25 अप्रैल, 2010

५७ करोड़ के बांड्स का भुगतान नहीं करने पर कार्रवाई विमं के खाते सीज



एक पैसा नहीं खाते में

हालात चिंताजनक 


५७ करोड़ के बांड्स का भुगतान नहीं करने पर कार्रवाई
विमं के खाते सीज

मंडल के पास शुक्रवार को खाते में एक पैसा भी नहीं था। जानकारों के अनुसार, माइनस एक करो़ड़ रुपए का एकाउंट था यानि मंडल से बैंक को एक करो़ड़ रुपए की लेनदारी निकलती है। ऐसा ओवरड्राफ्ट के कारण हुआ।

मंडल ने एसएलआर बांड जारी किए थे। ये ऐसे बांड होते हैं जिनके रि-पेमेंट की पूरी गारंटी होती है। बांड्स को जारी करते वक्त राज्य और केन्द्र से भी अनुमति ली गई थी। ये देश का पहला मामला होगा जहां एसएलआर बांड्स का भुगतान नहीं किया गया।गोपाल अवस्थी

जबलपुर। वित्तीय संकट में फंसे विद्युत मंडल पर से मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। कर्मचारियों का वेतन देने प्रदेश सरकार का मुंह ताकने वाले मंडल के सामने अब पंजाब एंड सिंध बैंक ने आफत ख़ड़ी कर दी है। बैंक की याचिका पर डीआरटी दिल्ली ने मंडल के खातों को सीज कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि विद्युत मंडल ने वर्ष २००० के आस-पास बांड जारी किए थे। इन बांड्स को पंजाब एंड सिंध बैंक ने भी लिया था। कुछ साल बाद इन बांड्स की री-पेमेंट के लिए बैंक ने जब पहल की तो मंडल ने असमर्थता जताई। मंडल द्वारा राशि देने से इंकार करने के कारण बैंक ने डेबिट रिकव्हरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) दिल्ली की शरण ली। बैंक का पक्ष सुनने के पश्चात डीआरटी ने उसकी ५७ करो़ड़ राशि के भुगतान हेतु मंडल के खाते अटैच करने का निर्देश जारी कर दिया।

घर तो सज गया पर बिजली हो सकती है गुल ..... सानिया अपनी पाकिस्तानी ससुराल में


घर तो सज गया पर बिजली हो सकती है गुल ..... सानिया अपनी पाकिस्तानी ससुराल में 

आज के दावत -ए -वलीमा के लिए पाक क्रिकेटर शोएब मलिक के घर को सजा दिया गया है। इलेक्ट्रिक लाइटों से भी घर को इस तरह से सजाया गया है कि रात को रोशनी की महफिल से शमां बेहद खूबसूरत लगे और दावत- ए- वलीमा में आए मेहमानों का शानदार स्वागत किया जा सके। लेकिन शोएब का परिवार सरकार के बिजली अधिकारियों से नाराज चल रहा है और सभी लाइट्स को घर से उतार लिया गया है और कहा गया है कि अगर सरकार चाहती है कि हम अपना दावत ए वलीमा अंधेरे में मनाए तो हम ऐसा ही करेंगे।

पाक मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार पंजाब प्रांत की संघीय सरकार इन दिनों बिजली बचाने के लिए सप्ताह में दो दिन बिजली बचाने के लिए लाइट्स ऑफ रखने का आदेश दे रखा है। इसी को देखते हुए बिजली अधिकारियों ने शोएब के परिवार को भी बिजली बचाने के लिए स्विच ऑफ रखने के आदेश दिए हैं। हालांकि परिवार ने इस संबंध में बड़े अधिकारियों से संपर्क कर अपना विरोध जताया है लेकिन अधिकारियों का कहना है कि सरकार बिजली बचाने को लेकर बेहद सख्त रूख अपनाई हुई है इसलिए हम कुछ नहीं कर सकते।



क्या हमारे लिये भी सोचने और कानून बनाने का समय आ गया है कि शादी में बिजली की फिजूल खर्ची रोकी जावे 


23 अप्रैल, 2010

वायरलेस बिजली बनेगी हकीकत...with thanks from naidunia dt 24.04.10


वायरलेस बिजली बनेगी हकीकत?

कई कंपनियाँ वायरलेस बिजली को खोजने में जुट गई हैं। जो विकल्प उभरकर आए हैं, उनमें रेडियो तरंगों के जरिए बिजली को संप्रेषित करना सबसे प्रभावी समाधान दिखाई देता है।

मुकुल व्यास



कम्प्यूटर, टीवी और म्यूजिक प्लेयर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हर साल छोटे हो रहे हैं, पतले हो रहे हैं और देखने में खूबसूरत भी। इन उपकरणों का आकार भले ही घट रहा हो, लेकिन हमें अभी तक तारों के जंजाल से छुटकारा नहीं मिला है। क्या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इन तारों से निजात दिलाना मुमकिन है?

पिछले कुछ समय से वैज्ञानिक बिजली को तार के बिना ही संप्रेषित करने की कोशिश कर रहे हैं। बेतार संप्रेषण को प्रभावी बनाने में कुछ दिक्कतें आ रही हैं और ऐसे सिस्टम की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसके बावजूद सोनी और इंटेल जैसी बड़ी कंपनियाँ बेतार संप्रेषण को हकीकत में बदलने की कोशिश कर रही हैं।

वायरलेस बिजली का विचार नया नहीं है। निकोला तेस्ला ने २०वीं सदी के आरंभ में लोगों के घरों में तार के बगैर ही बिजली संप्रेषित करने का विचार रखा था। उन्होंने न्यूयॉर्क के लांग आईलैंड में वार्डन क्लिफ टावर का निर्माण भी शुरूकर दिया था। यह एक विशाल दूरसंचार टावर था, जिसके जरिए वह अपने वायरलेस पावर ट्रांसमिशन को परखना चाहते थे। निकोला की कोशिश नाकाम हो गई।

वायरलेस बिजली का विचार आकर्षक जरूर है, लेकिन इसे व्यावहारिक धरातल पर साकार करना मुश्किल है। लंबी दूरी के जमीनी वायरलेस पावर ट्रांसमिशन के लिए मूलभूत सुविधाएँ जुटाना बहुत महँगा पड़ेगा। इसके अलावा उष्ण ऊर्जा वाली माइक्रोवेव के जरिए बिजली के संप्रेषण की सेफ्टी को लेकर विशेषज्ञों ने चिंता प्रकट की है। निकट भविष्य में वायरलेस पावर सेट बनने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन छोटे स्तर पर बिजली के वायरलेस संप्रेषण का विचार जोर पकड़ रहा है। अनेक कंपनियाँ इसके कारगर, किफायती और सुरक्षित तरीके खोजने में जुट गई हैं। जो विकल्प उभरकर आए हैं उनमें रेडियो तरंगों के जरिए बिजली को संप्रेषित करना सबसे प्रभावी समाधान दिखाई देता है।

पीट्सबर्ग, पेनसिल्वेनिया स्थित पावरकास्ट कंपनी ने अभी हाल ही में इस टेक्नोलॉजी के जरिए १५ मीटर की दूरी पर औद्योगिक सेंसरों को माइक्रोवाट और मिलीवाट बिजली संप्रेषित की थी। कंपनी का मानना है कि इस तकनीक से एक दिन अलार्म घड़ियों, सेलफोन और रिमोट कंट्रोल को रिचार्ज करना संभव हो जाएगा। इस तकनीक की कुशलता सिर्फ १५ से ३० प्रतिशत ही है। अभी वायरलेस लैंपों, स्पीकरों और इलेक्ट्रॉनिक फोटो फ्रेमों को ऊर्जा देने के लिए इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है।

वायरलेस पावर के लिए एक संभावना "मैगनेटिक इंडक्शन"भी है। इस तकनीक में एक छोर पर रखी काइल से निकलने वाला चुंबकीय क्षेत्र पास में रखी दूसरी काइल में करंट उत्पन्ना कर सकता है। अनेक बड़ी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियाँ इस तकनीक में दिलचस्पी ले रही हैं। सोनी ने एक वायरलेस टीवी का परीक्षण किया है

17 अप्रैल, 2010

दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में १८.०४.२०१० के अंक में हमारी कवर स्टोरी बिजली

विजयशंकर चतुर्वेदी

विवेकरंजन श्रीवास्तव






दैनिक भास्कर के रविवारीय परिशिष्ट रसरंग में 18.04.2010 के अंक में हमारी कवर स्टोरी बिजली को लेकर छपी है ...., मेरे ब्लाग पाठको के लिये उसके अंश प्रस्तुत है ...

कुछ को बिजली बाकी को झटका

कवरस्टोरी: विजयशंकर चतुर्वेदी साथ में विवेकरंजन श्रीवास्तव

भारत में बिजली ही एक ऐसी चीज़ है जिसमें मिलावट नहीं हो सकती. और अगर यह कहा जाए कि बिजली की शक्ति से ही विकास का पहिया घूम सकता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने राष्ट्रीय विद्युत् नीति के तहत २०१२ तक 'सबके लिए बिजली' का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है. इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पीएम डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ४ अप्रैल २००५ को राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना का शुभारम्भ किया था ताकि भारत में ग्रामीण स्तर पर भी विद्युत् ढाँचे में सुधार हो सके और गाँवों के सभी घर, गलियाँ, चौबारे, मोहल्ले बिजली की रोशनी से जगमगाने लगें. लेकिन वास्तविकता यह है कि बिना मिलावट की यह चीज़ सबको उपलब्ध कराने का सपना साकार करने के लिए साल २०१२ के आखिर तक ७८५०० मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन की जरूरत होगी जो आज की स्थिति देखते हुए सचमुच एक सपना ही लगता है. भारत के ऊर्जा योजनाकारों का अनुमान है कि अगर भारत की मौजूदा ८ प्रतिशत सालाना विकास दर जारी रही तो अगले २५ वर्षों में बिजली का उत्पादन ७ गुना बढ़ाना पड़ेगा. इसका अर्थ है कि नए विद्युत् स्टेशनों तथा ट्रांसमीशन लाइनों पर ३०० बिलियन डॉलर का खर्च करना होगा. इस सूरत-ए-हाल में 'सबके लिए बिजली' जब जलेगी तो देखेंगे, फिलहाल हकीकत यह है कि मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में बारहों महीने १० से १२ घंटे प्रतिदिन बिजली कटौती आम बात है. गर्मियों में लोग और भी बेहाल हो जाते हैं. बिजली के अभाव में पंखे, कूलर और रेफ्रीजिरेटर बंद पड़े रहते हैं और छोटे-छोटे बच्चे तड़पते रहते हैं. मोटर पम्प बंद पड़े रहते हैं और सिंचाई नहीं हो पाती. फसलें खलिहानों में पड़ी रहती हैं क्योंकि थ्रेशर बिना बिजली के चलता नहीं है. यहाँ तक कि लोग अनाज पिसवाने के लिए रातों को जागते हैं क्योंकि चक्कियां रात में कभी बिजली आ जाने पर ही जागती हैं. शादियों के मंडप सजे रहते हैं और दूल्हा-दुल्हन के साथ बाराती-घराती बिजली रानी के आने की बाट जोहते रहते हैं!

 बिजली कटौती के मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक समाजवाद है. खुद डॉक्टर मनमोहन सिंह को योजना आयोग की एक बैठक में कहना पड़ा था- 'पावर सेक्टर का सबसे बड़ा अभिशाप इसके ट्रांसमीशन एवं डिस्ट्रीब्यूशन में होने वाली भारी क्षति है, जो कुल उत्पादित बिजली का लगभग ४० प्रतिशत बैठती है. कोई सभ्य समाज अथवा व्यावसायिक इकाई इतने बड़े पैमाने पर क्षति उठाकर चल नहीं सकती.' उनके ही तत्कालीन ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में दुखड़ा रोया था- 'उपलब्ध बिजली का लगभग ७० प्रतिशत सही मायनों में बिक्री हो पाता है. बाकी लगभग ३० प्रतिशत बिजली की विभिन्न कारणों से बिलिंग ही नहीं हो पाती.' लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि इन विभिन्न कारणों में एक बड़ा रोग बिजली चोरी का भी है.




 . यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि एशिया की एक और उभरती महाशक्ति चीन में बिजली चोरी मात्र ३ प्रतिशत के आसपास होती है जबकि भारत में ३० प्रतिशत से अधिक बिजली बेकार हो जाती है! बिजली चोरी के मामले में उद्योग जगत काफी आगे है. १७ जुलाई २००८ को मुंबई में 'इकोनोमिक टाइम्स' ने खबर छापी थी कि महाराष्ट्र की बिजली वितरण इकाई 'महावितरण' ने नवी मुंबई के आसपास एलएंडटी इन्फोटेक, जीटीएल, फ़ाइज़र इंडिया, कोरेस तथा अन्य कई बड़ी कंपनियों को उच्च दाब वाली विद्युत लाइन से लाखों की बिजली की चोरी करते पकड़ा था. इन पर बिजली अधिनियम, २००३ की धारा १२६ एवं १३५ के तहत मामले भी दर्ज़ किये गए. इसी तरह मध्य गुजरात वीज कोर्पोरेशन कंपनी लिमिटेड के उड़नदस्ता ने एक पूर्व सांसद रहे गुजरात स्टेट फर्टीलाइज़र्स एंड केमिकल्स लिमिटेड के चेयरमैन जेसवानी से बिजली चोरी के इल्जाम में ९० हजार रुपयों का जुर्माना वसूला था. देश भर में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं. _______________________


बिजली की मौजूदा उपलब्धता पर नज़र डालें तो आज पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है, जबकि सारे प्रयासों के बावजूद ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा रही है. स्पष्ट है कि १६.६ प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है. आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट की जगह केवल ६६६ हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली ही उपलब्ध हो पा रही है. एक अनुमान के अनुसार वर्ष २०११-१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी जो वर्ष २०१६-१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी. वर्ष २०११-१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट बिजली उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६-१७ अर्थात १२वीं पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जायेगी . दिनों दिन बढ़ती जा रही इस भारी डिमांड की पूर्ति के लिए आज देश में बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से ताप विद्युत गृहों से हो रहा है. देश में कुल विद्युत उत्पादन की क्षमता १४६७५२.८१ मेगावाट है, जिसमें से ९२८९२.६४ मेगावाट कोयला, लिगनाइट व तेल आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्र हैं. अर्थात कुल स्थापित उत्पादन का ६३.३ प्रतिशत उत्पादन ताप विद्युत के रूप में हो रहा है. इसके अलावा ३६४९७.७६ मेगावाट उत्पादन क्षमता के जल विद्युत संयंत्र स्थापित हैं, जो कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का २४.८७ प्रतिशत हैं. अपारम्परिक ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, विंड पावर, टाइडल पावर आदि से भी व्यवसायिक विद्युत के उत्पादन के व्यापक प्रयास हो रहे हैं लेकिन देश में मात्र ९ प्रतिशत विद्युत उत्पादन इन तरीकों से हो पा रहा है. वर्तमान विद्युत संकट से निपटने का एक बड़ा कारगर तरीका परमाणु विद्युत का उत्पादन है. लेकिन वर्तमान में हमारे देश में मात्र ४१२० मेगावाट बिजली ही परमाणु आधारित संयंत्रों से उत्पादित हो रही है. यह देश की विद्युत उत्पादन क्षमता का मात्र २.८१ प्रतिशत ही है जो कि एक संतुलित विद्युत उत्पादन माडल के अनुरूप अत्यंत कम है. लेकिन सिर्फ उत्पादन बढ़ाने से काम नहीं चलनेवाला.



 हमारे देश में एक समूची पीढ़ी को मुफ्त बिजली के उपयोग की आदत पड़ गई है. हालत यह है कि दिल्ली को बिजली चोरी के मामले में पूरी दुनिया की राजधानी कहा जाता है. लोग बिजली को हवा, धूप और पानी की तरह ही मुफ्त का माल समझ कर दिल-ए-बेरहम करने लगे हैं. अक्सर हम देखते हैं कि गांवों और कस्बों में बिजली के ज्यादातर खम्भे अवैध कनेक्शनों की वजह से 'क्रिसमस ट्री' बने नजर आते हैं. मध्य-वर्ग के लोगों का प्रिय शगल है मीटर से छेड़छाड़. बिजली का बिल कम करने के इरादे से वे मीटर के साथ तरह-तरह के प्रयोग करने में माहिर हो चुके हैं. औद्योगिक इकाइयों में बिजली चोरी बड़े पैमाने पर होती है. कई बार इसमें खुद बिजली विभाग के कर्मचारियों एवं अधिकारियों की मिलीभगत भी पायी जाती है. यह दुखद स्थिति है. केवल कानून बना देने से और उसके सीधे इस्तेमाल से भी बिजली चोरी की विकराल समस्या हल नहीं हो सकती. हमारे जैसे लोकतांत्रिक जन कल्याणी देश में वही कानून प्रभावी हो सकता है जिसे जन समर्थन प्राप्त हो. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चँद्रबाबू नायडु ने दृढ़ इच्छा शक्ति से बिजली चोरी के विरूद्ध देश में सर्वप्रथम कड़े कदम उठाये. इससे किंचित बिजली चोरी भले ही रुकी हो पर जनता ने उन्हें चुनाव में चित कर दिया. मध्य प्रदेश सहित प्रायः अधिकाँश राज्यों में विद्युत वितरण कम्पनियों ने विद्युत अधिनियम २००३ की धारा १३५ के अंर्तगत बिजली चोरी के अपराध कायम करने के लिये उड़नदस्तों का गठन किया है. पर जन शिक्षा के अभाव में इन उड़नदस्तों को जगह-जगह नागरिकों के गहन प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है. अवैध कनेक्शन काटने तथा बिजली के बिल वसूलने के रास्ते में स्थानीय नेतागिरी, मारपीट, गाली गलौज, झूठे आरोप एक आम समस्या हैं. आज बिजली के बगैर जनता का जीवन चल सकता है न देश का विकास संभव है. अगर पम्प चलाना है तो बिजली चाहिए और कम्प्यूटर लगाना है तो बिजली चाहिए. बिजली बिना सब सून है. लेकिन बिजली की डिमांड और सप्लाई में जमीन-आसमान का अंतर है. कहीं बिजली कनेक्शन है तो बिजली के उपकरण नहीं हैं. कहीं उपकरण हैं तो वोल्टेज नहीं है.


 ऐसी स्थिति में बिजली क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. निवेश बढ़ाने के हर संभव यत्न करने होंगे. नये बिजली घरों की स्थापना जरुरी है. बिजली चोरी पर पूर्ण नियंत्रण के हर संभव प्रयत्न करने पड़ेंगे. इसके लिये आम नागरिकों को साथ लेने के साथ-साथ नवीनतम तकनीक का उपयोग करना होगा. एक मन से हारी हुई सेना से युद्ध जीतने की उम्मीद करना बेमानी है. यदि बिजली विभाग के कर्मचारियों को अपना स्वयं का भविष्य ही अंधकारपूर्ण दिखेगा तो वे हमें रोशनी कहाँ से देंगे. उनका विश्वास जीतकर बिजली सेक्टर में फैला अन्धकार मिटाया जा सकता है.

कितनी बिजली किसके सर

विकसित देशों में किसी क्षेत्र के विकास को तथा वहां के लोगों के जीवन स्तर को समझने के लिये उस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत को भी पैमाने के रूप में उपयोग किया जाता है. हज़ार वाट का कोई उपकरण यदि १ घण्टे तक लगातार बिजली का उपयोग करे तो जितनी बिजली व्यय होगी उसे किलोवाट अवर या १ यूनिट बिजली कहा जाता है. आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत १४५३१ यूनिट प्रति वर्ष है, जबकि यही आंकड़ा जापान में ८६२८ यूनिट प्रति व्यक्ति, चीन में १९१० प्रति व्यक्ति है. किन्तु हमारे देश में बिजली की खपत मात्र ६३१ यूनिट प्रति व्यक्ति है. दुनिया में जितनी बिजली बन रही है उसका केवल ४ प्रतिशत ही हमारे देश में उपयोग हो रहा है. अतः हमारे देश में बिजली की कमी और इस क्षेत्र में व्यापक विकास की संभावनाएँ स्वतः ही समझी जा सकती हैं. तौबा ये बिजली की चाल जनरेटर से बिजली का उत्पादन बहुत कम वोल्टेज पर होता है पर चूंकि कम वोल्टेज पर बिजली के परिवहन में उसकी पारेषण हानि बहुत ज्यादा होती है अतः बिजली घर से उपयोग स्थल तक बिजली के सफर के लिये इसे स्टेप अप ट्रांसफार्मर के द्वारा, अतिउच्चदाब में परिवर्तित कर दिया जाता है. बिजली की भीमकाय लाइनों, उपकेंद्रों से ८०० किलोवोल्ट, ४०० किलोवोल्ट, २२० किलोवोल्ट, १३२ किलोवोल्ट में स्टेप अप-डाउन होते हुये निम्नदाब बिजली लाइनों ३३ किलोवोल्ट, ११ किलोवोल्ट, ४४० वोल्ट और फिर अंतिम रूप में २२० वोल्ट में परिवर्तित होकर एक लंबा सफर पूरा कर बिजली आप तक पहुँचती है. बिजली और क़ानून हमारी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार बिजली केंद्र व राज्य की संयुक्त व्यवस्था का विषय है. विद्युत प्रदाय अधिनियम १९१० व १९४८ को एकीकृत कर संशोधित करते हुये वर्ष २००३ में एक नया कानून विद्युत अधिनियम के रूप में लागू किया गया है. इसके पीछे आधारभूत सोच बिजली कम्पनियों को ज्यादा जबाबदेह, उपभोक्ता उन्मुखी, स्पर्धात्मक बनाकर, वैश्विक वित्त संस्थाओं से ॠण लेकर बिजली के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना है. नये विद्युत अधिनियम के अनुसार विद्युत नियामक आयोगों की राज्य स्तर पर स्थापना की गई है. ये आयोग राज्य स्तर पर विद्युत उपभोग की दरें तय कर रहे हैं. ये दरें शुद्ध व्यावसायिक आकलन पर आधारित न होकर कृषि, घरेलू, व्यवसायिक, औद्योगिक आदि अलग-अलग उपभोक्ता वर्गों हेतु विभिन्न नीतियों के आधार पर तय की जाती हैं. ब्यूरो ऑफ़ इनर्जी एफिशियेंसी उपभोक्ता उपयोग के उपकरणों की विद्युत संरक्षण की दृष्टि से स्टार रेटिंग कर रही है.

इलेक्ट्रिसिटी एक्ट २००३ की धारा १३५ व १३८ के अंतर्गत बिजली चोरी को सिविल व क्रिमिनल अपराध के रूप में कानूनी दायरे में लाया गया है. बिजली चोरी और सज़ा साल २००५ के दौरान चीन के फुजियान प्रांत में एक इलेक्ट्रीशियन नागरिकों, कंपनियों तथा रेस्तराओं को बिजली चोरी करने में मदद करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया था. अदालत ने पाया कि उसने लगभग २९९८९ डॉलर मूल्य की बिजली चोरी करने में मदद की है. उसे १० साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गयी तथा स्थानीय पुलिस ने बिजली चुराने वालों से हर्जाना अलग से वसूल किया. जबकि भारत के बिजली अधिनियम में बिजली चोरों को अधिकतम ३ वर्ष की सज़ा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।

 Vijayshankar Chaturvedi (Poet-Journalist)
एवं

इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर म.प्र. मानसेवी सचिव , विकास (पंजीकृत सामाजिक संस्था, पंजीकरण क्रमांक j m 7014 dt. 14.08.2003 ) email vivek1959@yahoo.co.in

कनाडा में बिजली की स्थिति पर प्रवासी भारतीय व ब्लाग जगत में सुप्रसिद्ध समीर लाल की टिप्पणी


इसी कवर स्टोरी में बिजली की वैश्विक स्थिति बताने के लिये मैने देश विदेश से वहां के निवासी मित्रो से वहां बिजली की स्थिति पर विचार बुलवाये थे ... संपादन व संभवतः पृष्ठ संयोजन के चलते वे कवर स्टोरी में तो नही छपे .. पर हैं अति महत्वपूर्ण ..श्री समीर लाल उड़नतश्तरी जी ने कनाडा में बिजली की स्थिति पर बड़े रोचक अंदाज में टिप्पणी भेजी है ... जो यहां प्रस्तुत है ...
बाक्स प्रस्तुति हेतु ...
....
कनाडा में बिजली की स्थिति पर प्रवासी भारतीय व ब्लाग जगत में सुप्रसिद्ध समीर लाल की टिप्पणी

मुझे कनाडा आये १० साल से ज्यादा समय हो गया. इस दौरान मात्र एक बार, जो कि ऐतिहासिक दिन बन गया, १४ अगस्त, २००३ को बिजली गई और ऐसी गई कि ४८ घंटे तक पूरा नार्थ अमेरीका बिना बिजली के रहा. सारा जीवन अस्त व्यस्त हो गया. अमरीकी राष्ट्रपति, कनाडा के प्रधानमंत्री सभी ने टीवी पर आकर बाद में जनता से क्षमा मांगी।

फोन लाईने बैठ गई. खाने बनाने के कुकिंग रेंज, ए सी, गरम पानी, फ्रिज सब बंद. लोग एटीएम और क्रेडिट कार्ड के इतने अभयस्त हैं कि २० डालर से ज्यादा कैश नहीं रखते किन्तु बिजली न होने से न तो क्रेडिट कार्ड चल पा रहे थे और न ही एटीएम. ट्रेनें रुक गई तो घर लौटना मुश्किल हुआ जा रहा था दफ्तर से.
सिवाय इस वाकिये के, इन १० सालों में ३-४ बार कुछ सेकेन्ड के लिए ही बिजली गई होगी. यहाँ तो जीवन का आधार ही बिजली है. बाहर कैसा भी मौसम हो -४० डीग्री मगर घर के भीतर बिजली के चलते ही तापमान नियंत्रित किया जाता है. शायद बिना विद्युत प्रवाह के तो एक समय का खाना भी न बन पाये.
मुझे लगता है कि यहाँ पर अब बिना बिजली के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है और सरकार इस दिशा में सतत प्रयास रत रहती है कि २००३ की स्थितियाँ फिर से निर्मित नहीं  हो पायें.
वैसे जनता भी जागरुक है. गर्मी में बिजली की कमी की वजह से जब सरकार घोषणा करती है कि कोशिश करके एनर्जी सेवर डिवाईस लगायें तो सभी लोग तुरंत इस ओर ध्यान देते हैं. एक निश्चित तापमान के बाद एसी कुछ देर बंद हो जाता है और फिर चालू हो जाता है इस डिवाईस से और आपको पता भी नहीं लगता. घोषणा के हिसाब से ही लोग हेवीलोड काम जैसे वाशिंग मशीन, डिश वाशर पीक टाईम के बाद चलाते हैं ताकि लोड एक साथ न पड़े.
बिजली की दर भी सामान्य ही है और एक आम घर का बिजली का बिल ८० से १०० डालर के बीच आता है महिने का.
विद्युत व्यवस्था के हिसाब से इस देश में कोई शिकायत नहीं है.
शायद यही वजह है कि यहाँ आ बसे भारतीय जब भारत पहुँचते हैं तो परेशान हो उठते हैं. सुविधायें बहुत जल्दी आदत खराब करती हैं.

16 अप्रैल, 2010

फीडर विभक्तिकरण योजना

फीडर विभक्तिकरण योजना

बिजली की अद्भुत आसमानी शक्ति को मनुष्य ने आकाश से धरती पर क्या उतारा , बिजली ने इंसान की समूची जीवन शैली ही बदल दी है .अब बिना बिजली के जीवन पंगु सा हो जाता है .भारत में विद्युत का इतिहास १९ वीं सदी से ही है , हमारे देश में कलकत्ता में पहली बार बिजली का सार्वजनिक उपयोग प्रकाश हेतु किया गया था .

आज बिजली के प्रकाश में रातें भी दिन में परिर्वतित सी हो गई . सोते जागते , रात दिन , प्रत्यक्ष या परोक्ष , हम सब आज बिजली पर आश्रित हैं . प्रकाश , ऊर्जा ,पीने के लिये व सिंचाई के लिये पानी ,जल शोधन हेतु , शीतलीकरण, या वातानुकूलन के लिये ,स्वास्थ्य सेवाओ हेतु , कम्प्यूटर व दूरसंचार सेवाओ हेतु , गति, मशीनों के लिये ईंधन ,प्रत्येक कार्य के लिये एक बटन दबाते ही ,बिजली अपना रूप बदलकर तुरंत हमारी सेवा में हाजिर हो जाती है .
रोटी ,कपडा व मकान जिस तरह जीवन के लिये आधारभूत आवश्यकतायें हैं , उसी तरह बिजली , पानी व संचार अर्थात सडक व कम्युनिकेशन देश के औद्योगिक विकास की मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चरल जरूरतें है . इन तीनों में भी बिजली की उपलब्धता आज सबसे महत्व पूर्ण है .
वर्तमान उपभोक्ता प्रधान युग में अभी भी यदि कुछ मोनोपाली सप्लाई मार्केट में है तो वह भी बिजली ही है . आज दुनिया की आबादी लगभग ७८ मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है , पिछले ५० सालों में दुनिया की आबादी दुगनी हो गई है . एक अनुमान के अनुसार आज भी दुनिया की चौथाई आबादी तक बिजली की पहुंच बाकी है . जन जन तक बिजली पहुंचाने के बढ़ते प्रयासों के कारण ही उर्जा के किसी अन्य प्रकार की अपेक्षा बिजली की खपत में असाधारण वृद्धि हो रही है , जिसके चलते बिजली की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम है .न केवल भारत में वरन वैश्विक परिदृश्य में भी बिजली की कमी है .
वर्तमान में पीक विद्युत डिमांड १०८८६६ मेगावाट उत्पादन की होती है , जबकि सारे प्रयासो के बाद भी ९०७९३ मेगावाट विद्युत ही उत्पादित की जा सक रही है , इस तरह १६.६प्रतिशत की पीक डिमांड शार्टेज बनी हुई है . आवश्यक बिजली को यूनिट में देखें तो कुल ७३९ हजार किलोवाट अवर यूनिट , की जगह केवल ६६६हजार किलोवाट अवर यूनिट ही उपलब्ध की जा पा रही है . अनुमानो के अनुसार वर्ष २०११..२०१२ तक १०३० हजार किलोवाट अवर यूनिट बिजली की जरूरत होगी , जो वर्ष २०१६ ..१७ में बढ़कर १४७० हजार किलोवाट अवर यूनिट हो जायेगी . वर्ष २०११..२०१२ तक पीक डिमांड के समय १५२००० मेगावाट के उत्पादन की आवश्यकता अनुमानित है जो वर्ष २०१६ ..१७ अर्थात १२ पंचवर्षीय योजना में बढ़कर २१८२०० मेगावाट हो जाने का पूर्वानुमान लगाया गया है .इस लक्ष्य को सुनिश्चित करने के लिये एक ओर बिजली उत्पादन में वृद्धि के हर संभव प्रयास , उत्पादन में निजि क्षेत्र की भागी दारी को बढ़ावा दिया जा रहा है .
बिजली के साथ एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि इसे व्यवसायिक स्तर पर भण्डारण करके नहीं रखा जा सकता .जो कुछ थोड़ा सा विद्युत भंडारण संभव है वह रासायनिक उर्जा के रूप में विद्युत सैल या बैटरी के रूप में ही संभव है . बिजली का व्यवसायिक उत्पादन व उपभोग साथ साथ ही होता है . शाम के समय जब सारे देश में एक साथ प्रकाश के लिये बिजली का उपयोग बढ़ता है , मांग व आपूर्ति का अंतर सबसे ज्यादा हो जाता है .
बिजली बिल जमा करने मात्र से हम इसके दुरुपयोग करने के अधिकारी नहीं बन जाते , क्योंकि अब तक बिजली की दरें सब्सिडी आधारित हैं, न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब प्रकृति को बचाना भी है .
वर्तमान परिदृश्य में , शहरों में अपेक्षाकृत घनी आबादी होने के कारण गांवो की अपेक्षा शहरों में अधिक विद्युत आपूर्ति बिजली कंपनियो द्वारा की जाने की विवशता होती है .पर इसके दुष्परिणाम स्वरूप गांवो से शहरो की ओर पलायन बढ़ रहा है . है अपना हिंदुस्तान कहाँ ? वह बसा हमारे गांवों में ....विकास का प्रकाश बिजली के तारो से होकर ही आता है . स्वर्णिम मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री जी की महत्वाकांक्षी परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिये गांवो में भी शहरो की ही तरह ग्रामीण क्षेत्रों के घरेलू उपभोक्ताओं को भी विद्युत प्रदाय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रदेश में फीडर विभक्तिकरण की महत्वाकांक्षी समयबद्ध योजना लागू की गई है।
प्रथम चरण में इस कार्य को तहसील फीडरों में किया जाना प्रस्तावित किया गया है। तीनों विद्युत वितरण कंपनियों द्वारा आगामी पाँच वर्षों के लिये 8900 करोड़ रूपये राशि के व्यय से यह लक्ष्य पूर्ण किया जाना प्रस्तावित है।ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण योजना के तहत खेती और घरेलू उपयोग के लिए फीडर अलग-अलग किए जाने हैं। इससे खेती के लिए थ्री फेज पर बिजली आपूर्ति की जाएगी और घरेलू उपयोग के लिए सिंगल फेज पर 24 घंटे बिजली दी जाएगी। बिजली मिलने से गांवों का विकास होगा, साथ ही बिजली चोरी पर भी अंकुश लग सकेगा। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानि में 10 प्रतिशत तक कमी आएगी। एक प्रतिशत लाइन लॉस कम होने से 125 करोड़ रूपए की बचत होगी।इस तरह एक साल में 1250 करोड़ रुपये बचेंगे और कुछ ही सालों मेंफीडर विभक्तिकरण पर किया जा रहा व्यय बिजली की बचत व उसके समुचित उपयोग से निकल आएगा। गुजरात व राजस्थान सरकारों द्वारा पहले ही फीडर विभक्तिकरण योजना क्रियान्वित की जा चुकी है .
तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियों के स्तर में कमी लाने के लिये फीडर विभक्तिकरण योजना को अतिउच्च वोल्टेज प्रणाली के साथ लागू किया गया है। इस योजना के तहत जिन ग्रामीण क्षेत्रों में फीडर विभक्तिकरण कार्य किया जा रहा है, वहां विद्युत प्रदाय में सुधार के साथ-साथ वोल्टेज के स्तर में भी सुधार होगा तथा तकनीकी हानियों में भी कमी होगी .
राज्य शासन द्वारा गत वर्ष 2008-09 में प्रदेश की तीन विद्युत वितरण कंपनियों को 100 करोड़ रूपये की राशि मुहैया करायी गई थी। फीडर विभक्तिकरण के लिय विश्व बैंक तथा एशियन डेव्हलपमेंट बैंक व पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से ऋण प्राप्त करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं। फीडर विभक्तिकरण कार्यों के लिये वर्ष 2009-10 के बजट में 8 करोड़ रूपये का प्रावधान भी किया गया है।
राज्य शासन का लक्ष्य है कि 2013 तक जहां प्रदेश स्वर्णिम प्रदेश के रूप में स्थापित होगा, वहीं बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा। फीडर विभक्तिकरण योजना के अन्तर्गत ग्रामीण कृषि पम्प उपभोक्ताओं एवं ग्रामीण घरेलू उपभोक्ताओं को अलग अलग फीडरों से गुणवत्तापूर्ण एवं सतत विद्युत प्रदाय किया जावेगा। फीडर विभक्तिकरण योजना को मूर्तरूप देने के लिए ही राज्य शासन ने प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों में हाल ही में नए पद स्वीकृत किए हैं। इन पदों की स्वीकृति का उद्देश्य यह है कि वर्ष 2013 तक फीडर विभक्तिकरण योजना के कार्य पूरे हो जाएं और इसमें विद्युत कर्मियों की कमी आड़े न आए। अनुमान है कि फीडर विभक्तिकरण से वितरण हानियों के स्तर को 20 प्रतिशत या 20 प्रतिशत से भी कम पर लाया जा सकेगा।
विद्युत तंत्र हमारी सुख सुविधा का साधन है, उसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी हैं । यह सार्वजनिक हित का साझा संसाधन है , अतः हर यूनिट बिजली का समुचित उपयोग हो सके, इसी दिशा में फीडर विभक्तिकरण परियोजना एक मील का पत्थर प्रमाणित होगी .

07 अप्रैल, 2010

बिन बिजली सब सून....बिजली बचाओ धरती बचाओ !

बिन बिजली सब सून....बिजली बचाओ धरती बचाओ !
पर आप जानते हैं कि बिजली केवल उतने की ही नही है जितने रुपये आप बिजली बिल के देते हैं , न केवल सब्सिडाइज्ड दरों के कारण , वरन इसलिये भी क्योंकि ताप बिजली बनाने के लिये जो कोयला लगता है , उसके भंडार सीमित हैं , ताप विद्युत उत्पादन से जो प्रदूषण फैलता है वह पर्यावरण के लिये हानिकारक है , इसलिये बिजली बचाने का मतलब है प्रकृति को बचाना ... व्यर्थ बिजली न जलने दें