके उलटा ही निकला. एनरान में उत्पादित बिजली इतनी महंगी साबित हुयी कि इसे बंद ही करना पड़ा . इस प्रकरण में सरकार को तकरीबन दस हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा. अब एक बार फिर महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट क्षमता वाला परमाणु बिजलीघर लगाने की कोशिश हो रही है, स्थानीय लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार इस परियोजना को बंद करने के सवाल पर टस से मस नहीं हो रही.
अमेरिका ने पिछले तीन दशकों में कोई भी परमाणु बिजली घर नहीं लगाया है. उल्लेखनीय है कि वहां 104 परमाणु बिजली घर हैं. इसमें से सभी तीस साल से अधिक पुराने हैं. परमाणु ऊर्जा के समर्थक बड़े जोर-शोर से फ्रांस का उदाहरण देते हैं. फ्रांस को 75 फीसदी बिजली परमाणु बिजली घरों से मिलती है. यह बिल्कुल सही है, लेकिन अगर परमाणु रिएक्टरों से बिजली पैदा करना वाकई लाभप्रद है तो फ्रांस अपने यहां और परमाणु बिजली घर क्यों नहीं स्थापित कर रहा है .उल्लेखनीय है कि आने वाले दिनों में वहां सिर्फ एक परमाणु रिएक्टर प्रस्तावित है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आणविक बिजली बेहद महंगी साबित हो रही है. एक उदाहरण आस्ट्रेलिया का भी है, आस्ट्रेलिया के पास दुनिया में सबसे ज्यादा यूरेनियम है, पर वहां एक भी परमाणु बिजली घर नहीं है.इसका सीधा संबंध लागत और सुरक्षा से है. जब कम लागत पर वही चीज उत्पादित की जा सकती है तो कोई भी उसका उत्पादन ज्यादा लागत पर क्यों करेगा? वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में परमाणु बिजलीघरों के जरिए 3,72,000 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है और इसकी विकास दर आधा प्रतिशत मात्र है. आधा फीसदी की यह विकास दर भी स्थाई नहीं है। 1964 से अब तक दुनिया में 124 रिएक्टर बंद कर दिए गए जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 36800 मेगावाट थी. 1990 में विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी सोलह प्रतिशत थी. 2007 में यह घटकर पंद्रह प्रतिशत हो गई. दुनिया के ज्यादातर देश परमाणु ऊर्जा के उत्पादन से किनारा करते जा रहे हैं
जब तकनीकी तौर पर बेहद सक्षम जापान के लिए परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट पर काबू पाना बेहद मुश्किल साबित हुआ तो ऐसी स्थिति में भारत का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
अनुमान है कि 2020 में भारत में आठ लाख मेगावाट बिजली पैदा होगी, अगर आणविक ऊर्जा की योजना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी तो 20,000 मेगावाट पैदा कर पाएगी, जिसकी लागत 11 लाख करोड़ रुपए होगी . इसके लिए आठ लाख हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. रिएक्टर के पांच किलोमीटर की परिधि में आबादी नहीं रहेगी। इन क्षेत्रों से बेदखल कर दिए जाने वाले लोगों का पुनर्वास कैसे होगा ? लागत के अनुमान के अनुसार परमाणु बिजली की उत्पादन लागत 21 रुपए प्रति यूनिट होगी .देश में परमाणु बिजली के क्षेत्र में कारोबार की काफी संभावना है, सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के मौके तलाश रही हैं . ऐसा नहीं है कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रिटर्न की भारी संभावना है .लेकिन निजी कंपनियां इस क्षेत्र में जो दिलचस्पी दिखा रही है उसका कारण यह है कि ऊर्जा क्षेत्र में नीति-निर्माण के स्तर पर अहम फैसले लिये जा रहे हैं. सरकार चाहती है कि परमाणु बिजली का उत्पादन बढ़ाया जावे . सरकार इंडियन ऑयल कॉरपोरशन, नाल्को और एनटीपीसी जैसी कंपनियो को परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रेरित कर रही है . सरकार चाहती है कि 2020 तक देश में 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा होने की क्षमता स्थापित हो जाए . परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के मामले में एक गंभीर समस्या इसके कचरे का निस्तारण भी है, उपयोग में लाए गए परमाणु ईंधन का निस्तारण करना बेहद जटिल प्रक्रिया है. कुछ समय पहले ब्रिटेन में एक परमाणु ईंधन स्टोर लीक हो गया जिससे हजार किलोमीटर के दायरे का पानी प्रदूषित हो गया. भारत को आणविक कचरा सुरक्षित फेंकने के लिए हर साल तीन अरब डालर खर्च करने होंगे. यह भी तय नहीं है कि भारत अपना परमाणु कचरा कहां फेंकेगा. जापान की परमाणु त्रासदी हमारे लिए एक सबक है , हमे परमाणु सयंत्र के डिजाईन फुल प्रूफ बनाने होंगे .
वर्तमान में दुनिया में बिजली का सबसे अहम स्रोत कोयला और पेट्रोलियम है लेकिन दोनों स्रोत करोड़ों साल पहले धरती के नीचे दब गए जीव और वनस्पति के सड़ने गलने से बनते हैं और इनको बनने में करोड़ों साल लग जाते हैं। इसलिए अगर ये एक बार खत्म हो गए तो दुबारा बनने में अरबों साल लग जाएंगे। दुनिया की कुल बिजली का करीब 50 फीसदी उत्पादन कोयले से होता है और अगर हम मौजूदा दर से खपत करते हैं तो अगले डेढ़ सौ सालों में कोयले के भंडार खत्म हो जाएंगे. पेट्रोलियम के भंडार भी कोयले की तरह ही सीमित हैं. कार्बन के भण्डार वाले कोयले और पेट्रोलियम के इस्तेमाल से हम धरती के निरंतर बढ़ते तापमान पर कैसे काबू रख पाएंगे ? बढ़ता कार्बन उत्सर्जन भी इंसानी वजूद के लिए खतरा है .
तो अब विकल्प क्या है ? क्या अब बिजली के लिये पूर्णतः समुद्र की लहरो , सूर्य और वायुदेव की शरण में जाने का वक्त आ गया है ?
विकल्प ज्यादा नही है , बिना बिजली के जीवन की कल्पना दुष्कर है . एक संतुलित राह बनानी जरुरी है , कम से कम बिजली का उपयोग , वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो का हर संभव दोहन , सुरक्षित परमाणु बिजली का उत्पादन और इस सबके साथ ऊर्जा के लिये नये अनुसंधान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये . क्या समुद्रतल पर अथाह जलराशि के भीतर परमाणु बिजलीघर बनाये जावें ? या अंतरिक्ष में परमाणु बिजली उत्पादन किया जावे ? क्या बादल से बरसते पानी को आकाश में ही एकत्रित करके नियंत्रित करके जमीन पर नही उतारा जा सकता ? बिजली भी बन जायेगी और बाढ़ की विभीषिका भि नही होगी ! क्या ये परिकल्पनाये केवल मेरी विज्ञान कथाओ तक सीमित रहेंगी ? यदि इन्हें साकार करना है तो समूचे विश्व के वैज्ञानिको को एक होकर नये अनुसंधान करने पड़ेंगे , क्योकि परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता . उर्जा क्षेत्र में अनुसंधान दुनिया के अस्तित्व के लिये जरुरी हो चला है .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जन संपर्क अधिकारी , म.प्र. पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी , जबलपुर
ओ बी ११ , रामपुर , जबलपुर म प्र. ४८२००८
मो ९४२५८०६२५२
फुकुशिमा जापान की परमाणु दुर्घटना पूरी दुनियां के अस्तित्व के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है . अब तक इतनी भीषण परमाणु दुर्घटना पहले कभी नही घटी थी .
तीन दशक पहले अमेरिका के थ्री माइल आइलैंड में परमाणु दुर्घटना हुई थी। इस परमाणु दुर्घटना ने वहां के असैन्य परमाणु कार्यक्रम पर ग्रहण लगा दिया। इसका असर यह हुआ कि 1978 के बाद अमेरिका में कोई परमाणु रिएक्टर नहीं लगा। दो दशक पहले 1986 में रूस के चेर्नोबिल की परमाणु दुर्घटना ने पूरी दुनिया को हिला दिया। ऐसा अनुमान है कि इस दुर्घटना की वजह से तकरीबन नब्बे हजार लोग काल के गाल में समा गए। इस परमाणु केंद्र को स्थापित करने में जितनी लागत लगी थी उससे तीन गुना अधिक नुकसान हुआ। भारत के परमाणु बिजलीघरों में भी दुर्घटनाएं हुई हैं लेकिन संयोग से अभी तक ये बेहद घातक नहीं साबित हुईं . आज हम सोचने पर विवश हैं कि रिएक्टर के तौर पर हम कहीं अपनी ही मौत का सामान तो नहीं बना रहे। फुकुशिमा के परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट के बाद पूरी दुनिया में आणविक ऊर्जा की जरूरत को लेकर बहस छिड़ गई है . जर्मनी ने तो वहां परमाणु बिजली का उत्पादन क्रमशः बंद करने का फैसला तक ले लिया है .चीन ने भी नए रिएक्टरों पर फिलहाल रोक लगा दी है .दरअसल परमाणु दुर्घटनाओ के भयावह प्रभाव तुरंत नही दिखते , बिजलीघर के आसपास रहने वाले और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों पर विकिरण का असर आने वाले दिनों में दिखेगा, विकृत पीढ़ी का जन्म बरसो तक एसी दुर्गटना की याद दिलाता है . हवा में जो रेडियोधर्मिता फैली है, वह अपना असर कब, कहां और किस तरह दिखाएगी इसके बारे में साफ तौर पर कोई बता नहीं सकता .अभी के परमाणु ज्ञान के अनुसार हमारी स्थिति अभिमन्यु जैसी है , जो चक्रव्यू में घुस तो सकता है , पर उससे निकलने का रास्ता अब तक हमारे पास नही है .
भारत में भी परमाणु मामले में विशेषज्ञ दो खेमे में बंटे हुए हैं , एक खेमा वह है जो इस बात की वकालत करते हुए नहीं थकता कि भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का अहम जरिया आणविक ऊर्जा है , क्योकि हमारे यहां कुल बिजली उत्पादन में परमाणु बिजली की भागीदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है , वहीं दूसरा पक्ष दूसरो की गलतियो से सीख लेने की बात करता है और आणविक ऊर्जा को विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बता रहा है. इस सारी बहस के बीच हमारे २५वें परमाणु बिजली घर का कार्य राजस्थान में प्रारंभ किया जा चुका है .प्रधानमंत्री ने भी संसद में कहा कि परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी,केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश कह चुके हैं कि भारत परमाणु ऊर्जा उत्पादन के मामले में बहुत आगे बढ़ गया है और अब पीछे नहीं हटा जा सकता . दरअसल, आज सरकारी स्तर पर परमाणु ऊर्जा को लेकर जिस भाषा में बात की जा रही है, वह भाषा अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार से जुड़ी हुई है। सरकार बार-बार यह दावा कर रही है कि परमाणु करार सही ढंग से लागू हो जाए तो हम इतनी बिजली पैदा कर पाएंगे कि घर-घर तक उजियारा फैल जाएगा और गांवों में सदियों से चला आ रहा अंधियारा पलक झपकते दूर हो जाएगा . वर्ल्ड बैंक ,एशियन डेवलेपमेंट बैंक , जापान ,आदि विदेशी सहायता से पावर इवेक्युएशन के लिये देश भर में हाईटेंशन ग्रिड और वितरण लाइनो तथा सबस्टेशनो का जाल बिछा दिया गया है . विभिन्न प्रदेशो में केंद्र सरकार की आर ए पी डी आर पी आदि पावर रिफार्म योजनाओ के विभिन्न चरण तेजी से लागू किये जा रहे हैं .
अध्ययन प्रमाणित कर चुके हैं कि परमाणु ऊर्जा की लागत ताप विद्युत ऊर्जा से दुगनी होती है . महाराष्ट्र में कुछ साल पहले बिजली जरूरतों को पूरा करने के नाम पर एनरान नेप्था बिजली परियोजना लगाई गई थी, उस समय यह दावा किया गया था कि इससे महाराष्ट्र की बिजली की समस्या से काफी हद तक पार पा लिया जाएगा, पर नतीजा इसके उलटा ही निकला. एनरान में उत्पादित बिजली इतनी महंगी साबित हुयी कि इसे बंद ही करना पड़ा . इस प्रकरण में सरकार को तकरीबन दस हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा. अब एक बार फिर महाराष्ट्र के जैतापुर में 9900 मेगावाट क्षमता वाला परमाणु बिजलीघर लगाने की कोशिश हो रही है, स्थानीय लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार इस परियोजना को बंद करने के सवाल पर टस से मस नहीं हो रही.
अमेरिका ने पिछले तीन दशकों में कोई भी परमाणु बिजली घर नहीं लगाया है. उल्लेखनीय है कि वहां 104 परमाणु बिजली घर हैं. इसमें से सभी तीस साल से अधिक पुराने हैं. परमाणु ऊर्जा के समर्थक बड़े जोर-शोर से फ्रांस का उदाहरण देते हैं. फ्रांस को 75 फीसदी बिजली परमाणु बिजली घरों से मिलती है. यह बिल्कुल सही है, लेकिन अगर परमाणु रिएक्टरों से बिजली पैदा करना वाकई लाभप्रद है तो फ्रांस अपने यहां और परमाणु बिजली घर क्यों नहीं स्थापित कर रहा है .उल्लेखनीय है कि आने वाले दिनों में वहां सिर्फ एक परमाणु रिएक्टर प्रस्तावित है, ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि आणविक बिजली बेहद महंगी साबित हो रही है. एक उदाहरण आस्ट्रेलिया का भी है, आस्ट्रेलिया के पास दुनिया में सबसे ज्यादा यूरेनियम है, पर वहां एक भी परमाणु बिजली घर नहीं है.इसका सीधा संबंध लागत और सुरक्षा से है. जब कम लागत पर वही चीज उत्पादित की जा सकती है तो कोई भी उसका उत्पादन ज्यादा लागत पर क्यों करेगा? वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया में परमाणु बिजलीघरों के जरिए 3,72,000 मेगावाट बिजली बनाई जा रही है और इसकी विकास दर आधा प्रतिशत मात्र है. आधा फीसदी की यह विकास दर भी स्थाई नहीं है। 1964 से अब तक दुनिया में 124 रिएक्टर बंद कर दिए गए जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 36800 मेगावाट थी. 1990 में विश्व के कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी सोलह प्रतिशत थी. 2007 में यह घटकर पंद्रह प्रतिशत हो गई. दुनिया के ज्यादातर देश परमाणु ऊर्जा के उत्पादन से किनारा करते जा रहे हैं
जब तकनीकी तौर पर बेहद सक्षम जापान के लिए परमाणु बिजलीघर में हुए विस्फोट पर काबू पाना बेहद मुश्किल साबित हुआ तो ऐसी स्थिति में भारत का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
अनुमान है कि 2020 में भारत में आठ लाख मेगावाट बिजली पैदा होगी, अगर आणविक ऊर्जा की योजना अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी तो 20,000 मेगावाट पैदा कर पाएगी, जिसकी लागत 11 लाख करोड़ रुपए होगी . इसके लिए आठ लाख हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी. रिएक्टर के पांच किलोमीटर की परिधि में आबादी नहीं रहेगी। इन क्षेत्रों से बेदखल कर दिए जाने वाले लोगों का पुनर्वास कैसे होगा ? लागत के अनुमान के अनुसार परमाणु बिजली की उत्पादन लागत 21 रुपए प्रति यूनिट होगी .देश में परमाणु बिजली के क्षेत्र में कारोबार की काफी संभावना है, सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के मौके तलाश रही हैं . ऐसा नहीं है कि परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रिटर्न की भारी संभावना है .लेकिन निजी कंपनियां इस क्षेत्र में जो दिलचस्पी दिखा रही है उसका कारण यह है कि ऊर्जा क्षेत्र में नीति-निर्माण के स्तर पर अहम फैसले लिये जा रहे हैं. सरकार चाहती है कि परमाणु बिजली का उत्पादन बढ़ाया जावे . सरकार इंडियन ऑयल कॉरपोरशन, नाल्को और एनटीपीसी जैसी कंपनियो को परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रेरित कर रही है . सरकार चाहती है कि 2020 तक देश में 20,000 मेगावाट परमाणु बिजली पैदा होने की क्षमता स्थापित हो जाए . परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के मामले में एक गंभीर समस्या इसके कचरे का निस्तारण भी है, उपयोग में लाए गए परमाणु ईंधन का निस्तारण करना बेहद जटिल प्रक्रिया है. कुछ समय पहले ब्रिटेन में एक परमाणु ईंधन स्टोर लीक हो गया जिससे हजार किलोमीटर के दायरे का पानी प्रदूषित हो गया. भारत को आणविक कचरा सुरक्षित फेंकने के लिए हर साल तीन अरब डालर खर्च करने होंगे. यह भी तय नहीं है कि भारत अपना परमाणु कचरा कहां फेंकेगा. जापान की परमाणु त्रासदी हमारे लिए एक सबक है , हमे परमाणु सयंत्र के डिजाईन फुल प्रूफ बनाने होंगे .
वर्तमान में दुनिया में बिजली का सबसे अहम स्रोत कोयला और पेट्रोलियम है लेकिन दोनों स्रोत करोड़ों साल पहले धरती के नीचे दब गए जीव और वनस्पति के सड़ने गलने से बनते हैं और इनको बनने में करोड़ों साल लग जाते हैं। इसलिए अगर ये एक बार खत्म हो गए तो दुबारा बनने में अरबों साल लग जाएंगे। दुनिया की कुल बिजली का करीब 50 फीसदी उत्पादन कोयले से होता है और अगर हम मौजूदा दर से खपत करते हैं तो अगले डेढ़ सौ सालों में कोयले के भंडार खत्म हो जाएंगे. पेट्रोलियम के भंडार भी कोयले की तरह ही सीमित हैं. कार्बन के भण्डार वाले कोयले और पेट्रोलियम के इस्तेमाल से हम धरती के निरंतर बढ़ते तापमान पर कैसे काबू रख पाएंगे ? बढ़ता कार्बन उत्सर्जन भी इंसानी वजूद के लिए खतरा है .
तो अब विकल्प क्या है ? क्या अब बिजली के लिये पूर्णतः समुद्र की लहरो , सूर्य और वायुदेव की शरण में जाने का वक्त आ गया है ?
विकल्प ज्यादा नही है , बिना बिजली के जीवन की कल्पना दुष्कर है . एक संतुलित राह बनानी जरुरी है , कम से कम बिजली का उपयोग , वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतो का हर संभव दोहन , सुरक्षित परमाणु बिजली का उत्पादन और इस सबके साथ ऊर्जा के लिये नये अनुसंधान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये . क्या समुद्रतल पर अथाह जलराशि के भीतर परमाणु बिजलीघर बनाये जावें ? या अंतरिक्ष में परमाणु बिजली उत्पादन किया जावे ? क्या बादल से बरसते पानी को आकाश में ही एकत्रित करके नियंत्रित करके जमीन पर नही उतारा जा सकता ? बिजली भी बन जायेगी और बाढ़ की विभीषिका भि नही होगी ! क्या ये परिकल्पनाये केवल मेरी विज्ञान कथाओ तक सीमित रहेंगी ? यदि इन्हें साकार करना है तो समूचे विश्व के वैज्ञानिको को एक होकर नये अनुसंधान करने पड़ेंगे , क्योकि परमाणु विभीषिका का विकिरण देशो की सीमायें नही पहचानता . उर्जा क्षेत्र में अनुसंधान दुनिया के अस्तित्व के लिये जरुरी हो चला है .
sabhar ..BBC HINDI अंधकार से प्रकाश की ओर...
अंधकार से प्रकाश की ओर...
पारुल अग्रवाल
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
शहरों की चकाचौंध रातों के बीच गांव की घुप्प अंधेरी रातों में ज़िंदगी आज भी जगमगाती नहीं टिमटिमाती है.
लेकिन इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत के हज़ारों गांव बिजली की पहुंच से दूर हैं और लोगों के पास अपनी ज़रूरतों के लिए भी ये सुविधा उपलब्ध नहीं है.गांव की इसी ज़रूरत को पूरा करने के लिए बिहार के कुछ नौजवान इक्कठा हुए और एक ऐसा तरीका इजाद किया जिसमें मुनाफ़ा भी है और समाज सेवा भी.
सिटीज़न रिपोर्ट की इस कड़ी में पेश है इन नौजवानों की अनोखी कोशिश से जुड़ी रत्नेश यादव की रिपोर्ट.
'' मेरा नाम रत्नेश यादव है और अपनी इस रिपोर्ट के ज़रिये मैं आपको बताना चाहता हूँ की मैंने और मेरे कुछ साथियों ने मिलकर 'बायोमास' के ज़रिए किस तरह बिहार के कई सौ गाँव को रोशन किया है.
मेरा जन्म बिहार में हुआ लेकिन पढ़ाई-लिखाई के लिए बचपन में ही मैं नैनिताल चला गया. कई साल बाद परिवार की ज़िम्मेदारियां मुझे अपने गांव खींच लाईं, लेकिन गांव लौटकर पहली बार मुझे भारत की दो तस्वीरों का फर्क महसूस हुआ.
साल 2003 में जब मैं बिहार आया तो यहां आकर मुझे एहसास हुआ कि शहरों में हम जिस बिजली को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मान लेते हैं वो गांव के लिए आज भी कितना बड़ा सपना है.
अंधकार में डूबे गांव
पटना से बाहर निकलते ही मानो बिहार अंधेरे में डूब जाता था. रात को तो ज़िंदगी पूरी तरह ठहर जाती थी. ऐसे में मैंने तय किया कि मैं इस इलाके के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में काम करूंगा.पहले गांवभर में लोग आठ बजते-बजते सो जाते थे. रात को सांप-बिच्छु का डर रहता था और चोरियां भी हो जाती थीं. बिजली आने के बाद ऐसा नहीं होता. अब हमें तेल खत्म होने पर पढ़ाई रोकने का गर भी नहीं है. हम जब चाहे पढ़ सकते हैं.
हरेश, छात्र एवं स्थानीय निवासी
हम लोगों को एक ऐसी तकनीक की तलाश थी जो सस्ती हो, किफ़ायती हो और गांव की व्यवस्था से मेल खाए.
हमने बिजली बनाने और उसके लिए 'बायोमास गैसिफ़िकेशन' की तकनीक का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया.
ये एक ऐसी तकनीक है जिसमें ईंधन के तौर पर बायोमास का इस्तेमाल किया जाता है और उससे पैदा हुई गैस को जलाकर बिजली बनाई जा सकती है.
ये इलाका धान की खेती के लिए मशहूर है और खेती के बाद कचरे के रुप में धान की भूसी इस इलाके में बहुतायत में मौजूद थी.
ऐसे में हमने ईंधन के तौर पर धान की भूसी का ही इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया. हमने अपनी इस परियोजना को ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ का नाम दिया.
लालटेन और ढिबरी की रोशनी में जी रहे गांववालों को एकाएक इस नए तरीके पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन आधी से भी कम कीमत पर मिल रही बिजली की सुविधा को वो ज़्यादा दिन तक नकार नहीं सके.
आमतौर पर गांव में हर घर दो से तीन घंटे लालटेन या ढिबरी जलाने के लिए कैरोसीन तेल पर 120 से 150 रुपए खर्च करता है.
ऐसे में ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ के ज़रिए हमने गांववालों को 100 रुपए महीना पर छह घंटे रोज़ के लिए दो सीएफएल जलाने की सुविधा दी
आखिरकार साल 2007 को ‘हस्क पावर सिस्टम्स’ की पहली कोशिश क़ामयाब हुई. हमने बिहार के ‘तमकुआ’ गांव में धान की भूसी से बिजली पैदा करने का पहला प्लांट लगया और गांव तक रौशनी पहुंचाई.
संयोग से ‘तमकुआ’ का मतलब होता है 'अंधकार भरा कोहरा' और इस तरह 15 अगस्त 2007 को भारत की आज़ादी की 60वीं वर्षगांठ पर हमने ‘तमकुआ’ को उसके अंधेरे से आज़ादी दिलाई.
कचरे से बिजली.
भारत में सिर्फ धान के भूसे से 27 गीगा-वॉट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है. उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में बड़े स्तर पर धान की खेती होती है और कचरे के रुप में धान की भूसी निकलती है. इन सभी राज्यों मे इसका इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है.
यही नहीं ईंधन के रुप में इस्तेमाल के बाद बचे भूसे की राख से महिलाएं अगरबत्तियां बनाती हैं और हर दिन का 60 रुपए तक कमा लेती हैं.
साथ ही 'हस्क पावर सिस्टम' के ज़रिए स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिल रहा है क्योंकि प्लांट का सारा काम स्थानीय लोग और गांववाले ही करते हैं.
बिजली ने कई मायने में तमकुआ के लोगों की ज़िंदगी बदल दी है.
छठी कक्षा में पढ़ने वाला हरेश कहता है, ''पहले गांवभर में लोग आठ बजते-बजते सो जाते थे. रात को सांप-बिच्छु का डर रहता था और चोरियां भी हो जाती थीं. बिजली आने के बाद ऐसा नहीं होता. अब हमें तेल खत्म होने पर पढ़ाई रोकने का डर भी नहीं है. हम जब चाहे पढ़ सकते हैं.''
हमारी इस कोशिश को व्यापार और समाजसेवा की एक नायाब कोशिश के रुप में पहचान देने के लिए साल 2011 में हमें 'एशडेन पुरस्कार' से भी नवाज़ा गया.
मेरा और मेरे साथियों का मानना है कि ये बदलाव सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहना चाहिए.
भारत में सिर्फ धान के भूसे से 27 गीगा-वॉट बिजली उत्पन्न करने की क्षमता है. उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों में बड़े स्तर पर धान की खेती होती है और कचरे के रुप में धान की भूसी निकलती है. इन सभी राज्यों मे इसका इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है.
हमारा लक्ष्य है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय...' यानि अंधकार से प्रकाश की ओर और हम अपनी इस कोशिश को अंधेरे में डूबे भारत के हर गांव तक पहुंचना चाहते हैं.''
बिजली की कटौती..जापान ने बनाई एसी के साथ जैकेट
साभार रेडियो दायचेवेली
गर्मी से मारे जापान ने बनाई एसी के साथ जैकेट
मार्च में फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र में खराबी आने के बाद जापान को बिजली की कमी से जूझना पड़ रहा है. गर्मी से निजात पाने के लिए जापान में एयरकंडीशंड जैकेट बिक रही हैं.
गर्मी के मौसम में बिजली की कटौती ने जापान के लोगों को परेशान किया हुआ है. लेकिन जापान के लोगों को नई नई तकनीक के लिए जाना जाता है. इस समस्या का भी हल वहां के लोगों ने निकाल लिया है. कुचोफुकू नाम की कंपनी ने एयरकंडीशंड जैकेट तैयार किए हैं. मजेदार बात यह है कि जापानी भाषा में कुचोफुकू का मतलब होता है हवादार कपड़े.
जापान में ये जैकेट हाथों हाथ बिक रहे हैं. मांग इतनी ज्यादा है कि कंपनी के लिए उसे पूरा करना भी मुश्किल पड़ रहा है. इस जैकेट में दो पंखे लगे हुए हैं. दोनों को अलग अलग स्पीड पर चलाया जा सकता है. ये पंखे बैटरी से चलते हैं. हवा इतनी तेज कि जैकेट के कॉलर और कफ तक आराम से पहुंच पाती है. इस जैकेट से आप पसीना तो सुखा ही सकते हैं, साथ ही तरोताजा भी महसूस करते हैं. एक जैकेट का दाम 11 हजार येन यानी करीब छह हजार रुपये है.
मजदूरी करने वाले 33 वर्षीय रेयो इगारशी ने भी यह जैकेट खरीदी है. वह बताते हैं, "मैं बहुत गर्म जगह पर काम करता हूं और मुझे पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने पड़ते हैं. इसलिए मैं यहां यह जैकेट खरीदने आया हूं ताकि गर्मी से बच सकूं... आम तौर पर गर्मी लगने पर लोग कम कपड़े पहनते हैं, लेकिन कुचोफोकू तो ऐसा है कि ज्यादा गर्मी में और भी ज्यादा कपड़े."
एयरकंडीशंड तकिए और कालीन
कुचोफुकू जैकेट्स को जापान की करीब एक हजार कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. कंपनियां की इमारतों में लगे एयरकंडीशन तो अब काम नहीं कर रहे, लेकिन लोगों की ये एयरकंडीशंड जैकेट्स उन्हें गर्मी से दूर रखने का काम बखूबी करती हैं. जैकेट्स के अलावा यह कंपनी एयरकंडीशंड तकिए और कालीन भी बनाती हैं. इनमें पंखे तो नहीं लगे होते, लेकिन एक खास तरह की तकनीक हवा को फैलाने का काम करती है. यह कंपनी 2004 से इस तरह की चीजें बना रही है. अब तक इसे फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन साइटों से ऑर्डर मिला करते थे, लेकिन अब दफ्तर जाने वाले लोग और घर पर रहने वाली महिलाओं में भी इनकी मांग बढ़ गई है.
दो दशक पहले
कुचोफुकू कंपनी के अध्यक्ष हिरोशी इचिगाया को यह अनोखा आइडिया आज से दो दशक पहले 1990 में आया. तब वे सोनी कंपनी में एयरकंडीशन बनाने का काम किया करते थे. इचिगाया बताते हैं, "मैंने सोचा कि हमें पूरे कमरे को ठंडा करने की क्या जरूरत है, बस उसमें बैठे लोगों को ही अगर गर्मी से निजाद मिल जाए तो उतना ही काफी है." हाल ही में इन्हें सरकार की ओर से पांच लाख जैकेट्स का ऑर्डर आया, जो उन्हें ठुकराना पड़ा क्योंकि उनके पास इतनी सारी जैकेट्स बनाने की क्षमता नहीं है. इस साल वे 40 हजार जैकेट्स और अन्य चीजें बेच चुके हैं. इचिगाया उम्मीद करते हैं कि साल के अंत तक वो इस संख्या को 80 हजार तक पहुंचा पाएंगे.
फुकुशीमा संयंत्र के खराब होने के बाद से सरकार ने आदेश दिए हैं कि टोक्यो और तोहोकू में कंपनियां बिजली की कटौती से बचने के लिए खपत में 15 प्रतिशत की कमी लाएं. इसलिए वहां गर्मी के मौसम में भी एसी बंद पड़े हैं.
रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया
गर्मी से मारे जापान ने बनाई एसी के साथ जैकेट
मार्च में फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र में खराबी आने के बाद जापान को बिजली की कमी से जूझना पड़ रहा है. गर्मी से निजात पाने के लिए जापान में एयरकंडीशंड जैकेट बिक रही हैं.
गर्मी के मौसम में बिजली की कटौती ने जापान के लोगों को परेशान किया हुआ है. लेकिन जापान के लोगों को नई नई तकनीक के लिए जाना जाता है. इस समस्या का भी हल वहां के लोगों ने निकाल लिया है. कुचोफुकू नाम की कंपनी ने एयरकंडीशंड जैकेट तैयार किए हैं. मजेदार बात यह है कि जापानी भाषा में कुचोफुकू का मतलब होता है हवादार कपड़े.
जापान में ये जैकेट हाथों हाथ बिक रहे हैं. मांग इतनी ज्यादा है कि कंपनी के लिए उसे पूरा करना भी मुश्किल पड़ रहा है. इस जैकेट में दो पंखे लगे हुए हैं. दोनों को अलग अलग स्पीड पर चलाया जा सकता है. ये पंखे बैटरी से चलते हैं. हवा इतनी तेज कि जैकेट के कॉलर और कफ तक आराम से पहुंच पाती है. इस जैकेट से आप पसीना तो सुखा ही सकते हैं, साथ ही तरोताजा भी महसूस करते हैं. एक जैकेट का दाम 11 हजार येन यानी करीब छह हजार रुपये है.
मजदूरी करने वाले 33 वर्षीय रेयो इगारशी ने भी यह जैकेट खरीदी है. वह बताते हैं, "मैं बहुत गर्म जगह पर काम करता हूं और मुझे पूरी आस्तीन के कपड़े पहनने पड़ते हैं. इसलिए मैं यहां यह जैकेट खरीदने आया हूं ताकि गर्मी से बच सकूं... आम तौर पर गर्मी लगने पर लोग कम कपड़े पहनते हैं, लेकिन कुचोफोकू तो ऐसा है कि ज्यादा गर्मी में और भी ज्यादा कपड़े."
एयरकंडीशंड तकिए और कालीन
कुचोफुकू जैकेट्स को जापान की करीब एक हजार कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं. कंपनियां की इमारतों में लगे एयरकंडीशन तो अब काम नहीं कर रहे, लेकिन लोगों की ये एयरकंडीशंड जैकेट्स उन्हें गर्मी से दूर रखने का काम बखूबी करती हैं. जैकेट्स के अलावा यह कंपनी एयरकंडीशंड तकिए और कालीन भी बनाती हैं. इनमें पंखे तो नहीं लगे होते, लेकिन एक खास तरह की तकनीक हवा को फैलाने का काम करती है. यह कंपनी 2004 से इस तरह की चीजें बना रही है. अब तक इसे फैक्ट्रियों और कंस्ट्रक्शन साइटों से ऑर्डर मिला करते थे, लेकिन अब दफ्तर जाने वाले लोग और घर पर रहने वाली महिलाओं में भी इनकी मांग बढ़ गई है.
दो दशक पहले
कुचोफुकू कंपनी के अध्यक्ष हिरोशी इचिगाया को यह अनोखा आइडिया आज से दो दशक पहले 1990 में आया. तब वे सोनी कंपनी में एयरकंडीशन बनाने का काम किया करते थे. इचिगाया बताते हैं, "मैंने सोचा कि हमें पूरे कमरे को ठंडा करने की क्या जरूरत है, बस उसमें बैठे लोगों को ही अगर गर्मी से निजाद मिल जाए तो उतना ही काफी है." हाल ही में इन्हें सरकार की ओर से पांच लाख जैकेट्स का ऑर्डर आया, जो उन्हें ठुकराना पड़ा क्योंकि उनके पास इतनी सारी जैकेट्स बनाने की क्षमता नहीं है. इस साल वे 40 हजार जैकेट्स और अन्य चीजें बेच चुके हैं. इचिगाया उम्मीद करते हैं कि साल के अंत तक वो इस संख्या को 80 हजार तक पहुंचा पाएंगे.
फुकुशीमा संयंत्र के खराब होने के बाद से सरकार ने आदेश दिए हैं कि टोक्यो और तोहोकू में कंपनियां बिजली की कटौती से बचने के लिए खपत में 15 प्रतिशत की कमी लाएं. इसलिए वहां गर्मी के मौसम में भी एसी बंद पड़े हैं.
रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया
11 जुलाई, 2011
सुधार के लिए तकनीक और निवेश दोनों पर जोर
पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के सीएमडी श्री मनीष रस्तोगी का कहना
अधिकारी भी भुगतेंगे चोरी का खामियाजा
सुधार के लिए तकनीक और निवेश दोनों पर जोर
जबलपुर। बिजली चोरी का खामियाजा अब अकेले आम उपभोक्ता ही नहीं बल्कि अधिकारी भी भुगतेंगे। ये दो टूक बात पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के नवपदस्थ सीएमडी मनीष रस्तोगी ने संवाददाताओं से पहली दफा मुखातिब होने के दौरान कही।
श्री रस्तोगी ने कहा कि अभी वितरण हानि के आधार पर फीडरवार बिजली कटौती हो रही है। इसके कारण ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं को भी बिजली कटौती की सजा भुगतनी पड़ती है। अब हम फीडरवार हानि के साथ उपभोक्ता के घर तक नई तकनीक से ये जानने का प्रयास करेंगे कि कहां कितना लॉस है? इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन इस दौरान हम अपने अधिकारियों को भी इस बात के लिए जवाबदेह बना रहे हैं कि वो बिजली चोरी को पूरी तरह से रोंके। यदि कहीं लॉस ज्यादा है तो उसके लिए संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाएगा और उन पर वित्तीय जुर्माना निर्धारित किया जाएगा। श्री रस्तोगी के अनुसार, पहले भी वेतन रोकने जैसी पहल हुई है लेकिन अब हम इसके लिए विधिवत एक प्लान बनाने जा रहे हैं। उन्होंने माना कि बिजली चोरी बिना सख्ती के नहीं रुक सकती। बड़े बकायादारों के खिलाफ भी वसूली अभियान तेजी से और सख्ती से चलाया जाएगा। इसमें ये नहीं देखा जाएगा कि कौन रसूखदार है और कौन नहीं? एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि बिजली वितरण क्षेत्र के उन्नयन के लिए व्यापक स्तर पर आर्थिक निवेश और नई तकनीक को शामिल करने की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। जिसके परिणाम अच्छे आएंगे। उन्होंने फीडर विभक्तिकरण प्रोजेक्ट की जानकारी देते हुए कहा कि इसके लिए टेंडर जारी हो चुके हैं और फेज टू के इस काम को हम तेजी से पूरा कराएंगे। इस प्रोजेक्ट से प्रदेश सरकार किसानों और ग्रामीणों को भरपूर बिजली देना चाहती है। हम उसे निराश होने का मौका नहीं देंगे। कर्मियों की कमी संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि हम उनकी भूमिका को चिन्हित कर उनकी जवाबदारियां नए सिरे से तय कर रहे हैं। इससे मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो सकेगा। इसके साथ ही नई भर्तियों के लिए जो निर्णय हो चुके हैं उनको पूरी प्राथमिकता से किया जाएगा। जहां तक पूर्व क्षेत्र से बड़ी संख्या में अधिकारियों कर्मचारियों का दूसरी कंपनियों में जाने आवेदन करने का सवाल है, इस प्रक्रिया को पूरा हो जाने के बाद ही हम देखेंगे कि कंपनी के लिए क्या कदम उठाए जाना जरूरी है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि केवल नाभिकीय बिजली उत्पादन बढ़ाने के बजाए हमें अपरंपरागत बिजली उत्पादन की दिशा में भी तेजी से सोचना होगा। खासकर सोलर इनर्जी के क्षेत्र में। पत्रवार्ता के दौरान कंपनी के अतिरिक्त सचिव एससी गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी राकेश पाठक, विवेक रंजन श्रीवास्तव व अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
अधिकारी भी भुगतेंगे चोरी का खामियाजा
सुधार के लिए तकनीक और निवेश दोनों पर जोर
जबलपुर। बिजली चोरी का खामियाजा अब अकेले आम उपभोक्ता ही नहीं बल्कि अधिकारी भी भुगतेंगे। ये दो टूक बात पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के नवपदस्थ सीएमडी मनीष रस्तोगी ने संवाददाताओं से पहली दफा मुखातिब होने के दौरान कही।
श्री रस्तोगी ने कहा कि अभी वितरण हानि के आधार पर फीडरवार बिजली कटौती हो रही है। इसके कारण ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं को भी बिजली कटौती की सजा भुगतनी पड़ती है। अब हम फीडरवार हानि के साथ उपभोक्ता के घर तक नई तकनीक से ये जानने का प्रयास करेंगे कि कहां कितना लॉस है? इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन इस दौरान हम अपने अधिकारियों को भी इस बात के लिए जवाबदेह बना रहे हैं कि वो बिजली चोरी को पूरी तरह से रोंके। यदि कहीं लॉस ज्यादा है तो उसके लिए संबंधित अधिकारियों को जिम्मेदार माना जाएगा और उन पर वित्तीय जुर्माना निर्धारित किया जाएगा। श्री रस्तोगी के अनुसार, पहले भी वेतन रोकने जैसी पहल हुई है लेकिन अब हम इसके लिए विधिवत एक प्लान बनाने जा रहे हैं। उन्होंने माना कि बिजली चोरी बिना सख्ती के नहीं रुक सकती। बड़े बकायादारों के खिलाफ भी वसूली अभियान तेजी से और सख्ती से चलाया जाएगा। इसमें ये नहीं देखा जाएगा कि कौन रसूखदार है और कौन नहीं? एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि बिजली वितरण क्षेत्र के उन्नयन के लिए व्यापक स्तर पर आर्थिक निवेश और नई तकनीक को शामिल करने की जरूरत है। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं। जिसके परिणाम अच्छे आएंगे। उन्होंने फीडर विभक्तिकरण प्रोजेक्ट की जानकारी देते हुए कहा कि इसके लिए टेंडर जारी हो चुके हैं और फेज टू के इस काम को हम तेजी से पूरा कराएंगे। इस प्रोजेक्ट से प्रदेश सरकार किसानों और ग्रामीणों को भरपूर बिजली देना चाहती है। हम उसे निराश होने का मौका नहीं देंगे। कर्मियों की कमी संबंधी सवाल पर उन्होंने कहा कि हम उनकी भूमिका को चिन्हित कर उनकी जवाबदारियां नए सिरे से तय कर रहे हैं। इससे मानव संसाधन का बेहतर उपयोग हो सकेगा। इसके साथ ही नई भर्तियों के लिए जो निर्णय हो चुके हैं उनको पूरी प्राथमिकता से किया जाएगा। जहां तक पूर्व क्षेत्र से बड़ी संख्या में अधिकारियों कर्मचारियों का दूसरी कंपनियों में जाने आवेदन करने का सवाल है, इस प्रक्रिया को पूरा हो जाने के बाद ही हम देखेंगे कि कंपनी के लिए क्या कदम उठाए जाना जरूरी है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि केवल नाभिकीय बिजली उत्पादन बढ़ाने के बजाए हमें अपरंपरागत बिजली उत्पादन की दिशा में भी तेजी से सोचना होगा। खासकर सोलर इनर्जी के क्षेत्र में। पत्रवार्ता के दौरान कंपनी के अतिरिक्त सचिव एससी गुप्ता, जनसंपर्क अधिकारी राकेश पाठक, विवेक रंजन श्रीवास्तव व अन्य अधिकारी उपस्थित थे।
06 जुलाई, 2011
पूर्वी क्षेत्र वितरण कंपनी , जबलपुर के सी एम डी का पदभार संभाला श्री मनीष रस्तोगी ने...
श्री मनीष रस्तोगी ने पूर्वी क्षेत्र वितरण कंपनी , जबलपुर के सी एम डी का पदभार संभाल लिया है . स्वागत . उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ आई ए एस अधिकारी श्री रस्तोगी , कलेक्टर भोपाल , सतना , नरसिंगपुर जैसे महत्वपूर्ण तथा चुनौती पूर्ण जिलो में जनअपेक्षाओ पर खरे उतरते हुये अपनी सेवाये दे चुके हैं . वे इंजीनियरिंग में बी टेक स्नातक हैं , इस दृष्टि से ,एक आधारभूत रूप से इंजीनियर ,विद्युत आपूर्ति जैसे अति संवेदनशील , तेजी से बदलती व्यवस्थाओ के बीच व मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग विभाग के प्रशासक की भूमिका में उनका नेतृत्व सृजनात्मक परिणाम दे सकेगा यही अपेक्षायें हैं . स्वागत है सर ! हम आपके अनुगामी हैं.
19 जून, 2011
.लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र
केवल पक्ष , विपक्ष का होना ...लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी
विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर (मप्र) मो. 9425806252
कोई भी सभ्य समाज नियमों से ही चल सकता है। जनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सुनिश्चित करने के लिए शासन की आवश्यकता होती है। राजतंत्र, तानाशाही, धार्मिक सत्ता या लोकतंत्र, नामांकित जनप्रतिनिधियों जैसी विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र में आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होती है एवं उसे भी जन नेतृत्व करने का अधिकार होता है। भारत में हमने लिखित संविधान अपनाया है। शासन तंत्र को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के उपखंडो में विभाजित कर एक सुदृढ लोकतंत्र की परिकल्पना की है। विधायिका लोकहितकारी नियमों को कानून का रूप देती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है एवं कानून उल्लंघन करने पर न्यायपालिका द्वारा दंड का प्रावधान है। विधायिका के जनप्रतिनिधियों का चुनाव आम नागरिको के सीधे मतदान के द्वारा किया जाता है किंतु हमारे देश में आजादी के बाद के अनुभव के आधार पर , मेरे मत में इस चुनाव के लिए पार्टीवाद तथा चुनावी जीत के बाद संसद एवं विधानसभाओं में पक्ष विपक्ष की राजनीति ही लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी के रूप में सामने आई है।
सत्तापक्ष कितना भी अच्छा बजट बनाये या कोई अच्छे से अच्छा जनहितकारी कानून बनाये विपक्ष उसका विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिए तर्क कुतर्क करने में जरा भी पीछे नहीं रहता। ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि वह विपक्ष में है। हमने देखा है कि वही विपक्षी दल जो विरोधी पार्टी के रूप में जिन बातो का सार्वजनिक विरोध करते नहीं थकता था , जब सत्ता में आया तो उन्होनें भी वही सब किया और इस बार पूर्व के सत्ताधारी दलो ने उन्हीं तथ्यों का पुरजोर विरोध किया जिनके कभी वे खुले समर्थन में थे। इसके लिये लच्छेदार शब्दो का मायाजाल फैलाया जाता है। ऐसा बार-बार लगातार हो रहा है। अर्थात हमारे लोकतंत्र में यह धारणा बन चुकी है कि विपक्षी दल को सत्ता पक्ष का विरोध करना ही चाहिये . शायद इसके लिये स्कूलो से ही , वादविवाद प्रतियोगिता की जो अवधारणा बच्चो के मन में अधिरोपित की जाती है वही जिम्मेदार हो . वास्तविकता यह होती है कि कोई भी सत्तारूढ दल सब कुछ सही या सब कुछ गलत नहीं करता । सच्चा लोकतंत्र तो यह होता कि मुद्दे के आधार पर पार्टी निरपेक्ष वोटिंग होती, विषय की गुणवत्ता के आधार पर बहुमत से निर्णय लिया जाता , पर ऐसा हो नही रहा है ।
अन्ना हजारे या बाबा रामदेव किसी पार्टी या किसी लोकतांत्रिक संस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधी नहीं है किंतु इन जैसे तटस्थ मनिषियों को जनहित एवं राष्ट्रहित के मुद्दो पर अनशन तथा भूख हडताल जैसे आंदोलन करने पड रहे है एवं समूचा शासनतंत्र तथा गुप्तचर संस्थायें इन आंदोलनों को असफल बनाने में सक्रिय है। यह लोकतंत्र की बहुत बडी विफलता है। अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को तो देश व्यापी जनसमर्थन भी मिल रहा है । मेरा मानना यह है कि आदर्श लोकतंत्र तो यह होता कि मेरे जैसा कोई साधारण एक व्यक्ति भी यदि देशहित का एक सुविचार रखता तो उसे सत्ता एवं विपक्ष का खुला समर्थन मिल सकता।
इन अनुभवो से यह स्पष्ट होता है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावना है। दलगत राजनैतिक धु्व्रीकरण एवं पक्ष विपक्ष से उपर उठकर मुद्दों पर आम सहमति या बहुमत पर आधारित निर्णय ही विधायिका के निर्णय हो ऐसी सत्ताप्रणाली के विकास की जरूरत है। इसके लिए जनशिक्षा को बढावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडने की आवश्यकता दिखती है। जब ऐसी व्यवस्था लागू होगी तब किसी मुद्दे पर कोई 51 प्रतिशत या अधिक जनप्रतिनिधि एक साथ होगें तथा किसी अन्य मुद्दे पर कोई अन्य दूसरे 51 प्रतिशत से ज्यादा जनप्रतिनिधि , जिनमें से कुछ पिछले मुद्दे पर भले ही विरोधी रहे हो साथ होगें तथा दोनों ही मुद्दे बहुमत के कारण प्रभावी रूप से कानून बनेगें।
क्या हम निहित स्वार्थो से उपर उठकर ऐसी आदर्श व्यवस्था की दिशा में बढ सकते है एवं संविधान में इस तरह के संशोधन कर सकते है। यह खुली बहस का एवं व्यापक जनचर्चा का विषय है जिस पर अखबारो , स्कूल, कालेज, बार एसोसियेशन, व्यापारिक संघ, महिला मोर्चे, मजदूर संगठन आदि विभिन्न विभिन्न मंचो पर खुलकर बाते होने की जरूरत हैं।
(लेखक को विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार मिल चुके है)
विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र
ओ.बी. 11, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर (मप्र) मो. 9425806252
कोई भी सभ्य समाज नियमों से ही चल सकता है। जनहितकारी नियमों को बनाने और उनके परिपालन को सुनिश्चित करने के लिए शासन की आवश्यकता होती है। राजतंत्र, तानाशाही, धार्मिक सत्ता या लोकतंत्र, नामांकित जनप्रतिनिधियों जैसी विभिन्न शासन प्रणालियों में लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि लोकतंत्र में आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होती है एवं उसे भी जन नेतृत्व करने का अधिकार होता है। भारत में हमने लिखित संविधान अपनाया है। शासन तंत्र को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के उपखंडो में विभाजित कर एक सुदृढ लोकतंत्र की परिकल्पना की है। विधायिका लोकहितकारी नियमों को कानून का रूप देती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है एवं कानून उल्लंघन करने पर न्यायपालिका द्वारा दंड का प्रावधान है। विधायिका के जनप्रतिनिधियों का चुनाव आम नागरिको के सीधे मतदान के द्वारा किया जाता है किंतु हमारे देश में आजादी के बाद के अनुभव के आधार पर , मेरे मत में इस चुनाव के लिए पार्टीवाद तथा चुनावी जीत के बाद संसद एवं विधानसभाओं में पक्ष विपक्ष की राजनीति ही लोकतंत्र की सबसे बडी कमजोरी के रूप में सामने आई है।
सत्तापक्ष कितना भी अच्छा बजट बनाये या कोई अच्छे से अच्छा जनहितकारी कानून बनाये विपक्ष उसका विरोध करता ही है। उसे जनविरोधी निरूपित करने के लिए तर्क कुतर्क करने में जरा भी पीछे नहीं रहता। ऐसा केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि वह विपक्ष में है। हमने देखा है कि वही विपक्षी दल जो विरोधी पार्टी के रूप में जिन बातो का सार्वजनिक विरोध करते नहीं थकता था , जब सत्ता में आया तो उन्होनें भी वही सब किया और इस बार पूर्व के सत्ताधारी दलो ने उन्हीं तथ्यों का पुरजोर विरोध किया जिनके कभी वे खुले समर्थन में थे। इसके लिये लच्छेदार शब्दो का मायाजाल फैलाया जाता है। ऐसा बार-बार लगातार हो रहा है। अर्थात हमारे लोकतंत्र में यह धारणा बन चुकी है कि विपक्षी दल को सत्ता पक्ष का विरोध करना ही चाहिये . शायद इसके लिये स्कूलो से ही , वादविवाद प्रतियोगिता की जो अवधारणा बच्चो के मन में अधिरोपित की जाती है वही जिम्मेदार हो . वास्तविकता यह होती है कि कोई भी सत्तारूढ दल सब कुछ सही या सब कुछ गलत नहीं करता । सच्चा लोकतंत्र तो यह होता कि मुद्दे के आधार पर पार्टी निरपेक्ष वोटिंग होती, विषय की गुणवत्ता के आधार पर बहुमत से निर्णय लिया जाता , पर ऐसा हो नही रहा है ।
अन्ना हजारे या बाबा रामदेव किसी पार्टी या किसी लोकतांत्रिक संस्था के निर्वाचित जनप्रतिनिधी नहीं है किंतु इन जैसे तटस्थ मनिषियों को जनहित एवं राष्ट्रहित के मुद्दो पर अनशन तथा भूख हडताल जैसे आंदोलन करने पड रहे है एवं समूचा शासनतंत्र तथा गुप्तचर संस्थायें इन आंदोलनों को असफल बनाने में सक्रिय है। यह लोकतंत्र की बहुत बडी विफलता है। अन्ना हजारे या बाबा रामदेव को तो देश व्यापी जनसमर्थन भी मिल रहा है । मेरा मानना यह है कि आदर्श लोकतंत्र तो यह होता कि मेरे जैसा कोई साधारण एक व्यक्ति भी यदि देशहित का एक सुविचार रखता तो उसे सत्ता एवं विपक्ष का खुला समर्थन मिल सकता।
इन अनुभवो से यह स्पष्ट होता है कि हमारी संवैधानिक व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावना है। दलगत राजनैतिक धु्व्रीकरण एवं पक्ष विपक्ष से उपर उठकर मुद्दों पर आम सहमति या बहुमत पर आधारित निर्णय ही विधायिका के निर्णय हो ऐसी सत्ताप्रणाली के विकास की जरूरत है। इसके लिए जनशिक्षा को बढावा देना तथा आम आदमी की राजनैतिक उदासीनता को तोडने की आवश्यकता दिखती है। जब ऐसी व्यवस्था लागू होगी तब किसी मुद्दे पर कोई 51 प्रतिशत या अधिक जनप्रतिनिधि एक साथ होगें तथा किसी अन्य मुद्दे पर कोई अन्य दूसरे 51 प्रतिशत से ज्यादा जनप्रतिनिधि , जिनमें से कुछ पिछले मुद्दे पर भले ही विरोधी रहे हो साथ होगें तथा दोनों ही मुद्दे बहुमत के कारण प्रभावी रूप से कानून बनेगें।
क्या हम निहित स्वार्थो से उपर उठकर ऐसी आदर्श व्यवस्था की दिशा में बढ सकते है एवं संविधान में इस तरह के संशोधन कर सकते है। यह खुली बहस का एवं व्यापक जनचर्चा का विषय है जिस पर अखबारो , स्कूल, कालेज, बार एसोसियेशन, व्यापारिक संघ, महिला मोर्चे, मजदूर संगठन आदि विभिन्न विभिन्न मंचो पर खुलकर बाते होने की जरूरत हैं।
(लेखक को विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन के लिए राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार मिल चुके है)
18 जून, 2011
बिजली तंत्र पर...जबलपुर .में उर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ल
बिजली तंत्र पर २००० करोड़ का अतिरिक्त भार
साभार नई दुनिया , जबलपुर .
७०० करो़ड़ रुपए विद्युत वितरण कंपनियों के पास अतिरिक्त रूप से आएंगे। इसे लेकर लोग महंगाई का हो-हल्ला मचा रहे हैं लेकिन केन्द्र जो दो हजार करो़ड़ रुपए का बोझ डाल रही है उसके लिए कोई विरोध नहीं कर रहा। श्री शुक्ल ने माना कि केन्द्र के रवैये से बिजली तंत्र का संचालन मुश्किल होगा लेकिन उसे बेहतर ढंग से काम करने के लिए प्रदेश सरकार मदद करेगी। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों के पास ज्यादा पैसा आए इसके लिए उन्हें हर हाल में वितरण हानि १५ प्रतिशत से कम पर लाने हिदायत दी गई है। इसके साथ बकाया राशि को भी तेजी से वसूलने कहा गया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही हम प्रदेश का बिजली उत्पादन ५००० मेगावाट ब़ढ़ाने जा रहे हैं। फ्रेंचाइजी के मुद्दे पर उनका कहना था कि काफी सोच विचार के बाद जनकल्याणकारी मॉडल पेश किया गया है। इसमें जनता के हित सभी प्रकार से सुरक्षित रहेंगे।
आराम की नौकरी नहीं- श्री शुक्ल ने कहा कि बिजली अधिकारियों, कर्मचारियों को भी बिजली कंपनियों की वित्तीय हालत देखते हुए पूरे समर्पण से काम करना होगा। वे अपनी नौकरी को आराम की नौकरी न समझें। यदि ४० से ६० प्रतिशत वितरण हानि रही तो न कंपनियों का भविष्य सुरक्षित रह पाएगा और न कर्मियों का। अत्यधिक घाटे में किसी भी संस्थान को बहुत ज्यादा दिन नहीं चलाया जा सकता।
फीडर सेपरेशन सुस्त- एक सवाल के जवाब में श्री शुक्ल ने बेबाकी से कहा कि फीडर विभक्तिरण परियोजना का काम बेहद सुस्त गति से चल रहा है। इसके लिए हमने अधिकारियों को क़ड़े शब्दों में चेता दिया है। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए फंड उपलब्ध करा दिया गया है। बिडिंग हो चुकी है और काम करने वाली एजेंसियां भी आ चुकी हैं। ऐसे में अब हम और विलंब नहीं चाहते।
ट्रेडको रहेगी होल्डिंग कंपनी- श्री शुक्ल ने माना कि विद्युत मंडल के समाप्त होने के बाद पावर ट्रेडिंग कंपनी ट्रेडको को होल्डिंग कंपनी बनाने के लिए सभी एकमत हैं। इस पर निर्णय जल्द लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के कंपनियों में हस्तांतरण और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में लगभग तीन माह का समय लगेगा।
पेंशन फंड पर निर्णय जल्द- ऊर्जामंत्री ने माना कि प्रदेश सरकार बिजली कर्मचारियों का पेंशन फंड बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। नियामक आयोग से भी हमारी बातचीत हो चुकी है। अब हम इस निर्णय पर विचार कर रहे हैं कि प्रारंभिक तौर पर इसमें कितनी राशि डाली जाए और कैसे इसमें प्रतिवर्ष राशि आएगी? उन्होंने कहा कि मंडल समाप्त होने के बाद कर्मचारियों की सेवाशर्तें प्रभावित नहीं होंगी। कंपनियों में कर्मचारियों की जल्द पदोन्नति के रास्ते खुलेंगे।
साभार नई दुनिया , जबलपुर .
७०० करो़ड़ रुपए विद्युत वितरण कंपनियों के पास अतिरिक्त रूप से आएंगे। इसे लेकर लोग महंगाई का हो-हल्ला मचा रहे हैं लेकिन केन्द्र जो दो हजार करो़ड़ रुपए का बोझ डाल रही है उसके लिए कोई विरोध नहीं कर रहा। श्री शुक्ल ने माना कि केन्द्र के रवैये से बिजली तंत्र का संचालन मुश्किल होगा लेकिन उसे बेहतर ढंग से काम करने के लिए प्रदेश सरकार मदद करेगी। उन्होंने कहा कि बिजली कंपनियों के पास ज्यादा पैसा आए इसके लिए उन्हें हर हाल में वितरण हानि १५ प्रतिशत से कम पर लाने हिदायत दी गई है। इसके साथ बकाया राशि को भी तेजी से वसूलने कहा गया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही हम प्रदेश का बिजली उत्पादन ५००० मेगावाट ब़ढ़ाने जा रहे हैं। फ्रेंचाइजी के मुद्दे पर उनका कहना था कि काफी सोच विचार के बाद जनकल्याणकारी मॉडल पेश किया गया है। इसमें जनता के हित सभी प्रकार से सुरक्षित रहेंगे।
आराम की नौकरी नहीं- श्री शुक्ल ने कहा कि बिजली अधिकारियों, कर्मचारियों को भी बिजली कंपनियों की वित्तीय हालत देखते हुए पूरे समर्पण से काम करना होगा। वे अपनी नौकरी को आराम की नौकरी न समझें। यदि ४० से ६० प्रतिशत वितरण हानि रही तो न कंपनियों का भविष्य सुरक्षित रह पाएगा और न कर्मियों का। अत्यधिक घाटे में किसी भी संस्थान को बहुत ज्यादा दिन नहीं चलाया जा सकता।
फीडर सेपरेशन सुस्त- एक सवाल के जवाब में श्री शुक्ल ने बेबाकी से कहा कि फीडर विभक्तिरण परियोजना का काम बेहद सुस्त गति से चल रहा है। इसके लिए हमने अधिकारियों को क़ड़े शब्दों में चेता दिया है। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए फंड उपलब्ध करा दिया गया है। बिडिंग हो चुकी है और काम करने वाली एजेंसियां भी आ चुकी हैं। ऐसे में अब हम और विलंब नहीं चाहते।
ट्रेडको रहेगी होल्डिंग कंपनी- श्री शुक्ल ने माना कि विद्युत मंडल के समाप्त होने के बाद पावर ट्रेडिंग कंपनी ट्रेडको को होल्डिंग कंपनी बनाने के लिए सभी एकमत हैं। इस पर निर्णय जल्द लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों के कंपनियों में हस्तांतरण और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में लगभग तीन माह का समय लगेगा।
पेंशन फंड पर निर्णय जल्द- ऊर्जामंत्री ने माना कि प्रदेश सरकार बिजली कर्मचारियों का पेंशन फंड बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। नियामक आयोग से भी हमारी बातचीत हो चुकी है। अब हम इस निर्णय पर विचार कर रहे हैं कि प्रारंभिक तौर पर इसमें कितनी राशि डाली जाए और कैसे इसमें प्रतिवर्ष राशि आएगी? उन्होंने कहा कि मंडल समाप्त होने के बाद कर्मचारियों की सेवाशर्तें प्रभावित नहीं होंगी। कंपनियों में कर्मचारियों की जल्द पदोन्नति के रास्ते खुलेंगे।
10 जून, 2011
विद्युत वितरण कम्पनी की जन कल्याणकारी योजनायें
म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी की जन कल्याणकारी योजनायें
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी, म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी
ओ बी ११ , विद्युत मन्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८
मो ०९४२५८०६२५२
email vivek1959@yahoo.co.in
बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .
आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .क्योकि संचार व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चरल सुविधायें भी अपरोक्ष रूप से बिजली पर ही आधारित हैं .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम भारत की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है, रिमोट मीटरिंग के लिये कंपनी को ई गवर्नेंस का राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिल चुका है , अन्य अनेको लोकहितकारी योजनायें कंपनी के द्वारा चलाई जा रही हैं ,ऐसी ही कुछ योजनाओ का संक्षिप्त विवरण आम उपभोक्ताओ की जानकारी हेतु प्रस्तुत है .
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाः-
केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना माह अप्रैल 2005 से मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी लिमिटेड क्षेत्रान्तर्गत लागू की गई है । पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी अपने कार्य क्षेत्रान्तर्गत समस्त 20 जिलों हेतु रु. 969.394 करोड की उक्त योजना तेजी से क्रियान्वित कर रही है .
इस योजना में केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण कार्य हेतु, स्वीकृत लागत राशि का 90 प्रतिशत अनुदान एवं 10 प्रतिशत राशि ऋण के रुप में राज्य शासन को उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है । दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जबलपुर, सिवनी, दमोह, छिंदवाड़ा जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य योग्य 43 अविद्युतीकृत ग्रामों एवं 5945 विद्युतीकृत ग्रामों के 300 से अधिक आबादी वाले अविद्युतीकृत क्षेत्र एवं मजरे/टोलों के विद्युतीकरण एवं 11 वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जिला कटनी, नरसिंहपुर, मण्डला, डिण्डौरी, बालाघाट, रीवा, सतना, सीधी (सिंगरौली सहित), शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़ एवं पन्ना के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य योग्य 436 अविद्युतीकृत ग्रामों, 15971 विद्युतीकृत ग्रामों के 100 से अधिक आबादी वाले अविद्युतीकृत क्षेत्र/मजरे/टोलों के विद्युतीकरण के कार्य किये जाने एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 985068 सभी श्रेणी के हितग्राहियों को निःशुल्क एकबत्ती कनेक्शन प्रदान किये जाने का प्रावधान है .इस तरह सब के लिये सतत बिजली आपूर्ती के अंतिम लक्ष्य को न्यूनतम संचारण हानि के साथ प्राप्त करने हेतु इस योजना को तकनीकी विशेषज्ञता के साथ लागू करने का महत्वपूर्ण कार्य कंपनी द्वारा किया जा रहा है .
गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले उपभोक्ता संबंधित वितरण केन्द्र कार्याल्य में सम्पर्क कर योजना के अंतर्गत निशुल्क कनेक्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
स्थाई पम्प कनेक्शन योजना:-
कृषि को लाभ का धंधा बनाने के राज्य शासन के संकल्प के दृष्टिगत तथा वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित रखने हेतु कृषि के लिए स्थायी विद्युत पम्प कनेक्शन दिया जाना महत्वपूर्ण है . प्रत्येक फसल में सिंचाई के समय अस्थाई विद्युत कनेक्शन लेने की कठिनाई से किसानो को हमेशा के लिये मुक्त करने के उद्देश्य से , शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों हेतु मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिनांक 1.4.11 से ‘‘कृषकों को स्थायी विद्युत पम्प कनेक्शन प्रदान करने हेतु अनुदान योजना‘‘ नाम से यह योजना लागू की गई है । इस योजना के द्वारा कृषकों को स्थायी पम्प कनेक्शन लेने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है तथा इस कार्य में लगने वाली कुल राशि का एक बड़ा अंशदान राज्य शासन द्वारा अनुदान के रुप में दिया जाना प्रस्तावित है।
यह योजना सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 2011 से वर्ष 2011-2012 के लिए लागू है । राज्य शासन आवश्यकतानुसार योजना की अवधि में वृद्धि कर सकेगा । योजनांतर्गत लघु एवं सीमान्त किसानों को रु. 5000/- प्रति हार्स पावर तथा अन्य किसानों को रु. 8000/- प्रति हार्स पावर की दर से भुगतान करना होगा । प्रत्येक उपभोक्ता के लिए अधिकतम लागत राशि 1.50 लाख की शेष लागत राशि शासन द्वारा अनुदान स्वरूप प्रदान की जाएगी । योजनांतर्गत किसान संबंधित वितरण केन्द्र में आवेदन कर तथा उपरोक्तानुसार राशि जमा करके , वांछित हार्सपावर के स्थायी पम्प कनेक्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
स्वयं का नया ट्रांसफार्मर योजना:-
कम्पनी द्वारा पूर्व में लागू स्वयं के ट्रांसफार्मर योजना के स्वरुप में ऊर्जा विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिये गये निर्देशानुसार संशोधन कर नवीन स्वयं का ट्रांसफार्मर योजना लागू की गई है । योजनांतर्गत कृषक स्वयं कृषि कार्य हेतु अपना ट्रांसफार्मर लगा सकते हैं । कृषक संबंधित वितरण केन्द्र में आवेदन देकर योजना का लाभ उठा सकते हैं ।इस तरह किसान उपभोक्ता व्यक्तिगत या समूह के रूप में स्वयं के वितरण ट्रांस्फारमर स्थापित करवा कर अपेक्षाकृत निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं .
आदिवासी उपयोजना एवं विशेष घटक योजना:-
राज्य शासन द्वारा आदिवासी उपयोजना तथा विशेष घटक योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष गांवो के मजरे/टोलों/अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कृषकों को उक्त योजना में पम्प कनेक्शन के विद्युतीकरण/एकबत्ती कनेक्शन हेतु जिला स्तर पर राशि उपलब्ध कराई जाती है । इन योजनाओं का क्रियान्वयन जिला स्तर पर गठित जिला क्रय समिति द्वारा कराया जाता है .जिला क्रय समितियो के अध्यक्ष जिले के कलेक्टर होते हैं ,एवं जनप्रतिनिधि उसके सदस्य होते हैं , इस तरह विद्युतीकरण के द्वारा पिछड़े हुये लोगो के विकास के राष्ट्रीय महायज्ञ में स्थानीय प्रतिनिधियो की भागीदारी तथा जन आवश्यकताओ की पूर्ति इस योजना द्वारा सुनिश्चित हो पाती है .
स्वैच्छिक संबद्ध भार घोषणा योजना
दिन प्रतिदिन विद्युत उपकरणो से बढ़ती सुविधाओ के कारण लगभग प्रायः उपभोक्ताओ द्वारा समय के साथ अपने कनेक्शन लेते समय स्वीकृत कराये गये भार या लोड से अधिक के विद्युत उपकरण स्वतः जोड़ लिये जाते हैं . इस तरह अनजाने में ही उपभोक्ता न केवल विद्युत वितरण प्रणाली पर अतिरिक्त भार डालता है एवं वितरण ट्रांस्फारमर के ओवरलोड होने का कारण बनता है .यह कृत्य विद्युत अधिनियम की धारा १२६ के अंतर्गत अपराध की श्रेणि में आता है . अतः उपभोक्ता जागरूखता की दिशा में पहल करते हुये कंपनी ने ३० सितंबर २०११ तक उपभोक्ता द्वारा स्वयं संबद्ध भार की घोषणा करने पर कोई पेनाल्टी न लगाने की यह योजना लागू की है , जिसका व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है .
म.प्र.लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी अधिनियम 2010 -
इस नियम के अंतर्गत ऊर्जा विभाग से संबंधित 6 सेवाओं यथा निम्नदाब के व्यक्तिगत नवीन कनेक्शन के लिये मांग पत्र प्रदान करना , जहां ऐसा कनेक्शन वर्तमान नेटवर्क से संभव है, मांग पत्र अनुसार राशि जमा करने के बाद वर्तमान नेटवर्क से निम्नदाब नवीन कनेक्शन प्रदान करना, जहॉ वर्तमान अधोसंरचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ 10 कि.वा. तक अस्थाई कनेक्शन प्रदान करना, जहॉ वर्तमान अधोसरंचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ भारवृद्धि के प्रकरणों में मांग पत्र जारी करना, जहॉ वर्तमान अधोसंरचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ मांगपत्र अनुसार राशि जमा करने के उपरांत भारवृद्धि करना तथा निम्नदाब उपभोक्ताओं के मीटर बंद होने या तेज चलने की शिकायत पर जॉच कराना एवं मीटर खराब पाये जाने पर सुधारना या बदलना इत्यादि की निश्चित समय-सीमा निर्धारित कर सेवायें प्रदान की जा रही है.
ए टी पी से करें कभी भी कहीं भी , अपनी विद्युत देनदारियों का भुगतान
म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर ने म.प्र. में सर्वप्रथम यह उपभोक्ता सुविधा जुटाकर महत्वपूर्ण कार्य किया है . कंपनी के सी एम डी श्री पंकज अग्रवाल आई ए एस महोदय ने स्पष्ट सोच सामने रखी .उनके अनुसार "जब उपभोक्ता बिजली बिल जमा करना चाहता है , तो उसे सम्मान पूर्वक , साफसुथरे वातावरण में बिना लम्बी लाइन में लगे अपने बिल जमा करने का अवसर दिया जाना जरूरी है इससे कंपनी के राजस्व में वृद्धि होगी ." एम पी आनलाइन के माध्यम से भी बिल जमा करने की सेवा प्रारंभ की गई . पर सबसे प्रभावी व क्रांतिकारी कदम के रूप में ए टी पी मशीनो की स्थापना की गई . ए टी पी मशीन लगाने वाली कुछ कंपनियो में से एक एस पी एम एल टैक्नालाजी बैंगलोर के साथ करार किया गया व उक्त संस्था ने बैंको की एटीएम मशीनो की ही तरह जगह जगह एटीपी मशीनें स्थापित की हैं जिनमें कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से टच स्क्रीन विंडो के द्वारा २४ घंटे , ३६५ दिन नगद , चैक , ड्राफ्ट , क्रैडिट कार्ड , या डेबिट कार्ड के जरिये बिजली बिल भुगतान की सहज सुविधा सुलभ कराई गई है .एटीपी मशीन का उपयोग बिना पढ़े लिखे उपभोक्ता भी कर सकें इसके लिये प्रत्येक एटीपी पर एक सहायक रखा गया है , जो मशीन से बिल जमाकर रसीद देने में उपभोक्ता की सहायता करता है व मशीन की सुरक्षा की जबाबदारी भी उठाता है . ए टी पी मशीनो की सफलता देखते हुये नगर नगर में इनका सतत विस्तार किया जा रहा है .
उक्त विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त किये जाने हेतु विस्तृत जानकारी प्रत्येक जिला स्तर/तहसील स्तर/विकासखण्ड स्तर/ग्रामीण क्षेत्र में विद्यमान विद्युत वितरण केन्द्रों के कार्यालयों के संबंधित अधिकारियों से प्राप्त कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है , प्रत्येक बिजली के बिल में क्षेत्रीय विद्युत प्रभारी के संपर्क टेलिफोन व मोबाइल नम्बर प्रकाशित करने की पारदर्शी प्रणाली कंपनी में लागू की गई है . विद्युत कर्मचारी व अधिकारी आम उपभोक्ता की सेवा हेतु फ्यूजआफ काल सेंटर्स पर सप्ताह के सातो दिन चौबीसो घंटे सुलभ रहते हैं , तथा किसी भी आकस्मिकता पर रात या दिन छुट्टी या कार्यदिवस की सीमाओ से परे उठकर निरंतर विद्युत आपूर्ति हेतु सक्रिय रहते हैं . जिन फीडर्स पर लगातार लाइनलास १५ प्रतिशत से कम रिकार्ड किया जावेगा वहां निर्बाध २४ घंटे विद्युत आपुर्ति किये जाने हेतु कंपनी तत्पर है . अतः अब समय आ गया है कि उपभोक्ता भी जागरुखता दिखायें और कंपनी के साथ कदम से कदम मिलाकर न केवल कल्याणकारी योजनाओ का लाभ उठावें वरन बिजली बिलो का सुनिश्चित समय पर भुगतान करके अपने उपभोक्ता दायित्वो का निर्वहन करते हुये सबके लिये सतत बिजली की परिकल्पना को साकार करने में शासन का सहयोग करें .
विवेक रंजन श्रीवास्तव
जनसंपर्क अधिकारी, म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी
ओ बी ११ , विद्युत मन्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर ४८२००८
मो ०९४२५८०६२५२
email vivek1959@yahoo.co.in
बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .
आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .क्योकि संचार व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चरल सुविधायें भी अपरोक्ष रूप से बिजली पर ही आधारित हैं .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम भारत की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है, रिमोट मीटरिंग के लिये कंपनी को ई गवर्नेंस का राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिल चुका है , अन्य अनेको लोकहितकारी योजनायें कंपनी के द्वारा चलाई जा रही हैं ,ऐसी ही कुछ योजनाओ का संक्षिप्त विवरण आम उपभोक्ताओ की जानकारी हेतु प्रस्तुत है .
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजनाः-
केन्द्र सरकार द्वारा प्रवर्तित राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना माह अप्रैल 2005 से मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी लिमिटेड क्षेत्रान्तर्गत लागू की गई है । पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी अपने कार्य क्षेत्रान्तर्गत समस्त 20 जिलों हेतु रु. 969.394 करोड की उक्त योजना तेजी से क्रियान्वित कर रही है .
इस योजना में केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण कार्य हेतु, स्वीकृत लागत राशि का 90 प्रतिशत अनुदान एवं 10 प्रतिशत राशि ऋण के रुप में राज्य शासन को उपलब्ध कराये जाने का प्रावधान है । दसवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जबलपुर, सिवनी, दमोह, छिंदवाड़ा जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य योग्य 43 अविद्युतीकृत ग्रामों एवं 5945 विद्युतीकृत ग्रामों के 300 से अधिक आबादी वाले अविद्युतीकृत क्षेत्र एवं मजरे/टोलों के विद्युतीकरण एवं 11 वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जिला कटनी, नरसिंहपुर, मण्डला, डिण्डौरी, बालाघाट, रीवा, सतना, सीधी (सिंगरौली सहित), शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़ एवं पन्ना के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य योग्य 436 अविद्युतीकृत ग्रामों, 15971 विद्युतीकृत ग्रामों के 100 से अधिक आबादी वाले अविद्युतीकृत क्षेत्र/मजरे/टोलों के विद्युतीकरण के कार्य किये जाने एवं गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 985068 सभी श्रेणी के हितग्राहियों को निःशुल्क एकबत्ती कनेक्शन प्रदान किये जाने का प्रावधान है .इस तरह सब के लिये सतत बिजली आपूर्ती के अंतिम लक्ष्य को न्यूनतम संचारण हानि के साथ प्राप्त करने हेतु इस योजना को तकनीकी विशेषज्ञता के साथ लागू करने का महत्वपूर्ण कार्य कंपनी द्वारा किया जा रहा है .
गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले उपभोक्ता संबंधित वितरण केन्द्र कार्याल्य में सम्पर्क कर योजना के अंतर्गत निशुल्क कनेक्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
स्थाई पम्प कनेक्शन योजना:-
कृषि को लाभ का धंधा बनाने के राज्य शासन के संकल्प के दृष्टिगत तथा वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित रखने हेतु कृषि के लिए स्थायी विद्युत पम्प कनेक्शन दिया जाना महत्वपूर्ण है . प्रत्येक फसल में सिंचाई के समय अस्थाई विद्युत कनेक्शन लेने की कठिनाई से किसानो को हमेशा के लिये मुक्त करने के उद्देश्य से , शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों हेतु मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिनांक 1.4.11 से ‘‘कृषकों को स्थायी विद्युत पम्प कनेक्शन प्रदान करने हेतु अनुदान योजना‘‘ नाम से यह योजना लागू की गई है । इस योजना के द्वारा कृषकों को स्थायी पम्प कनेक्शन लेने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है तथा इस कार्य में लगने वाली कुल राशि का एक बड़ा अंशदान राज्य शासन द्वारा अनुदान के रुप में दिया जाना प्रस्तावित है।
यह योजना सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में 1 अप्रैल 2011 से वर्ष 2011-2012 के लिए लागू है । राज्य शासन आवश्यकतानुसार योजना की अवधि में वृद्धि कर सकेगा । योजनांतर्गत लघु एवं सीमान्त किसानों को रु. 5000/- प्रति हार्स पावर तथा अन्य किसानों को रु. 8000/- प्रति हार्स पावर की दर से भुगतान करना होगा । प्रत्येक उपभोक्ता के लिए अधिकतम लागत राशि 1.50 लाख की शेष लागत राशि शासन द्वारा अनुदान स्वरूप प्रदान की जाएगी । योजनांतर्गत किसान संबंधित वितरण केन्द्र में आवेदन कर तथा उपरोक्तानुसार राशि जमा करके , वांछित हार्सपावर के स्थायी पम्प कनेक्शन प्राप्त कर सकते हैं ।
स्वयं का नया ट्रांसफार्मर योजना:-
कम्पनी द्वारा पूर्व में लागू स्वयं के ट्रांसफार्मर योजना के स्वरुप में ऊर्जा विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा दिये गये निर्देशानुसार संशोधन कर नवीन स्वयं का ट्रांसफार्मर योजना लागू की गई है । योजनांतर्गत कृषक स्वयं कृषि कार्य हेतु अपना ट्रांसफार्मर लगा सकते हैं । कृषक संबंधित वितरण केन्द्र में आवेदन देकर योजना का लाभ उठा सकते हैं ।इस तरह किसान उपभोक्ता व्यक्तिगत या समूह के रूप में स्वयं के वितरण ट्रांस्फारमर स्थापित करवा कर अपेक्षाकृत निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं .
आदिवासी उपयोजना एवं विशेष घटक योजना:-
राज्य शासन द्वारा आदिवासी उपयोजना तथा विशेष घटक योजना के अंतर्गत प्रतिवर्ष गांवो के मजरे/टोलों/अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कृषकों को उक्त योजना में पम्प कनेक्शन के विद्युतीकरण/एकबत्ती कनेक्शन हेतु जिला स्तर पर राशि उपलब्ध कराई जाती है । इन योजनाओं का क्रियान्वयन जिला स्तर पर गठित जिला क्रय समिति द्वारा कराया जाता है .जिला क्रय समितियो के अध्यक्ष जिले के कलेक्टर होते हैं ,एवं जनप्रतिनिधि उसके सदस्य होते हैं , इस तरह विद्युतीकरण के द्वारा पिछड़े हुये लोगो के विकास के राष्ट्रीय महायज्ञ में स्थानीय प्रतिनिधियो की भागीदारी तथा जन आवश्यकताओ की पूर्ति इस योजना द्वारा सुनिश्चित हो पाती है .
स्वैच्छिक संबद्ध भार घोषणा योजना
दिन प्रतिदिन विद्युत उपकरणो से बढ़ती सुविधाओ के कारण लगभग प्रायः उपभोक्ताओ द्वारा समय के साथ अपने कनेक्शन लेते समय स्वीकृत कराये गये भार या लोड से अधिक के विद्युत उपकरण स्वतः जोड़ लिये जाते हैं . इस तरह अनजाने में ही उपभोक्ता न केवल विद्युत वितरण प्रणाली पर अतिरिक्त भार डालता है एवं वितरण ट्रांस्फारमर के ओवरलोड होने का कारण बनता है .यह कृत्य विद्युत अधिनियम की धारा १२६ के अंतर्गत अपराध की श्रेणि में आता है . अतः उपभोक्ता जागरूखता की दिशा में पहल करते हुये कंपनी ने ३० सितंबर २०११ तक उपभोक्ता द्वारा स्वयं संबद्ध भार की घोषणा करने पर कोई पेनाल्टी न लगाने की यह योजना लागू की है , जिसका व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है .
म.प्र.लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी अधिनियम 2010 -
इस नियम के अंतर्गत ऊर्जा विभाग से संबंधित 6 सेवाओं यथा निम्नदाब के व्यक्तिगत नवीन कनेक्शन के लिये मांग पत्र प्रदान करना , जहां ऐसा कनेक्शन वर्तमान नेटवर्क से संभव है, मांग पत्र अनुसार राशि जमा करने के बाद वर्तमान नेटवर्क से निम्नदाब नवीन कनेक्शन प्रदान करना, जहॉ वर्तमान अधोसंरचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ 10 कि.वा. तक अस्थाई कनेक्शन प्रदान करना, जहॉ वर्तमान अधोसरंचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ भारवृद्धि के प्रकरणों में मांग पत्र जारी करना, जहॉ वर्तमान अधोसंरचना में विस्तार की आवश्यकता न हो वहॉ मांगपत्र अनुसार राशि जमा करने के उपरांत भारवृद्धि करना तथा निम्नदाब उपभोक्ताओं के मीटर बंद होने या तेज चलने की शिकायत पर जॉच कराना एवं मीटर खराब पाये जाने पर सुधारना या बदलना इत्यादि की निश्चित समय-सीमा निर्धारित कर सेवायें प्रदान की जा रही है.
ए टी पी से करें कभी भी कहीं भी , अपनी विद्युत देनदारियों का भुगतान
म.प्र.पूर्वी क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी , जबलपुर ने म.प्र. में सर्वप्रथम यह उपभोक्ता सुविधा जुटाकर महत्वपूर्ण कार्य किया है . कंपनी के सी एम डी श्री पंकज अग्रवाल आई ए एस महोदय ने स्पष्ट सोच सामने रखी .उनके अनुसार "जब उपभोक्ता बिजली बिल जमा करना चाहता है , तो उसे सम्मान पूर्वक , साफसुथरे वातावरण में बिना लम्बी लाइन में लगे अपने बिल जमा करने का अवसर दिया जाना जरूरी है इससे कंपनी के राजस्व में वृद्धि होगी ." एम पी आनलाइन के माध्यम से भी बिल जमा करने की सेवा प्रारंभ की गई . पर सबसे प्रभावी व क्रांतिकारी कदम के रूप में ए टी पी मशीनो की स्थापना की गई . ए टी पी मशीन लगाने वाली कुछ कंपनियो में से एक एस पी एम एल टैक्नालाजी बैंगलोर के साथ करार किया गया व उक्त संस्था ने बैंको की एटीएम मशीनो की ही तरह जगह जगह एटीपी मशीनें स्थापित की हैं जिनमें कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से टच स्क्रीन विंडो के द्वारा २४ घंटे , ३६५ दिन नगद , चैक , ड्राफ्ट , क्रैडिट कार्ड , या डेबिट कार्ड के जरिये बिजली बिल भुगतान की सहज सुविधा सुलभ कराई गई है .एटीपी मशीन का उपयोग बिना पढ़े लिखे उपभोक्ता भी कर सकें इसके लिये प्रत्येक एटीपी पर एक सहायक रखा गया है , जो मशीन से बिल जमाकर रसीद देने में उपभोक्ता की सहायता करता है व मशीन की सुरक्षा की जबाबदारी भी उठाता है . ए टी पी मशीनो की सफलता देखते हुये नगर नगर में इनका सतत विस्तार किया जा रहा है .
उक्त विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त किये जाने हेतु विस्तृत जानकारी प्रत्येक जिला स्तर/तहसील स्तर/विकासखण्ड स्तर/ग्रामीण क्षेत्र में विद्यमान विद्युत वितरण केन्द्रों के कार्यालयों के संबंधित अधिकारियों से प्राप्त कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है , प्रत्येक बिजली के बिल में क्षेत्रीय विद्युत प्रभारी के संपर्क टेलिफोन व मोबाइल नम्बर प्रकाशित करने की पारदर्शी प्रणाली कंपनी में लागू की गई है . विद्युत कर्मचारी व अधिकारी आम उपभोक्ता की सेवा हेतु फ्यूजआफ काल सेंटर्स पर सप्ताह के सातो दिन चौबीसो घंटे सुलभ रहते हैं , तथा किसी भी आकस्मिकता पर रात या दिन छुट्टी या कार्यदिवस की सीमाओ से परे उठकर निरंतर विद्युत आपूर्ति हेतु सक्रिय रहते हैं . जिन फीडर्स पर लगातार लाइनलास १५ प्रतिशत से कम रिकार्ड किया जावेगा वहां निर्बाध २४ घंटे विद्युत आपुर्ति किये जाने हेतु कंपनी तत्पर है . अतः अब समय आ गया है कि उपभोक्ता भी जागरुखता दिखायें और कंपनी के साथ कदम से कदम मिलाकर न केवल कल्याणकारी योजनाओ का लाभ उठावें वरन बिजली बिलो का सुनिश्चित समय पर भुगतान करके अपने उपभोक्ता दायित्वो का निर्वहन करते हुये सबके लिये सतत बिजली की परिकल्पना को साकार करने में शासन का सहयोग करें .
15 मई, 2011
नैसर्गिक न्याय के लिये इनोसेंट नागरिको की ओर से
नेशनल वेस्ट है यह तोड़ फोड़
कल्पना श्रीवास्तव
ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
९४२५८०६२५२
भोपाल में मीनाल माल ढ़हा कर सरकार बेहद खुश है , सरकारी कर्मचारी जो कुछ समय पहले तक ऐसे निर्माण करने की अनुमति देने के लिये बिल्डरों से गठजोड़ करके काला धन बटोर रहे थे , अब ऐसी सम्पत्तियो को चिन्हित न करने के एवज में मोटी रकम बटोर रहे हैं .
लोगों की गाढ़ी कमाई , उनकी आजीविका , अनुमति देने वाली एजेंसियो , प्रापर्टी सही है या नही इसकी सचाई की जानकारी के बिना , मोटी फीस वसूल कर वास्तविक कीमत से कम कीमत की रजिस्ट्री करने वाले रजिस्ट्रार कार्यालय के अमले ,बिना किसी जिम्मेदारी के सर्च रिपोर्ट बनवाकर फाइनेंस करने वाले बैंको की कार्य प्रणाली , और व्यक्तिगत रंजिश के चलते , राजनैतिक प्रभाव का उपयोग कर आहें बटोरने वाले मंत्रियो पर काफी कुछ लिखा जा रहा है .सरकार की इस अचानक कार्यवाही के पक्ष विपक्ष में बहुत कुछ लिखा जा रहा है . जिनका व्यक्तिगत कुछ बिगड़ा नही है , वे प्रसन्न है .निरीह आम जनता को उजाड़ने में सरकारी अमले को पैशाचिक सुख की प्राप्ति हो रही है .
मै एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत के "रामभरोसे " जी रहे आम नागरिक होने के नाते इस समूचे घटनाक्रम को एक दूसरे दृष्टिकोण से देखना चाहती हूं . एक आम आदमी जिसे मकान लेना है उसके पास खरीदी जा रही प्रापर्टी की कानूनी वैद्यता जानने के लिये बिल्डर द्वारा दिखाये जा रहे सरकारी विभागों से पास नक्शे एवं बाजू में किसी अन्य के द्वारा खरीदे गये वैसे ही मकान की रजिस्ट्री ,बैंक की सर्च रिपोर्ट तथा बिल्डर के निर्माण की गुणवत्ता के सिवाये और क्या होता है ? इस सबके बाद जब वह मकान खरीद कर दसो वर्षों से निश्चिंत वहां रह रहा होता है , नगर निगम उससे प्रसन्नता पूर्वक सालाना टेक्स वसूल रही होती है , टैक्स जमा करने में किंचित विलंब पर पैनाल्टी भी लगा रही होती है , उसे बिजली , पानी के कनेक्शन आदि जैसी प्राथमिक नागरिक सुविधायें मिल रही होती हैं तब अचानक एक सुबह कोई पटवारी उसके घर को अवैद्य निर्माण चिंहित कर दे , इतना ही नही सरकार अपनी वाहवाही और रुतबा बनाने के लिये उसे वह दुकान या मकान खाळी करने के लिये एक घंटे की मोहलत तक न दे तो इसे क्या कहा जाना चाहिये ? क्या इतने पर भी यह मानना चाहिये कि हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं ?
अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहित भी सरकारो ने ही किया , कभी राजनैतिक संरक्षण देकर तो कभी पट्टे बांटकर , किसी के साथ कुछ तो कभी किसी और के साथ कुछ अन्य नीति आखिर क्या बताती है ? जबलपुर में अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही में बालसागर में हजारो गरीबों के झोपड़े उजाड़ दिये गये , इस कार्यवाही में दो लोगो की मौत भी हो गई . क्या यह सही नही है कि ये अतिक्रमण करवाते समय नेताजी ने , तहसीलदार जी ने और लोकल गुंडो ने इन गरीबों का भरपूर दोहन किया था ?
जो लोग इस आनन फानन में की गई तोड़फोड़ की प्रशंसा कर रहे हैं मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि मेरे घर में एक चिड़िया ने एक फोटो फ्रेम के पीछे घोंसला बना लिया था , मैं छोटी था , घोंसले के तिनके चिड़िया की आवाजाही से गिरते थे , उस कचरे से बचने के लिये जब मैने वह घोसला हटाना चाहा तो उस घोंसले तक को हटाने के लिये, चिड़िया के बच्चो को बड़ा होकर उड़ जाने तक का समय देने की हिदायत मेरे पिताजी ने मुझे दी थी . संवेदनशीलता के इस स्तर पर जी रहे मुझ जैसो को सरकार की इस कार्यवाही की आलोचना का नैतिक आधिकार है ना ? चिड़िया के घोसले से फैल रहे कचरे से तो हमारा घर सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा था , पर मेरा प्रश्न है कि मीनाल माल या इस जैसी अन्य तोड़ फोड़ से खाली जमीन का सरकार ने उससे बेहतर क्या उपयोग करके दिखाया है ? पर्यावरण की रक्षा में बड़े बड़े कानून बनाने वाले क्या मुझे यह बतायेंगे कि तोड़े गये निर्माण में लगा श्रम , सीमेंट , लोहा , अन्य निर्माण सामग्री नेशनल वेस्ट नही है ? उस सीमेंट , कांच व अन्य सामग्री के निर्माण से हुये प्रदूषण के एवज में समाज को क्या मिला ? इस क्रिमिनल वेस्ट का जबाबदार आखिर कौन है ? इगोइस्ट मंत्री जी ? नाम कमाने की इच्छा से प्रेरित आई ए एस अधिकारी ? क्या ऐसी कार्यवाहियो की अनुमति देने के लिये एक डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी के हस्ताक्षर पर्याप्त हैं ? यह सब चिंतन और मनन के मुद्दे हैं .
मैं नही कहती कि अवैद्य निर्माण को प्रोत्साहन दिया जावे . सरकार ने यदि उन लोगो पर कड़ी कार्यवाही की होती , जिन्होने ऐसे निर्माणो की अनुमति दी थी तो भी भविष्य में ऐसे निर्माण रुक सकते थे . रजिस्ट्रार कार्यालय बहुत बड़े बड़े विज्ञापन छापता है जिनमें सम्पत्ति के मालिकाना हक के लिये वैद्य रजिस्ट्री होना जरूरी बताया जाता है , रजिस्ट्री से प्राप्त फीस सरकारी राजस्व का बहुत बड़ा अंश होता है , तो क्या इस विभाग को इतना सक्षम बनाना जरूरी नही है कि गलत संपत्तियो की रजिस्ट्री न हो सके , और यदि एक बार रजिस्ट्री हो जावे तो उसे कानूनी वैद्यता हासिल हो . आखिर हम सरकार क्यो चुनते हैं ,सरकार से सुरक्षा पाने के लिये या हमारे ही घरो को तोड़ने के लिये ?
मैं न तो कोई कानूनविद् हूं और न ही किसी राजनैतिक पार्टी की प्रतिनिधि . मैं नैसर्गिक न्याय के लिये इनोसेंट नागरिको की ओर से पूरी जबाबदारी से लिखना चाहती हूं कि यदि मीनाल माल एवं उस जैसी अन्य तोड़फोड़ की जगह उससे बेहतर कोई प्रोजेक्ट सरकार जनता के सामने नही ला पाती है तो यह तोड़फोड़ शर्मनाक है .क्रिमिनल वेस्ट है . मीनाल रेजीडेंसी देश की सर्वोत्तम कालोनियो में से एक है यदि इस तरह की कार्यवाही वहां हो सकती है तो भला कौन इंटरप्रेनर प्रदेश में निवेश करने आयेगा ? यह कार्यवाही निवेशको को प्रदेश में बुलाने के लुभावने सरकारी वादो के नितांत विपरीत है . आम आदमी से धोखा है , इसका जो खामियाजा सरकार अगले चुनावो में भुगतेगी वह तो बाद की बात है , पर आज कानून क्या कर रहा है ? क्या हम इतने नपुंसक समाज के निवासी है कि एक मंत्री अपने व्यक्तिगत वैमनस्य के लिये आम लोगो को घंटे भर में उजाड़ सकता है , और सब मूक दर्शक बने रहेंगे ? क्या इन असहाय लोगो के साथ अन्याय होता रहने दिया जावे क्योकि वे संख्या में कम हैं , मजबूर हैं और व्यवस्था न होने के चलते अज्ञानता से वे इन मकानो के मालिक हैं . ऐसे इंनोसेंट लोगो पर कार्यवाही करके सरकार कौन सी मर्दानगी दिखा रही है , और क्या इससे यह प्रमाणित नही होता है कि यह सब दुर्भावना पूर्ण है , जब बिल्डर से सौदा नही बना तो तोड़फोड़ शुरू , अधिकारो के ऐसे दुष्प्रयोग जनतांत्रिक देश में असहनीय हैं .
दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं
लोग जिंदगी लगा देते हैं एक घर बसाने में
उन्हें पल भर भी नही लगता बस्तियां जलाने में
यद्यपि इन पंक्तियो का संदर्भ भिन्न है , पर फिर भी यह ऐसी सरकारी नादिरशाही की दृष्टि से प्रासंगिक ही हैं .सरकार से पुनः प्रार्थना है कि व्यापक लोकहित तथा राष्ट्र हित में उदारता से विचार कर लोगो को बेघर न करें , बिल्डर पर जो भी पेनाल्टी लगानी हो वह लगाकर यदि कोई अच्छा निर्माण कतिपय रूप से अवैधानिक भी है तो उसका नियमतीकरण करने की जरूरत है .
लेखिका को सामाजिक विषयों पर लेखन हेतु अनेक पुरुस्कार मिल चुके हैं
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